जब भी कोई "सूर्य" का नाम लेता है, हमारे मन में एक विशाल आग के गोले की छवि बनती है — जो हर सुबह उगता है और पूरे जग को रोशनी से भर देता है, लेकिन हिंदू धर्म में यही सूर्य, सूर्य देव के रूप में पूजे जाते हैं — जो प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के शाश्वत स्रोत हैं।
वेदों में सूर्य देव के जीवन से जुड़ी कई अद्भुत कहानियाँ मिलती हैं, जिनमें सबसे रोचक है — सूर्य देव की पत्नी संज्ञा और उनकी छाया रूपी प्रतिरूप छाया देवी की कथा। आइए जानते हैं इस दिव्य प्रेम कहानी के रहस्य और छिपे संदेश।
संज्ञा: सूर्य देव की प्रथम पत्नी
सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा (या समज्ञा, सारण्यु) था। वे विश्वकर्मा जी की पुत्री थीं — वही दिव्य शिल्पकार जिन्होंने स्वर्ग के महल और देवताओं के अस्त्र-शस्त्र बनाए।
संज्ञा अत्यंत तेजस्वी और सुंदर थीं, और सूर्य देव की अर्धांगिनी के रूप में चयनित हुईं, लेकिन सूर्य देव का तेज इतना प्रखर था कि स्वयं देवी संज्ञा भी उसके सामने अधिक देर तक नहीं रह पाती थीं। अपने पति से अत्यंत प्रेम करने के बावजूद, वे उनके तीव्र तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं। अंततः उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया, जिसने देवलोक का संतुलन ही बदल दिया।
छाया का जन्म: सूर्य की "परछाई" पत्नी
सूर्य से दूर जाने से पहले, संज्ञा ने अपनी परछाई यानी छाया को जन्म दिया — एक ऐसी स्त्री जो हूबहू संज्ञा जैसी दिखती थी। छाया ने सूर्य देव के साथ जीवन बिताना शुरू किया। सब कुछ सामान्य लग रहा था, यहाँ तक कि उनके संतान भी हुए — शनि देव, जो कर्म और न्याय के देवता बने, और तपती, जो एक पवित्र नदी देवी हैं।
लेकिन धीरे-धीरे सूर्य देव को एहसास हुआ कि कुछ तो ग़लत है। वो वही तेज़ तो था, लेकिन वह अपनापन नहीं, और फिर एक दिन छाया के व्यवहार से उन्हें सच्चाई का पता चल गया — कि वे असली संज्ञा के साथ नहीं, उसकी छाया के साथ रह रहे हैं।
सूर्य देव की खोज और विश्वकर्मा का सहयोग
सूर्य देव ने तुरंत संज्ञा की खोज शुरू की। वे आकाश, पर्वत, बादलों — हर लोक में उन्हें ढूँढने लगे। आखिरकार, वे अपने ससुर विश्वकर्मा जी के पास पहुँचे। विश्वकर्मा जी ने बताया कि संज्ञा सूर्य के अत्यधिक तेज से दुखी होकर चली गई थीं। उन्होंने सूर्य देव की मदद की — उनके तेज को थोड़ा कम कर दिया ताकि वे अधिक सौम्य बन सकें।
इसी तेज के अंशों से बने थे दिव्य अस्त्र — विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल, और कार्तिकेय का भाला।
पुनर्मिलन: घोड़े का रूप और दिव्य संतानें
सूर्य देव ने अंततः संज्ञा को पाया — वे वन में ध्यानमग्न थीं और घोड़ी का रूप धारण किए हुए थीं। प्रेम से प्रेरित होकर, सूर्य देव ने भी घोड़े का रूप धारण कर लिया। उनका मिलन अत्यंत भावनात्मक था और इसी से जन्म लिए उनके कई दिव्य संतानें —
- यमराज — मृत्यु और न्याय के देवता
- यमुना — पवित्र नदी देवी
- वैवस्वत मनु — मानव जाति के प्रणेता
- अश्विनी कुमार — देवताओं के वैद्य
प्रत्येक संतान अपने माता-पिता की दिव्यता का प्रतीक बनी — अनुशासन, पवित्रता, सृजन और उपचार के रूप में।
सूर्य देव की दो पत्नियाँ: प्रकाश और छाया का संगम
शास्त्रों के अनुसार, सूर्य देव की दो पत्नियाँ थीं — संज्ञा और छाया। संज्ञा "चेतना" और "प्रकाश" का प्रतीक हैं, जबकि छाया "धैर्य" और "सेवा" का। दोनों मिलकर जीवन के दो पक्ष दिखाती हैं — प्रकाश और अंधकार, ऊर्जा और शांति।
यह कहानी बताती है कि ब्रह्मांड का संतुलन तभी बनता है जब तेज को करुणा से संयमित किया जाए।
गहराई में छिपा संदेश: रिश्तों में संतुलन की सीख
संज्ञा की कहानी सिर्फ़ पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ संदेश है। जहाँ संज्ञा “जागरूकता और आत्मबल” का प्रतीक हैं, वहीं छाया “धैर्य और सहनशीलता” का। इन दोनों के माध्यम से ये सिखाया गया है कि प्रेम में केवल चमक नहीं, समझ और संयम भी आवश्यक है।
शनि देव का जन्म भी इस कथा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है — जो कर्म और न्याय के नियम का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हर कर्म का फल होता है, और विनम्रता ही सच्ची शक्ति है।
पूजा और आस्था: सूर्य उपासना का महत्व
भारत में आज भी सूर्य पूजा अनेक पर्वों और अनुष्ठानों में की जाती है — छठ पूजा, रथ सप्तमी, और मकर संक्रांति जैसे पर्वों पर भक्तजन नदी में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य देव की पूजा से ऊर्जा, सफलता और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
मंदिरों में सूर्य देव को सात घोड़ों के रथ पर सवार दिखाया जाता है, और कई स्थानों पर उनकी पत्नी संज्ञा व छाया भी उनके साथ विराजमान होती हैं।
निष्कर्ष
सूर्य देव, संज्ञा और छाया की यह कथा हमें यह सिखाती है कि हर व्यक्ति के भीतर प्रकाश और छाया दोनों बसते हैं। संज्ञा का साहस और छाया का धैर्य — दोनों मिलकर जीवन की पूर्णता बनाते हैं। जब सूर्य ने अपने तेज को संतुलित करना सीखा, तभी संसार में पुनः सामंजस्य स्थापित हुआ।
सीख यही है — असली चमक तब आती है जब उसे करुणा और समझ से संयमित किया जाए। 🌞

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