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साल 2026 में मकर संक्रांति कब है? जानें तारीख, पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त

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बुधवार

Makar Sankranti 2026: क्या आप जानना चाहते है कि 2026 me makar sankranti kab hai, या makar sankranti kyon manae jaati hai और when is makar sankranti in 2026 के बारे में हम बिस्तर से जानेगे, तो चलिए शुरू करते है... 

Makar Sankranti लंबे दिनों और छोटी रातों की शुरुआत का संकेत है। यह भारत के सबसे शुभ और व्यापक त्योहारों में से एक है जो सूर्य की धारा की पृथ्वी के चारों ओर की यात्रा के दौरान मकर राशि (Capricorn) में प्रवेश का संकेत करता है। फसल के मौसम की शुरुआत की जाने वाली इस मौके को भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग उत्तरायण या सूर्य के उत्तरी गोलार्ध में पहुंचन का स्वागत करते हैं, पतंग उड़ाते हैं और अपने प्रियजनों के साथ भोजन का आनंद लेते हैं।

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साल 2026 में, मकर संक्रांति 14 जनवरी दिन बुधवार को है। जानें इसके शुभ मुहूर्त, कथा, महत्व, और Makar Sankranti 2026 का आचरण करने के तरीके के बारे में।

मकर संक्रांति 2026 कब है?

Makar Sankranti Kab Hai: Year 2026 में, मकर संक्रांति का उत्सव 14 जनवरी को मनाया जाएगा। 

मकर संक्रांति 2026 का शुभ मुहूर्त, समय और तारीख | Makar Sankranti 2026 Date & Muhurat

  • मकर संक्रांति तारीख: 14 जनवरी 2026, बुधवार
  • मकर संक्रान्ति पुण्य काल - 03:13 PM to 05:45 PM बजे तक
  • कुल अवधि - 02 घण्टे 32 मिनट
  • मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल - 03:13 PM to 04:58 PM बजे तक
  • कुल अवधि - 01 घण्टा 45 मिनट

Makar Sankranti मनाने के पीछे का महत्व और कहानी

मकर संक्रांति, या माघी, वह दिन है जब सूर्य दक्षिणायन चरण से उत्तरायण की ओर अपनी यात्रा करता है। यह शीतकालीन सोलस्टिस का समापन करता है और लम्बे दिनों की शुरुआत करता है, सौर प्रभाव और प्रकाश और ज्ञान की भावना को दर्शाता है।

यह दिन भगवान सूर्य (Sun God) को समर्पित है। करोड़ों लोग गंगा जैसी नदियों में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए जाते हैं। इस दिन प्रयागराज और हरिद्वार में विशाल संख्या में कुम्भ मेला और मेले भी होते हैं।

पौराणिक रूप से, यह दिन था जब भगवती देवी ने एक भयंकर युद्ध के बाद शैतानी राक्षस सुंभ-निसुंभ को मार डाला। इससे पहले भी, इस दिन भीष्म पितामह की आत्मा ने उत्तरायण दिवस पर अपने मरने के बाद स्वर्ग की ओर रुख किया था।

Makar Sankranti को विशाल संख्या में तीर्थयात्राओं, व्यापार मेलों, सजावट, पतंग उड़ाने, और तिल, गुड़, सेसम जैसे सामग्रियों के साथ बनाई जाने वाली पारंपरिक मिठाईयों के लिए जाना जाता है, जैसे कि तिल के लड्डू और गुड़ चिक्की। सर्दी दूर रखने के लिए बोनफायर से लेकर रंगीन उत्सव तक - यह फसल त्योहार भारत को अपने नृत्यात्मक तत्वों में जगाता है।

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मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

2026 Makar Sankranti: मकर संक्रांति के त्योहार के उत्पत्ति से कई पुराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। एक कथा के अनुसार, महान राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति प्रदान करने के लिए नदी गंगा को पृथ्वी पर लाया। गंगा ने मकर संक्रांति/Makar Sankranti को अपने अवतरण के रूप में अवतरित होकर अपने जीवनदाता पानियों से किसानों को समृद्धि दी। इसी समय देवी लक्ष्मी भी जल से उत्पन्न हुईं, लोगों को धन और प्रचुरता से आशीर्वाद देती हुई। इस विश्वास के कारण, कई हिन्दू संक्रांति की पूर्व संजी पर लक्ष्मी पूजा/Lakshmi Puja करते हैं, समृद्धि और सौभाग्य की कृपा को आमंत्रित करने के लिए।

एक और कथा के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने इस शुभ दिन पर भगवान गणेश को महाभारत, भारतीय महाकाव्य, की कथा सुनाना शुरू की। एक और कहानी मकर संक्रांति पर दान-पुण्य (दान और पुण्यकर्म) के महत्व को उजागर करती है। इसे माना जाता है कि इस दिन, लोहड़ी की आग कलियुग के पापों को जला देती है, जबकि संक्रांति का प्रकाश अंधकार और अज्ञान को समाप्त कर देता है।

मकर संक्रांति उत्सव की क्षेत्रीय विविधताएँ

मकर संक्रांति का उत्सव भारत भर में फैला हुआ है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में इस फसल त्योहार के लिए विशेष नाम और उत्साह धारित करने के विभिन्न तरीके हैं:

  • उत्तर प्रदेश: खिचड़ी सांग्रंधि, विशेष बसंत पंचमी स्नान रीतिरिवाज
  • पंजाब: माघी, बोनफायर में नृत्य, गायन, भोज
  • हरियाणा: संक्रांति महोत्सव, पतंग उड़ाने के प्रतियोगिताएं
  • पश्चिम बंगाल: पौष संक्रांति, देवी संक्रांति की पूजा
  • बिहार और झारखंड: तुसु पर्व, समृद्धिपूर्ण फसल के लिए
  • आसाम: माघ बीहु, समुदाय भोजन और मृगी बीहु भैंस युद्ध
  • तमिलनाडु: पोंगल पेरम परलाई, एलु भोजनम मिठाई भोग
  • केरल: मकरविलक्कु त्योहार, सबरीमाला यात्रा
  • गुजरात: अंतरराष्ट्रीय पतंग उड़ाने का त्योहार, उत्तरायण भोज
  • महाराष्ट्र: तिळगुळ घ्या, गोड़ गोड़ पिकनिक, हल्दी कुंकुम समारोह

