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साल 2026 में मकर संक्रांति कब है? जानें तारीख, पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त

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बुधवार

Makar Sankranti 2026: क्या आप जानना चाहते है कि 2026 me makar sankranti kab hai, या makar sankranti kyon manae jaati hai और when is makar sankranti in 2026 के बारे में हम बिस्तर से जानेगे, तो चलिए शुरू करते है... 

Makar Sankranti लंबे दिनों और छोटी रातों की शुरुआत का संकेत है। यह भारत के सबसे शुभ और व्यापक त्योहारों में से एक है जो सूर्य की धारा की पृथ्वी के चारों ओर की यात्रा के दौरान मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश का संकेत करता है। फसल के मौसम की शुरुआत की जाने वाली इस मौके को भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग उत्तरायण या सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में पहुंचन का स्वागत करते हैं, पतंग उड़ाते हैं और अपने प्रियजनों के साथ भोजन का आनंद लेते हैं।

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साल 2026 में, मकर संक्रांति 14 जनवरी दिन बुधवार को है। जानें इसके शुभ मुहूर्त, कथा, महत्व, और Makar Sankranti 2026 का आचरण करने के तरीके के बारे में।

मकर संक्रांति 2026 कब है?

Makar Sankranti Kab Hai: Year 2026 में, मकर संक्रांति का उत्सव 14 जनवरी को मनाया जाएगा। 

मकर संक्रांति 2026 का शुभ मुहूर्त, समय और तारीख | Makar Sankranti 2026 Date & Muhurat

  • मकर संक्रांति तारीख: 14 जनवरी 2026, बुधवार
  • मकर संक्रान्ति पुण्य काल - 03:13 PM to 05:45 PM बजे तक
  • कुल अवधि - 02 घण्टे 32 मिनट
  • मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल - 03:13 PM to 04:58 PM बजे तक
  • कुल अवधि - 01 घण्टा 45 मिनट

Makar Sankranti मनाने के पीछे का महत्व और कहानी

मकर संक्रांति, या माघी, वह दिन है जब सूर्य दक्षिणायन चरण से उत्तरायण की ओर अपनी यात्रा करता है। यह शीतकालीन सोलस्टिस का समापन करता है और लम्बे दिनों की शुरुआत करता है, सौर प्रभाव और प्रकाश और ज्ञान की भावना को दर्शाता है।

यह दिन भगवान सूर्य (Sun God) को समर्पित है। करोड़ों लोग गंगा जैसी नदियों में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए जाते हैं। इस दिन प्रयागराज और हरिद्वार में विशाल संख्या में कुम्भ मेला और मेले भी होते हैं।

पौराणिक रूप से, यह दिन था जब भगवती देवी ने एक भयंकर युद्ध के बाद शैतानी राक्षस सुंभ-निसुंभ को मार डाला। इससे पहले भी, इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा ने उत्तरायण दिवस पर अपने मरने के बाद स्वर्ग की ओर रुख किया था।

Makar Sankranti को विशाल संख्या में तीर्थयात्राओं, व्यापार मेलों, सजावट, पतंग उड़ाने, और तिल, गुड़, सेसम जैसे सामग्रियों के साथ बनाई जाने वाली पारंपरिक मिठाईयों के लिए जाना जाता है, जैसे कि तिल के लड्डू और गुड़ चिक्की। सर्दी दूर रखने के लिए बोनफायर से लेकर रंगीन उत्सव तक - यह फसल त्योहार भारत को अपने नृत्यात्मक तत्वों में जगाता है।

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मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

2026 Makar Sankranti: मकर संक्रांति के त्योहार के उत्पत्ति से कई पुराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार, महान राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति प्रदान करने के लिए नदी गंगा को पृथ्वी पर लाया। गंगा ने मकर संक्रांति/Makar Sankranti को अपने अवतरण के रूप में अवतरित होकर अपने जीवनदाता पानियों से किसानों को समृद्धि दी। इसी समय देवी लक्ष्मी भी जल से उत्पन्न हुईं, लोगों को धन और प्रचुरता से आशीर्वाद देती हुई। इस विश्वास के कारण, कई हिन्दू संक्रांति की पूर्व संजी पर लक्ष्मी पूजा/Lakshmi Puja करते हैं, समृद्धि और सौभाग्य की कृपा को आमंत्रित करने के लिए।

एक और कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने इस शुभ दिन पर भगवान गणेश को महाभारत, भारतीय महाकाव्य, की कथा सुनाना शुरू की। एक और कहानी मकर संक्रांति पर दान-पुण्य (दान और पुण्यकर्म) के महत्व को उजागर करती है। इसे माना जाता है कि इस दिन, लोहड़ी की आग कलियुग के पापों को जला देती है, जबकि संक्रांति का प्रकाश अंधकार और अज्ञान को समाप्त कर देता है।

मकर संक्रांति उत्सव की क्षेत्रीय विविधताएँ

मकर संक्रांति का उत्सव भारत भर में फैला हुआ है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में इस फसल त्योहार के लिए विशेष नाम और उत्साह धारित करने के विभिन्न तरीके हैं:

  • उत्तर प्रदेश: खिचड़ी सांग्रंधि, विशेष बसंत पंचमी स्नान रीतिरिवाज
  • पंजाब: माघी, बोनफायर में नृत्य, गायन, भोज
  • हरियाणा: संक्रांति महोत्सव, पतंग उड़ाने के प्रतियोगिताएं
  • पश्चिम बंगाल: पौष संक्रांति, देवी संक्रांति की पूजा
  • बिहार और झारखंड: तुसु पर्व, समृद्धिपूर्ण फसल के लिए
  • आसाम: माघ बीहु, समुदाय भोजन और मृगी बीहु भैंस युद्ध
  • तमिलनाडु: पोंगल पेरम परलाई, एलु भोजनम मिठाई भोग
  • केरल: मकरविलक्कु त्योहार, सबरीमाला यात्रा
  • गुजरात: अंतरराष्ट्रीय पतंग उड़ाने का त्योहार, उत्तरायण भोज
  • महाराष्ट्र: तिळगुळ घ्या, गोड़ गोड़ पिकनिक, हल्दी कुंकुम समारोह

मकर संक्रांति दिवस पर पूरे भारत में उत्सव

  • पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं (गुजरात)
  • बोनफायर उत्सव (उत्तर भारत)
  • जयपुर साहित्य महोत्सव, और कुम्भ मेला जैसे सांस्कृतिक त्योहार (भारत के विभिन्न हिस्सों)
  • भोजन और सामाजिक सभाओं
  • गंगा में पवित्र स्नान (उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल)
  • पशुओं को फूल, रंग, आदि से सजाना
  • तिल चावल और गुड़ का आदान-प्रदान के रूप में सुख-शांति के प्रति
  • गरीबों को भोजन, धन, और राजाई दान करना।

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इन सभी विविध उत्सवों का मूल रूप से तात्पर्य है कि इस विशेष अवसर का आनंद प्रियजनों के साथ मनाएं और भगवान से एक प्रचुर फसल के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें। कुछ रीतियां इस दिन की गहरी दर्शनिक दृष्टि को प्रतिबिंबित करती हैं, जो खुशी और सौभाग्य को साझा करने के इस दिन के दीपर दार्शनिक सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो स्वास्थ्य, धन, और समृद्धि को सभी मानवों के लिए लाती हैं, साथ ही सभी प्राणियों और पृथ्वी पर रहने वाली सभी जीवों के लिए।

क्षेत्रीय Makar Sankranti समारोह और अनुष्ठान

  • तिल गुळ घ्या, गोड गोड बोला: महाराष्ट्र
  • मकर मेला: ओडिशा
  • पेड्डा पंडुगा: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
  • माघ मेला/कुम्भ मेला: उत्तर प्रदेश
  • माघे संक्रांति: नेपाल
  • शाकराइन: बांग्लादेश
  • पौष संग्क्रांति: पश्चिम बंगाल
  • लोहड़ी: उत्तर भारत
  • माघी: पंजाब
  • घुघुती: उत्तराखंड

Makar Sankranti पुण्य काल मुहूर्त और पूजा विधि

पुण्य काल मुहूर्त दिन के सबसे शुभ समय को दर्शाता है जब दान, जप, हवन आदि जैसे पुण्य कार्य किए जा सकते हैं। Year 2026 में, यह अवधि  सुबह 03:13 PM बजे शुरू होती है और शाम 05:45 बजे तक है।

भक्तों को पवित्र स्नान करना चाहिए और पीले या लाल रंग के पारंपरिक वस्त्र पहनना चाहिए। पूजा स्थल पर काली, लाल, पीला, और हरा रंग की रंगोली बनाएं। कलश पर सजाकर पीले फूल, फल, तिल के लड्डू, चावल, गुड़, तिल चिक्की या गुड़ से बनी मिठाई, लाल सैंडलवुड तिलक, पीला चंदन, लाल कुंकुम, धूप स्टिक, दीपक, और सिक्के दें, जो एक लकड़ी की पौधी पर रखे जाते हैं। एक तेल का दीपक जलाएं और तिल गुळ घ्या आदत का आयोजन करें, जिसमें तिल बीज और गुड़ को अपनों के साथ आदान-प्रदान किया जाता है। उन्हें मौथवॉटरिंग मकर संक्रांति की विशेषताओं पर भोजन करने के लिए आमंत्रित करें और सौभाग्य और शुभकामनाओं के प्रति खुदाई के रूप में उपहार साझा करें।

गरीबों को गरम कपड़े (खासकर कम्बल या ऊनी कंबल), पुस्तकें, बछड़े/गाय के चारा, खाद्य आदि की चीजें दान करें। भिखारियों, जरूरतमंद बच्चों, और बुजुर्गों के लिए चैरिटी करें। संस्कृत मंत्र (स्तुति), भजन, प्रार्थनाएँ, और दिये जलाने के लिए सूर्य देव और पृथ्वी माता कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए संगीत करें। संक्रांति रीतिरिवाजों के आध्यात्मिक सार को ध्यान में रखने से आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए अहंकार-स्वयं को पार करने में मदद होती है। व्यक्ति सुपरफिशियल द्वैत रूपों के परे में एकता की अंतर्निहित सत्य को समझता है और ब्रह्मांड के सभी जीवों के प्रति सहानुभूति और करुणा विकसित करता है।

हम Makar Sankranti पर पतंग क्यों उड़ाते हैं?

