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पति-पत्नी के बीच तनाव या तलाक? तलाक (Divorce) से बचने में ज्योतिष की भूमिका

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पति-पत्नी के बीच तनाव या तलाक- सनातन धर्म के मुताबिक मनुष्य जीवन में सोलह संस्कार होते हैं जिसमें सबसे मुख्य है, विवाह का संस्कार। विवाह संस्कार में भावी पति-पत्नी आजीवन साथ रहने और कभी भी एक दूसरे से अलग न होने की कामना रखते हुए पाणिग्रहण संस्कार कर वैदिक अनुष्ठान करते हैं। इसमें विवाह विच्छेदन यानि तलाक की कल्पना भी नहीं की जाती। लेकिन वर्तमान समय में विवाह से अधिक तलाक हो रहे हैं या फिर कोर्ट में केस चल रहे हैं। अक्सर यह पूछा जाता है कि क्या ज्योतिष तलाक/अलगाव से बचने में सहायता कर सकता है या नहीं। इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यदि हम वैदिक ज्योतिष के नियमों को देखें, तो यह आपको अपने जीवन में तलाक की संभावनाओं के बारे में पहले से अवगत करा सकता है। यह पूर्ण रूप से सत्य है कि अगर किसी को किसी अनहोनी की जानकारी या उसका संकेत मिल जाए, तो वह उसके खिलाफ सतर्क रहने का प्रयास करेगा।

पति-पत्नी के बीच तनाव या तलाक? तलाक से बचने में ज्योतिष की भूमिका

पति-पत्नी के बीच तनाव या तलाक - Tension or Divorce between Husband and Wife

एक गाड़ी के दो पहिये होते हैं पति-पत्नी। जैसे समय बदल रहा है, शादी को लेकर लोगों के विचार भी बदलते जा रहे हैं। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिए, शादी का मतलब और शादी के बारे में राय अलग-अलग है। आजकल लोग शादी को परेशानी समझते हैं लेकिन ऐसा क्यों है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विवाह भंग या तलाक का होना कई बातों पर निर्भर करता है। छोटी सी बात पर शुरू हुआ झगड़ा तलाक की दहलीज तक पहुंच जाता है। जिस जोड़े को आप कुछ समय पहले तक साथ देखते हैं वो आजकल अलग-अलग रहते हैं।

ज्योतिष में हमें तलाक के संकेत देखने को मिलते हैं; बस जरूरत है कुंडली का विश्लेषण करके उन्हें समझने की। एक व्यक्ति की जन्म कुंडली से वास्तव में तलाक के संकेत का पता लगाया जा सकता है। कुंडली में सूर्य, मंगल, शनि और राहु जैसे ग्रह विवाह तोड़ने वाले या तलाक कराने वाले ग्रह होते हैं। विवाह और तलाक की भविष्यवाणी करते समय शुक्र और बृहस्पति की स्थिति पर विचार करना आवश्यक है। इसका विश्लेषण केवल एक योग्य ज्योतिषी ही कर सकता है।

पति-पत्नी के बीच तलाक के ज्योतिषीय कारण और निवारण - Astrological Reasons and Remedies for Divorce between Husband and Wife

पति-पत्नी के बीच झगड़ा और तलाक कुंडली में पंचमेश, सप्तमेश, अष्टमेश, द्वादशेश की स्थिति पर निर्भर करता है। पांचवें, सातवें, आठवें व बारहवें भाव के बल, और इन भावों के कारक ग्रह पर निर्भर करता है। सर्वाधिक रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि सप्तम भाव और सप्तम भाव का स्वामी किस स्थिति में है कहीं वह पापी व क्रूर ग्रहों से पीड़ित तो नहीं है। सप्तम भाव में सूर्य, मंगल, शनि व राहू की उपस्थिति या सप्तमेश का नीच स्थान में बैठकर पापी व क्रूर ग्रह से पीड़ित होना तलाक या अलग होने के साथ झगड़े का कारण बनता है।

सातवें भाव का स्वामी कुंडली में द्वितीय भाव में हो, लग्न में सूर्य हो, शुक्र सूर्य से दृष्ट हो और गुरु शनि से दृष्ट हों तो लड़ाई झगडे के साथ-साथ सम्बन्ध विच्छेद होता है।  

सूर्य सप्तम भाव में हो, उस पर किसी पाप गृह की दृष्टि पद रही हो तो पति-पत्नी की आपस में नहीं बनती।

जब भी किसी जातक की कुंडली में शुक्र और जातिका की कुंडली में गुरु पीड़ित होता है तो वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता। 

सातवें भाव में बैठे द्वादशेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है। बारहवें भाव में बैठें सप्तमेश से राहु की युति हो तो तलाक होता है। पंचम भाव में बैठे द्वादशेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है। पंचम भाव में बैठे सप्तमेश से राहू की युति हो तो तलाक होता है।

सातवें भाव का स्वामी और बाहरवें भाव का स्वामी अगर दसवें भाव में युति करता हो तो में तलाक होता है। सातवें भाव में पापी ग्रह हों व चंद्रमा व शुक्र पापी ग्रह से पीड़ित हो तो पति-पत्नी के तलाक लेने के योग बनते हैं।