मकर संक्रांति दिवस पर पूरे भारत में उत्सव

  • पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं (गुजरात)
  • बोनफायर उत्सव (उत्तर भारत)
  • जयपुर साहित्य महोत्सव, और कुम्भ मेला जैसे सांस्कृतिक त्योहार (भारत के विभिन्न हिस्सों)
  • भोजन और सामाजिक सभाओं
  • गंगा में पवित्र स्नान (उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल)
  • पशुओं को फूल, रंग, आदि से सजाना
  • तिल चावल और गुड़ का आदान-प्रदान के रूप में सुख-शांति के प्रति
  • गरीबों को भोजन, धन, और राजाई दान करना।

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इन सभी विविध उत्सवों का मूल रूप से तात्पर्य है कि इस विशेष अवसर का आनंद प्रियजनों के साथ मनाएं और भगवान से एक प्रचुर फसल के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें। कुछ रीतियां इस दिन की गहरी दर्शनिक दृष्टि को प्रतिबिंबित करती हैं, जो खुशी और सौभाग्य को साझा करने के इस दिन के दीपर दार्शनिक सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो स्वास्थ्य, धन, और समृद्धि को सभी मानवों के लिए लाती हैं, साथ ही सभी प्राणियों और पृथ्वी पर रहने वाली सभी जीवों के लिए।

क्षेत्रीय Makar Sankranti समारोह और अनुष्ठान

  • तिल गुळ घ्या, गोड गोड बोला: महाराष्ट्र
  • मकर मेला: ओडिशा
  • पेड्डा पंडुगा: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
  • माघ मेला/कुम्भ मेला: उत्तर प्रदेश
  • माघे संक्रांति: नेपाल
  • शाकराइन: बांग्लादेश
  • पौष संग्क्रांति: पश्चिम बंगाल
  • लोहड़ी: उत्तर भारत
  • माघी: पंजाब
  • घुघुती: उत्तराखंड

Makar Sankranti पुण्य काल मुहूर्त और पूजा विधि

पुण्य काल मुहूर्त दिन के सबसे शुभ समय को दर्शाता है जब दान, जप, हवन आदि जैसे पुण्य कार्य किए जा सकते हैं। Year 2026 में, यह अवधि  सुबह 03:13 PM बजे शुरू होती है और शाम 05:45 बजे तक है।

भक्तों को पवित्र स्नान करना चाहिए और पीले या लाल रंग के पारंपरिक वस्त्र पहनना चाहिए। पूजा स्थल पर काली, लाल, पीला, और हरा रंग की रंगोली बनाएं। कलश पर सजाकर पीले फूल, फल, तिल के लड्डू, चावल, गुड़, तिल चिक्की या गुड़ से बनी मिठाई, लाल सैंडलवुड तिलक, पीला चंदन, लाल कुंकुम, धूप स्टिक, दीपक, और सिक्के दें, जो एक लकड़ी की पौधी पर रखे जाते हैं। एक तेल का दीपक जलाएं और तिल गुळ घ्या आदत का आयोजन करें, जिसमें तिल बीज और गुड़ को अपनों के साथ आदान-प्रदान किया जाता है। उन्हें मौथवॉटरिंग मकर संक्रांति की विशेषताओं पर भोजन करने के लिए आमंत्रित करें और सौभाग्य और शुभकामनाओं के प्रति खुदाई के रूप में उपहार साझा करें।

गरीबों को गरम कपड़े (खासकर कम्बल या ऊनी कंबल), पुस्तकें, बछड़े/गाय के चारा, खाद्य आदि की चीजें दान करें। भिखारियों, जरूरतमंद बच्चों, और बुजुर्गों के लिए चैरिटी करें। संस्कृत मंत्र (स्तुति), भजन, प्रार्थनाएँ, और दिये जलाने के लिए सूर्य देव और पृथ्वी माता कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए संगीत करें। संक्रांति रीतिरिवाजों के आध्यात्मिक सार को ध्यान में रखने से आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए अहंकार-स्वयं को पार करने में मदद होती है। व्यक्ति सुपरफिशियल द्वैत रूपों के परे में एकता की अंतर्निहित सत्य को समझता है और ब्रह्मांड के सभी जीवों के प्रति सहानुभूति और करुणा विकसित करता है।

हम Makar Sankranti पर पतंग क्यों उड़ाते हैं?

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मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का प्राचीन परंपराओं और धार्मिक महत्व के कई कारण हैं। इस दिन सूर्य देव उत्तरायण में प्रवृत्त होते हैं, जिससे दिन की लम्बाई बढ़ने और रात की छोटाई होने का संकेत मिलता है। पतंगों को ऊँचे उड़ाने से इस प्रक्रिया को सूर्य के साथ सम्बोधित करते हैं और सूर्य देव की ऊपरी दिशा में उनका स्वागत करते हैं।

यह परंपरा हिन्दू समुदाय में समृद्धि, सफलता और खुशी का प्रतीक है। इसके अलावा, पतंगों को उड़ाने से वायुमंडल में जो शक्ति रहती है, वह सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत होती है जो शरीर और मन को प्रेरित करती है। इससे लोग अपनी आत्मा को स्वतंत्र महसूस करते हैं और सूर्य की ऊपरी दिशा में उनकी ऊँचाई की ओर प्रगाढ़ रूप से बढ़ते हैं। इसलिए, मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाना एक आनंददायक और धार्मिक गतिविधि बन गई है।