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मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का प्राचीन परंपराओं और धार्मिक महत्व के कई कारण हैं। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण में प्रवृत्त होते हैं, जिससे दिन की लम्बाई बढ़ने और रात की छोटाई होने का संकेत मिलता है। पतंगों को ऊँचे उड़ाने से इस प्रक्रिया को सूर्य के साथ सम्बोधित करते हैं और सूर्य देव की ऊपरी दिशा में उनका स्वागत करते हैं।

यह परंपरा हिन्दू समुदाय में समृद्धि, सफलता और खुशी का प्रतीक है। इसके अलावा, पतंगों को उड़ाने से वायुमंडल में जो शक्ति रहती है, वह सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होती है जो शरीर और मन को प्रेरित करती है। इससे लोग अपनी आत्मा को स्वतंत्र महसूस करते हैं और सूर्य की ऊपरी दिशा में उनकी ऊँचाई की ओर प्रगाढ़ रूप से बढ़ते हैं। इसलिए, मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाना एक आनंददायक और धार्मिक गतिविधि बन गई है।

Makar Sankranti 2026 मनाने के 10 तरीके

यहां मकर संक्रांति 2026 के उत्सव के शीर्ष 10 रीतिरिवाज और परंपराएं हैं:

  1. पवित्र स्नान: गंगा या यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करें या सूर्य देव की पूजा के रूप में तेल से स्नान करें।
  2. खिचड़ी प्रसाद का आनंद लें: गुणकारी खिचड़ी का आनंद लें, जिसे घी, तिल, चावल, और दाल से बनाया जाता है, उसे प्रसाद के रूप में।
  3. सूर्य पूजा करें: सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य, फूल या मिठाई से पूजें, मंत्र चैंट्स के साथ।
  4. भोजन और वस्त्र दान करें: मकर संक्रांति पुण्य कर्म के हिस्से के रूप में आइटम्स का दान करें, जैसे कि भोजन और कपड़ा।
  5. पतंग उड़ाएं: मनोरंजन के लिए पतंग उड़ाएं या पतंग युद्ध प्रतियोगिताओं में शामिल हों।
  6. तिल लड्डू और गुड़ चिक्की बनाएं: तिल और गुड़ से पारंपरिक मिठाई बनाएं। उन्हें पहले नैवेद्य के रूप में अर्पित करें।
  7. मेला समागमों में भाग लें: माघ मेलों या संक्रांति मेलों में भाग लें, जो बड़े पैम्प उत्सव के रूप में होते हैं।
  8. बोनफायर जलाएं: शाम में समुदायिक बोनफायर के चारों ओर बैठें, गर्मी और खुशी के लिए।
  9. रंगोली से सजाएं: घरों को रंगीन फ्लोर रंगोली कला से सजाएं।
  10. गौ पूजा करें: गायों की पूजा करें तिल और गुड़ के ट्रीट्स के साथ।

Conclusion

मकर संक्रांति हिन्दू चंद्र सम्वत के सबसे महत्वपूर्ण और धार्मिक त्योहारों में से एक है। उत्सव भारत की समृद्धि भरी सांस्कृतिक धरोहर और क्षेत्रीय आचार-विचार में दिखाई देने वाली विविधता को अभिव्यक्त करते हैं। और इससे भी महत्वपूर्ण है, संक्रांति रितुओं के बाद आने वाले आशीर्वादमय प्रकाश की भावना को प्रतिष्ठित करती है, जब एक महीने के धुंदले, छोटे दिनों के बाद दिन की रोशनी बढ़ती है।

Makar Sankranti पुण्य काल मुहूर्त एक आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा माहौल प्रदान करता है, जिसमें लौकिक शुद्धि के लिए पुण्यकारी क्रियाएँ, दान, और पूजा अनुष्ठान किया जा सकता है। इससे यह सिद्ध होता है कि अध्यात्मिक सत्य का समर्थन करने के लिए आत्मा को अध्यात्मिक यात्रा पर भेजने के लिए सही क्रियाएँ करके अहंकार को पार करना है, ब्रह्मांड में सभी अस्तित्व की पूर्ण एकता का मेटाफिजिकल सत्य को समझना।

तो आइए, Makar Sankranti 2026 के साथ, आप उच्चता की ओर उड़ें - अपने दोषों को छोड़ें और अंदर की भलाइयों को अपनाएं! सकारात्मकता, उत्साह, और धार्मिक अनुष्ठान इसे सार्थक बनाने का वादा करते हैं। उत्सव के लिए तैयारी करें!

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FAQs

2026 में मकर संक्रांति कब है?

मकर संक्रांति 2026 में 14 जनवरी, बुधवार को है।

भारत भर में मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?

प्रत्येक क्षेत्र अनूठे तरीके से उत्सव का आयोजन करता है - पंजाब में बोनफायर नृत्य होता है, तमिलनाडु में मिठे पोंगल बनते हैं, उत्तर प्रदेश में खिचड़ी प्रसाद का आनंद होता है, गुजरात में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव होता है, असम में माघ बीहू में भैंस युद्ध होते हैं, महाराष्ट्र में हल्दी कुमकुम का उत्सव मनाया जाता है।

Makar Sankranti त्योहार के विभिन्न नाम क्या हैं?

पोंगल, बिहु, लोहड़ी, उत्तरायण, माघी, सक्रांति, माघ बीहू, पौष पर्व, तिल संक्रांति, आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रीय नाम हैं।

मकर संक्रांति के पाँच प्रमुख रीतिरिवाज क्या हैं?

सबसे महत्वपूर्ण रीतिरिवाज हैं पवित्र स्नान, सूर्य देव की पूजा, पतंग उड़ाना, तिल लड्डू और गुड़ घ्या की मिठाई खाना, मेला समागमों में भाग लेना, और रंगोलियों से सजाना।

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?

Makar Sankranti kab aati hai: मकर संक्रांति भारतीय पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इसे सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होने की स्थिति के रूप में देखा जाता है और यह ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का सूचक है।

मुझे आशा है कि ये नमूना पूछे जाने वाले प्रश्न आपको मकर संक्रांति 2026 की तारीख, समय, उत्सव और महत्व के कुंजी विवरणों के बारे में अच्छी तरह से सूचित करेंगे। यदि आपको अपने लेख के लिए किसी और त्योहार से संबंधित जानकारी चाहिए, तो मुझसे संपर्क करें।

Maha Shivratri 2026: महाशिवरात्रि कब है, नोट कर लें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Maha Shivratri 2026 Date: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। उन्हें दयालु और कृपालु भगवान माना जाता है, जिनकी प्रतिष्ठा बहुत उच्च है। वे एक लोटे के जल से भी संतुष्ट हो जाते हैं। महाशिवरात्रि शिवभक्तों के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पर्व पर भगवान शंकर की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है और भक्त व्रत और पूजन के साथ इसे धूमधाम से मनाते हैं।

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हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। पहली महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है और दूसरी महाशिवरात्रि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। दोनों महाशिवरात्रि पर्व बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। फाल्गुन मास में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि के संदर्भ में कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इस दिन विधिवत भगवान शिव की पूजा करने से सोखी विवाही जीवन की प्राप्ति होती है और सौभाग्य की कामना की जाती है। जानिए 2026 में महाशिवरात्रि कब मनाई जाएगी और महाशिवरात्रि 2026 की तिथि।

साल 2026 में महाशिवरात्रि 15 फरवरी, Sunday को मनाई जाएगी। यह महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट मिट जाते हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। आइए, हम जानते हैं महाशिवरात्रि की पूजा की तिथि और महत्व के बारे में।

महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा समय:

महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन के चार प्रहरों में पूजा की जाती है। निम्नलिखित है महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा का समय...

  • चतुर्दशी तिथि की शुरुआत: 15 फरवरी 2026, 05:04 PM बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्ति: 16 फरवरी 2026, 05:34 PM बजे
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के प्रथम प्रहर में: शाम 06:11से 9:23 PM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के दूसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 9:23 PM से रात्रि 12:35AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के तीसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 12:35 AM से 3:47 AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के चौथे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 3:47 AM से 6:59 AM बजे तक

महाशिवरात्रि का महत्व और मनाने का कारण

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का संकेत होता है। रात्रि के चार प्रहरों में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि का यह महत्वपूर्ण त्योहार भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और शक्ति की पूजा करने से मनुष्य की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और सभी संकट दूर होते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत विधि

महाशिवरात्रि का व्रत एक कठिन व्रत होता है जिसमें दिन भर उपवास और रात्रि में जागरण किया जाता है:

  • प्रातः स्नान करके शिवलिंग पर जल, दूध, शहद अर्पित करें।
  • बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल चढ़ाएं।
  • "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
  • चार पहर की पूजा करें या कम से कम निशीथ काल की पूजा करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि 2026 एक अत्यंत शुभ दिन है जब भक्त भगवान शिव की आराधना करके अपने जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं। अगर आप भी शिवभक्त हैं, तो इस दिन की पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व को समझें और पूरे भक्ति भाव से इस पर्व को मनाएं।

FAQs

Sal 2026 me maha shivaratri kab hai?

Dear friends 2026 me maha shivaratri 15 February, 2026 ko hai.

कौन सी शिवरात्रि सबसे बड़ी है?

महाशिवरात्रि भारत और नेपाल के शैव संप्रदाय के हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक पर्व है।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं | पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं - हिंदू सनातन धर्म में व्रत को काफी महत्व दिया जाता हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए तथा भक्त और भगवान के बीच की दुरी को कम करने के लिए व्रत किया जाता हैं। ऐसा माना जाता है की व्रत करने से हमें शुभ फल की तो प्राप्ति होती ही हैं। साथ-साथ हमें स्वास्थ्य लाभ भी मिलता हैं।

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

व्रत करना हमारे शरीर के लिए भी अच्छा माना जाता हैं। वैसे तो लोग विभिन्न प्रकार के आए दिन कोई ना कोई व्रत करते रहते हैं, लेकिन आज हम इस ब्लॉग में पूर्णिमा व्रत के बारे में चर्चा करने वाले हैं जो की आपके लिए उपयोगी साबित होने वाला हैं। इसलिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में नमक नहीं खाना चाहिए। पूर्णिमा व्रत में नमक खाना वर्जित माना गया हैं लेकिन फिर भी अगर आप नमक खाना चाहते है, तो सेंधा नमक खा सकते हैं। अगर आप पूर्णिमा के दिन कुछ भी फलाहार बनाए, तो उसमें सफ़ेद नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल करे।

ये भी पढ़े: जानिए मंगलवार के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं और व्रत के नियम

पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए कि नहीं

वैसे तो पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाया जा सकता हैं, लेकिन कुछ महिलाएं पूर्णिमा के दिन सिंदूर नहीं लगाती हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथो में पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए या नहीं इसके बारे में कुछ भी बताया गया नहीं हैं।

इसलिए महिलाएं अपनी मान्यता और इच्छा अनुसार सिंदूर लगाती भी है और कुछ महिलाएं सिंदूर नहीं भी लगाती हैं। सिंदूर लगाना या नहीं लगाना अपनी मर्जी और विचार पर निर्भर करता है।

