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Griha Pravesh Muhurat 2026: जानें साल 2026 में गृह प्रवेश मुहूर्त, प्रवेश तिथि लिस्ट यहाँ देखें!

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रविवार

क्या आपने हाल ही में नया घर खरीदा है और अब गृह प्रवेश के शुभ समय की तलाश में हैं? या आप जानना चाहते हैं कि वर्ष 2026 में गृह प्रवेश के लिए कौन-सा मुहूर्त सबसे उचित रहेगा? सही शुभ मुहूर्त की जानकारी आपके नए घर में मंगलमय प्रवेश के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकती है।

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    Griha Pravesh Muhurat in 2026: क्या आप 2026 में अपने नए घर में प्रवेश की योजना बना रहे हैं और यह जानने को उत्सुक हैं कि गृह प्रवेश के लिए कौन-से दिन सबसे शुभ रहेंगे? यदि हां, तो यह लेख आपके लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। हिंदू परंपरा में गृह प्रवेश एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है, जिसे शुभ मुहूर्त पर करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

    साल 2026 में गृह प्रवेश के लिए कई शुभ तिथियाँ मिलेंगी, लेकिन हर घर और परिवार के लिए एक ही मुहूर्त उचित नहीं होता। शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त का चयन पंचांग, नक्षत्र, वार, तिथि और लग्न को ध्यान में रखकर किया जाता है। विशेष रूप से जब घर नया बना हो या हाल ही में खरीदा गया हो, तो वास्तु दोष और ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए शुभ दिन पर गृह प्रवेश करना अत्यंत आवश्यक माना जाता है।

    इस लेख में हम आपके लिए वर्ष 2026 के सभी शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त / kab karen griha pravesh प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि आप पहले से अपनी योजनाएँ बना सकें और नए घर की शुरुआत शुभता, समृद्धि और मंगलमय वातावरण के साथ कर सकें।

    गृह प्रवेश क्या होता है? What is Griha Pravesh

    गृह प्रवेश वह महत्वपूर्ण संस्कार है, जब कोई परिवार अपने नए घर में पहली बार प्रवेश करता है। यह केवल एक पारंपरिक रीति नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान है, जिसका उद्देश्य नए घर में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-शांति और समृद्धि का स्वागत करना होता है।

    हिंदू धर्मग्रंथों में बताया गया है कि नए घर में प्रवेश करने से पूर्व विशेष पूजन, हवन और देवताओं की आराधना करना आवश्यक माना जाता है। इसी प्रक्रिया को गृह प्रवेश पूजा कहा जाता है। इसे संपन्न करने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं, नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है और परिवार के जीवन में सुख-समृद्धि आने का मार्ग प्रशस्त होता है।

    गृह प्रवेश के सामान्यतः तीन प्रमुख प्रकार बताए गए हैं:

    1. अपूर्व गृह प्रवेश – जब कोई परिवार पहली बार नए घर में प्रवेश करता है।
    2. सपुर्व गृह प्रवेश – जब पहले से बसे हुए घर में कुछ समय बाहर रहने के बाद पुनः प्रवेश किया जाता है।
    3. द्वितीयक गृह प्रवेश – किसी विशेष कारण, जैसे पुनर्निर्माण या मरम्मत के उपरांत, घर में दोबारा प्रवेश करना।

    गृह प्रवेश सदैव शुभ मुहूर्त में किया जाता है, ताकि नए जीवन की शुरुआत मंगलमय हो और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास हो।



    गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त 2026: Grih Pravesh Shubh Muhurat 2026

    2026 Kab Hai Griha Pravesh Muhurat: यदि आप गृह प्रवेश समारोह की योजना बना रहे हैं, तो 2026 का गृह प्रवेश मुहूर्त (Griha Pravesh Muhurat 2026) आपके लिए शुभ साबित हो सकता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी की सलाह लेकर, आप आने वाले वर्ष में गृह प्रवेश के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त और अनुकूल नक्षत्र चुन सकते हैं।

    जनवरी 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: January Griha Pravesh Muhurat 2026

    • धार्मिक परंपराओं के अनुसार, जब ग्रहों की स्थिति अनुकूल न हो, तब गृह प्रवेश करना उचित नहीं माना जाता। इसी कारण वर्ष 2026 के इन महीनों में नक्षत्रों की अशुभ स्थिति के चलते कोई शुभ मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।

    फरवरी 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: February Griha Pravesh Muhurat 2026

    यदि आप फरवरी 2026 में नए घर में प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो यह महीना आपके लिए कई शुभ अवसर लेकर आ रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फरवरी में गृह प्रवेश के लिए कुल 7 शुभ मुहूर्त उपलब्ध हैं, जो चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और मृगशिरा जैसे नक्षत्रों में मिलते हैं। 6 फरवरी से 26 फरवरी 2026 के बीच विभिन्न तिथियों पर गृह प्रवेश करना शुभ रहेगा। वास्तु के अनुसार सही समय चुनने के लिए नीचे दिए गए मुहूर्त आपकी मदद करेंगे।

    फरवरी 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (February Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 6 फरवरी 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 12:23 बजे से 7 फरवरी तड़के 1:18 बजे तक — नक्षत्र: चित्रा, हस्त, तिथि: षष्ठी, पञ्चमी
    • 11 फरवरी 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 9:58 बजे से 10:53 बजे तक — नक्षत्र: ज्येष्ठा, अनुराधा, तिथि: दशमी, नवमी
    • 19 फरवरी 2026, गुरुवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 8:52 बजे से 20 फरवरी सुबह 6:55 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराभाद्रपद, तिथि: तृतीया
    • 20 फरवरी 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:55 बजे से दोपहर 2:38 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराभाद्रपद, तिथि: तृतीया
    • 21 फरवरी 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त:  दोपहर 1:00 बजे से शाम 7:07 बजे तक — नक्षत्र: रेवती, तिथि: पञ्चमी
    • 25 फरवरी 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 2:40 बजे से 26 फरवरी सुबह 6:49 बजे तक — नक्षत्र: मृगशिरा, तिथि: दशमी
    • 26 फरवरी 2026, बृहस्पतिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:49 बजे से दोपहर 12:11 बजे तक — नक्षत्र: मृगशिरा, तिथि: दशमी

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    मार्च 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: March Griha Pravesh Muhurat 2026

    क्या मार्च 2026 में गृह प्रवेश का सपना पूरा करना चाहते हैं? आपके लिए अच्छी खबर है! इस महीने हिंदू पंचांग के अनुसार कई शुभ मुहूर्त उपलब्ध हैं, जो गृह प्रवेश के लिए अत्यंत उपयुक्त माने जाते हैं। विशेषकर उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा और उत्तराषाढ़ा जैसे शुभ नक्षत्रों में आने वाले ये मुहूर्त न केवल ज्योतिषीय दृष्टि से श्रेष्ठ हैं, बल्कि सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का भी संकेत देते हैं। यदि आप नए घर में शुभ समय पर प्रवेश करना चाहते हैं, तो 4 मार्च से 14 मार्च 2026 तक ये मुहूर्त आपके लिए बेहद लाभकारी होंगे। नीचे दिए गए समय और तिथियों को ध्यान से देखें और वास्तु तथा ज्योतिष के अनुसार अपने गृह प्रवेश की योजना बनाएं।

    मार्च 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (March Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 4 मार्च 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 7:39 बजे से 5 मार्च सुबह 6:42 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराफाल्गुनी, तिथि: प्रतिपदा, द्वितीया
    • 5 मार्च 2026, गुरुवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:42 बजे से 8:17 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराफाल्गुनी, तिथि: द्वितीया
    • 6 मार्च 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 9:29 बजे से शाम 5:53 बजे तक — नक्षत्र: चित्रा, तिथि: तृतीया
    • 9 मार्च 2026, सोमवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 11:27 बजे से 10 मार्च सुबह 6:37 बजे तक — नक्षत्र: अनुराधा, तिथि: सप्तमी
    • 13 मार्च 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 3:03 बजे से 14 मार्च सुबह 6:32 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: दशमी
    • 14 मार्च 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:32 बजे से 15 मार्च तड़के 4:49 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: दशमी, एकादशी

    अप्रैल 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: April Griha Pravesh Muhurat 2026

    यदि आप अप्रैल 2026 में नए घर में प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण है। 20 अप्रैल 2026, सोमवार को एक शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त है, जो रोहिणी नक्षत्र में आता है। रोहिणी चंद्रमा का बहुत ही शुभ नक्षत्र माना जाता है और यह गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

    अप्रैल 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (April Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 20 अप्रैल 2026, सोमवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:51 बजे से 7:27 बजे तक — नक्षत्र: रोहिणी, तिथि: तृतीया

    मई 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: May Griha Pravesh Muhurat 2026

    यदि आप मई 2026 में नए घर में गृह प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो यह महीना आपके लिए कई शुभ अवसर लेकर आया है। पंचांग के अनुसार, मई में कुल तीन शुभ तिथियां—4 मई, 8 मई और 13 मई 2026—गृह प्रवेश के लिए उपयुक्त हैं। इन दिन आने वाले नक्षत्र जैसे अनुराधा, उत्तराषाढा और उत्तरभाद्रपद गृह प्रवेश के लिए अत्यंत फलदायक माने जाते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्तों में से आप अपना सर्वश्रेष्ठ समय चुनकर नए घर में सौभाग्य के साथ प्रवेश कर सकते हैं।

    मई 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (May Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 4 मई 2026, सोमवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:38 बजे से 9:58 बजे तक — नक्षत्र: अनुराधा, तिथि: तृतीया
    • 8 मई 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: दोपहर 12:21 बजे से रात 9:20 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: सप्तमी
    • 13 मई 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:32 बजे से दोपहर 1:29 बजे तक — नक्षत्र: उत्तर भाद्रपद, तिथि: एकादशी

    जून 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: June Griha Pravesh Muhurat 2026

    यदि जून 2026 में नए घर में गृह प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो यह महीना कई शुभ तिथियां लेकर आया है। 24, 26 और 27 जून को चित्रा और अनुराधा नक्षत्र में विशेष गृह प्रवेश मुहूर्त बनेंगे, जो पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ माने जाते हैं। चाहे सुबह हो या रात, इन तारीखों पर आपको वास्तु और ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार उत्तम समय मिलेगा। नीचे दिए गए विवरण के आधार पर सही मुहूर्त चुनकर नए घर में शुभता के साथ प्रवेश करें।

    जून 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (June Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 24 जून 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:25 बजे से दोपहर 1:59 बजे तक — नक्षत्र: चित्रा, तिथि: दशमी
    • 26 जून 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 10:22 बजे से 27 जून सुबह 5:25 बजे तक — नक्षत्र: अनुराधा, तिथि: त्रयोदशी
    • 27 जून 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:25 बजे से रात 10:11 बजे तक — नक्षत्र: अनुराधा, तिथि: त्रयोदशी

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    जुलाई 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: July Griha Pravesh Muhurat 2026