Makar Sankranti 2026 मनाने के 10 तरीके

यहां मकर संक्रांति 2026 के उत्सव के शीर्ष 10 रीतिरिवाज और परंपराएं हैं:

  1. पवित्र स्नान: गंगा या यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करें या सूर्य देव की पूजा के रूप में तेल से स्नान करें।
  2. खिचड़ी प्रसाद का आनंद लें: गुणकारी खिचड़ी का आनंद लें, जिसे घी, तिल, चावल, और दाल से बनाया जाता है, उसे प्रसाद के रूप में।
  3. सूर्य पूजा करें: सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य, फूल या मिठाई से पूजें, मंत्र चैंट्स के साथ।
  4. भोजन और वस्त्र दान करें: मकर संक्रांति पुण्य कर्म के हिस्से के रूप में आइटम्स का दान करें, जैसे कि भोजन और कपड़ा।
  5. पतंग उड़ाएं: मनोरंजन के लिए पतंग उड़ाएं या पतंग युद्ध प्रतियोगिताओं में शामिल हों।
  6. तिल लड्डू और गुड़ चिक्की बनाएं: तिल और गुड़ से पारंपरिक मिठाई बनाएं। उन्हें पहले नैवेद्य के रूप में अर्पित करें।
  7. मेला समागमों में भाग लें: माघ मेलों या संक्रांति मेलों में भाग लें, जो बड़े पैम्प उत्सव के रूप में होते हैं।
  8. बोनफायर जलाएं: शाम में समुदायिक बोनफायर के चारों ओर बैठें, गर्मी और खुशी के लिए।
  9. रंगोली से सजाएं: घरों को रंगीन फ्लोर रंगोली कला से सजाएं।
  10. गौ पूजा करें: गायों की पूजा करें तिल और गुड़ के ट्रीट्स के साथ।

Conclusion

मकर संक्रांति हिन्दू चंद्र सम्वत के सबसे महत्वपूर्ण और धार्मिक त्योहारों में से एक है। उत्सव भारत की समृद्धि भरी सांस्कृतिक धरोहर और क्षेत्रीय आचार-विचार में दिखाई देने वाली विविधता को अभिव्यक्त करते हैं। और इससे भी महत्वपूर्ण है, संक्रांति रितुओं के बाद आने वाले आशीर्वादमय प्रकाश की भावना को प्रतिष्ठित करती है, जब एक महीने के धुंदले, छोटे दिनों के बाद दिन की रोशनी बढ़ती है।

Makar Sankranti पुण्य काल मुहूर्त एक आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा माहौल प्रदान करता है, जिसमें लौकिक शुद्धि के लिए पुण्यकारी क्रियाएँ, दान, और पूजा अनुष्ठान किया जा सकता है। इससे यह सिद्ध होता है कि अध्यात्मिक सत्य का समर्थन करने के लिए आत्मा को अध्यात्मिक यात्रा पर भेजने के लिए सही क्रियाएँ करके अहंकार को पार करना है, ब्रह्मांड में सभी अस्तित्व की पूर्ण एकता का मेटाफिजिकल सत्य को समझना।

तो आइए, Makar Sankranti 2026 के साथ, आप उच्चता की ओर उड़ें - अपने दोषों को छोड़ें और अंदर की भलाइयों को अपनाएं! सकारात्मकता, उत्साह, और धार्मिक अनुष्ठान इसे सार्थक बनाने का वादा करते हैं। उत्सव के लिए तैयारी करें!

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FAQs

2026 में मकर संक्रांति कब है?

मकर संक्रांति 2026 में 14 जनवरी, बुधवार को है।

भारत भर में मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?

प्रत्येक क्षेत्र अनूठे तरीके से उत्सव का आयोजन करता है - पंजाब में बोनफायर नृत्य होता है, तमिलनाडु में मिठे पोंगल बनते हैं, उत्तर प्रदेश में खिचड़ी प्रसाद का आनंद होता है, गुजरात में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव होता है, असम में माघ बीहू में भैंस युद्ध होते हैं, महाराष्ट्र में हल्दी कुमकुम का उत्सव मनाया जाता है।

Makar Sankranti त्योहार के विभिन्न नाम क्या हैं?

पोंगल, बिहु, लोहड़ी, उत्तरायण, माघी, सक्रांति, माघ बीहू, पौष पर्व, तिल संक्रांति, आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रीय नाम हैं।

मकर संक्रांति के पाँच प्रमुख रीतिरिवाज क्या हैं?

सबसे महत्वपूर्ण रीतिरिवाज हैं पवित्र स्नान, सूर्य देव की पूजा, पतंग उड़ाना, तिल लड्डू और गुड़ घ्या की मिठाई खाना, मेला समागमों में भाग लेना, और रंगोलियों से सजाना।

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?

Makar Sankranti kab aati hai: मकर संक्रांति भारतीय पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इसे सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होने की स्थिति के रूप में देखा जाता है और यह ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का सूचक है।

मुझे आशा है कि ये नमूना पूछे जाने वाले प्रश्न आपको मकर संक्रांति 2026 की तारीख, समय, उत्सव और महत्व के कुंजी विवरणों के बारे में अच्छी तरह से सूचित करेंगे। यदि आपको अपने लेख के लिए किसी और त्योहार से संबंधित जानकारी चाहिए, तो मुझसे संपर्क करें।

सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए | अमावस्या को बाल धोना चाहिए या नहीं

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सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए - हमारे हिंदू धर्म में प्राचीनकाल से ही कुछ ऐसी परंपराएं चली आ रही हैं। जिसका आज के समय में भी पालन किया जाता हैं। कुछ लोग इन सभी परंपरा को वहम मानते हैं तो कुछ लोग परंपरा का पालन करते है और इसे सही मानते हैं।

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सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए

इन सभी परंपरा के पीछे कुछ ना कुछ कारण छिपे होते है। इस वजह से आज भी परंपरा का पालन किया जाता हैं। लेकिन एक परंपरा ऐसी है, जो महिलाओं के बाल धोने के बारे में हैं। इस परंपरा पर आज हम आपके साथ इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेगे।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले हैं की सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए तथा अमावस्या को बाल धोना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से संबंधित अन्य और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले हैं। यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े। तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते है।

सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए

सुहागन स्त्री को बाल सोमवार, बुधवार तथा गुरुवार के दिन बाल नहीं धोने चाहिए। इसके अलावा किसी भी दिन जैसे की मंगलवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार के दिन बाल धो सकती हैं। सुहागन स्त्री अगर इस दिन बाल धोती हैं, तो उनके जीवन में कोई भी बाधा या अड़चन नहीं आती हैं।

लेकिन सोमवार, बुधवार और गुरुवार के दिन अगर सुहागन स्त्री बाल धोती हैं, तो उनके जीवन में काफी सारी अड़चने आती हैं।

ऐसा माना जाता है की सोमवार के दिन सुहागन स्त्री अगर बाल धोती है। तो बेटी पर भार बना रहता है। बेटी के जीवन कोई छोटी-मोटी परेशानी आ सकती हैं। घर की बेटी या बहु पर कर्ज का भार बढ़ सकता हैं।

इसके अलावा सोमवार के दिन बाल धोने से आर्थिक स्थिति में भी कमजोरी आती हैं। इससे धन की कमी होने लगती है और फ़ालतू के खर्च बढ़ जाते हैं। इसलिए सोमवार के दिन स्त्री को बाल धोने से बचना चाहिए।

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अगर बुधवार के दिन सुहागन स्त्री बाल धोती है। उनके भाई पर कोई भी आफत आ सकती हैं। खास करके लडकियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की बुधवार के दिन बाल न धोए।

ऐसा करके आप अपने भाई को मुसीबत में डाल सकते हैं। बुधवार के दिन बाल धोने से आपके भाई की आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। उनकी नौकरी या व्यापार पर बुरा असर पड सकता हैं। इसलिए स्त्री को बुधवार के दिन बाल नहीं धोने चाहिए।

अगर गुरुवार के दिन सुहागन स्त्री बाल धोती है, तो पति की उम्र कम होती हैं। इसके अलावा गुरुवार के दिन बाल धोने से पति के परेशानियों में भी बढ़ोतरी होती हैं। गुरुवार के दिन महिला अगर बाल धोती हैं, तो उनका गुरु कमजोर होता हैं। इसका असर बच्चों और पति पर पड़ता हैं। इसके अलावा गुरुवार के दिन बाल धोने से घर की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती हैं।

सुहागिन महिलाओं को किस दिन बाल धोना चाहिए

ये सवाल बहुत से महिलाओं के मन में होता है कि किस दिन बाल को धोना चाहिए, तो आज हम आपको बताये गए कि एस्ट्रोलॉजी के अनुसार सोनवार, बुधवार और शुक्रवार को सुहागिन महिलाओं को बाल धोना चाहिए।

अमावस्या को बाल धोना चाहिए या नहीं

जी नहीं, अमावस्या के दिन बाल भी नहीं धोने चाहिए और अमावस्या के दिन बाल, नाख़ून काटने से भी बचना चाहिए।

व्रत में बाल धोना चाहिए कि नहीं

जी हां, आप व्रत में बाल धो सकते हैं। लेकिन आपका व्रत सोमवार, बुधवार या गुरुवार के दिन का है, तो व्रत में बाल नहीं धोने चाहिए। इसके अलावा आप किसी भी दिन बाल धो सकते हैं।

पूर्णिमा के दिन बाल धोना चाहिए या नहीं

जी हां, आप पूर्णिमा के दिन बाल धो सकते हैं लेकिन पूर्णिमा के दिन अगर सोमवार, बुधवार या गुरुवार का दिन लग रहा हैं, तो इस दिन बाल न धोए। इस दिन बाल धोने से आप पर भार बना रहता हैं और परिवार के कोई भी संकट आदि आ सकता हैं।

क्या सुहागिन महिलाओं को रोज बाल धोना चाहिये

पुरानी मान्यताओं के अनुसार सुहागिन महिलाओं को रोज बाल धोना आवश्यक नहीं माना गया है। ऐसा माना जाता है कि रोज बाल धोने से शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा प्रभावित हो सकती है और कई बार इसे अशुभ भी माना जाता है। धार्मिक दृष्टि के अनुसार सप्ताह के कुछ विशेष दिन, जैसे सोमवार, बुधवार और शुक्रवार, बाल धोने के लिए शुभ माने गए हैं। वहीं, शनिवार, अमावस्या और कुछ त्यौहार वाले दिनों में बाल धोने से परहेज़ करने की सलाह दी जाती है।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है की सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए तथा अमावस्या को बाल धोना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से संबंधित अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ है, तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी अन्य लोगो तक भी पहुंच सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह सुहागन स्त्री को बाल कब धोना चाहिए - अमावस्या को बाल धोना चाहिए या नहीं ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs

पूर्णिमा के दिन बाल धोना चाहिए या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के दिन बाल भूल से भी नहीं धोना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन बाल धोने से व्रत की पवित्रता प्रभावित होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होती है।

महिलाओं को किस दिन बाल धोना चाहिए?

सुहागिन महिलाओं को सोमवार, बुधवार और शुक्रवार के दिन बाल धोना शुभ होता है।

शनिवार को बाल धोना चाहिए या नहीं?

पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार शनिवार के दिन बाल धोना शुभ नहीं माना जाता। ऐसा माना जाता है कि इससे शनि दोष का प्रभाव बढ़ सकता है और नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकते हैं।

सुहागिन महिलाओं को बाल कब धोने चाहिए और कब नहीं?