पूर्णिमा के दिन बाल धोना चाहिए या नहीं

पूर्णिमा व्रत व्रत में इस दिन बाल धोना निषिद्ध माना जाता है। यह अत्यंत ही शुभ तिथि होती है, जब महिलाएँ व्रत रखती हैं। ऐसे में यदि आप भी व्रत करते हैं, तो इस दिन बाल धोने से अवश्य ही बचना चाहिए।

हमारे धर्मशास्त्रों में महिलाओं के बाल धोने से जुड़े कई नियम बताए गए हैं। यदि किसी शुभ दिन व्रत रखा जाए, तो उस दिन बाल धोने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत के दिन बाल धोने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

पूर्णिमा का व्रत करने से जातक को काफी लाभ होते हैं। इसलिए जातक के द्वारा पूर्णिमा का व्रत का किया जाता हैं। जैसे की -

  • अगर किसी को मानसिक कष्ट हो रहा है, तो उनको पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। 
  • अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र दूषित या पीड़ित है, तो उनको पूर्णिमा व्रत करना चाहि।
  • जिन लोगो बहुत अधिक भय लगता है या हमेशा के लिए मानसिक चिंता में डूबे रहते हैं। तो ऐसे लोगो के लिए पूर्णिमा का व्रत अच्छा माना जाता है।
  • पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर कच्चा दूध तथा जल अर्पित करने से बीमारी से छुटकारा मिलता हैं। इसलिए कुछ लोग पूर्णिमा का व्रत करते हैं।
  • वैवाहिक जीवन में शांति के लिए तथा पारिवारिक सुख पाने के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता हैं।
  • इन सभी लाभों को प्राप्त करने के लिए और भगवान विष्णु के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए

किसी भी व्रत का सीधा संबंध भोजन से जुड़ा होता है, इसलिए आप को व्रत शुरू करने से पहले यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि इस व्रत में क्या खाना उचित है। ऐसे में हम पूर्णिमा व्रत की बात करें तो बहुत से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस व्रत को करते हैं।

लोग व्रत तो रखते लेते हैं, लेकिन खाने को लेकर अक्सर उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते रहते हैं। आइए आज हम जानें कि पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए।

दूध और खीर: ऐसा कहा जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप दूध की बानी खीर का सेवन कर सकता/सकती हैं। इसके अलावा आप दूध से बने अन्य व्यंजन जैसे की साबूदाने की खीर, सेवई की खीर और चावल की खीर का सेवन किया जा सकता हैं।

ड्राई फूड्स: यदि आप भी पूर्णिमा का व्रत रख रही हैं, तो आप इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते हैं। इसमें काजू, अखरोट, बादाम, किशमिश, पिस्ता, खजूर और खुबानी शामिल होता हैं।

इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन दिन में केवल एक बार करना ही उचित रहता है, क्योंकि किसी भी व्रत में बार-बार खाना नहीं चाहिए।

फलों का सेवन: माना जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप फलों का सेवन कर सकते हैं। फल पूरी तरह सात्त्विक होते हैं और व्रत के दौरान बेझिझक एक बार खाए जा सकते हैं।

इस व्रत में आप जैसे कि केला, संतरा, अंगूर, और खीरा आदि फलों का सेवन कर सकते हैं। हालांकि, इन्हें व्रत में पूजा-पाठ पूर्ण करने के बाद ही खाना उचित होता है।

सिंघाड़े का सेवन: पूर्णिमा व्रत में आप सिंघाड़े से बानी चीजो का सेवन कर सकती हैं। सूखे सिंघाड़े को पीसकर उसका आटा तैयार करें और उससे पूरी, हलवा या अन्य व्रत-उपयुक्त व्यंजन बनाकर खाएँ।

इसके अलावा, आप पूर्णिमा व्रत में राजगिरा आटे का हलवा भी खाया जा सकता है। इसे देसी घी, दूध, चीनी और मेवा मिलाकर स्वादिष्ट रूप में तैयार किया जा सकता है।

साबूदाना की बानी खिचड़ी: पूर्णिमा व्रत करने वाली महिलाएँ साबूदाने की खिचड़ी बनाकर ग्रहण कर सकती हैं, इससे व्रत नहीं टूटता। बस इसे बनाते समय साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में शाम को आप निम्नलिखित चीजों को बनाकर खा सकते हैं:

  • साबूदाने का पुलाव या खिचड़ी
  • कच्चे केले की टिक्की
  • सिंघाड़े की नमकीन बरफी
  • कुटू के पराठे
  • आलू, खीरा तथा मूंगफली का सलाद
  • मखाने की खीर
  • दही, सेंधा नमक
  • कुटू के पकोड़े

इसके अलावा आप अन्य और भी फलहारी व्यंजन बनाकर खा सकते है।

पूर्णिमा व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में आप को नमक, अंडा, प्याज और लहसुन का बिल्क़ुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत खोलने की विधि

पूर्णिमा का व्रत खोलने के लिए सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा करे। इसके बाद पुष्प आदि अर्पित करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराए और उन्हें दक्षिणा आदि दान करे। इसके पश्चात आप स्वयं पूर्णिमा का व्रत खोल सकती हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करें। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं / पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs 

पूर्णिमा के व्रत में नमक खा सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में बिल्कुल भी नमक नहीं खाना चाहिए। 

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए?

इस व्रत में आप फल, दूध की खीर, साबूदाना और ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते है।

पूर्णिमा के दिन बाल धो सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के दिन भूल से भी बाल नहीं धोना चाहिए।

पूर्णिमा के दिन किन वसुओं का दान करना चाहिए?

पूर्णिमा के दिन आप किसी भी ब्राह्मण को चावल, दही, चांदी की चीजे, सफेद रंग के वस्त्र, चीनी, सफेद फूल और मोती जैसी आदि वसुओं का दान करना चाहिए।

पूर्णिमा के कितने व्रत आप को करने चाहिए?

पूर्णिमा के कुल 32 व्रत पूर्ण करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत आप किसी भी माह से आरम्भ कर सकते है, लेकिन शुभ फल पाने हेतु श्रावण या माघ के महीने में शुरू करना बहुत ही श्रेष्ठ माना जाता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है?

पूर्णिमा का व्रत मानसिक शांति, चंद्रदेव की कृपा, सौभाग्य, आरोग्य और पारिवारिक सुख पाने के लिए किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत में शाम के समय आप फल, दूध, साबुदाना, और खीर का सेवन कर सकते है।

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Saraswati Puja 2026: जानें तिथि, समय, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Saraswati Puja Date 2026: सरस्वती पूजा, जिसे वसंत पंचमी भी कहा जाता है, वह हिन्दू ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि, और शिक्षा की देवी - माँ सरस्वती को समर्पित एक त्योहार है। इस शुभ अवसर को उत्साह और उत्सव के साथ पूर्वोत्तर, पूर्वी, और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मनाया जाता है, जो हिन्दू चंद्र कैलेंडर के माघ मास की पाँचवीं तिथि को बताता है, जो ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत के मिलता है।

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2026 में, सरस्वती पूजा 23 जनवरी को मनाई जा रही है। इस त्योहार की पूजा तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, और इस सम्बंधित परंपराओं को जानने के लिए आगे पढ़ें, जो बसंत के आगमन को सूचित करते हैं।

2026 में सरस्वती पूजा कब है?

Saraswati Puja 2026 Kab Hai: 2026 में, वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा शुक्रवार, 23 जनवरी को हो रही हैं।

Saraswati Puja 2026 Date and Time

Saraswati Puja in 2026/ यहां है सरस्वती पूजा 2026 के लिए मुख्य तिथियों और समयों की सूची:

  • सरस्वती पूजा की तिथि: शुक्रवार, 23 जनवरी 2026
  • पंचमी तिथि शुरू: 23 जनवरी 2026 को 02:28 PM बजे
  • पंचमी तिथि समाप्त: 24 जनवरी 2026 को 01:46 AM बजे
  • वसंत पंचमी मुहूर्त - सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक
  • अवधि - 05 घंटे 20 मिनट
  • पूजा के लिए आदर्श समय: सरस्वती आवाहन के समय से लेकर पंचमी तिथि समाप्त होने तक।

सरस्वती पूजा शुभ मुहूर्त: Saraswati Puja Shubh Muhurat

Saraswati Puja 2026 का सबसे शुभ और महत्वपूर्ण मुहूर्त सुधारित है, जैसा कि निम्नलिखित है:

  • वसन्त पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्त - 23 जनवरी 2026, शुक्रवार के दिन सुबह 07:13 से दोपहर 12:33 बजे तक। 
  • वसंत पंचमी मध्याह्न क्षण - 12:33 PM

इन शुभ मुहूर्तों में पूजा करना और सरस्वती मंत्रों का जाप करना, देवी सरस्वती के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

सरस्वती पूजा विधि और प्रक्रिया

पूजा रीति, मंत्र जाप, और आचार्यों में क्षेत्रीय भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन यहां उस दिन को मनाने के लिए आवश्यक Saraswati Puja Vidhi है:

  • समय पर उठें, नहाएं, और शुद्धि के बाद ताजगी वाले कपड़े पहनें।
  • एक पूजा थाली तैयार करें, जिसमें अखंड चावल के अनाज, कमल और गुलाब के फूल, चंदन का पेस्ट, कुंकुम, हल्दी-कुंकुम, अक्षत, मिठाई, फल, पंचामृत, गंगाजल और एक घंटी हों। ये मन, ज्ञान, शुभ, बुद्धि, और देवी के आशीर्वाद की प्रतीक्षा करते हैं।
  • देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र को पीले या लाल कपड़े से ढ़के हुए एक लकड़ी की चौकी पर रखें। आप अध्ययन के प्रतीक के रूप में देवी के पास किताबें रख सकते हैं।
  • मूर्ति में देवी की आत्मा या 'आवाहन' करें।
  • धूप के साथ तेल या घी का दीया जलाएं।
  • अपनी प्रार्थनाएँ करें और Saraswati Mantras का जाप करें जैसे:

ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः॥

Om Aim Saraswatyai Namah॥

ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

Om Vagdevyai cha Vidmahe Kamarajaya Dheemahi। Tanno Devi Prachodayat॥

  • परंपरागत रूप से फूल, चावल, मिठाई, तिलक, और प्रसाद की प्रस्तुतियों के साथ सरस्वती पूजा करें। आरती के साथ समाप्त करें और घंटी बजाएं।
  • घर पर बनाए गए विशेष पकवान जैसे खीर, पूड़ी-सब्जी आदि का भोग लगाएं।
  • देवी सरस्वती को समर्पित औपचारिक संगीत और भजन गाएं या बजाएं।
  • इस दिन पढ़ाई न करें और मां सरस्वती को प्रसाद स्वरूप किताबें, पेन और नोटबुक किसी वंचित व्यक्ति को दान करें।
  • उत्सव समाप्त होने पर मूर्ति को आदरपूर्वक जल में डालकर विसर्जन करें और देवी को विदा कहें।

सरस्वती माता को क्या अर्पित करें?