    जुलाई 2026 में नए घर में गृह प्रवेश का सपना पूरा करने वालों के लिए यह महीना शुभ अवसर लेकर आया है। पंचांग के अनुसार, 1, 2 और 6 जुलाई को उत्तराषाढा और उत्तर भाद्रपद नक्षत्रों में खास गृह प्रवेश मुहूर्त बनेंगे। ये नक्षत्र स्थिरता, सुख और समृद्धि देने वाले माने जाते हैं, इसलिए इस समय गृह प्रवेश विशेष रूप से फलदायी होगा। नए घर में सकारात्मक ऊर्जा के साथ प्रवेश करने के लिए नीचे दिए गए शुभ समय का लाभ जरूर उठाएं।

    जुलाई 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (July Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 1 जुलाई 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:51 बजे से 2 जुलाई सुबह 5:27 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: द्वितीया
    • 2 जुलाई 2026, बृहस्पतिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 5:27 बजे से 9:27 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: द्वितीया
    • 6 जुलाई 2026, सोमवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: दोपहर 4:07 बजे से 7 जुलाई सुबह 5:29 बजे तक — नक्षत्र: उत्तर भाद्रपद, तिथि: सप्तमी

    अगस्त 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: August Griha Pravesh Muhurat 2026

    • अगस्त 2026 में गृह प्रवेश के लिए कोई शुभ समय उपलब्ध नहीं है।

    सितंबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: September Griha Pravesh Muhurat 2026

    • सितंबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए कोई शुभ समय उपलब्ध नहीं है।

    अक्टूबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: October Griha Pravesh Muhurat 2026

    • अक्टूबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए कोई शुभ समय उपलब्ध नहीं है।

    नवंबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: November Griha Pravesh Muhurat 2026

    यदि नवम्बर 2026 में नए घर में गृह प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो यह महीना आपके लिए खास होगा। पंचांग के अनुसार, नवम्बर में कुल 6 शुभ तिथियां—11, 14, 20, 21, 25 और 26 नवम्बर—गृह प्रवेश के लिए उपलब्ध हैं। इन तिथियों में अनुराधा, उत्तराषाढा, उत्तर भाद्रपद, अश्विनी, रेवती, रोहिणी और मृगशिरा जैसे शुभ नक्षत्र बन रहे हैं, जो गृह प्रवेश के लिए बेहद मंगलकारी माने जाते हैं। नए घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा के साथ प्रवेश के लिए नीचे दिए गए शुभ मुहूर्तों की मदद से उपयुक्त तिथि चुन सकते हैं।

    नवंबर 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (November Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 11 नवम्बर 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:40 बजे से 11:38 बजे तक — नक्षत्र: अनुराधा, तिथि: द्वितीया
    • 14 नवम्बर 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 8:24 बजे से 11:23 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: पञ्चमी
    • 20 नवम्बर 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:56 बजे से 21 नवम्बर सुबह 6:31 बजे तक — नक्षत्र: उत्तर भाद्रपद, तिथि: एकादशी
    • 21 नवम्बर 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 4:56 बजे से 22 नवम्बर सुबह 5:54 बजे तक — नक्षत्र: अश्विनी, रेवती, तिथि: त्रयोदशी, द्वादशी
    • 25 नवम्बर 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:52 बजे से 26 नवम्बर सुबह 6:53 बजे तक — नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, तिथि: प्रतिपदा, द्वितीया
    • 26 नवम्बर 2026, गुरुवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:52 बजे से शाम 5:47 बजे तक — नक्षत्र: मृगशिरा, तिथि: द्वितीया, तृतीया

    दिसंबर 2026 में गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त: December Griha Pravesh Muhurat 2026

    दिसंबर 2026 में नया घर लेने या गृह प्रवेश की योजना बनाने वालों के लिए यह महीना अत्यंत शुभ रहेगा। पंचांग के अनुसार, दिसंबर में कुल 8 शुभ तिथियां—2, 3, 4, 11, 12, 18, 19 और 30 दिसंबर—गृह प्रवेश के लिए उपलब्ध हैं। इन तिथियों पर उत्तराफाल्गुनी, चित्रा, उत्तराषाढ़ा और रेवती जैसे शुभ नक्षत्र बनेंगे, जो गृह प्रवेश के लिए अत्यंत फलदायक माने जाते हैं। यदि आप अपने नए घर में सुख, शांति और समृद्धि चाहते हैं, तो नीचे दिए गए मुहूर्तों में से उचित समय चुन सकते हैं।

    दिसंबर 2026 के लिए शुभ गृह प्रवेश मुहूर्त की जांच यहां करें: (December Grih Pravesh Shubh Muhurat)

    • 2 दिसंबर 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 10:51 बजे से 3 दिसंबर सुबह 6:58 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराफाल्गुनी, तिथि: दशमी
    • 3 दिसंबर 2026, गुरुवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 6:58 बजे से 9:23 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराफाल्गुनी, तिथि: दशमी
    • 4 दिसंबर 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 10:22 बजे से रात 11:44 बजे तक — नक्षत्र: चित्रा, तिथि: एकादशी
    • 11 दिसंबर 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 3:04 बजे से 12 दिसंबर सुबह 7:04 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: तृतीया
    • 12 दिसंबर 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 7:04 बजे से दोपहर 2:06 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराषाढा, तिथि: तृतीया
    • 18 दिसंबर 2026, शुक्रवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: रात 11:14 बजे से 19 दिसंबर सुबह 7:09 बजे तक — नक्षत्र: रेवती, तिथि: दशमी
    • 19 दिसंबर 2026, शनिवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 7:09 बजे से दोपहर 3:58 बजे तक — नक्षत्र: रेवती, तिथि: दशमी
    • 30 दिसंबर 2026, बुधवार, गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त: सुबह 7:13 बजे से दोपहर 12:36 बजे तक — नक्षत्र: उत्तराफाल्गुनी, तिथि: सप्तमी

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    गृह प्रवेश के लिए शुभ महीने

    • माघ (जनवरी–फरवरी): धन लाभ के लिए शुभ।
    • फाल्गुन (फरवरी–मार्च): संतान सुख और आर्थिक उन्नति का कारक।
    • बैशाख (अप्रैल–मई): समृद्धि तथा धन वृद्धि प्रदान करने वाला।
    • ज्येष्ठ (मई–जून): पशुधन व संपत्ति के लिए मंगलकारी।

    गृह प्रवेश हेतु अशुभ महीने

    • आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और पौष

    गृह प्रवेश का महत्व – सरल और सहज भाषा में

    घर बनाना या खरीदना हर व्यक्ति का सपना होता है, क्योंकि यह खुशियों, तरक्की और नए जीवन के सफर की शुरुआत का प्रतीक है। जब आप पहली बार अपने नए घर में प्रवेश करते हैं, तो इसे 'गृह प्रवेश' कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस परंपरा को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है।

    2026 वर्ष के लिए गृह प्रवेश के अनुकूल शुभ नक्षत्र

    • रोहिणी – यह शुभ नक्षत्र समृद्धि और वृद्धि का प्रतीक है, नए कार्यों की शुरुआत के लिए अनुकूल है।
    • मृगशिरा – यह नक्षत्र घर में शांति और सौहार्द लाने वाला माना जाता है।
    • उत्तर फाल्गुनी – यह नक्षत्र स्थिरता और सौभाग्य प्रदान करता है।
    • चित्रा – यह नक्षत्र रचनात्मकता, धन और समृद्धि आकर्षित करता है।
    • रेवती – यह नक्षत्र खुशी, संपन्नता और समग्र कल्याण लाने वाला होता है।
    • उत्तराषाढ़ा – यह नक्षत्र सफलता, धन और दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करता है।
    • अनुराधा – यह नक्षत्र लंबे समय तक चलने वाले संबंधों और घरेलू सफलता को बढ़ावा देता है।

    गृह प्रवेश को तभी मंगलकारी माना जाता है, जब नक्षत्र शुभ स्थिति में हों। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र हैं, जो चंद्रमा की विभिन्न राशियों में विद्यमान रहते हैं। चंद्रमा प्रत्येक नक्षत्र में लगभग एक दिन का समय व्यतीत करता है। पंचांग और हिंदू कैलेंडर में नक्षत्रों का विशेष महत्व बताया गया है क्योंकि इनके आधार पर ही शुभ मुहूर्त निर्धारित किए जाते हैं।

    ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के अनुसार, गृह प्रवेश व पूजा उन्हीं नक्षत्रों में करना शुभ होता है, जो अनुकूल हों, ताकि घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा स्थापित हो सके।

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    गृह प्रवेश पूजन का महत्व

    हिंदू परंपरा में, नए घर में प्रवेश से पहले गृह प्रवेश पूजन करना आवश्यक माना गया है। ‘गृह प्रवेश’ शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘गृह’ अर्थात् घर और ‘प्रवेश’ अर्थात् अंदर प्रवेश करना।

    • वास्तु शास्त्र का महत्व: वास्तु के अनुसार, शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश पूजा करने से घर के वास्तु दोष दूर होते हैं और स्थान शुद्ध हो जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है तथा यह पूजा जीवन में केवल एक बार की जाती है।
    • पांच तत्वों का संतुलन: इस पूजन का उद्देश्य पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन पांच प्राकृतिक तत्वों के संतुलन को बनाए रखना है। इससे परिवारिक सुख, समृद्धि और घर का वातावरण आनंदमय बनता है।
    • नए घर की पवित्रता: मान्यता है कि घर मात्र एक भौतिक संरचना नहीं, बल्कि एक जीवंत स्वरूप है। गृह प्रवेश पूजा इसे परिवार का हिस्सा बनाती है और सुरक्षा, शांति व खुशहाली सुनिश्चित करती है।
    • नई शुरुआत का प्रतीक: शुभ दिन पर नए घर में प्रवेश और पूजन करना जीवन में सकारात्मकता और नई शुरुआत का प्रतीक है। यह धन, स्वास्थ्य और पारिवारिक खुशियों को आमंत्रित करता है।
    • नकारात्मक ऊर्जा का शुद्धिकरण: यह पूजा आध्यात्मिक शुद्धिकरण की प्रक्रिया भी है, जिसमें मंत्रोच्चार, धूप, कपूर और पवित्र जल से घर को पवित्र किया जाता है। इससे निर्माण कार्य या पूर्व निवासियों की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
    • दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद: गृह प्रवेश पूजा परिवार को नई यात्रा की शुरुआत, प्रेम और आपसी संबंधों की मजबूती का संकल्प दिलाती है। यह घर में शांति व अच्छे संस्कारों का प्रसार करती है।
    • ज्योतिषीय महत्व: ग्रहों की अनुकूल स्थिति और शुभ मुहूर्त में पूजा करने से घर में सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।
    • नक्षत्रों का महत्व: नए घर में प्रवेश तभी शुभ माना जाता है जब नक्षत्र अनुकूल हों। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं, जिनमें चंद्रमा क्रमशः लगभग एक दिन तक निवास करता है। हिंदू पंचांग में इन्हीं नक्षत्रों के आधार पर शुभ मुहूर्त की गणना की जाती है।