सुहागिन महिलाओं को सोमवार, बुधवार और शुक्रवार के दिन ही बाल धोना चाहिए।

अमावस्या के दिन सिर धोना चाहिए कि नहीं?

जी नहीं, अमावस्या के दिन सिर धोना शुभ नहीं माना जाता है।

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तुलसी की माला कौन पहन सकता है!

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

Maha Shivratri 2026: महाशिवरात्रि कब है, नोट कर लें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Maha Shivratri 2026 Date: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। उन्हें दयालु और कृपालु भगवान माना जाता है, जिनकी प्रतिष्ठा बहुत उच्च है। वे एक लोटे के जल से भी संतुष्ट हो जाते हैं। महाशिवरात्रि शिवभक्तों के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पर्व पर भगवान शंकर की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है और भक्त व्रत और पूजन के साथ इसे धूमधाम से मनाते हैं।

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हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। पहली महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है और दूसरी महाशिवरात्रि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। दोनों महाशिवरात्रि पर्व बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। फाल्गुन मास में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि के संदर्भ में कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इस दिन विधिवत भगवान शिव की पूजा करने से सोखी विवाही जीवन की प्राप्ति होती है और सौभाग्य की कामना की जाती है। जानिए 2026 में महाशिवरात्रि कब मनाई जाएगी और महाशिवरात्रि 2026 की तिथि।

साल 2026 में महाशिवरात्रि 15 फरवरी, Sunday को मनाई जाएगी। यह महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट मिट जाते हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। आइए, हम जानते हैं महाशिवरात्रि की पूजा की तिथि और महत्व के बारे में।

महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा समय:

महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन के चार प्रहरों में पूजा की जाती है। निम्नलिखित है महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा का समय...

  • चतुर्दशी तिथि की शुरुआत: 15 फरवरी 2026, 05:04 PM बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्ति: 16 फरवरी 2026, 05:34 PM बजे
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के प्रथम प्रहर में: शाम 06:11से 9:23 PM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के दूसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 9:23 PM से रात्रि 12:35AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के तीसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 12:35 AM से 3:47 AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के चौथे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 3:47 AM से 6:59 AM बजे तक

महाशिवरात्रि का महत्व और मनाने का कारण

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का संकेत होता है। रात्रि के चार प्रहरों में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि का यह महत्वपूर्ण त्योहार भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और शक्ति की पूजा करने से मनुष्य की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और सभी संकट दूर होते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत विधि

महाशिवरात्रि का व्रत एक कठिन व्रत होता है जिसमें दिन भर उपवास और रात्रि में जागरण किया जाता है:

  • प्रातः स्नान करके शिवलिंग पर जल, दूध, शहद अर्पित करें।
  • बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल चढ़ाएं।
  • "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
  • चार पहर की पूजा करें या कम से कम निशीथ काल की पूजा करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि 2026 एक अत्यंत शुभ दिन है जब भक्त भगवान शिव की आराधना करके अपने जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं। अगर आप भी शिवभक्त हैं, तो इस दिन की पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व को समझें और पूरे भक्ति भाव से इस पर्व को मनाएं।

FAQs

Sal 2026 me maha shivaratri kab hai?

Dear friends 2026 me maha shivaratri 15 February, 2026 ko hai.

कौन सी शिवरात्रि सबसे बड़ी है?

महाशिवरात्रि भारत और नेपाल के शैव संप्रदाय के हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक पर्व है।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं | पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं - हिंदू सनातन धर्म में व्रत को काफी महत्व दिया जाता हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए तथा भक्त और भगवान के बीच की दुरी को कम करने के लिए व्रत किया जाता हैं। ऐसा माना जाता है की व्रत करने से हमें शुभ फल की तो प्राप्ति होती ही हैं। साथ-साथ हमें स्वास्थ्य लाभ भी मिलता हैं।

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

व्रत करना हमारे शरीर के लिए भी अच्छा माना जाता हैं। वैसे तो लोग विभिन्न प्रकार के आए दिन कोई ना कोई व्रत करते रहते हैं, लेकिन आज हम इस ब्लॉग में पूर्णिमा व्रत के बारे में चर्चा करने वाले हैं जो की आपके लिए उपयोगी साबित होने वाला हैं। इसलिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में नमक नहीं खाना चाहिए। पूर्णिमा व्रत में नमक खाना वर्जित माना गया हैं लेकिन फिर भी अगर आप नमक खाना चाहते है, तो सेंधा नमक खा सकते हैं। अगर आप पूर्णिमा के दिन कुछ भी फलाहार बनाए, तो उसमें सफ़ेद नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल करे।

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पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए कि नहीं

वैसे तो पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाया जा सकता हैं, लेकिन कुछ महिलाएं पूर्णिमा के दिन सिंदूर नहीं लगाती हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथो में पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए या नहीं इसके बारे में कुछ भी बताया गया नहीं हैं।

इसलिए महिलाएं अपनी मान्यता और इच्छा अनुसार सिंदूर लगाती भी है और कुछ महिलाएं सिंदूर नहीं भी लगाती हैं। सिंदूर लगाना या नहीं लगाना अपनी मर्जी और विचार पर निर्भर करता है।

पूर्णिमा के दिन बाल धोना चाहिए या नहीं

पूर्णिमा व्रत व्रत में इस दिन बाल धोना निषिद्ध माना जाता है। यह अत्यंत ही शुभ तिथि होती है, जब महिलाएँ व्रत रखती हैं। ऐसे में यदि आप भी व्रत करते हैं, तो इस दिन बाल धोने से अवश्य ही बचना चाहिए।

हमारे धर्मशास्त्रों में महिलाओं के बाल धोने से जुड़े कई नियम बताए गए हैं। यदि किसी शुभ दिन व्रत रखा जाए, तो उस दिन बाल धोने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत के दिन बाल धोने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