केसर भात के भोग से ज्ञान की देवी मां सरस्वती अत्यंत प्रसन्न होती हैं। कहा जाता है कि इस भोग को लगाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। केसर हलवा भी मां सरस्वती को अत्यधिक पसंद है। सरस्वती पूजा में केसर हलवा एक पारंपरिक भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

सरस्वती पूजा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

बसंत पंचमी पर कौन-कौन से कार्य करना वर्जित माना जाता है? इस दिन मां सरस्वती की आराधना की जाती है, जिसमें बिना स्नान किए किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। स्नान आदि करने के बाद ही मां सरस्वती की पूजा करें और उसके बाद ही कोई ग्रहण करें।

Saraswati Puja का महत्व और परंपराएँ

Saraswati Puja धार्मिक अनुष्ठानों से परे अपने गहरे अर्थ के लिए महत्वपूर्ण है। ज्ञान, कला और शिक्षा की संरक्षक देवी के रूप में, यह अवसर छात्रों के लिए एक नए साल की शुरुआत का प्रतीक है - एक सफल शैक्षणिक वर्ष के लिए Maa Saraswati से आशीर्वाद, ज्ञान और बुद्धि की कामना करते हैं। यह वसंत के आगमन का भी प्रतीक है, जिसे भारत में वसंत ऋतु/Vasant Ritu in India के रूप में जाना जाता है, जो फूलों वाले सरसों के खेतों की सुंदरता और जीवंतता से जुड़ा है।

यहां सरस्वती पूजा समारोह से जुड़ी कुछ परंपराएं और सांस्कृतिक प्रथाएं हैं:

  • लोग ज्ञान से भरा हुआ प्रकाशमय मन प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती की प्रार्थना करते हैं। छात्र अपनी किताबें, नोटबुक्स, और संगीत यंत्रों को पूजा के अल्टर पर रखकर मां सरस्वती की कृपा प्राप्त करते हैं। इस दिन पढ़ाई करने से वे समर्थानुसार बचते हैं, जो एक प्रकार के आदर्श के रूप में है।
  • फसल उत्सव होने के कारण, किसान वसंत के पहले दिन को मनाते हैं और अपने कृषि उपकरणों, मशीनरी और पाइपलाइनों की पूजा करते हैं।
  • भारत के कुछ क्षेत्रों में, बच्चों को उनके पहले शब्द, अक्षर, और किताबों से मिलता है, जब वे अपने शिक्षा के सफर की शुरुआत करते हैं - जैसा कि विद्यारम्भ (शिक्षा की शुरुआत) और अक्षरारम्भ (अक्षरों का परिचय) जैसे प्रतीकात्मक रीतिरिवाज होते हैं।
  • अधिकांश भक्त, खासकर युवा, परंपरागत पीले वस्त्र पहनते हैं, जो ज्ञान और खुशी का प्रतीक होता है। भगवान के लिए भोग प्रसाद के रूप में खीर, मिठा चावल का दलिया, बनाया जाता है, जो बुद्धि की प्राप्ति को सूचित करता है।
  • स्कूलों और शिक्षा केंद्रों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं - बच्चे नृत्य प्रदर्शन और नाटक करते हैं और देवी सरस्वती/Goddess Saraswati को समर्पित कविता और श्लोक पढ़ते हैं।
  • इस अवसर पर यह भी अनुशंसा है कि पुस्तकें, नोटबुक्स, और कलमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दान की जाएं, जो Saraswati Devi को समर्थन के रूप में सभी के लिए सुलभ शिक्षा को प्रोत्साहित करने का एक आदान-प्रदान है।

ऐसे सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के साथ, सरस्वती पूजा आशा, समृद्धि, ज्ञान और भक्ति की भावना को एक साथ लाती है।

देवी सरस्वती की पूजा का आध्यात्मिक महत्व

Saraswati Puja Significance: हिंदू पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में, मां सरस्वती को सभी ज्ञान - दिव्य और आध्यात्मिक दोनों - के स्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। वह रचनात्मक प्रेरणा, भाषण की शक्ति और ब्रह्मांडीय ज्ञान का प्रतीक है। देवी लक्ष्मी और दुर्गा की तरह, सरस्वती देवी सर्वोच्च स्त्री शक्ति ऊर्जा की त्रिमूर्ति बनाती हैं। वह सावित्री और गायत्री जैसे दिव्य रूपों, वैदिक मीटर और हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली मंत्रों में प्रकट हुई हैं।

देवी सरस्वती के चार हाथ मानव व्यक्तित्व और शिक्षा के चार पहलुओं को प्रतिष्ठित करते हैं - मन, बुद्धि, चौकसी, और अहंकार। जैसा कि एक नदी के किनारे पौधों को फूलने और फलने के लिए सही वातावरण प्रदान करते हैं, वैसे ही सरस्वती व्यक्ति की जीभ में निवास करती है, जो बुद्धिमत्ता के लिए उच्च वातावरण (भाषा और ज्ञान के माध्यम से) प्रदान करती है।

इस दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा और सभी ज्ञान के भंडार से आशीर्वाद प्राप्त करना किसी को धार्मिक मार्ग की ओर ले जाता है, अज्ञान और पीड़ा को दूर करता है। इसलिए, सरस्वती माँ की पूजा करना, उनकी अतीन्द्रिय और अलौकिक गुणों को समझकर, अंतिम ज्ञान प्राप्त करने और चेतना की यात्रा में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का याग्य माना जाता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, Saraswati Puja एक धार्मिक उत्सव से अधिक है। मंत्र, श्लोक, सामाजिक कल्याण, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ रौंगती भरी धूम में, जो सरस्वती देवी को समर्पित हैं, यह अवसर उत्साही आत्मा की ओर संकेत करता है जो वसंत, ज्ञान, संभावनाएं, और विकास को लेकर आता है।

Saraswati Puja 2026 Date: Year 2026 में, जब वसंत पंचमी शुक्रवार, 23 जनवरी को आ रहा है, इस महत्व, रीति, और विवरण को ध्यान में रखकर अपने घर, शिक्षा केंद्र, या समुदाय में सरस्वती पूजा का आयोजन करें। मां सरस्वती के दैवी आशीर्वाद आपके आगामी सफलता को प्रकाशित करें!

FAQs

सरस्वती पूजा क्यों मनाई जाती है?

सरस्वती पूजा हिंदू ज्ञान, संगीत, कला, ज्ञान और शिक्षा की देवी - देवी सरस्वती के सम्मान में मनाई जाती है। यह एक सफल शैक्षणिक वर्ष के लिए आशीर्वाद चाहने वाले छात्रों के लिए वसंत की शुरुआत और नए साल की शुरुआत का प्रतीक है।

पूजा के दौरान देवी सरस्वती को क्या चढ़ाया जाता है?

सरस्वती पूजा के दौरान देवी को फूल, अक्षत, मिठाई, फल, खीर, चंदन का लेप और किताबें अर्पित की जाती हैं। संगीत वाद्ययंत्र और सीखने के उपकरण भी उनकी मूर्ति या छवि के पास रखे जा सकते हैं।

लोग सरस्वती पूजा कैसे मनाते हैं?

लोग पारंपरिक पीले कपड़े पहनकर, उपवास रखकर, रसोई में विशेष प्रसाद तैयार करके और स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करके जश्न मनाते हैं। किताबें, कलम और नोटबुक अक्सर वंचितों को भी दान किए जाते हैं।

सरस्वती पूजा पर छात्र पढ़ाई क्यों नहीं करते?

छात्र देवी के प्रति सम्मान और भक्ति के रूप में सरस्वती पूजा के दिन पढ़ाई नहीं करते हैं। वे पूजा में भाग लेते हैं और पूजा के इस विशेष दिन पर ज्ञान और आशीर्वाद के लिए शैक्षणिक गतिविधियों से दूर रहते हैं।

Basant Panchami 2026: जाने कब है बसंत पंचमी, तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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Jane Kab hai Basant Panchami 2026: यह त्योहार देवी सरस्वती को समर्पित है। जानें 2026 में बसंत पंचमी के महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त समय, कथा और तिथि के बारे में विस्तार से पढ़ें।

Basant Panchami 2026: बसंत पंचमी, जिसे Vasant Panchami or Saraswati Puja के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, प्रतिवर्ष बसंत के आगमन की सूचना देने के लिए मनाया जाने वाला एक शुभ हिन्दू त्योहार है। इस उत्सव के अवसर पर हम सरस्वती की भी पूजा करते हैं, जो संगीत, ज्ञान, कला, और शिक्षा की हिन्दू देवी हैं। 2026 में, बसंत पंचमी को 23 जनवरी को मनाया जाएगा।

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आगे बढ़ने के लिए पढ़ें और जानें कि Basant Panchami 2026 के उत्सव के लिए पूजा तिथि, महत्व, पूजा के तरीके, संबंधित किस्से, और बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त समय।

2026 में बसंत पंचमी कब है?

2026 Me Basant Panchami Kab Hai: बसंत पंचमी प्रतिवर्ष हिन्दू माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। हिन्दू चंद्र सौर कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि ग्रीगोरियन कैलेंडर के लेट जनवरी या शुरू फरवरी को मिलती है।

Vasant Panchami के दिन, सरस्वती भक्तों को सकारात्मक परिणामों के लिए सबसे शुभ क्षणों में पूजा और बलियाँ अर्पित करनी चाहिए। 2026 में, उत्सव को बसंत पंचमी की तिथि और देवी सरस्वती पूजा मुहूर्त/Goddess Saraswati Puja Muhura के साथ याद किया जाएगा।

Know the Basant Panchami 2026 Date and Time

  • तिथि: शुक्रवार, 02 जनवरी, 2026
  • वसंत पंचमी मुहूर्त - सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक
  • अवधि - 05 घंटे 20 मिनट
  • बसंत पंचमी मध्याह्न का समय - 12:33 बजे तक
  • पंचमी तिथि आरंभ - 23 जनवरी 2026 को 02:28 AM बजे से
  • पंचमी तिथि समाप्त - 24 जनवरी 2026 को 01:46 AM बजे

चुना गया Shubh Muhurat आम तौर पर शहर के अनुसार अलग-अलग होता है, इसलिए अपने स्थान पर सटीक समय के लिए किसी भी हिंदू पंचांग या पंचांग की जांच करें। अधिकतम लाभ के लिए अपनी 2026 Vasant Panchami प्रार्थनाओं को तदनुसार निर्धारित करें।

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2026 Vasant Pancham महोत्सव के बारे में सब कुछ

जैसे ही वसंत ऋतु आती है, देश भर में हिंदू बसंत या वसंत पंचमी मनाते हैं, जो भव्यता से चिह्नित एक शुभ त्योहार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन, पंचमी तिथि को होने वाली इसे दक्षिणी क्षेत्रों में श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार दुनिया के निर्माता ब्रह्मा की पत्नी देवी सरस्वती की पूजा/Saraswati Puja के लिए समर्पित है। इस महत्वपूर्ण दिन पर, उन्हें संगीत, कला, ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता है।

भक्तों की मान्यताओं के अनुसार, देवी सरस्वती की पूजा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी अनुपस्थिति दुनिया को अज्ञानता के अंधेरे में डुबो देगी। हिंदू पौराणिक कथाओं में, देवी सरस्वती ब्रह्मांड में ज्ञान का प्रतीक हैं। इसीलिए यह दिन देवी सरस्वती के पसंदीदा प्रतीक पीले सरसों के फूलों के खिलने का जश्न मनाता है।

Basant Panchami 2026 पर सरस्वती पूजा करने की विधि क्या है?