    गृह प्रवेश का प्रतीकात्मक महत्व

    वास्तु शास्त्र के अनुसार, गृह प्रवेश पूजा के समय देवी-देवताओं को विशेष भेंट अर्पित की जाती है, जिनका अपना प्रतीकात्मक महत्व होता है।

    • नारियल: इसे पवित्रता, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। गृह प्रवेश पर द्वार पर नारियल फोड़ने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
    • चावल और अनाज: चावल पूजा का मुख्य हिस्सा है, जो घर में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक है।
    • पवित्र जल: गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी का जल पूरे घर में छिड़ककर शुद्धि की जाती है।
    • दीये और कपूर: दीया जलाना अंधकार और अज्ञान को दूर करने का प्रतीक है, वहीं कपूर वातावरण को शुद्ध करता है।
    • फूल: घर में ताजगी और दिव्यता लाने के साथ देवताओं की कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
    • दूध और शहद: दूध को शहद के साथ उबालना मिठास, एकता और इच्छाओं की पूर्ति का प्रतीक माना जाता है।

    गृह प्रवेश में शुभ मुहूर्त और नक्षत्रों का महत्व

    नए घर में प्रवेश करने से पहले सही समय का चुनाव करना अत्यंत आवश्यक माना गया है। वास्तु और ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों के अनुसार, गृह प्रवेश तभी किया जाना चाहिए जब ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। इसके लिए पंचांग देखने या किसी वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श लेना लाभकारी होता है।

    जानकारों का मत है कि खरमास, श्राद्ध और चातुर्मास की अवधि गृह प्रवेश के लिए अशुभ मानी जाती है। साथ ही, अलग-अलग क्षेत्रों के पंचांग में भिन्नता हो सकती है, इसलिए स्थानीय परंपराओं का भी पालन करना आवश्यक है।

    इसके अतिरिक्त, शुभ नक्षत्रों के दौरान गृह प्रवेश करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं, जिनमें चंद्रमा क्रमशः लगभग एक-एक दिन तक निवास करता है। यही नक्षत्र पंचांग का मुख्य आधार होते हैं और इन्हीं के आधार पर शुभ मुहूर्त निर्धारित किए जाते हैं।

    गृह प्रवेश क्यों आवश्यक है?

    गृह प्रवेश का अर्थ है—घर में रहने से पहले एक विशेष पूजा करना। ऐसा माना जाता है कि शुभ मुहूर्त पर घर में प्रवेश करने से वहां सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। यदि गलत समय पर प्रवेश किया जाए तो घर में अशांति और बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

    किस बातों का रखें ध्यान?

    1. सही समय चुनें: गृह प्रवेश के लिए माघ, फाल्गुन, वैशाख और ज्येष्ठ महीने अत्यंत शुभ माने जाते हैं। जबकि आश्विन, पौष, भाद्रपद, श्रावण और आषाढ़ महीनों में गृह प्रवेश से बचना उचित होता है।
    2. सही दिन और तिथि का चुनाव करें:
      • अमावस्या, पूर्णिमा, पंचक और ग्रहण वाले दिन टालें।
      • शुभ तिथियां हैं—शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी।
      • गृह प्रवेश मंगलवार को नहीं करना चाहिए, और विशेष परिस्थितियों को छोड़कर रविवार और शनिवार भी टालना बेहतर होता है।
    3. शुक्र और गुरु ग्रह के अस्त होने पर गृह प्रवेश करना अशुभ माना जाता है, इसलिए इन ग्रहों की स्थिति की जांच अवश्य करें।

    वास्तु शांति के लिए शुभ मुहूर्त चुनने के उपाय

    वास्तु शास्त्र के अनुसार, गृह प्रवेश के समय वास्तु शांति पूजा करने से घर के दोष दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। सही वास्तु शांति मुहूर्त चुनने के लिए कुछ विशेष ग्रह स्थितियां इस प्रकार मानी जाती हैं –

    • शुभ योग: यह योग समृद्धि और उन्नति को बढ़ाता है।
    • अमृत सिद्धि योग: सफलता, शांति और सौभाग्य प्रदान करने वाला योग।
    • सर्वार्थ सिद्धि योग: नए कार्यों की शुरुआत और मंगल कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

    स्थान और जन्म कुंडली को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त वास्तु शांति मुहूर्त तय करने के लिए किसी योग्य वास्तु विशेषज्ञ या ज्योतिषी से परामर्श लेना उचित होता है।

    गृह प्रवेश के दिन क्या-क्या लाना चाहिए?

    • गृह प्रवेश के समय पति-पत्नी के हाथों में चावल, दही, गुड़, हल्दी, नारियल और नारियल का पानी होना चाहिए।
    • घर में सबसे पहले भगवान गणेश की मूर्ति, दक्षिणावर्ती शंख, और श्री यंत्र लाना आवश्यक है।
    • प्रवेश के दौरान महिला बाएं पैर से और पुरुष दाएं पैर से घर में कदम रखें।

    क्या है गृह शांति पूजा?

    गृह शांति’ एक संस्कृत पद है, जहाँ ‘गृह’ का अर्थ ग्रह और ‘शांति’ का अर्थ है शांति प्रदान करना। यह पूजा गृह प्रवेश के समय नवग्रहों को शांत करने के उद्देश्य से की जाती है। इसे अक्सर वास्तु शांति पूजा के साथ सम्पन्न किया जाता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और परिवार पर शुभ आशीर्वाद बना रहता है।

    गृह शांति पूजन का महत्व

    वास्तु शास्त्र के अनुसार, ग्रहों का मानव जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। गृह प्रवेश और वास्तु शांति पूजा के लिए शुभ मुहूर्त निर्धारित करने में ग्रहों की अनुकूल स्थिति विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है।

    • बृहस्पति (Jupiter): यह ग्रह समृद्धि और विकास का कारक माना जाता है। गृह प्रवेश के समय बृहस्पति वक्री या अशुभ ग्रहों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
    • बुध (Mercury): इसकी अनुकूल स्थिति घर में संवाद, सौहार्द और आपसी समझ बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है।
    • मंगल (Mars): भूमि और निर्माण से संबंधित ग्रह होने के कारण इसकी शुभ स्थिति गृह शांति मुहूर्त के लिए महत्वपूर्ण है, ताकि घर में स्थिरता और सुरक्षा बनी रहे।

    पूजा विधि कैसे करें?

    • पूजा के लिए आवश्यक सामग्री: कलश, नारियल, गंगाजल, शुद्ध पानी, हल्दी, कुमकुम, चावल, कपूर, अगरबत्ती, अबीर-गुलाल, दूध, गुड़ आदि।
    • मंगल कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल और आम या अशोक के आठ पत्ते रखें। ऊपर कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं।
    • कलश को घर के उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में स्थापित करें और भगवान गणेश के मंत्र का जाप करें।
    • रसोई में विशेष पूजा करें, वहां पहली बार मीठा बनाएं और पहले भगवान को भोग लगाएं।
    • इसके बाद यह भोजन गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी को दें।
    • जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान करना न भूलें।

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    गृह प्रवेश का शुभ मुहूर्त कैसे तय किया जाता है?

    गृह प्रवेश का मुहूर्त कई महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर तय किया जाता है, जिनमें प्रमुख हैं –

    • तारों और नक्षत्रों का संयोग: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी जैसे कुछ नक्षत्र अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इनकी ऊर्जा घर में सकारात्मक वातावरण और संतुलन स्थापित करने में सहायक होती है।
    • ग्रहों की स्थिति: शुभ मुहूर्त निकालते समय गुरू और शुक्र जैसे मुख्य ग्रहों की स्थिति विशेष रूप से देखी जाती है। साथ ही, इन ग्रहों के अस्त होने की स्थिति से भी बचा जाता है।
    • शुभ लग्न: परिजनों की कुंडली का लग्न, घर के वास्तु के अनुरूप हो, इसका ध्यान रखा जाता है ताकि घर में ऊर्जा का प्रवाह सहज और लाभदायक हो।
    • सूर्योदय और सूर्यास्त: गृह प्रवेश आमतौर पर सूर्योदय के 4 घंटे बाद या सूर्यास्त से 4 घंटे पहले की अवधि में करना शुभ माना जाता है।
    • सूर्य और चंद्रमा की स्थिति: इन दोनों ग्रहों की स्थिति भी मुहूर्त निर्धारण में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
    • व्यक्ति की कुंडली: कई बार व्यक्ति और घर में रहने वाले अन्य सदस्यों की कुंडली का अध्ययन करके ही अंतिम मुहूर्त निर्धारित किया जाता है।
    • चंद्र कैलेंडर: चंद्र पंचांग के आधार पर शुभ तिथियों का चयन किया जाता है, क्योंकि इसके अनुसार तिथियां बदल सकती हैं।
    • अधिक मास: पंचांग में अतिरिक्त माह (अधिक मास) होने पर शुभ मुहूर्त चयन में विशेष सावधानी रखी जाती है।
    • अधिक मास: यह पंचांग में जुड़ा हुआ एक अतिरिक्त महीना होता है। गृह प्रवेश या अन्य मांगलिक कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त तय करते समय अधिक मास का विशेष ध्यान रखा जाता है।
    • अनुकूल मुहूर्त चुनते समय उन तिथियों और कालों से अवश्य बचना चाहिए जिन्हें अशुभ माना गया है, जैसे राहुकाल, अमावस्या, भद्रा और ग्रहण काल।

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    क्या बसंत पंचमी के दिन गृह प्रवेश करना शुभ माना जाता है?

    बसंत पंचमी एक प्रमुख हिंदू पर्व है, जो ज्ञान और विद्या की देवी मां सरस्वती को समर्पित होता है तथा बसंत ऋतु की शुरुआत का सूचक माना जाता है। इस दिन को नए कार्यों, विशेषकर गृह प्रवेश जैसे मंगलकारी अवसरों की शुरुआत के लिए शुभ समझा जाता है। उचित मुहूर्त के चयन के लिए ज्योतिषी या वास्तु विशेषज्ञ की सलाह लेना लाभदायक होता है, जो कुंडली, स्थान एवं अन्य कारकों के आधार पर श्रेष्ठ समय निर्धारित करते हैं।

    सबसे शुभ मुहूर्त कौन से होते हैं?