पूर्णिमा का व्रत करने से जातक को काफी लाभ होते हैं। इसलिए जातक के द्वारा पूर्णिमा का व्रत का किया जाता हैं। जैसे की -

  • अगर किसी को मानसिक कष्ट हो रहा है, तो उनको पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। 
  • अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र दूषित या पीड़ित है, तो उनको पूर्णिमा व्रत करना चाहि।
  • जिन लोगो बहुत अधिक भय लगता है या हमेशा के लिए मानसिक चिंता में डूबे रहते हैं। तो ऐसे लोगो के लिए पूर्णिमा का व्रत अच्छा माना जाता है।
  • पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर कच्चा दूध तथा जल अर्पित करने से बीमारी से छुटकारा मिलता हैं। इसलिए कुछ लोग पूर्णिमा का व्रत करते हैं।
  • वैवाहिक जीवन में शांति के लिए तथा पारिवारिक सुख पाने के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता हैं।
  • इन सभी लाभों को प्राप्त करने के लिए और भगवान विष्णु के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए

किसी भी व्रत का सीधा संबंध भोजन से जुड़ा होता है, इसलिए आप को व्रत शुरू करने से पहले यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि इस व्रत में क्या खाना उचित है। ऐसे में हम पूर्णिमा व्रत की बात करें तो बहुत से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस व्रत को करते हैं।

लोग व्रत तो रखते लेते हैं, लेकिन खाने को लेकर अक्सर उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते रहते हैं। आइए आज हम जानें कि पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए।

दूध और खीर: ऐसा कहा जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप दूध की बानी खीर का सेवन कर सकता/सकती हैं। इसके अलावा आप दूध से बने अन्य व्यंजन जैसे की साबूदाने की खीर, सेवई की खीर और चावल की खीर का सेवन किया जा सकता हैं।

ड्राई फूड्स: यदि आप भी पूर्णिमा का व्रत रख रही हैं, तो आप इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते हैं। इसमें काजू, अखरोट, बादाम, किशमिश, पिस्ता, खजूर और खुबानी शामिल होता हैं।

इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन दिन में केवल एक बार करना ही उचित रहता है, क्योंकि किसी भी व्रत में बार-बार खाना नहीं चाहिए।

फलों का सेवन: माना जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप फलों का सेवन कर सकते हैं। फल पूरी तरह सात्त्विक होते हैं और व्रत के दौरान बेझिझक एक बार खाए जा सकते हैं।

इस व्रत में आप जैसे कि केला, संतरा, अंगूर, और खीरा आदि फलों का सेवन कर सकते हैं। हालांकि, इन्हें व्रत में पूजा-पाठ पूर्ण करने के बाद ही खाना उचित होता है।

सिंघाड़े का सेवन: पूर्णिमा व्रत में आप सिंघाड़े से बानी चीजो का सेवन कर सकती हैं। सूखे सिंघाड़े को पीसकर उसका आटा तैयार करें और उससे पूरी, हलवा या अन्य व्रत-उपयुक्त व्यंजन बनाकर खाएँ।

इसके अलावा, आप पूर्णिमा व्रत में राजगिरा आटे का हलवा भी खाया जा सकता है। इसे देसी घी, दूध, चीनी और मेवा मिलाकर स्वादिष्ट रूप में तैयार किया जा सकता है।

साबूदाना की बानी खिचड़ी: पूर्णिमा व्रत करने वाली महिलाएँ साबूदाने की खिचड़ी बनाकर ग्रहण कर सकती हैं, इससे व्रत नहीं टूटता। बस इसे बनाते समय साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में शाम को आप निम्नलिखित चीजों को बनाकर खा सकते हैं:

  • साबूदाने का पुलाव या खिचड़ी
  • कच्चे केले की टिक्की
  • सिंघाड़े की नमकीन बरफी
  • कुटू के पराठे
  • आलू, खीरा तथा मूंगफली का सलाद
  • मखाने की खीर
  • दही, सेंधा नमक
  • कुटू के पकोड़े

इसके अलावा आप अन्य और भी फलहारी व्यंजन बनाकर खा सकते है।

पूर्णिमा व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में आप को नमक, अंडा, प्याज और लहसुन का बिल्क़ुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत खोलने की विधि

पूर्णिमा का व्रत खोलने के लिए सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा करे। इसके बाद पुष्प आदि अर्पित करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराए और उन्हें दक्षिणा आदि दान करे। इसके पश्चात आप स्वयं पूर्णिमा का व्रत खोल सकती हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करें। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं / पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs 

पूर्णिमा के व्रत में नमक खा सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में बिल्कुल भी नमक नहीं खाना चाहिए। 

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए?

इस व्रत में आप फल, दूध की खीर, साबूदाना और ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते है।

पूर्णिमा के दिन बाल धो सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के दिन भूल से भी बाल नहीं धोना चाहिए।

पूर्णिमा के दिन किन वसुओं का दान करना चाहिए?

पूर्णिमा के दिन आप किसी भी ब्राह्मण को चावल, दही, चांदी की चीजे, सफेद रंग के वस्त्र, चीनी, सफेद फूल और मोती जैसी आदि वसुओं का दान करना चाहिए।

पूर्णिमा के कितने व्रत आप को करने चाहिए?

पूर्णिमा के कुल 32 व्रत पूर्ण करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत आप किसी भी माह से आरम्भ कर सकते है, लेकिन शुभ फल पाने हेतु श्रावण या माघ के महीने में शुरू करना बहुत ही श्रेष्ठ माना जाता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है?