इस त्योहार के दौरान, देश भर के परिवार उज्जवल भविष्य के लिए देवी सरस्वती का आशीर्वाद मांगते हैं। नीचे, हमने एक सफल करियर और शैक्षणिक जीवन के लिए सरस्वती पूजा/Saraswati Puja करने के विभिन्न चरणों की रूपरेखा दी है।

  • देवी सरस्वती की मूर्ति को लकड़ी के मंच पर रखें और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
  • पूजा क्षेत्र को रंगोली से सजाएं।
  • दाहिनी ओर जलता हुआ तेल का दीपक रखें।
  • ध्यान में संलग्न हों और प्रतिज्ञा या संकल्प लें।
  • निर्विघ्न पूजा के लिए आशीर्वाद पाने के लिए भगवान गणेश का आह्वान करें।
  • देवी सरस्वती को बुलाने के लिए आवाहन करें।
  • मूर्ति के लिए अर्घ्य, आचमनिया और स्नान अनुष्ठान करें।
  • देवी को घी, शहद, दही, गाय के दूध और गुड़ से बना पंचामृत अर्पित करें।
  • मूर्ति पर गंगाजल चढ़ाएं।
  • मूर्ति को हल्दी, चंदन, सिन्दूर और फूलों से सजाएं।
  • देवी को नैवेद्यम अर्पित करें, साथ में ताम्बुलम - एक थाली जिसमें पान के पत्ते, मेवे, नारियल, हल्दी और केला शामिल हो।
  • अनुष्ठान का समापन आरती के साथ करें और प्रणाम करें।

बसंत पंचमी महोत्सव का महत्व क्या है?

जैसे ही भारत में वसंत ऋतु शुरू होती है, प्रकृति पीले सरसों के फूलों से खिल उठती है, जिन्हें हिंदी में 'बसंत' के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस रंग की जीवंतता और प्रसन्नता सकारात्मकता और उल्लास का संचार करती है, जो वसंत के आगमन का संकेत देती है।

इस प्रकार, बसंत पंचमी प्रकृति की रचना का सम्मान करने और आने वाले एक समृद्ध वर्ष के वादे के सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है। लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले खाद्य पदार्थों जैसे केसर चावल, मीठे व्यंजन आदि का आनंद लेते हैं। पतंग उड़ाने का उत्सव भी मनाया जाता है क्योंकि आसमान में पीली पतंगें दिखाई देती हैं।  

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन उत्साहपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। संगीत, ज्ञान और ज्ञान के स्रोत के रूप में, परिवार एक समृद्ध वर्ष के लिए मां सरस्वती का आशीर्वाद मांगते हैं। छात्र शिक्षा और रचनात्मक कलाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए उनके दैवीय हस्तक्षेप की भी तलाश करते हैं। इस अवसर पर मंदिर और शैक्षणिक संस्थान विशेष सरस्वती पूजा का आयोजन करते हैं।

कुल मिलाकर, यह एक जीवंत वसंत उत्सव है जो पुनर्जन्म, नवीनीकरण और ज्ञान के प्रति श्रद्धा पर केंद्रित है।

बसंत पंचमी मंत्र / Basant Panchami Mantra in Hindi

  • या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
  • या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
  • Ya Kundendutusharhardhavla Ya Shubhravastravrata
  • Ya Veenavardandamanditkara Ya Shvetapadmasana
  • Ya Brahmachyut Shankarprabhritibhirdevai Sada Vandita
  • Sa Maa Patu Saraswati Bhagwati Nihsheshjadyapaha.

Basant Panchami का मनाया जाने का कारण

बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू पंचांग के मार्ग मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है, जो सामान्यत: जनवरी और फरवरी के बीच आता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, जो ज्ञान, कला, संगीत, और विद्या की देवी हैं। बसंत पंचमी को वसंत ऋतु के प्रारंभ का सूचक माना जाता है, जो हरियाली, फूलों, और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।

इस दिन शिक्षार्थियों और कलाकारों द्वारा देवी सरस्वती की पूजा की जाती है ताकि उन्हें ज्ञान और कला में आशीर्वाद मिले, और लोगों को नए आरंभ के लिए प्रेरित करे। बसंत पंचमी को वसंत के साथ जुड़ा होता है और इसे सुंदर फूल, रंग-बिरंगे वसंत के साथ मनाने का अवसर मिलता है। इस त्योहार को लोग बच्चों से लेकर बड़ों तक बहुत समर्पण भाव से मनाते हैं और समाज में एकता और उत्साह का माहौल बनाते हैं।

2026 बसंत पंचमी पूजा की विधि क्या है?

Basant Panchami के दिन हिंदू भगवान ब्रह्मा के साथ-साथ देवी सरस्वती की भी विधि-विधान से पूजा करते हैं। पूजा के दौरान पीले फूल, फल और मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं। यहां घर पर बसंत पंचमी पूजा करने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया दी गई है:

  • अपने पूजा स्थल को साफ और स्वच्छ करें। इसे पीले फूलों, आम के पत्तों और केले के पौधों से सजाएं। आप ज्ञान और रचनात्मक कलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए किताबें, संगीत वाद्ययंत्र, स्टेशनरी आदि भी रख सकते हैं।
  • पूजा के केंद्र के रूप में सरस्वती की मूर्ति या छवि स्थापित करें। वैकल्पिक रूप से, मूर्ति के स्थान पर कपूर की लौ जलाकर रखें।
  • भगवान ब्रह्मा का आह्वान करें और उनसे देवी सरस्वती को पूजा समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध करें।
  • कपूर या अगरबत्ती से सरस्वती की साधारण आरती करें। चंदन का लेप, कुमकुम, पीले फूल और मीठे चावल या अन्य पीले रंग का प्रसाद चढ़ाएं।
  • 'ओम सरस्वती नमः' जैसे सरस्वती मंत्रों का जाप करें और भजन सामूहिक रूप से उन्हें समर्पित हैं।
  • परिवार के बड़े सदस्य बच्चों के साथ देवी के बारे में पौराणिक कहानियाँ साझा कर सकते हैं और उनकी पवित्र शिक्षाएँ प्रदान कर सकते हैं।
  • सरस्वती को प्रणाम और भक्ति करके और प्रसाद वितरित करके पूजा समाप्त करें।

Basant Panchami से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सरस्वती का जन्म माघ शुक्ल पंचमी के इस शुभ दिन पर हुआ था जब ब्रह्मा ने उन्हें अपनी सहचरी बनाया था।

एक बार ब्रह्मा ने एक महान यज्ञ किया जिसमें से एक युवा लड़की निकली। शुद्ध सफेद साड़ी और शानदार गहनों से सजी हुई उनके हाथों में वीणा और पांडुलिपि थी। ब्रह्मा ने तुरंत उसे अपनी पत्नी के रूप में पहचान लिया, जो उसके विचारों से उत्पन्न हुई थी, दिव्य ज्ञान और लालित्य से संपन्न थी।

इस प्रकार, उन्होंने उसका नाम सरस्वती रखा, जिसका अर्थ है "स्वयं का सार"। जैसे ही वह शालीनता से ब्रह्मा की ओर बढ़ी, उसके पैरों के नीचे हरी-भरी घास उग आई और उसकी राह में कमल खिल गए। यह दिव्य जोड़ा बाद में दुनिया में ज्ञान, संगीत और आध्यात्मिकता को सशक्त बनाने वाली दोहरी ताकत बन गया।

एक अन्य लोकप्रिय कहानी में सरस्वती द्वारा अपने पति ब्रह्मा को श्राप देना शामिल है, जब उन्होंने किसी अन्य महिला पर नज़र डाली थी। क्रोधित होकर, सरस्वती ने उन्हें शाप दिया कि लोग कभी भी उनकी पूजा नहीं करेंगे। तुरंत पश्चाताप करते हुए, ब्रह्मा ने जवाब दिया कि उनका श्राप उनके जन्म के पवित्र दिन बसंत पंचमी पर प्रभावी होगा। तब से बसंत पंचमी पर ब्रह्मा के प्रति प्रकट समर्पण के बजाय देवी सरस्वती की पूजा करने वाले समारोह मुख्य उत्सव बन गए।

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Vasant Panchami पर बनाये जाने वाले क्लासिक व्यंजन

चूंकि बसंत पंचमी जीवंत पीले रंग में डूबी हुई है, इस विशेष दिन पर तैयार किए गए व्यंजन भी पीले रंग के रंगों को दर्शाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, जो दिलों को पीले रंग के समान आशावाद और समृद्धि की भावना से भर देते हैं। इस शुभ दिन पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में बनाए जाने वाले व्यंजन नीचे दिए गए हैं:

  • खिचड़ी: दाल और चावल के मिश्रण को प्रचुर मात्रा में घी के साथ पकाया जाता है, खिचड़ी को अचार, पापड़, दही और सलाद जैसे विभिन्न ऐपेटाइज़र के साथ पूरक किया जाता है।
  • पकौड़े: बंगाली परिवार इस अवसर को प्याज, आलू, फूलगोभी और कद्दू जैसी विभिन्न सब्जियों से बने पकौड़े तैयार करके मनाते हैं।
  • बेगुनी: बैंगन से तैयार किया गया पकौड़ा, बीगनी, खिचड़ी के आवश्यक साथी के रूप में काम करता है।
  • केसरी चावल: पंजाब और पड़ोसी क्षेत्रों में लोकप्रिय मिठाई, जिसे मीठे चावल के नाम से भी जाना जाता है।
  • केसरी राजभोग: केसर युक्त चीनी की चाशनी में डूबे पनीर से यह स्वादिष्ट मिठाई बनती है।
  • नारियाल बर्फी: केसर युक्त कसा हुआ नारियल चीनी और मावा के साथ मिलकर यह स्वादिष्ट मिठाई बनाती है।
  • कुल चटनी: यह त्योहार कुल या भालू के फल से बने अचार और डिप के बिना अधूरा है।
  • बूंदी के लड्डू: कोई भी सरस्वती पूजा इन प्रतिष्ठित भारतीय मिठाई वस्तुओं के बिना पूरी नहीं होती है।