    धर्मशास्त्रों में 15 विशेष योग गृह प्रवेश के लिए अत्यंत शुभ माने गए हैं: रुद्र, श्वेत, मित्र, सार्भट, सावित्र, वैराज, विश्ववसु, अभिजीत, रोहिणी, बाल, विजय, रेणेत, वरुण, सौम्य और भाग।

    इन योगों में गृह प्रवेश करने से घर में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

    चोघड़िया का खास ध्यान रखें

    गृह प्रवेश के लिए अमृत, शुभ, लाभ और चर चोघड़िया को सबसे शुभ माना जाता है, जबकि उद्वेग, काल और रोग वाले चोघड़िया अशुभ होते हैं।

    गृह प्रवेश केवल एक रस्म नहीं, बल्कि ऊर्जा से भरी नई शुरुआत है। यदि सही समय, पूजा और नियमों का पालन किया जाए, तो यह आपके घर को जीवन भर खुशियों और समृद्धि से भर सकता है।

    चोघड़िया का महत्व ध्यान रखें

    चौघड़िया एक वैदिक पद्धति है, जिसका उपयोग दिन के शुभ-अशुभ समय का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इसमें पूरे दिन को 7 खंडों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक खंड का प्रभाव अलग-अलग होता है। ये खंड इस प्रकार हैं:

    • शुभ (शुभकारी): इस समय आरंभ किए गए कार्य सकारात्मक परिणाम प्रदान करते हैं।
    • लाभ (लाभदायक): यह समय लाभदायक माना जाता है और नए आरंभ, जैसे गृह प्रवेश, के लिए उपयुक्त होता है।
    • अमृत (श्रेष्ठतम): यह सबसे अनुकूल समय होता है, जो सफलता, शांति और सौभाग्य देता है।
    • चल (सामान्य): अन्य विशेष मुहूर्त न मिलने पर गृह प्रवेश के लिए इसे उचित माना जाता है।
    • उद्वेग (अशुभ): इस अवधि में कार्य करने से तनाव और मानसिक अशांति बढ़ सकती है।
    • काल (अशुभ): इस समय कार्यों में रुकावटें और बाधाएं आने की संभावना रहती है।
    • रोग (अशुभ): इस दौरान गृह प्रवेश या पूजा करने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

    घर बदलने के लिए सबसे शुभ दिन

    • सोमवार: सप्ताह के सबसे शुभ दिनों में से एक माने जाने वाला सोमवार चंद्रमा का दिन है। चंद्रमा शांति, स्थिरता और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन घर बदलने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन आता है।
    • बुधवार: बुध ग्रह का दिन रिश्तों में मधुरता और सहज संवाद का द्योतक है। इस दिन गृह प्रवेश से परिवार में सामंजस्य बढ़ता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।
    • गुरुवार: यह दिन बृहस्पति यानी गुरु ग्रह से संबंधित है, जो ज्ञान, धन और दीर्घकालिक सफलता का प्रतीक माना जाता है। गुरुवार का गृह प्रवेश घर में देवी लक्ष्मी और बुद्धि का वास कराता है।
    • शुक्रवार: शुक्र ग्रह को प्रेम, सौंदर्य और ऐश्वर्य का कारक माना जाता है। शुक्रवार को नए घर में प्रवेश करने से दांपत्य जीवन मधुर बनता है और घर में खुशहाली आती है।
    • रविवार: सूर्य देव का दिन होने के कारण यह आत्मबल, यश और सफलता से जुड़ा हुआ है। रविवार को गृह प्रवेश करने से घर में सौभाग्य, सकारात्मकता और शक्ति का संचार होता है।

    घर बदलने के लिए किन दिनों से बचना चाहिए

    • मंगलवार: मंगल ग्रह की प्रबल ऊर्जा से जुड़ा यह दिन गृह प्रवेश के लिए अनुकूल नहीं माना जाता। इस दिन घर बदलने से कलह और मानसिक तनाव की संभावना बढ़ सकती है।
    • शनिवार: शनिवार शनि ग्रह का दिन है। इस दिन गृह प्रवेश करना उचित नहीं माना जाता क्योंकि यह कार्यों में बाधा, देरी और कठिनाइयों का कारण बन सकता है।

    क्या गणेश चतुर्थी के दिन गृह प्रवेश करना शुभ माना जाता है?

    भगवान गणेश को नई शुरुआत, सकारात्मक ऊर्जा और घर के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। ज्योतिष और वास्तु विशेषज्ञ मानते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन नई संपत्ति लेना शुभ फलदायक होता है। गृह प्रवेश के समय विघ्नहर्ता गणेश की आराधना करने से नए घर में सुख-समृद्धि और शुभता का वास होता है। परंपरा के अनुसार, नए घर में प्रवेश करते समय गणेश जी की मूर्ति या चित्र लेकर कदम रखना मंगलकारी माना जाता है। उन्हें घर के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना अत्यंत शुभ होता है। सही गृह प्रवेश मुहूर्त के लिए ज्योतिषी या वास्तु विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

    गृह प्रवेश के समय क्या करें और क्या न करें

    क्या करें:

    • आम के पत्तों से पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें, ताकि वातावरण शुद्ध और पवित्र हो जाए।
    • घर में प्रवेश से पहले नारियल फोड़ें, क्योंकि यह बाधाओं को दूर करने और शुभ आरंभ का प्रतीक माना जाता है।
    • घर के अंदर प्रवेश करते समय दायां पैर पहले रखें, इसे मंगलकारी माना जाता है।
    • जल से भरे कलश के ऊपर नारियल रखें और उसमें आठ आम के पत्ते लगाकर घर में प्रवेश करें।
    • देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रखें।
    • गृह प्रवेश की पूजा सभी परिजनों की उपस्थिति व सकारात्मक भावनाओं के साथ करें।
    • पूजा के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन कराना शुभ माना जाता है।
    • नए घर के पहले दिन रसोई में हरी पत्तेदार सब्जियां और गुड़ अवश्य रखें।

    क्या न करें:

    • मंगलवार को गृह प्रवेश की पूजा से बचें। विशेष परिस्थितियों को छोड़कर शनिवार और रविवार को भी यह पूजा वर्जित मानी जाती है।
    • पूजा के दौरान बातचीत न करें और इसे पूर्ण श्रद्धा तथा एकाग्रता के साथ संपन्न करें।

    क्या किराए के घर में भी गृह प्रवेश करना आवश्यक है?

    वास्तु शास्त्र के अनुसार किराए के घर में भी गृह प्रवेश पूजा करना शुभ माना जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर में शांति और सकारात्मकता स्थापित करता है। घर की ऊर्जा को सक्रिय बनाए रखने के लिए हवन करना उत्तम है। यदि विस्तृत पूजा संभव न हो तो एक छोटा-सा पूजन समारोह भी किया जा सकता है।

    क्या सावन मास गृह प्रवेश के लिए शुभ महीना है?

    वास्तु शास्त्र के अनुसार सावन माह गृह प्रवेश के लिए शुभ नहीं माना जाता। हिंदू परंपरा में यह महीना भगवान शिव को समर्पित पवित्र काल होता है और चातुर्मास का हिस्सा है। चातुर्मास की यह अवधि गृह प्रवेश सहित अन्य मांगलिक कार्यों के लिए अनुकूल नहीं मानी जाती। 

    नए घर में दूध उबालने का सही शुभ समय कौन-सा है?

    परंपरा के अनुसार नए घर में दूध को तब तक उबालना चाहिए जब तक वह बर्तन से छलक न जाए। दूध का छलकना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह समृद्धि, सौभाग्य और घर में बरकत का प्रतीक है। आमतौर पर गृह प्रवेश के समय दूध उबालने के साथ पूजा और हवन भी किए जाते हैं। ये सभी कार्य पंचांग के अनुसार तय किए गए शुभ मुहूर्त में ही करना उचित होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, दूध उबालने का सर्वोत्तम समय वही है जो गृह प्रवेश के शुभ मुहूर्त के अनुरूप हो, और यह प्रायः सुबह ही होता है।

    अशुभ गृह प्रवेश मुहूर्त से बचने के उपाय

    • गणेश पूजा: यदि तय मुहूर्त पर प्रवेश संभव न हो या अशुभ दिन गृह प्रवेश करना पड़े, तो भगवान गणेश की पूजा करके नकारात्मक प्रभावों को दूर किया जा सकता है। वे सभी बाधाओं को हरने वाले देवता माने जाते हैं।
    • गृह शांति पूजा: नवग्रहों की पूजा करने से अशुभ मुहूर्त की नकारात्मक ऊर्जा संतुलित होती है और घर में शांति स्थापित होती है।
    • वास्तु यंत्र: घर के उत्तर-पूर्व दिशा में वास्तु यंत्र स्थापित करने से दोषों का निवारण होता है। इसके साथ वास्तु पुरुष की पूजा भी ऊर्जा संतुलन के लिए लाभकारी होती है।
    • हवन: गृह प्रवेश के समय हवन करने से वातावरण शुद्ध होता है, देवी-देवताओं की कृपा मिलती है, नकारात्मकता दूर होती है और घर में सौभाग्य का वास होता है।

    गृह प्रवेश पूजा के लिए घर की तैयारी कैसे करें?

    गृह प्रवेश से पहले घर की तैयारी इस प्रकार करें:

    • भूमि पूजन करें: घर का निर्माण शुरू करने से पूर्व भूमि पूजन अवश्य करें। यह भूमि की शुद्धि करता है, नकारात्मकता को दूर करता है और समृद्धि व शांति के लिए आशीर्वाद दिलाता है।
    • घर की सफाई करें: गृह प्रवेश से पहले पूरे घर की अच्छी तरह सफाई करें और अव्यवस्था दूर करें, ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहे।
    • शुभ मुहूर्त चुनें: हिंदू पंचांग के अनुसार गृह प्रवेश पूजा के लिए उपयुक्त शुभ मुहूर्त का चयन करें।
    • मुख्य द्वार सजाएं: दरवाजे पर गेंदे के फूल या आम्रपल्लव की तोरण लगाएं, स्वस्तिक या ओम का चिह्न बनाएं और प्रवेश द्वार पर जल और आम के पत्तों से भरा कलश रखें।
    • घर को रोशनी से सजाएं: घर के हर कोने में दीपक या तेल के दिए जलाएं, जिससे अंधकार और नकारात्मकता दूर हो।
    • पहली बार प्रवेश: सभी परिवारजन घर में दायां पैर रखकर प्रवेश करें, इसे शुभ माना जाता है।
    • गृह प्रवेश पूजा करें: पूजा की शुरुआत गणेश पूजन से करें, फिर नवग्रह पूजन और हवन करें, जिससे घर की शुद्धि और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त हो।
    • नारियल घुमाना: हर कमरे की जमीन पर नारियल घुमाकर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करें और सौभाग्य को आमंत्रित करें।
    • दूध उबालने की रस्म: एक नए बर्तन में दूध उबालें जब तक कि वह उफान कर छलक न जाए, यह समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है।
    • प्रसाद वितरण: पूजा के बाद पंडितों और अतिथियों को भोजन व प्रसाद अर्पित करें।

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    क्या गृह प्रवेश के लिए अक्षय तृतीया शुभ है?