पूर्णिमा का व्रत मानसिक शांति, चंद्रदेव की कृपा, सौभाग्य, आरोग्य और पारिवारिक सुख पाने के लिए किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत में शाम के समय आप फल, दूध, साबुदाना, और खीर का सेवन कर सकते है।

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? जानें भगवान परशुराम कौन थे

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती - भगवान परशुराम के बारे में हम में से काफी लोग जानते है क्योंकि भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण में भी देखने को मिलता हैं। परशुराम अति क्रोधी स्वभाव के और एक वीर यौद्धा थे।

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती

उनके हाथ में हमेशा ही एक फरसा रहता था। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम को यह फरसा भगवान शिव ने दिया था। परशुराम जी ने भगवान शिव की आराधना करके उनको प्रसन्न किया था। बदले में भगवान शिव ने परशुराम को फरसा प्रदान किया था।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी  अन्य और भी बहुत जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े।

भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती

आपको बता दे कि कुछ शास्त्रों और पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम अमर हैं। इसलिए उनकी पूजा नही की जाती हैं। भगवान परशुराम आज भी हमारे बीच में मौजूद हैं और वह अमर हैं। इसलिए दुसरे देवी देवताओ की तरह भगवान परशुराम की पूजा नही की जाती हैं।

ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम हिन्दू सनातन धर्म के सबसे योद्धा हैं और भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त भी माने जाते हैं। भगवान परशुराम ने कठिन आराधना करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था और परशुराम की इस कठिन परिश्रम को देखते हुए भगवान शिव ने परशुराम को परसा आशीर्वाद स्वरूप उनको दिया था।

भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु का छठा अवतार माने जाते हैं और यदि आपने रामायण देखा होगा तो इनका जिक्र रामायण में देखने को मिलता हैं। भगवान परशुराम अमर होने की वजह से उनकी पूजा अर्चना करना वर्जित माना जाता हैं। 

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भगवान परशुराम का जीवन परिचय तथा इतिहास

भगवान परशुराम का जीवन परिचय और उनका इतिहास हमने एक टेबल के माध्यम से आपको बताने की कोशिश की हैं:

नाम:-

भगवान परशुराम

अन्य नाम:-

अनंतर राम

कौन है:-

भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं

जन्म:-

वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि

जन्म स्थान:-

पता नही

पिता का नाम:-

जगदग्नि

माता का नाम:-

रेणुका

दादा का नाम:-

ऋचीक

परशुराम जयंती:-

अक्षय तृतीय के दिन

जाति:-

ब्राह्मण

भगवान परशुराम कौन थे

भगवान परशुराम के बारे में हमने कुछ मुख्य जानकारी नीचे प्रदान की हैं:

  • भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता हैं।
  • भगवान परशुराम ऋषि जमादग्नी और माता रेणुका के पांचवें पुत्र थे। इनका जन्म ब्राह्मण जाति में हुआ था।
  • भगवान परशुराम वीरता के उदाहरण माने जाते हैं। यह स्वभाव से अधिक क्रोधित और एक योद्धा थे।
  • भगवान परशुराम भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम त्रेता और द्रापर युग से अभी के वर्तमान तक अमर हैं।
  • कुछ शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम ने त्रेता युग में रामायण में और द्रापर युग में महाभारत में अहम भूमिका में थे। इन दोनों ग्रंथ में आज भी भगवान परशुराम के बारे में जिक्र देखने को मिलता हैं।
  • रामायण में जब सीता का स्वयंवर हो रहा था। तब भगवान राम ने शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ दिया था। उस दौरान भगवान परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे। क्योंकि भगवान परशुराम शिवजी के बड़े भक्त थे और उनका धनुष तोड़ने पर वह क्रोधित हो गए थे।

भगवान परशुराम के शिष्य कौन थे

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है की भगवान परशुराम ने महाभारत के कर्ण, द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह को अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। इसलिए भगवान परशुराम इन तीनो के गुरु और यह तीनो भगवान परशुराम के शिष्य माने जाते हैं।

वर्तमान में भगवान परशुराम के मंदिर कहां है

वर्तमान समय में भी भारत में भगवान परशुराम के मंदिर मौजूद हैं जिसके बारे में हमने नीचे जानकारी प्रदान की हैं:

  • परशुराम मंदिर: सोहनाग, सलेमपुर और उत्तर प्रदेश
  • परशुराम मंदिर जी: पीतमबरा, कुल्लू तथा हिमाचल प्रदेश
  • भगवान परशुराम मंदिर: अखनूर, जम्मू और कश्मीर
  • भगवान परशुराम जी का  मंदिर: कुंभलगढ़ और राजस्थान
  • परशुराम मंदिर: महुगढ़ और महाराष्ट्र

निष्कर्ष

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FAQs

भगवान परशुराम किसके अवतार थे?

भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।

परशुराम ने अपनी मां का सिर क्यों काटा था

भगवान परशुराम ने अपनी माँ का सिर इसलिए काटा क्योंकि पिता जमदग्नि ने आज्ञा दी थी। इसलिए परशुराम धर्म, कर्तव्य और पिता की आज्ञा के पालन के लिए दृढ़ थे। पुरानी कथाओ के अनुसार, बाद में भगवान शिव की कृपा से उनकी माता पुनर्जीवित हुई थी।

परशुराम के पिता का नाम थे

जी हां, भगवान परशुराम के पिता का नाम महर्षि जमदग्नि था। वे सप्तर्षियों में से एक ऋषि थे और अत्यंत तपस्वी, विद्वान तथा धर्मपरायण माने जाते हैं।

परशुराम का जन्म स्थान था

कथाओं के अनुसार, परशुराम जी का जन्म स्थान महेंद्र पर्वत को माना जाता है, जो वर्तमान में ओडिशा क्षेत्र में स्थित बताया जाता है। पुरानी ग्रंथों में यही स्थान पर वे तप, साधना और प्रारंभिक जीवन का प्रमुख केंद्र भी बताया गया है।

क्या परशुराम की शादी हुई थी?