जानिए Vasant Panchami 2026 के ज्योतिषीय लाभ

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सरस्वती पूजा करने से शुक्र, बृहस्पति, चंद्र और बुध ग्रह सहित विभिन्न ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है। इस पूजा का व्यापक लाभ महादशा और अंतर्दशा का अनुभव करने वाले व्यक्तियों को राहत प्रदान करने तक फैला हुआ है।

जो लोग अपनी जन्म कुंडली में विशिष्ट दशाओं से गुजर रहे हैं, उनके लिए इस पूजा को दान और दान के कार्यों के साथ जोड़ने से ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, बृहस्पति, चंद्रमा, शुक्र या बुध के वक्री होने से प्रभावित व्यक्ति भी इस पूजा से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

Basant Panchami से जुड़ी कहानियाँ

इस दिन से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध किंवदंतियों में से एक प्रेम के देवता कामदेव और उनकी प्यारी पत्नी रति के साथ उनके मिलन की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है। पौराणिक कथाओं में, देवी पार्वती ने भगवान शिव को उनके गहन ध्यान से जगाने के लिए काम देव की सहायता मांगी। दुनिया की उथल-पुथल और शिव की उपस्थिति की आवश्यकता को देखते हुए, पार्वती ने काम देव से गन्ने से एक धनुष बनाने और शिव का ध्यान भौतिक दुनिया की ओर वापस लाने के लिए फूलों से बना तीर चलाने का आग्रह किया।

हालाँकि, इन कार्यों से क्रोधित होकर शिव ने अपनी तीसरी आँख खोली, जिससे दुनिया का विनाश हुआ। इस प्रक्रिया में, उसने प्रेम के देवता को जलाकर राख कर दिया। कामदेव की पत्नी रति की याचिका का जवाब देते हुए, शिव ने अंततः पति-पत्नी को फिर से मिलाते हुए, उनके पति के जीवन को बहाल कर दिया। इसके अलावा, यह घटना भगवान शिव की वैराग्य अवस्था से गृहस्थ जीवन (गृहस्थ अवस्था) में लौटने का प्रतीक है।

शुभ दिनों की एक श्रृंखला की शुरुआत को चिह्नित करते हुए, Basant Panchami 2026 की तारीख ठंडी सर्दियों के समापन का प्रतीक है और उज्ज्वल धूप की अवधि का स्वागत करती है। यह आशावाद और सीखने का आनंद लेने का क्षण है, क्योंकि ये तत्व हमें जीवन में प्रगति करने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

हर साल, माघ शुक्ल पंचमी दैवीय विधान और श्रद्धा के साथ वसंत का हर्षित वादा लेकर आती है। 23 जनवरी को 2026 समारोह में मां सरस्वती की महिमा और प्रकृति के जागरण की भव्य बसंत पंचमी उत्सव मनाया जाएगा।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण इस अवसर का सम्मान पीले रंग के कपड़े पहनकर, व्यंजनों का आनंद लेकर, पतंग उड़ाकर और सच्चे मन से देवी सरस्वती की पूजा करके करें। उनकी शाश्वत बुद्धिमत्ता और कलात्मक प्रतिभा आपको रचनात्मक प्रेरणा और बुद्धि का उपहार देगी।

यह बसंत पंचमी आपके सभी सपनों और समृद्धि को पूरा करे!

FAQs

2026 में Basant पंचमी कब है?

Saraswati Puja 2026 Date: सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी प्रतिवर्ष मार्ग मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है, और 2026 में, सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस बार सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक पर होगा।

बसंत पंचमी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

ऐसा माना जाता है कि ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती वसंत पंचमी के दिन ही सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुई थीं। इसी कारण से सभी ज्ञान के उपासक वसंत पंचमी के दिन अपनी आराध्य देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।

घर पर Basant Panchami कैसे बनाएं?

वसंत पंचमी के दिन, उठें, अपने घर और पूजा क्षेत्र को साफ करें और सरस्वती पूजा के लिए स्नान करें। चूंकि पीला रंग देवी सरस्वती का पसंदीदा रंग है, इसलिए नहाने से पहले पूरे शरीर पर नीम और हल्दी का लेप लगाएं। स्नान के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

2026 में सरस्वती पूजा कब है?

जानें 2026 में, सरस्वती पूजा 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

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Hanuman Jayanti 2026: हनुमान जयंती कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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मंगलवार

Hanuman Jayanti 2026 Date: हिन्दू धर्म में, हनुमान जयंती का त्योहार Hanuman Ji के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, भक्त बजरंगबली (Bajrangbalii) की कृपा प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्मदिन मनाया जाता है। इस ब्लॉग में जानिए हनुमान जयंती 2026 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, और इसका आध्यात्मिक महत्व के बारे में।

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2026 में, हनुमान जन्मोत्सव 02 अप्रैल, गुरुवार को है। यह माना जाता है कि हनुमान जी का जन्म सूर्योदय के समय हुआ था। हनुमान जन्मोत्सव के दिन, मंदिरों में प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में आध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन किया जाता है और यह आयोजन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।

बात करे तो साल 2026 में हनुमान जन्मोत्सव ने सालों बाद एक अद्भुत संयोग बना लिया है। शास्त्रों के अनुसार, मंगलवार को हनुमान जी का विशेष दिन माना जाता है और 2026 में हनुमान जन्मोत्सव का दिन भी गुरुवार को पड़ रहा है।

हनुमान जयंती पर पूजा करके भक्तगण शक्ति और बुद्धि प्राप्त करते हैं, और उनकी समस्याएँ कम हो जाती हैं। हनुमान, एक संरक्षक के रूप में, अपने भक्तों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। आगामी चैत्र मास के साथ, इस वर्ष के हनुमान जयंती के उत्सव की विशेष तारीख, और शुभ समय के बारे में जागरूक रहना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।

हनुमान जयंती 2026 कब है?

Hanuman Jayanti 2026 Me Kab Hai: हनुमान जयंती को प्रमुख रूप से चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। आइए शुरुआत करें और 2026 के लिए चैत्र मास की पूर्णिमा की शुरुआत और समाप्ति की तिथियों का निर्धारण करें। 2026 में हनुमान जयंती का शुभोत्सव, जिसे ब्रह्मा उत्सव कहा जाता है, गुरुवार 02 अप्रैल, 2026 को सुबह होगा। इस दिन भक्तों को सुबह जल्दी ही भगवान हनुमान की पूजा करने की सलाह दी जाती है।

2026 में हनुमान जन्मोत्सव का तारीख और शुभ मुहूर्त -

  • चैत्र पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 01 अप्रैल 2026 को सुबह 07:06 AM शुरू होगी
  • चैत्र पूर्णिमा तिथि समाप्त: 02 अप्रैल 2026 को सुबह 07:41 AM समाप्त होगी।

इस तिथि को पूरे भारत में कई स्थानों पर विशेष पूजा-अनुष्ठान, हनुमान चालीसा पाठ, सुंदरकांड पाठ और भंडारों का भी आयोजन होता है।

हनुमान जन्मोत्सव की आवश्यक सामग्री -

  • हनुमान जी की मूर्ति या छवि
  • गंगाजल या साफ पानी
  • श्रीराम और सीता माता की मूर्तियां (अगर हो सके)
  • तुलसी पत्तियां
  • रोली, चावल, दूध, दही, घी, शहद
  • बैलपत्र, बेल का फूल, लौंग, इलायची, सुपारी, कुमकुम, चंदन, अगरबत्ती, दीपक आदि।

हनुमान जी की पूजा इस विधि से करें -

हनुमान जी की पूजा को एक शुभ और विधिपूर्वक तरीके से करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:

  • शुद्धिकरण: पूजा की शुरुआत अच्छे और शुद्ध मन से करें। हाथ धोकर पवित्रता बनाएं।
  • पूजा स्थल: हनुमान जी की मूर्ति को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  • कलश स्थापना: एक कलश में गंगाजल या साफ पानी भरकर उसे हनुमान जी के सामने रखें।
  • पूजा आरंभ: रोली, चावल, दूध, दही, घी, शहद से हनुमान जी की मूर्ति का स्नान कराएं।
  • तुलसी पूजन: तुलसी पत्तियों से हनुमान जी को अर्पित करें।
  • पूजा आरती: आरती करते समय श्रीराम, सीता माता, और लक्ष्मण जी की मूर्तियों को भी याद करें।
  • प्रसाद: हनुमान जी को विशेष रूप से प्रसाद के रूप में सीता राम का भोग अर्पित करें।
  • आरती के बाद: आरती के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी की कृपा के लिए प्रार्थना करें।
  • धूप, दीप, नैवेद्य: धूप, दीप, और नैवेद्य के साथ हनुमान जी की पूजा को समाप्त करें।

नोट: पूजा में श्रद्धा और विश्वास रखें। मन में हनुमान जी की भक्ति और प्रेम के साथ पूजा करें। पूजा के बाद आप अपनी स्थिति और उत्साह में सुधार पाएंगे।

हनुमान जयंती के लिए शक्तिशाली मंत्र:

ॐ श्री हनुमते नमः 
Om Shri Hanumate Namah

ॐ ऐं भ्रीम हनुमते, श्री राम दूताय नम:

Om Aim Bhrim Hanumante,

Shri Ram Dutay Namah:

ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ||
Om Anjaneyay Vidmahe Vayuputraya Dhimahi. Tanno Hanumant Prachodayat ||

हनुमान जन्मोत्सव के संबंधित पौराणिक कथा -

हनुमान जन्मोत्सव से जुड़ी पौराणिक कथा विशेष रूप से "रामायण" महाकाव्य में मिलती है, जो वाल्मीकि ऋषि द्वारा रचित हुआ है। कहा जाता है कि हनुमान जी का जन्म सुन्दरकाण्ड के एक अध्याय में वर्णित है।

अयोध्या के राजा दशरथ ने विश्वामित्र ऋषि के साथ राजा होने के दौरान अनेक यज्ञ किए थे, परंतु उनकी यज्ञशक्ति कमजोर थी। इससे उन्हें यज्ञ संपन्न करने में समस्या हो रही थी। इस पर विश्वामित्र ऋषि ने राजा से यह कहा कि उन्हें यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए राम और लक्ष्मण को सहायता के लिए भगवान विष्णु के अवतार हनुमान को साथ लेना चाहिए। राजा ने राम और लक्ष्मण को भगवान विष्णु के स्वरूप में मानकर उन्हें विश्वामित्र के साथ भेज दिया।

राम और लक्ष्मण ने विश्वामित्र के मार्गदर्शन में त्रिशीर्षा पर्वत पहुंचकर वहां तपस्या में रत ऋषियों से मिले। वहां विश्वामित्र ऋषि के आश्रम में जनकपुरी के राजा जनक की पुत्री सीता से स्वयंवर में प्रशान्त हुई सीता से मिले और उन्होंने धनुष को धनुषधारी श्रीराम के समर्थन में तोड़ दिया।