    अक्षय तृतीया संपत्ति खरीदने और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों के लिए उत्तम दिन माना जाता है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन नई संपत्ति या मूल्यवान वस्तु खरीदने तथा गृह प्रवेश करने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का स्थायी वास होता है। वर्ष 2026 में अक्षय तृतीया का पर्व 19 अप्रैल, रविवार को मनाया जाएगा।

    गृह प्रवेश पूजा के बाद ध्यान रखें ये वास्तु टिप्स

    गृह प्रवेश पूजा के बाद घर में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए वास्तु विशेषज्ञ कुछ विशेष नियमों का पालन करने की सलाह देते हैं। नियमित रूप से ग्रह शांति और गणेश पूजन करने से घर में शुभता बनी रहती है और पारिवारिक जीवन में समरसता आती है।

    गृह प्रवेश के बाद किए जाने वाले प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –

    • पूजा के उपरांत प्रसाद का वितरण करें और अतिथियों के लिए भोग या भोजन का आयोजन करें।
    • घर के सभी दरवाजों पर तिलक लगाएं।
    • तुलसी का पौधा रोपें और नारियल फोड़कर शुभता का मंगलाचरण करें।
    • सुबह सत्यनारायण व्रत का आयोजन करें।
    • गृह प्रवेश के बाद कम से कम एक रात नए घर में अवश्य ठहरें।
    • प्रवेश के बाद कम से कम तीन दिन तक घर को खाली न छोड़ें।

    गृह प्रवेश पूजा के कितने प्रकार होते हैं?

    हिंदू मान्यताओं के अनुसार गृह प्रवेश पूजा तीन प्रकार की होती है –

    • अपूर्व गृह प्रवेश: जब किसी नए निर्मित घर में गृहस्वामी पहली बार प्रवेश करता है, तो इसे अपूर्व गृह प्रवेश कहते हैं। इस प्रकार के प्रवेश के लिए सूर्य का उत्तरायण होना अत्यंत शुभ माना जाता है।
    • सपूर्व गृह प्रवेश: यदि लंबे समय तक खाली रहने के बाद कोई व्यक्ति अपने घर में दोबारा प्रवेश करता है, तो इसे सपूर्व गृह प्रवेश कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, काम या प्रवास के कारण घर खाली पड़ा हो और वापसी पर प्रवेश किया जाए। ऐसी स्थिति में प्रवेश से पहले घर की अच्छे से सफाई करनी चाहिए। नवीनीकृत या पुराने घरों के लिए गुरु या शुक्र अस्त काल को सर्वोत्तम माना जाता है। इस में नक्षत्र की विशेष भूमिका नहीं होती।
    • द्वंद्व गृह प्रवेश: किसी प्राकृतिक आपदा या विपत्ति के कारण घर छोड़ने के बाद, जब लंबे समय बाद उसमें वापसी की जाती है, तो इस स्थिति में द्वंद्व गृह प्रवेश पूजा की जाती है।

    गृह प्रवेश पूजा के आधुनिक चलन

    आजकल हममें से ज्यादातर लोग तेज़-तर्रार और व्यस्त जीवन जीते हैं, जिससे सभी का एकसाथ मिलकर पूजा करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन तकनीक और स्मार्टफोन ने इस समस्या का आसान समाधान निकाल दिया है। अब गृह प्रवेश पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान ऑनलाइन आयोजित किए जा सकते हैं। किसी शुभ दिन पर पूजा करने वाला व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों को दुनिया में कहीं से भी वर्चुअली जोड़ सकता है, वहीं पुजारी भी ऑनलाइन मार्गदर्शन देकर पूजा सम्पन्न करा देते हैं।

    इसके साथ ही लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार किसी विशेष भाषा के जानकार पुजारी को ऑनलाइन बुक कर सकते हैं और पूजा सामग्री भी घर बैठे मंगवा सकते हैं। कई घरों में अब मालिक स्वयं पूजा करते हैं, जहाँ पुजारी उन्हें वीडियो कॉल पर मंत्रोच्चारण और विधि-विधान में गाइड करते हैं।

    गृह प्रवेश पूजा का एक नया चलन यह भी है कि कई एनआरआई इसे अंग्रेजी भाषा में आयोजित करना पसंद करते हैं। ऐसे अवसरों पर पुजारी मंत्रों का अर्थ अंग्रेजी में समझाते हैं। खास बात यह है कि अब महिला पुजारी भी इस क्षेत्र में आगे आकर गृह प्रवेश और विवाह जैसे धार्मिक कार्यक्रम करा रही हैं।

    देशभर में त्योहारों के समय गृह प्रवेश समारोह

    हिंदू परंपराओं में, नए घर में प्रवेश करते समय गृह प्रवेश पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में इस पूजा से जुड़े अनेक विशिष्ट और रोचक रीति-रिवाज पाए जाते हैं। आइए जानते हैं देश के कुछ प्रमुख प्रदेशों में प्रचलित गृह प्रवेश पूजा की अनूठी परंपराओं के बारे में –

    उत्तर भारत

    पंजाब (दूध और दही का रिवाज): पंजाब में नए घर में प्रवेश अवसर को ढोल, नगाड़ों और भांगड़ा के साथ उल्लासपूर्ण तरीके से मनाया जाता है। नए घर में सुख और समृद्धि लाने की कामना से परिवारजन घर के मुख्य द्वार पर दूध या दही छिड़कते हैं तथा भीतर पवित्र जल का छिड़काव करते हैं, जिससे घर शुद्ध और मंगलमय माना जाता है।

    राजस्थान (पुराने घर की अग्नि लाना): राजस्थान में कई परिवार गृह प्रवेश के समय अपने पुराने घर से जलती हुई चिंगारी या दीपक नए घर में लाते हैं। यह परंपरा निरंतर समृद्धि और शुभता बनाए रखने का प्रतीक मानी जाती है

    पश्चिम भारत

    महाराष्ट्र (गणपति होमम): महाराष्ट्र में पारंपरिक गृह प्रवेश समारोह के अंतर्गत लक्ष्मी पूजा और पट्ट पूजा (घर की नींव की पूजा) की जाती है, ताकि देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त हो। यहां विशेष रूप से भगवान गणेश की आराधना की जाती है और गृह प्रवेश के अवसर पर गणपति होमम का आयोजन मुख्य रूप से किया जाता है। यह मान्यता है कि इस पूजन से घर की सभी बाधाएं दूर होती हैं और परिवार में शांति व समृद्धि बनी रहती है।

    दक्षिण भारत

    कोलम और नीम के पत्ते: दक्षिण भारतीय राज्यों में नए घर को नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रखने के लिए अग्नि देव की पूजा की जाती है। तमिलनाडु व आसपास के प्रदेशों में गृह प्रवेश के समय घर के मुख्य द्वार पर चावल के आटे से कोलम (रंगोली) बनाया जाता है। साथ ही नीम और आम के पत्तों की तोरण लगाई जाती है, जिसे बुरी शक्तियों को दूर रखने का प्रतीक माना जाता है।

    केरल (विष्णु पूजा और नारियल अर्पण): केरल में गृह प्रवेश के दौरान भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। शुभारंभ और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश हेतु नारियल और केले के पत्तों का अर्पण किया जाता है।

    पूर्वी भारत

    बंगाल (अल्पना कला): बंगाली परंपरा में ‘गृह प्रवेश अंजलि’ नामक अनुष्ठान किया जाता है। इसमें परिवार का मुखिया देवताओं को धन्यवाद प्रकट करते हुए नए घर में चावल अर्पित करता है। महिलाएं घर के मुख्य द्वार और अन्य स्थानों पर चावल के घोल से अल्पना (पारंपरिक भूमि सज्जा कला) रचती हैं, जिससे देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में समृद्धि आती है।

    असम (आरती और बिहू गीत): असम में गृह प्रवेश समारोह को आरती और बिहू के लोकगीतों के साथ मनाया जाता है, जिससे पूरे अवसर का वातावरण भक्ति और आनंद से भर जाता है।

    गृह प्रवेश के समय इन गलतियों से अवश्य बचें

    • शुभ मुहूर्त की अनदेखी: नए घर में प्रवेश और पूजन हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करें। मुहूर्त की उपेक्षा से अप्रत्याशित नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
    • वास्तु नियमों की अवहेलना: मुख्य द्वार, फर्नीचर और सजावट को वास्तु के अनुसार ही व्यवस्थित करें। वास्तु दोष घर की सकारात्मक ऊर्जा को प्रभावित कर सकते हैं।
    • अधूरी सफाई: गृह प्रवेश से पहले पूरे घर की साफ-सफाई सुनिश्चित करें। गंदगी न केवल लापरवाही दर्शाती है बल्कि शुभता में बाधा डालती है।
    • रसोई अनुष्ठान की उपेक्षा: कई परंपराओं में गृह प्रवेश पर रसोई में दूध उबालने की रस्म अनिवार्य मानी जाती है। इस परंपरा की अनदेखी अशुभ समझी जाती है।
    • अव्यवस्थित पूजा: पूजा की सभी सामग्रियां पहले से तैयार रखें। सामग्री या विधि में कोई कमी गृह प्रवेश के पूर्ण फल में बाधा डाल सकती है।
    • फर्नीचर पहले लाना: गृह प्रवेश से पहले भारी फर्नीचर घर में ले जाना अशुभ माना जाता है। इसे टालना ही उचित है ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।

    क्या हम दिवाली पर गृह प्रवेश पूजा आयोजित कर सकते हैं?

    दिवाली हिंदुओं का प्रमुख पर्व है, और कई लोग इस दिन गृह प्रवेश को शुभ मानते हैं। मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल और आकाश जैसे पंचतत्व संतुलन में रहते हैं, जिससे महावास्तु योग बनता है। इसी कारण दिवाली को नए घर में प्रवेश के लिए अत्यंत मंगलकारी दिन माना जाता है। वर्ष 2026 में दिवाली का पर्व 08 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा।

    निष्कर्ष

    वास्तु शास्त्र में गृह प्रवेश पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इसे हमेशा शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए ताकि नए घर में प्रवेश करने वाले सभी सदस्यों के लिए सौभाग्य और समृद्धि सुनिश्चित हो सके। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक घर के लिए गृह प्रवेश का शुभ मुहूर्त स्थान और परिस्थिति के अनुसार भिन्न हो सकता है। इसलिए, ज्योतिषाचार्य या वास्तु विशेषज्ञ की सलाह लेना अत्यंत लाभकारी होता है।

    गृह प्रवेश के समय पूजा और हवन की दिशा का सही चयन भी आवश्यक है। वास्तु सिद्धांतों के अनुसार गृह प्रवेश पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव और वास्तु दोष दूर होते हैं तथा घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।

    FAQs

    क्या गृह प्रवेश से पहले घर का सामान शिफ्ट किया जा सकता है?

    नहीं, गृह प्रवेश से पहले गैस सिलेंडर को छोड़कर कोई अन्य सामान नए घर में नहीं रखना चाहिए। परंपराओं के अनुसार यह अशुभ माना जाता है।

    गृह प्रवेश पर दूध उबालने का क्या महत्व है?

    हिंदू परंपराओं में दूध उबालना समृद्धि और शुभता का प्रतीक है। इसे धन-धान्य तथा खुशहाली के आगमन का संकेत माना जाता है।

    क्या गृह प्रवेश पूजा के दौरान हवन करना अनिवार्य है?