पुरानी कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम का विवाह नहीं हुआ था; वे एक ब्रह्मचारी थे।

परशुराम के पूर्वज कौन थे?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम के पूर्वज महर्षि भृगु थे।

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जल्दी घर बनाने के उपाय - प्रिय रीडर आपको ये तो पता होगा कि रोटी, कपड़ा और मकान आज के समय में हर किसी की जरूरत होती हैं। जिसमे से रोटी और कपड़ा तो हमे आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन घर यानी मकान बनाना हमारे लिए काफी कठिन काम होता हैं। क्योकि घर बनाने के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत पड़ती हैं। तब जाकर हमें अपना घर मिलता हैं।

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जल्दी घर बनाने के उपाय

लेकिन आप चाहते है कि आपका घर जल्दी बन जाए और आप आपके घर में जाकर सुख चैन के साथ रह सके तो ऐसे में कुछ उपाय करके आप जल्दी घर बनवा सकते हैं। आज हम आपको ऐसे कुछ उपाय बताने वाले हैं। जिसे करने से आपका जल्दी घर बन जायेगा।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से जल्दी घर बनाने के उपाय बताने वाले हैं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी और भी अन्य जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े। तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

जल्दी घर बनाने के उपाय

जल्दी घर बनाने के कुछ प्रभावशाली और कारगर उपाय हमने नीचे बताये हैं।

गणेशजी का उपाय करे

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो आप गणेशजी से जुड़ा उपाय कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपने आसपास के किसी भी भगवान गणेश जी के मंदिर जाना होगा अगर आप मंदिर नही जा सकते हैं, तो अपने घर पर ही भगवान गणेश जी की प्रतिमा के आगे एक लाल रंग का फूल अर्पित कर दे।

इसके बाद गणेश जी से जल्दी घर हेतु प्रार्थना करे। यह उपाय आपको लगातार 21 दिन तक करना हैं। ऐसा माना जाता है की इस उपाय को करने से गणेशजी जी जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और इससे आपको जल्दी घर बनाने में मदद मिलती हैं।

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नीम की लकड़ी से बने घर का दान करे

अगर आप अपना घर चाहते हैं। आप चाहते है की आपका घर जल्दी बन जाए तो ऐसे में आपको एक सुंदर नीम की लकड़ी से घर बनाना हैं। अब इस घर को आपके आसपास के किसी भी मंदिर में जाकर दान कर देना हैं। यह उपाय करने से आपको जल्दी घर की प्राप्ति होती हैं।

मंगलवार के दिन उपाय करे

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो मंगलवार के दिन यह उपाय करे। मंगलवार के दिन घोड़े को गली हुई चने की डाल खिलाए। इसके बाद कौओ को दूध में भीगी हुई रोटी खिलाएं।

इसके पश्चात आपको गाय को रोटी, मसूर की दाल और गुड तथा गुड से वस्तु खिलानी चाहिए और जरूरतमंद व्यक्ति को खाना खिलाएं या दान करे।

इसके अलावा आप आपके आसपास के किसी भी गणेशजी के मंदिर मंगलवार के दिन जाए और गणेशजी के समक्ष गुड़ या गेहूं अर्पित करे। यह उपाय आपको लगातार पांच मंगलवार करना हैं। इस उपाय से आपका घर जल्दी हो जाता हैं।

मंगलवार के दिन इतना सा उपाय करने से आपको अवश्य ही जल्दी घर बनाने में मदद मिलेगी।

रविवार के दिन का उपाय

अगर आप जल्दी घर चाहते हैं। तो रविवार के दिन यह उपाय करे। रविवार के दिन एक सुंदर लकड़ी मदद से घर बनाये। घर छोटा ही होना चाहिए जो आपके घर के मंदिर में रख सके। इसके बाद इस बने हुए घर को अपने घर के मंदिर में  स्थापित कर दे।

इतना हो जाने के पश्चात बने हुए घर में एक मिट्टी का दीपक सरसों की तेल के मदद से जलाए और बने हुए घर को सजाये। इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और आपका जल्दी घर बन जायेगा।

माता दुर्गा का उपाय

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले एक मिट्टी का मटका लीजिए। अब इस मटके में शहद, मिश्री, शक्कर, कपूर, दही और दूध डाल दीजिए। इसके पश्चात माता दुर्गा का मंत्र नव्रार्ण मंत्र का जाप करे।

इतना हो जाने के पश्चात मिट्टी के मटके को आपके आसपास के किसी नदी या तालाब के समुद्र के तट में गड्ढा खोदकर गाड दे। आपके इस उपाय से आपको जल्दी घर बनाने में मदद मिलेगी।

घर में चिड़ियाँ के लिए घोसला बनाये

अगर आप जल्दी घर चाहते हैं तो आप जहाँ रह रहे हैं। उस जगह पर घोसला बनाये। जब इस घोसले में चिड़ियाँ रहने आने लगे उसके बाद चिड़ियाँ को दाना पानी देना शुरू करे। आपके इस उपाय से आपका जल्दी घर बनेगा।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से जल्दी घर बनाने के उपाय बताए है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

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FAQs

अपना खुद का घर बनाने के लिए उपाय

यदि आप अपना घर बनाने के लिए वास्तु के अनुसार शुभ दिशा को चुनें, धार्मिक पूजा और मंत्रों का सहारा लें, धन संचय करें, सकारात्मक सोच रखें और शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन अवश्य करें।

खुद का मकान बनाने के क्या उपाय हैं

खुद का मकान बनाने के लिए भूमि चयन में शुभ दिशा देखें, वास्तु का पालन करें, धन का प्रबंध सही करें, पूजा और मंत्रों का सहारा लें, शुभ मुहूर्त में निर्माण प्रारंभ करें।

घर बनाना किस महीने में शुभ होता है

घर बनाना आमतौर पर चंद्र मास में शुभ माना जाता है। विशेषकर हिंदी के इन सभी महीनो में वैशाख, भाद्रपद, कार्तिक और माघ माह में भूमि पूजन कर निर्माण शुरू करना अत्यंत शुभ ही माना जाता है।

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