राम और लक्ष्मण के साथ विश्वामित्र ऋषि के साथी बन गए और उनके साथ मिथिला नगरी में वापस आए। हनुमान का परिचय यहां होता है। हनुमान विश्वामित्र के उपदेश से राम के भक्त बन गए और उनके साथ विदेहा नगरी गए।

विदेहा में, हनुमान ने अपनी अद्भुत भक्ति और सेवा भावना के साथ राम की पहचान की और वहां राम से मिलकर उनके सेवक बन गए। हनुमान जन्मोत्सव का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इस दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। भगवान हनुमान के जन्मोत्सव को मनाने से भक्तिभाव और पवित्रता में वृद्धि होती है और भक्त उनकी कृपा पा सकते हैं।

इस रूप में, हनुमान जन्मोत्सव का आयोजन भक्तों के लिए एक पुण्यकारी और आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो हनुमान जी के प्रति उनकी श्रद्धांजलि को और भी सामर्थ्यपूर्ण बना देता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंजना एक अप्सरा थीं, जिनका श्राप के कारण उन्होंने पृथ्वी पर जन्म लिया, और इस श्राप को हटाने का उपाय यह था कि वह एक संतान को जन्म दें। रामायण के अनुसार, महाराज केसरी बजरंगबली जी के पिता थे, और वे सुमेरू के राजा थे जो केसरी नामक बृहस्पति के पुत्र थे। अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए 12 वर्षों तक भगवान शिव की अत्यंत गहन तपस्या की, और उसके परिणामस्वरूप उन्होंने संतान के रूप में हनुमान जी को प्राप्त किया। इस परम्परागत विश्वास के अनुसार, हनुमानजी भगवान शिव के स्वयं के अवतार माने जाते हैं।

हनुमान जयंती का आध्यात्मिक महत्व

हनुमान जी को शक्ति, भक्ति और समर्पण का बिशेष प्रतीक माना जाता है। उन्हें 'अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता' कहा गया है। जीवन में जो भी भय, बाधा या मानसिक कमजोरी हो, हनुमान जी की उपासना से दूर होती है।

हनुमान जयंती पर श्रद्धालु उपवास रखकर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि उनके जीवन से संकट और भय समाप्त हो। इस दिन:

  • विद्यार्थियों के लिए बुद्धि व विद्या का आशीर्वाद

  • नौकरी/व्यापार में रुकावट दूर करने के लिए विशेष लाभकारी

  • ग्रह बाधाओं व शनि दोषों को दूर करने में अत्यंत फलदायी

हनुमान जयंती पर इस क्रिया को अवश्य करें

  • हनुमान जयंती के दिन, स्थानीय मंदिर जाएं और हनुमान जी के दर्शन करें, उनके सामने घी या तेल का दीपक जलाएं। 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस प्रकार का आचरण करने से हनुमान जी सभी समस्याओं को दूर करने में सहायक होते हैं।
  • इस दिन, हनुमान जी से कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हें गुलाब की माला समर्पित करें। यह हनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे सहज तरीका है।
  • इस दिन धन प्राप्ति के लिए, हनुमान मंदिर में हनुमानजी के सामने चमेली के तेल का दीपक प्रज्वलित करें। इसके अलावा, सिंदूर लगाकर हनुमान जी को चोला चढ़ाएं।
  • किसी भी प्रकार की धन हानि से बचने के लिए, हनुमान जयंती पर 11 पीपल के पत्तों पर श्रीराम नाम लिखकर हनुमान जी को समर्पित करें। इस प्रक्रिया से आपकी धन संबंधित समस्याएं दूर हो सकती हैं।

निष्कर्ष

Hanuman Jayanti 2026 का पर्व न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें हनुमान जी जैसे गुणों – धैर्य, बल, सेवा, और भक्ति – को अपनाने की प्रेरणा देता है। इस दिन की गई सच्ची भक्ति और सेवा, जीवन को सकारात्मकता और सफलता से भर देती है। आप सभी को हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं। 

FAQs
Hanuman Jayanti 2026 me kab hai?
साल 2026 में हनुमान जयंती 02 अप्रैल, 2026 दिन गुरुवार को मनाया जायेगा।   

हनुमान जयंती पर कौन-कौन से पाठ करना चाहिए?
इस दिन आप लोग हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, बजरंग बाण, राम रक्षा स्तोत्र और “ॐ हनुमते नमः” मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना जाता है।

क्या हनुमान जयंती पर दान करना शुभ होता है?
जी हां, इस दिन गरीबों को भोजन, फल और वस्त्र आदि का दान करना अत्यंत पुण्यदायी होता है और जीवन में सुख-शांति लाता है।

इस हनुमान जयंती पर व्रत कैसे रखें?
भक्त सूर्योदय से पूर्व स्नान कर, हनुमान जी की पूजा करते हैं। उपवास रखकर हनुमान चालीसा, सुंदरकांड और हनुमान जी के मंत्र जाप किया जाता है। दिनभर सात्त्विक भोजन या फलाहार कर सकते हैं।

सकट चौथ 2026: तिथि, पूजा विधि और भगवान गणेश की कहानी

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गुरुवार

Sakat Chauth 2026 Date: साल 2026 में सकट चौथ जनवरी के प्रथम वीक में पड़ रहा है, सकट चौथ, जिसे संकट चतुर्थी या तिलकुट चौथ भी कहते हैं, बच्चों की लंबी उम्र, सेहत और खुशहाली के लिए मनाया जाने वाला सबसे खास हिंदू व्रतों में से एक है। भारत और नेपाल में माताएं इस दिन कड़ा व्रत रखती हैं, भगवान गणेश और देवी सकट की पूजा करती हैं ताकि उनके जीवन की बाधाएं दूर हों और उनके बच्चों को खुशी, समझदारी और मुश्किलों से सुरक्षा मिले।

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साल 2026 में, सकट चौथ बहुत श्रद्धा और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाएगा, जिससे भक्त मंदिरों और सामुदायिक समारोहों में आएंगे, जबकि लाखों लोग घर पर व्रत रखेंगे। यह blog में हम आपको सकट चौथ 2026 की तारीख (Sakat chauth 2026 kab hai), पूरी पूजा विधि, व्रत के नियम, महत्व और इस त्योहार से जुड़ी भगवान गणेश की पवित्र कहानी के बारे में बतायेगे।

सकट चौथ 2026: तारीख और समय - Sakat Chauth 2026: Date and Time

Sakat Chauth Kab Hai 2026 / सकट चौथ हर साल माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ता है (North Indian Purnimanta Calendar के अनुसार)। महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में, अमांत कैलेंडर के अनुसार महीना अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इस त्योहार की तारीख वही रहती है।

When is Sakat Chauth in 2026?

सकट चौथ 2026 में कब है: बहुत से लोगो ले मन में सवाल होगा की साल 2026 में सकट चौथ कब है? तो हम आपको बता दे की साल 2026 में यह व्रत 6 जनवरी, दिन मंगलवार को पड़ रहा है।  

  • Sakat Chauth 2026 Date: मंगलवार, 6 जनवरी 2026

सकट चतुर्थी तिथि का समय

  • चतुर्थी चौथ शुरू: 06 जनवरी 2026, दिन:मंगलवार को सुबह 8:01 बजे से
  • चतुर्थी चौथ खत्म: 07 जनवरी 2026, दिन:बुधवार को सुबह 6:52 बजे तक

Moonrise Timing (For Breaking the Fast)

मुख्य बिंदु: संकट चौथ पर चंद्रोदय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है।

  • 06 जनवरी 2026 को चंद्रोदय समय: रात के 8:54 बजे (लगभग)

सकट चौथ क्या है? - What Is Sakat Chauth?

सकट चौथ भगवान गणेश, जो विघ्नहर्ता हैं, और देवी सकट माता जी, जो बच्चों को परेशानियों और बीमारियों से बचाती हैं, और यह पर्व भगवान गणेश को समर्पित है। माताएं अपने बच्चों की भलाई के लिए पूरी श्रद्धा से यह व्रत रखती हैं। कुछ इलाकों में, शादीशुदा महिलाएं पूरे परिवार की खुशहाली के लिए यह व्रत रखती हैं।

सकट शब्द का मतलब है मुश्किलें, और भक्तों का मानना ​​है कि इस दिन पूजा करने से जीवन से मुश्किलें दूर होती हैं। यह भी माना जाता है कि इस व्रत के दौरान की गई कोई भी इच्छा भगवान गणेश पूरी करते हैं।

सकट चौथ 2026 का महत्व

बच्चों की भलाई के लिए

माताएं अपने बच्चों की अच्छी सेहत, लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए इस व्रत रखती हैं। इस व्रत को बच्चों के प्रति बिना शर्त प्यार और समर्पण के रूप में देखा जाता है।

बाधाओं से सुरक्षा

इस दिन भगवान गणेश भक्तों के मार्ग से सभी बाधाएं दूर करते हैं, इसलिए इसे चतुर्थी को संकट मोचन चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

इच्छाओं की पूर्ति

भक्तों का यह भी मानना ​​है कि गणेश चतुर्थी पर जल्दी वरदान देते हैं, खासकर जब व्रत को सख्त नियम के साथ किया जाता है।

परिवार के साथ मज़बूत रिश्ता

इस दिन परिवार शाम की पूजा, चांद निकलने की रस्मों और प्रसाद बांटने के लिए इकट्ठा होते हैं, जिससे एकता और आध्यात्मिक जुड़ाव बढ़ता है।

ज्योतिष में महत्व

माना जाता है कि सकट चौथ बच्चों की Kundli से जुड़े ग्रह दोषों के बुरे असर को कम करता है। भगवान गणपति जी नेगेटिव एनर्जी और राहु और केतु के बुरे असर से भी बचाते हैं।

सकट चौथ का व्रत कैसे रखें - How to Observe the Sakat Chauth Fast

सकट चौथ का व्रत बहुत ही सख्त माना जाता है और कई महिलाएं निर्जला व्रत भी रखती हैं, जबकि कुछ माताए सिर्फ फल या दूध लेती हैं।

सकट चौथ उपवास के प्रकार

  • निर्जला व्रत: यानि बिना खाना या पानी
  • फलाहार व्रत: फल और दूध की अनुमति
  • सात्विक आहार: बिना अनाज के एक बार का भोजन

इस व्रत में चंद्रोदय और चतुर्थी पूजा पूरी होने के बाद ही व्रत को तोड़ा जाता है।

सकट चौथ 2026 पूजा विधि - Sakat Chauth 2026 Puja Vidhi

आपको बता दे कि सकट चौथ की पूजा शाम को करनी चाहिए, खासकर चांद निकलने के समय। नीचे साल 2026 के लिए पूरी पूजा विधि दी गई है।