    जी हां, हवन से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण शुद्ध व सकारात्मक बनता है। इसी कारण गृह प्रवेश पूजा में इसे विशेष महत्व दिया जाता है।

    क्या शनिवार के दिन गृह प्रवेश करना उचित है?

    यदि पंचांग के अनुसार शनिवार को शुभ मुहूर्त हो, तो उस दिन भी गृह प्रवेश किया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि तिथि और समय शुभ हों।

    क्या गृह प्रवेश पूजा के बिना नए घर में रहना उचित है?

    नहीं, स्थायी रूप से नया घर बसाने से पहले गृह प्रवेश पूजा करना आवश्यक है। इससे नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और घर में सुख-शांति का वास होता है।

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    कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए – जाने इतिहास, महत्व और पूजा विधि

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    Kamakhya Mandir का दौरा कब करना चाहिए, Kamakhya Devi Mandir Ki Puja Vidhi, कामाख्या मंदिर, जो कि Guwahati शहर में स्थित है, एक प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। यहां लाखों भक्तगण आकर माँ कामाख्या देवी की पूजा करने और उनके दर्शन करने के लिए आते हैं। इसे देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोग प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं ताकि वे माँ कामाख्या के आशीर्वाद से लाभान्वित हो सकें।

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      माना जाता है कि वे भक्त जो माँ कामाख्या के प्रति श्रद्धा भाव से दर्शन करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस Mandir का एक विशेषता यह है कि यहां तांत्रिक पूजा भी होती है। इस क्षेत्र में अधिकांश स्थानों पर तांत्रिक विधाओं का पालन करने वाले दर्शकों को देखा जा सकता है।

      मित्रों, आज हम इस लेख के माध्यम से आपको बताएंगे कि कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए। इसके अलावा, हम इस विषय से संबंधित और भी जानकारी प्रदान करेंगे। इसलिए, इस सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमारे इस लेख को आखिर तक ज़रूर पढ़ें। चलिए, हम आपको इस विषय में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

      जानिए कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए

      यदि आप कामाख्या मंदिर जाना चाहते हैं, तो आप साल भर में किसी भी समय कामाख्या मंदिर यात्रा कर सकते हैं। यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है। हालांकि, अम्बुबाची मेले के दौरान, तीन दिनों के लिए कामाख्या मंदिर बंद रहता है। इसे माना जाता है कि इन दिनों में माँ कामाख्या मासिक धर्म से गुजरती हैं, इसलिए मंदिर को इन दिनों के लिए बंद रखा जाता है।

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      उसके बाद, चौथे दिन मंदिर का दरवाजा खोला जाता है और देवी की पूजा अर्चना की जाती है। इसलिए, यदि आप चाहें, तो अम्बुबाची मेले के समय भी कामाख्या मंदिर जा सकते हैं।

      इसके अलावा, अगर आप अक्टूबर से मार्च महीने के बीच कामाख्या मंदिर यात्रा करते हैं, तो यह आपके लिए फायदेमंद होगा। क्योंकि इन दिनों, गुवाहाटी में मौसम ठंडा रहता है और अधिक गर्मी भी नहीं होती है। इसलिए, इस समय में आप सुहाने मौसम में कामाख्या मंदिर जा सकते हैं। कामाख्या मंदिर की यात्रा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।



      कामाख्या देवी मंदिर का महत्व

      कामाख्या मंदिर, देवी के 51 सर्वप्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। जब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े किए थे, तो इन्हीं 51 टुकड़ों को शक्तिपीठ कहा गया। गुवाहाटी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाख्या मंदिर में ही सती का योनि भाग गिरा था, जिसके कारण कामाख्या मंदिर में देवी सती के योनि की पूजा-अर्चना सदियों से चली आ रही है। यहाँ देवी की कोई मूर्ति या प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक योनि आकार का शिलाखंड है।

      माता कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास

      पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती ने भगवान शंकर से विवाह किया था, परंतु इस vivah से माता सती के पिताजी अत्यधिक क्रोधित थे और उसके खिलाफ थे। इनका नाम दक्ष था, जिन्हें हिमायल के राजा के रूप में भी जाना जाता था। एक बार दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था, और इस यज्ञ में माता सती और भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया गया था। 

      हालांकि, माता सती बिना आमंत्रण के भी उस यज्ञ में पहुँची, जहाँ उन्हें अपने पिता द्वारा किए गए शंकर भगवान के अपमान को सहना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने अपमान को बर्दास्त नहीं किया और यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इसके पश्चात्, शंकर भगवान को इस घटना का पता चला, और वह क्रोधित हो गए और माता सती की देह को अपने हाथों में उठाकर तांडव नृत्य करने लगे। 

      इस दृश्य को देख भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह को कई टुकड़ों में काट दिया ताकि भगवान शंकर का क्रोध शांत हो सके। माता सती के ये अंग धरती पर अलग-अलग जगह पर गिरे थे।

      माता कामाख्या देवी मंदिर पूजा विधि

      कामाख्या देवी की पूजा से हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं। आप या तो कामाख्या देवी मंदिर जाकर या अपने घर पर भी कामाख्या देवी की पूजा कर सकते हैं।

      यदि आप कामाख्या देवी मंदिर जाकर पूजा करते हैं, तो आपको सच्चे मन से धूप, दीप, आदि जलाकर कामाख्या देवी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद आपको कामाख्या देवी को पुष्प, आदि अर्पित करने चाहिए।

      हालांकि, यदि आप अपने घर में कामाख्या देवी की पूजा करते हैं, तो नीचे दी गई विधि के अनुसार पूजा कर सकते हैं।

      • कामाख्या देवी की पूजा के लिए सबसे पहले आपको कामाख्या देवी की एक मूर्ति प्राप्त करनी है। 
      • इसके बाद, मूर्ति को साफ-सुथरी चौकी पर स्थापित करना है। 
      • इसके पश्चात, धूप, दीप, और पुष्पादि से कामाख्या देवी की पूजा करनी है। 
      • पूजा समाप्त होने के बाद, आप अपनी मर्जी के अनुसार कन्याओं को अपने घर आमंत्रित करके उनका पूजन करना है। 
      • कन्याओं के पूजन के बाद, उन्हें भोजन करवाना और उन्हें कपड़े आदि का दान करना है। 
      • यदि आप चाहें, तो कामाख्या देवी की पूजा के बाद भंडारे का भी आयोजन कर सकते हैं। 
      • कामाख्या देवी की पूजा और अर्चना के बाद, आप माता के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

      माँ कामाख्या देवी पूजा के लाभ

      यदि आप कामाख्या देवी की पूजा करते हैं, तो आपको नीचे वर्णित लाभ प्राप्त होता है।

      • कामाख्या देवी की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से हमें धन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। 
      • अगर आपके जीवन में विवाह से जुड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है, विवाह में अडचनें आ रही हैं, तो ऐसे में आपको कामाख्या देवी की पूजा करनी चाहिए। इससे आपके विवाह में आ रही बाधा दूर होती है। 
      • कामाख्या देवी की पूजा करने से लंबे समय से चल रहे कानूनी विवादों का अंत होता है और हमें जीत की प्राप्ति होती है। 
      • कामाख्या देवी की पूजा अर्चना करने से हमारा स्वास्थ्य बना रहता है। 
      • कामाख्या देवी की पूजा करने से हमारे व्यापार और नौकरी से जुड़ी परेशानियाँ भी दूर होती हैं और इससे हमारे व्यापार में वृद्धि होती है।

      निष्कर्ष

      मित्रों, आज हमने इस लेख के माध्यम से आपको बताया है कि कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए। इसके अलावा, हमने इस विषय से जुड़ी और भी जानकारी प्रदान की है।

      हम उम्मीद करते हैं कि आज का हमारा लेख आपके लिए उपयोगी सिद्ध हुआ होगा। यदि यह आपके काम आया है, तो कृपया इसे आगे साझा करें, ताकि अन्य लोग भी इस महत्वपूर्ण जानकारी से लाभान्वित हो सकें।

      मित्रों, हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा "कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए – कामाख्या देवी मंदिर का इतिहास, महत्व और पूजा विधि" लेख पसंद आया होगा। धन्यवाद!

      FAQs

      कामाख्या देवी मंदिर क्यों मशहूर है?

      51 शक्तिपीठों में शामिल कामख्या देवी का मंदिर तंत्र-मंत्र के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह स्थान अघोरियों की साधना और तंत्र-मंत्र साधना का एक तरह से महत्वपूर्ण माना जाता है।

      Kamakhya Mandir कब जाना चाहिए? 

      कामख्या मंदिर की यात्रा के लिए साल में किसी भी दिन को शुभ माना जा सकता है, लेकिन यदि आप देवी का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, तो यहाँ नवरात्रि के समय में जाएं। बता दें कि देवी सती के योनि रूप की पूजा की जाती है, इसलिए यहाँ महिलाएं अपने मासिक धर्म के दौरान भी जा सकती हैं।

      Kamakhya का अर्थ क्या है?

      कामाख्या को अक्सर तंत्र-मंत्र से जोड़कर देखा जाता है। यह देवी दुर्गा के प्रसिद्ध नामों में से एक है। कामाख्या का सबसे प्रत्यक्ष रूप देवी काली या त्रिपुर सुंदरी है।

      स्टेशन से कामाख्या मंदिर तक की कितनी दूरी है?

      गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है।

      कामाख्या मंदिर में किस देवी की पूजा होती है?

      गुवाहाटी के निकट स्थित इस मंदिर में देवी सती के योनि भाग की पूजा की जाती है। क्योंकि यहाँ पर उनके शरीर के टुकड़े होते समय योनि का भाग गिरा था। इस स्थान पर देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक योनि रूपी शिलाखंड स्थापित है।

      शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है, जानिए 5 आश्चर्यजनक फायदे

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      शनिवार

      शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है- हिन्दू सनातन धर्म में बेलपत्र को एक पवित्र पौधा माना जाता हैं। इसलिए शिवलिंग की पूजा करने के दौरान शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाया जाता हैं। ऐसा माना जाता है की शिवलिंग पर बेलपत्र चढाने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और बेलपत्र भगवान शिव का प्रिय माना जाता हैं। इसलिए शिवलिंग पर बेलपत्र चढाने का नियम हैं।

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      शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है

        बेलपत्र पवित्र होने के साथ साथ काफी सारे औषधीय गुणों से भी भरा होता हैं। इसके खाने से हमें काफी सारे स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। शिवलिंग पर चढ़ाये गये बेलपत्र को खाने से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले हैं। इसलिए इस महत्वपूर्ण जानकारी को पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े।

        दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

        शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है

        शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से हमारे स्वास्थ्य को काफी सारा लाभ मिलता हैं। जिसके बारे में हमने नीचे विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की हैं:

        इम्युनिट बढाने में फायदेमंद

        शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से आपकी इम्युनिटी पावर बढती हैं। अगर आप बार बार किसी भी छोटी मोटी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। तो आपको सुबह के समय भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाना चाहिए।

        अगर आप खाली पेट शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाते हैं, तो आपकी इम्युनिटी पावर बढती हैं और आप छोटी मोटी जैसे की सर्दी, जुकाम आदि बीमारी से बचे रहते हैं।

        ये भी पढ़े: बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है, जाने बरगद के पेड़ की पूजा कैसे करें



        पेट से जुडी समस्या में फायदेमंद

        अगर आपको पेट से जुडी कोई समस्या है जैसे की गैस, कब्ज, अपच, पेट दर्द, एसिडिटी आदि की समस्या हैं, तो ऐसे में आपको सुबह के समय खाली पेट शिवलिंग पर चढ़ाया गया बेलपत्र खाना चाहिए। बेलपत्र औषधीय गुणों से भरपूर होता हैं जो आपकी पेट से जुडी समस्या को दूर करने में आपकी मदद करता है।

        दिल को स्वस्थ रखने में फायदेमंद

        दिल हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग माना जाता हैं। इसलिए दिल को स्वस्थ रखना हमारे लिए जरूरी हो जाता हैं। दिल को स्वस्थ रखने के लिए और दिल से जुडी बीमारी से दूर रहने के लिए आपको बेलपत्र खाना चाहिए।

        अगर आप सुबह खाली पेट शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाते है तो इससे आपको दिल से जुडी बीमारी से छुटकारा मिलता हैं। साथ साथ आपका दिल स्वस्थ रखने भी मदद करता है।

        शरीर को ठंडा रखने में फायदेमंद

        अगर आपका शरीर हमेशा गर्म रहता हैं या फिर आपके शरीर की तासीर गर्म हैं, तो ऐसे में आपको बेलपत्र खाना चाहिए। क्योंकि बेलपत्र की तासीर ठंडी होती हैं जो आपके शरीर को ठंडा रखने में आपकी मदद करता हैं।

        अगर आप सुबह उठकर खाली पेट शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाते हैं तो इससे आपका शरीर पुरे दिन ठंडा रहता हैं और आपको गर्मी का काफी कम अहसास होता हैं। गर्मी के मौसम से बेलपत्र खाना काफी लाभदायी होता हैं।

        ब्लड शुगर लेवल में फायदेमंद

        अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं और आपका ब्लड शुगर लेवल हाई रहता हैं, तो ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने के लिए बेलपत्र काफी फायदेमंद होता हैं। अगर आप सुबह उठकर रोजाना खाली पेट शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाते हैं तो इससे आपको डायबिटीज की बीमारी में काफी हद तक राहत मिलती हैं।

        ये भी पढ़े: महिलाओं को बजरंग बाण का पाठ क्यों नहीं करना चाहिए - जानें क्या है रहस्य

        शिवलिंग पर क्या नहीं चढ़ाना चाहिए

        कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार नीचे दी गई कुछ वस्तुओ को शिवलिंग पर नही चढ़ाना चाहिए:

        • फुल अगर आप केतकी का फुल शिवलिंग पर चढाते हैं तो यह अच्छा नही माना जाता हैं। केतकी का फुल कभी भी शिवलिंग पर नही चढ़ाना चाहिए।
        • हल्दी शिवलिंग पर नही चढ़ाना चाहिए। ऐसा माना जाता है की हल्दी माता लक्ष्मी का स्वरूप हैं। इसलिए शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाना वर्जित माना जाता हैं
        • रोली और कुमकुम भी शिवलिंग पर नही चढ़ाना चाहिए। यह विष्णुप्रिय लक्ष्मी का सुहाग का प्रतीक माना जाता हैं। इसलिए शिवलिंग पर रोली और कुमकुम चढाने से भी बचना चाहिए।
        • शिवलिंग पर तुलसी कभी भी नही चढ़ाना चाहिए। क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। इसलिए शिवलिंग पर तुलसी चढाने से भी बचना चाहिए।

        निष्कर्ष

        दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

        हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके। 

        दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खाने से क्या होता है ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

        FAQs

        शिवलिंग पर कैसा बेलपत्र चढ़ाना चाहिए?

        शिवलिंग पर ऐसा बेलपत्र चढ़ाना चाहिए जो हरा-भरा हो, तीन पत्तियों वाला बेलपत्र ताजा होना चाहिए।

        मंगलवार को शिवलिंग पर क्या चढ़ाना चाहिए?

        मंगलवार को शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, लाल फूल, चंदन तथा शहद शुभ मन जाता है।

        शिवलिंग पर कितने बेलपत्र चढ़ाने चाहिए?

        शिवलिंग पर मुख्यतः पर तीन, पांच या सात बेलपत्र चढ़ाने चाहिए, यह संख्या भगवान शिव की प्रिय मानी जाती है और इससे शुभ की प्राप्ति होती है।

        रोग नाश के लिए शिवलिंग पर क्या चढ़ाएं?

        रोग नाश के लिए शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, तजा बेलपत्र, कच्चा दूध और सफेद फूल चढ़ाएं, और साथ में महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

        शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र खा सकते हैं?

        जी नहीं, शिवलिंग पर चढ़ा हुआ बेलपत्र सामान्यतः नहीं खाना चाहिए, इसे प्रसाद नहीं माना जाता है।

        शिवलिंग पर जल में क्या डालकर चढ़ाना चाहिए?

        शिवलिंग पर जल चढ़ाते टाइम उसमें कच्चा दूध, गंगाजल, शहद,और बेलपत्र का रस मिलाना चढ़ाना शुभ माना जाता है।

        शिवलिंग पर चढ़ा बेलपत्र खाने से क्या होता है?

        मान्यता है कि शिवलिंग पर चढ़ा बेलपत्र को खाने से दोष लग सकता है, स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है, इसलिए इसे नहीं खाना चाहिए कभी।

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        बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है, जाने बरगद के पेड़ की पूजा कैसे करें

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        बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है, जाने बरगद के पेड़ की पूजा कैसे करें – हिन्दू सनातन धर्म में बरगद के पेड़ को पूजनीय माना जाता हैं। ऐसा माना जाता है की बरगद के पेड़ की पूजा करने से देवताओ के आशीर्वाद की प्राप्ति होती हैं। बरगद के पेड़ की जड़ में ब्रह्मा, शाखाओं में भगवान शिव और छाल में भगवान विष्णु का वास माना जाता हैं।

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        बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है

          इसलिए यह पेड़ भी पूजनीय और वंदनीय माना जाता हैं। जिस प्रकार पीपल के पेड़ को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता हैं। उसी प्रकार बरगद के पेड़ को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता हैं।

          दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े, तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

          बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है

          कुछ पुराने शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है की बरगद के पेड़ में पानी डालने से हमें पुण्य की प्राप्ति होती हैं। इसके अलावा बरगद के पेड़ में पानी डालने से भगवान शिव के आशीर्वाद की भी प्राप्ति होती हैं। ऐसा माना जाता है की बरगद का पेड़ भगवान शिव का प्रतीक होता हैं।

          अगर आप सोमवार के दिन बरगद के पेड़ की पूजा अर्चना करने के पश्चात बरगद के पेड़ में पानी डालती हैं, तो इससे आपको भगवान शिव के विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती हैं। इससे आपके भाग्य के दरवाजे भी खुल जाते हैं और आपको पुण्य की प्राप्ति होती हैं।



          बरगद के पेड़ की पूजा करने से क्या होता है

          बरगद के पेड़ की पूजा करने से भगवान शिव के आशीर्वाद की प्राप्ति होती हैं तथा सभी प्रकार के बुरे ग्रहों से मुक्ति मिलती हैं।

          ऐसा माना जाता है की अगर आपकी Kundli में कोई ग्रह बुरे प्रभाव से मौजूद हैं, तो शनिवार के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने के बाद जल अर्पित करना चाहिए। साथ-साथ भगवान शिव की आराधना उपासना करनी चाहिए।

          इसके अलावा बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर आप यह उपाय करते हैं। तो आपको सभी ग्रहों से मुक्ति मिलती हैं तथा भगवान शिव के आशीर्वाद की प्राप्ति होती हैं।

          बरगद के पेड़ की पूजा कैसे करें

          सुहागन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु के लिए बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। साथ साथ व्रत आदि भी करती हैं। बरगद के पेड़ की पूजा करने का पूरा तरीका हमने नीचे बताया हैं:

          • जिस दिन आप बरगद के पेड़ की पूजा करने का संकल्प लेते हैं। उस दिन जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र धारण कर ले।
          • इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। इसलिए आपको सोलह शृंगार करना चाहिए।
          • इसके बाद आपको पूजा का सामान लेकर बरगद के पेड़ के नीचे जाना हैं। सबसे पहले बरगद के पेड़ की घी या तेल का दीपक जलाकर कुमकुम आदि से पूजा करनी हैं।
          • इसके बाद आपको कथा का श्रवण करना हैं।
          • कथा श्रवण हो जाने के पश्चात बरगद के पेड पर रोली और चंदन का टिका लगाना हैं साथ आपको बरगद के पेड़ को पानी सींचना हैं।
          • अब कच्चे सूत के धागे से के साथ बरगद के पेड़ की परिक्रमा लगानी हैं।
          • इतना हो जाने के बाद आपकी पूजा पूर्ण हो जाएगी। पूजा पूर्ण हो जाने के पश्चात आपको आपके पति की लंबी उम्र की कामना करनी हैं।

          बरगद के पेड़ का धार्मिक महत्व

          हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ को वट वृक्ष और अक्षय वट भी कहा गया है, जिसे अत्यंत पवित्र और देवतुल्य माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इसकी जड़ों में भगवान ब्रह्मा, तने या छाल में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है, इसलिए इसे त्रिदेव का प्रतीक माना जाता है।

          बरगद का वृक्ष दीर्घायु, स्थिरता और अक्षयत्व (कभी न समाप्त होने वाला फल) का प्रतीक है। इसी कारण इसे वट सावित्री व्रत, विशेष पर्वों और पितृ‑तर्पण से जुड़े उपायों में विशेष रूप से पूजा जाता है।

          बरगद के पेड़ की पूजा कब करें?

          ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष की पूजा हर दिन शुभ होता है, खाशकर सोमवार, गुरुवार, शनिवार तथा अमावस्या/पूर्णिमा जैसे तिथियों पर की जा सकती है, हालांकि हर क्षेत्रीय परंपराएं अलग-अलग हो सकती हैं। विवाहित महिलाओं के लिए ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाने वाला वट सावित्री व्रत विशेष बहुत ही प्रसिद्ध है, जिसमें बरगद की पूजा और परिक्रमा से अखंड सौभाग्य तथा पति की दीर्घायु की कामना की जाती है।

          विशेष रूप से सावन महीने में शिव‑उपासना के साथ वट वृक्ष की पूजा को भी बहुत शुभ माना गया है, क्योंकि यह वह समय होता है की इस टाइम भक्त के ऊपर त्रिदेव की विशेष कृपा प्राप्त कराने वाला अवसर माना जाता है। कुछ ज्योतिषीय / Astrologers मतों में शनिवार के दिन बरगद के पेड़ के पास दीप जलाकर और काला या सफेद सूत बांधकर जल देने से घर में शनि‑शांति का विशेष उपाय माना जाता है।

          बरगद के पेड़ की पूजा कब करनी चाहिए?