सकट चौथ में पूजा से पहले की तैयारियाँ

1. सुबह के काम

  • इस दिन जल्दी उठें, हो सके तो सूरज उगने से पहले।
  • पवित्र स्नान करें।
  • पूजा की जगह को ठीक से साफ़ करें।
  • भगवान गणेश और देवी सकट माता की मूर्ति या तस्वीर रखें।

2. उपवास संकल्प

  • मूर्ति के सामने बैठें और व्रत का प्रण लें:

“माता मैं यह सकट चौथ व्रत अपने बच्चों की खुशी, सेहत और सुरक्षा के लिए रख रही हूँ।”

3. पूजा सामग्री तैयार करें

आपको चाहिये होगा:

  • गणेश की मूर्ति
  • मिट्टी का दीया
  • तेल या घी
  • रोली, कुमकुम, हल्दी
  • दूर्वा घास (21 धागे)
  • फूल
  • तिल
  • गुड़
  • रेवड़ी, गजक
  • मूंगफली
  • नारियल
  • अक्षत (चावल)
  • पानी
  • पान के पत्ते
  • प्रसाद के लिए मिठाई
  • सकट माता की रोटी के लिए गेहूं का आटा

Sakat Chauth 2026 Evening Puja Vidhi

पूजा एरिया सेटअप करें

मूर्तियों को लकड़ी के प्लेटफॉर्म पर रखें, दिप जलाएं और जगह को फूलों से सजाएं।

गणेश पूजा

  • कुमकुम और हल्दी लगाएं।
  • भगवान गणेश को 21 दूर्वा घास चढ़ाएं।
  • फूल और मोदक चढ़ाएं।
  • अगरबत्ती या धूप जलाएं।

तिल और गुड़ चढ़ाएं

सकट चौथ पर तिल और गुड़ ज़रूरी प्रसाद हैं। ऐसा माना जाता है कि:

“तिल और गुड़ से सकट माँ प्रसन्न होती हैं।”

सकट माता से प्रार्थना करें

प्रसाद के रूप में घी और गुड़ से बनी गेहूं के आटे की रोटी रखें।

सकट चौथ व्रत कथा पढ़ें या सुनें

व्रत पूरा करने के लिए कहानी सुनना ज़रूरी है।

चंद्रोदय अनुष्ठान

चाँद देखने के बाद:

  • जल (अर्घ्य) चढ़ाएं
  • तिल, फूल और चावल चढ़ाएं
  • बच्चों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करें

उपवास तोड़ें

तिल, गुड़ और गजक का प्रसाद ग्रहण करें।

सकट चौथ व्रत कथा (The Story of Lord Ganesha)

यदि आप सकट चौथ व्रत करना है तो आपको सबसे ज़रूरी हिस्सों में से एक है व्रत कथा। यह कहानी भक्ति की शक्ति और भगवान गणेश जी के भक्तों की रक्षा करने के चमत्कारी तरीकों पर रोशनी डालती है।

सकट चौथ के पीछे की कथा

बहुत समय पहले कि बात है, एक गांव में एक गरीब औरत अपने छोटे बेटे के साथ रहती थी। सकट चौथ पर जब सब लोग सकट माता और भगवान गणेश की पूजा करते थे, तो उस औरत के पास चढ़ाने के लिए कुछ नहीं था। अपनी गरीबी के बावजूद, उसने पूरी श्रद्धा से व्रत रखा। उसने तिल इकट्ठा किए, बचे हुए आटे से एक छोटी रोटी बनाई और पूरी श्रद्धा से पूजा की।

उस रात, डाकू गांव में घुस आए और कई घरों पर हमला किया। लेकिन चमत्कार से, महिला और उसके बेटे को कोई नुकसान नहीं हुआ। अगली सुबह जब गांव वालों ने यह देखा, तो उन्हें यकीन हो गया कि सकट माता ने मां की सच्ची भक्ति की वजह से उनकी रक्षा की है। उस दिन से, गांव वालों ने नई आस्था के साथ व्रत रखना शुरू कर दिया, और यह परंपरा अभी तक पीढ़ियों तक चलती रही।

एक और लोकप्रिय कहानी - गणेश और चंद्रमा की कहानी

पुरानी कहानी के अनुसार, एक बार भगवान गणेश दावत के बाद घर लौट रहे थे। अपने मूषक वाहन पर सवार होकर, वे अचानक लड़खड़ाकर गिर पड़े। चंद्र देव, चंद्र देव, उन पर ज़ोर से हंसे।

अपमानित होकर भगवान गणेश ने चाँद को श्राप दिया:

“जो कोई भी इस दिन चाँद को देखेगा, उसे झूठे इल्ज़ाम और बुरी किस्मत का सामना करना पड़ेगा।”

यह दिन कृष्ण चतुर्थी था, जिसे बाद में सकट चौथ के रूप में मनाया गया।

अपनी गलती का एहसास होने पर, चंद्र देव ने माफ़ी मांगी। गणेश ने श्राप कम करते हुए कहा:

“जो कोई भी आज चांद को देखेगा और श्रद्धा से सकट चौथ का व्रत रखेगा, वह सभी मुश्किलों से सुरक्षित रहेगा।”

यह कहानी बताती है:

  • सकट चौथ पर चांद की पूजा क्यों ज़रूरी है
  • भक्त दिन में चांद देखने से क्यों बचते हैं
  • व्रत खोलने में चांद निकलने का क्या अहम रोल होता है

सकट चौथ का आध्यात्मिक अर्थ - Spiritual Meaning of Sakat Chauth

बाधाओं पर विजय

भगवान गणेश ज्ञान और चुनौतियों से निपटने की क्षमता के प्रतीक हैं। माना जाता है कि यह व्रत नेगेटिविटी और कर्मों की रुकावटों को दूर करता है।

बच्चे और माँ के बीच के रिश्ते को मज़बूत करना

पारंपरिक रूप से, माताएं अपने बच्चों की सफलता, अच्छे स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं।

आंतरिक अनुशासन

उपवास सेल्फ-कंट्रोल, धैर्य और आध्यात्मिक ध्यान सिखाता है।

मन और आत्मा की शुद्धि

पूजा, प्रार्थना और कहानी सुनाने से भक्त अपने विचारों और भावनाओं को शुद्ध करते हैं।

भारत भर में रीति-रिवाज और परंपराएँ

उत्तर भारत: महिलाएं गुड़ के साथ तिलकुट, गजक, रेवड़ी और रोटी बनाती हैं। समाज के लोग इकट्ठा होते हैं जहां महिलाएं मिलकर व्रत कथा पढ़ती हैं।

महाराष्ट्र: इस व्रत को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। भक्त मोदक, दूर्वा घास चढ़ाते हैं और संकष्टी गणेश कथा सुनते हैं।

दक्षिण भारत: कुछ समुदाय परिवार की खुशहाली के लिए बड़े पैमाने पर गणेश होमम करते हैं।

बिहार और उत्तर प्रदेश: तिल और गुड़ का खास महत्व है। परिवार खास रोटियां बनाते हैं और मूंगफली, मीठे व्यंजन और मौसमी फल चढ़ाते हैं।

सकट चौथ 2026 पर क्या करें और क्या न करें

क्या करें

  • सुबह जल्दी उठें और पवित्रता बनाए रखें।
  • पूरी श्रद्धा से व्रत रखें।
  • भगवान गणेश को 21 दूर्वा चढ़ाएं।
  • व्रत के बाद गायों को चारा खिलाएं या खाना दान करें।
  • सकट चौथ कथा पढ़ें या सुनें।

क्या न करें

  • चांद निकलने से पहले कुछ न खाएं-पिएं (अगर निर्जला व्रत कर रहे हैं)।
  • नॉन-वेजिटेरियन खाना खाने से बचें।
  • कठोर शब्द या नेगेटिव विचार न कहें।
  • चांद की पूजा न छोड़ें; व्रत पूरा करने के लिए यह ज़रूरी है।

सकट चौथ के बाद पारंपरिक रूप से खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ

जब व्रत खोला जाता है, तो भक्त इसका आनंद लेते हैं:

  • तिल-गुड़ के लड्डू
  • रेवड़ी / गजक
  • मूंगफली
  • गुड़ के साथ गेहूं की रोटी
  • दूध और मिठाई
  • मोदक
  • मौसमी फल

इन खाद्य पदार्थों को शुभ माना जाता है क्योंकि ये सर्दियों में गर्मी, ऊर्जा और पवित्रता दिखाते हैं।

सकट चौथ पर तिल इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

तिल सकट चौथ का मुख्य हिस्सा है। पुराने शास्त्रों में तिल को अमरता, पवित्रता और दिव्य ऊर्जा का प्रतीक बताया गया है।

लाभ और प्रतीकवाद

  • लंबी उम्र दिखाता है
  • बुरी ताकतों से बचाता है
  • सर्दियों में शरीर की गर्मी को बैलेंस करता है
  • भक्ति और त्याग का प्रतीक

माना जाता है कि भगवान गणेश को तिल चढ़ाने से संकट दूर होते हैं।

सकट चौथ और ज्योतिष - Sakat Chauth and Astrology

ग्रहों का प्रभाव

  • माना जाता है कि यह व्रत राहु और केतु के दोष कम करता है।
  • यह चंद्रमा के प्रभाव को मजबूत करता है, जिससे इमोशनल स्टेबिलिटी बेहतर होती है।
  • गणेश बुरे ग्रहों के असर को दूर करते हैं और शुभ एनर्जी लाते हैं।

के लिए अनुशंसित

  • जिन बच्चों को हेल्थ प्रॉब्लम हैं
  • जिन लोगों को देरी या रुकावटें आ रही हैं
  • जिन लोगों को मेंटल स्ट्रेस, डर या एंग्जायटी है
  • कोई भी जो नया काम कामयाबी से शुरू करना चाहता है

निष्कर्ष

सकट चौथ 2026, इस साल 06 जनवरी को मनाया जाता है, भगवान गणेश और देवी सकट माता की भक्ति, व्रत और आशीर्वाद का एक शक्तिशाली दिन है। यह पवित्र व्रत एक माँ के प्यार और विश्वास का इज़हार है, माना जाता है कि यह रुकावटों को दूर करता है और बच्चों को मुश्किलों से बचाता है।

व्रत, पूजा, कहानी और चांद की पूजा से भक्त दैवीय शक्तियों से गहराई से जुड़ते हैं। चाहे आप इसे अपने बच्चों के लिए करें या अपने पूरे परिवार की खुशहाली के लिए, सकट चौथ आध्यात्मिक शक्ति, शांति और संतुष्टि लाता है।

भगवान गणेश जी आपकी सभी मुश्किलों को दूर करें और आपके परिवार में खुशियां और शांति लाएं।

FAQs

2026 mein sakat chauth kab ki hai?

साल 2026 में sakat chauth 06 जनवरी को है।

सकट चौथ में किस भगवान की पूजा होती है?

भगवान गणेश जी की पूजा होती है सकट चौथ के दिन।

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