          बरगद की पूजा जयेष्ट अमावस्या करना शुभ माना जाता हैं। इसके अलावा काफी जगह पर बरगद के पेड़ की पूजा जयेष्ट पूर्णिमा के दिन भी की जाती हैं। यह दोनों ही दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने के लिए शुभ माने जाते हैं।

          निष्कर्ष

          दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है बरगद के पेड़ में पानी डालने से क्या होता है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

          हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

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          FAQs (बरगद के पेड़ की पूजा से जुड़े सामान्य प्रश्न)

          बरगद को इंग्लिश में क्या कहते हैं?

          बरगद के पेड़ को इंग्लिश Banyan में कहते है।

          बरगद के पेड़ पर जल कब नहीं चढ़ाना चाहिए?

          बरगद के पेड़ में रविवार के दिन जल देने से बचाव करना चाहिए।

          बरगद के पेड़ के नीचे दिया जलाने से क्या होता है?

          बरगद के पेड़ के नीचे दिया जलाने से धन की देवी माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं तथा आपके घर में धन-धान्य की कमी दूर होती है।

          क्या अविवाहित लड़कियां भी बरगद के पेड़ की पूजा कर सकती हैं?

          जी हाँ, अविवाहित कन्याएँ भी वट वृक्ष की पूजा कर सकती हैं; कई जगह इसे अच्छे पति और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए भी किया जाता है।

          क्या पीरियड्स के दौरान बरगद की पूजा की जा सकती है?

          अलग‑अलग परंपराओं के अनुसार मासिक धर्म के दौरान महिलाओ को व्रत‑पूजा से दूरी रखी जाती है, इसलिए परिवार और व्यक्तिगत मान्यता के अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए।

          क्या हम रात में बरगद के पेड़ के नीचे सो सकते हैं?

          जी नहीं, रत के समय में बरगद के पेड़ के नीचे भूल से भी नहीं सोना चाहिए। क्योकि पेड़ के नीचे सोने वाले जातक को ऑक्सीजन की कमी से दम घुटने का खतरा बना रहता है।

          बरगद के पेड़ में दूध चढ़ाने से क्या होता है?

          बरगद के पेड़ में दूध चढ़ाने से धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृ दोष शांति, सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

          बरगद का पेड़ किस दिन काटना चाहिए?

          पुरानी मान्यताओं के अनुसार बरगद का पेड़ रविवार या अमावस्या को काटना शुभ नहीं होता है।

          बरगद के पेड़ में किस देवता का वास होता है?

          धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा पितरों का वास माना जाता है, इसलिए इसकी इस पेड़ की पूजा होती है।

          बरगद के पेड़ की पूजा करने से क्या होता है?

          बरगद के पेड़ की पूजा करने से आयु वृद्धि, पितृ दोष शांति, सुख-समृद्धि और परिवार में शनि बानी रहती है।

          बरगद का पेड़ किस दिन लगाना चाहिए?

          बरगद का पेड़ गुरुवार, सोमवार या अमावस्या के दिन लगाना शुभ माना जाता है।

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          जाने नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं | नवरात्रि में क्या-क्या नहीं करना चाहिए

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          शुक्रवार

          नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं - शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में नौ दिन तक माता रानी की पूजा और अर्चना की जाती हैं। इन दिनों माता रानी के अलग-अलग स्वरूप की धूमधाम से पूजा की जाती हैं। उन्हें हर दिन अलग नाम से याद किया जाता हैं। ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के नौ दिन (Nine days of Navratri) माता रानी की पूजा और अर्चना करने से और उनको याद करने से हमारी सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

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          नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं

            इसलिए Navratri के नौ दिन तक अंखड ज्योति भी प्रज्ज्वलित की जाती हैं। नवरात्रि के दिन कुछ ऐसे भी काम होते हैं, जिसे करने की मनाई होती हैं।

            दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है कि नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं। तो आप यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी को पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े।

            तो आइये हम बिना किसी देर के आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

            नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं

            जी नहीं, नवरात्रि के नौ दिन आपको भूलकर भी सिलाई नही करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नवरात्रि के दिन में सिलाई करने से जातक को शुभ फल की प्राप्ति नही होती हैं, इसलिए नवरात्रि में सिलाई करना वर्जित (Sewing is prohibited during Navratri) माना गया हैं।

            पति–पत्नी को नवरात्रि में क्या करना चाहिए

            Navratri के दिनों में पति-पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने से दूर रहना चाहिए। इन दिनों पति-पत्नी को पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा भी माना जाता है कि नवरात्रि में शारीरिक संबंध के बारे में सोचने से आपका मन विचलित हो सकता हैं। इस वजह से माता रानी की पूजा - अर्चना में विघ्न उप्तन्न हो सकता हैं।

            इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि नवरात्रि के नौ दिन माता रानी स्त्री के अंदर भी वास करती हैं, इसलिए भी अपने आपको पवित्र रखना चाहिए और शारीरिक संबंध बनाने से भली भाती बचना चाहिए।

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            नवरात्रि में क्या–क्या नहीं करना चाहिए

            नवरात्रि के दिनों में भूलकर भी ये काम नहीं करना चाहिए जैसे कि बाल कटवाना, दाढ़ी बनाना और नाखून काटना। बात करें तो नवरात्रि के दौरान तामसिक भोजन जैसे कि लहसुन, प्याज, शराब और मांस का सेवन भूल से भी नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, आपको चमड़े से बनी हुई वस्तुओ का उपयोग नहीं करना चाहिए। यदि आप नवरात्रि का व्रत (Navratri fasting) कर रहे है तो दिन में न सोएं और अपने घर को नकारात्मकता ऊर्जा से बचें। 



            नवरात्रि में किन–किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए

            नवरात्रि के नौ दिन कुछ ऐसे काम होते हैं, जो हमे नही करने चाहिए। कुछ ऐसे Rule होते हैं, जिनका पालन करना चाहिए। नवरात्रि में कुछ बातो को ध्यान में रखना होता हैं, जिसके बारे में हमने आपके लिए नीचे जानकारी प्रदान की हैं.

            • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमे नवरात्रि के नौ दिन तक बाल और नाख़ून काटने से बचना चाहिए।
            • जो लोग नवरात्रि के नौ दिन उपवास करते हैं और माता-रानी की सेवा और पूजा करते हैं। उन लोगो को नवरात्रि के दिनों में सिलाई और बुनाई करने से भी बचना चाहिए।
            • नवरात्रि के नौ दिन माता रानी के समक्ष अंखड ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती हैं। इसलिए हमे घर पर ही रहना चाहिए। घर इ दरवाजे बंद करके कही बाहर नही जाना चाहिए।
            • नवरात्रि के नौ दिन आपको माता दुर्गा का पाठ यानि दुर्गा चालीसा पढ़ना चाहिए तथा उनके मंत्रो का जाप करना चाहिए।
            • नवरात्रि के दिनों में पति पत्नी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों शारीरिक संबंध बनाना वर्जित माना जाता हैं।
            • नवरात्रि के नौ दिन आपको सात्विक भोजन अपने आहार में लेना चाहिए। तामसिक भोजन से दूरी बनाकर रखे।
            • इसके अलावा अगर आप मास और मदिरा का सेवन करते हैं, तो नवरात्रि के नौ दिन इस प्रकार की चीज़ वस्तु खाने से बचे।
            • नवरात्रि के दिनों में आपको लहसुन और प्याज खाने से भी बचना चाहिए क्योंकि प्याज और लहसुन तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं।
            • नवरात्रि के दिनों (Navratri days) में चमड़े से बनी वस्तु पहनना भी अशुभ माना जाता हैं। इन दिनों चमड़े का पर्स, बेल्ट, जूते चप्पल आदि का उपयोग में लेने से बचे।
            • नवरात्रि के दिनों में दाढ़ी और मुछ कटवाना भी मनाई होती हैं। इसलिए इस प्रकार की क्रिया करने से बचे।
            • नवरात्रि के नौ दिन तन और मन से शुद्ध रहे और सच्चे मन से माता रानी की पूजा अर्चना करे।

            निष्कर्ष

            दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है कि नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी अन्य और भी महत्व पूर्ण जानकारी प्रदान की हैं।

            हम आप से उम्मीद करते है कि आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर यह उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि अन्य लोगों तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

            दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा नवरात्रि में सिलाई करनी चाहिए या नहीं - नवरात्रि में क्या-क्या नहीं करना चाहिए ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद !

            FAQs

            नवरात्रि में क्या नहीं करना चाहिए

            नवरात्रि के दिनों में मांस और मदिरा का सेवन न करें, बाल न कटवाएँ, नींद अधिक न लें, झूठ बोलने से बचें, तामसिक भोजन न खाएँ और कलह या नकारात्मक विचारों से दूरी रखें।

            नवरात्रि में क्या खाना चाहिए

            नवरात्रि में मौसमी फल, साबूदाना, कुट्टू-राजगिरा आटा, सेंधा नमक, दही, दूध, मेवे, नारियल पानी और हल्का सत्त्विक भोजन खाना चाहिए। ताजे फल व ऊर्जा देने वाले सहज पचने वाले खाद्य सर्वोत्तम हैं।

            अखंड ज्योति बुझ जाए तो क्या करना चाहिए

            यदि अखंड ज्योति बुझ जाए तो घबराएँ नहीं। पहले दीपक को ठीक से साफ करें, नई बत्ती लगाएँ, शुद्ध घी या तेल डालकर पुनः ज्योति प्रज्वलित करें और मां दुर्गा से क्षमा की प्रार्थना करें।

            नवरात्रि में पति-पत्नी को क्या करना चाहिए

            नवरात्रि के दिनों में पति-पत्नी को मिलकर कलश स्थापना करनी चाहिए, मां दुर्गा की पूजा, व्रत पालन, सात्त्विक भोजन, सकारात्मक वातावरण, दान और पुण्य तथा विनम्र व्यवहार करना चाहिए। एक-दूसरे का सहयोग और संयम बनाए रखना चाहिए।

            कौन से काम नवरात्रि में भूलकर भी नहीं करनी चाहिए

            नवरात्रि के दिनों में मांस और मदिरा सेवन, तामसिक भोजन, झूठ-कलह, बाल कटवाना, नाखून काटना, देर तक सोना, अपवित्रता, अनावश्यक क्रोध और नकारात्मक कार्य बिल्कुल नहीं करने चाहिए। पूजा स्थल पर शुद्धता बनाए रखें।

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