सप्तमेश व द्वादशेश छठे आठवें या बाहरवें भाव में हो और सातवें घर में पापी ग्रह हों तो तलाक के योग बनते है। सातवें घर में बैठे सूर्य पर शनि के साथ शत्रु की दृष्टि होने पर तलाक होता है।

तलाक से बचने के उपाय - Ways to Avoid Divorce

ज्योतिष के अनुसार इन समस्याओं से मुक्ति पाने का सबसे आसान और सरल समाधान है रुद्रावतार हनुमान जी की आराधना। जैसे हनुमानजी ने भगवान राम और सीता माता का मिलन करवाया। उर्मिला व सीता के सुहाग की रक्षा की, वैसे ही हनुमान जी की पूजा से जीवनसाथी से मनमुटाव या बिच्छेद नहीं होता है। चाहे सप्तम भाव में सूर्य, मंगल, शनि व राहू की उपस्थिति या युति ही क्यों न हो हनुमान जी की शरण जाकर दांपत्य जीवन सामान्यतः सुखद बनाया जा सकता है।

  • तलाक की स्थिति को शत प्रतिशत समाप्त करने के लिए एक-एक दाना 12मुखी + 11मुखी + 10मुखी + गौरीशंकर + 8मुखी +7मुखी + 6मुखी रुद्राक्ष प्राण प्रतिष्ठित करवाकर पहनें।
  • दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर से प्राप्त सिंदूर जीवनसाथी के चित्र पर लगाएं।
  • पति को हर शुक्रवार अपनी पत्नी को कोई न कोई उपहार लाना चाहिए।
  • राहू के कारण तलाक की स्थिति में सात शनिवार शाम के समय दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में 7 नारियल चढ़ाएं।
  • हर गुरुवार केले के पौधे की पूजा करने से भी लाभ मिलता है।
  • शिवलिंग पर हल्दी की गांठ चढ़ाकर वैवाहिक जीवन में शांति बनाए रखने की प्रार्थना करें।
  • रोज हनुमान चालीसा पढ़ें और संभव हो तो मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करें।
  • तांबे के गिलास में पानी पिएं, बंदरों को गुड़ चना खिलाएं।
  • पशु-पक्षियों की सेवा करें और बड़ों का सम्मान करें, किसी से कड़वे वचन न बोलें।
  • मंगलवार के दिन लाल रंग की मसूर की दाल या गुड़ किसी जरूरतमंद को दान करें।
  • शनि के कारण तलाक की स्थिति में सात शनिवार हनुमान जी के चित्र के सामने गुड़ का भोग लगाकर काली गाय को खिलाएं।
  • मंगलवार को हनुमान जी के लिए उपवास करें, व्रत के दिन नमक का सेवन न करें।
  • मंगल के कारण तलाक की स्थिति में सात मंगलवार तांबे के लोटे में गेहूं भरकर उस पर लाल चन्दन लगाकर लोटे समेत हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।
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Ekadashi Vrat 2026: जानें साल 2026 में एकादशी व्रत का महत्व और तिथियां

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Ekadashi Vrat 2026 Date: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत न केवल पुण्य प्रदान करने वाला है, बल्कि मन की शुद्धि और आत्मिक उन्नति का भी साधन है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी का पालन किया जाता है, जो चंद्रमा के उज्ज्वल (शुक्ल) तथा अंधकारमय (कृष्ण) दोनों पक्षों में आती है। इस लेख में हम आपको साल 2026 की सभी एकादशी व्रत तिथियों (Ekadashi Vrat 2026 Date) के साथ-साथ उनके महत्व, पूजा विधि और व्रत कथाओं की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

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एकादशी व्रत का आध्यात्मिक महत्व - Spiritual significance of Ekadashi Vrat

हिंदू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि एकादशी व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।एकादशी व्रत को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की उपासना के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है। यह भी मन जाता है कि इस दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और साधक को मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यह तिथि पर शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का अद्भुत अवसर प्रदान करती है। यह व्रत मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है। इस दिन व्रती अन्न का त्याग करके फलाहार करते हैं और दिनभर भगवान विष्णु की आराधना व भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा एवं ध्यान करने से जीवन में सुख, शांति और वैभव मिलता है।

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एकादशी व्रत के प्रमुख लाभ - Major Benefits of Ekadashi Vrat

मन और आत्मा की शुद्धि होती है, जिससे भक्त के जीवन में सकारात्मकता आती है। इसके अलावा शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है। इस व्रत को करने से तनाव कम होता है, एकाग्रता और मानसिक शांतता का अनुभव मिलता है। यह भी कहा जाता है कि इस बारात को करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माना गया है। रोग प्रतिरोधक क्षमता और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है। वजन नियंत्रण और रक्तचाप संतुलन में मदद करता है। आयुर्वेदिक दृष्टि से, उपवास से त्रिदोष संतुलन (वात, पित्त, कफ) मिलता है। अनुशासन, संयम एवं नियमित जीवनशैली विकसित होती है।

2026 में एकादशी व्रत की महत्वपूर्ण तिथियां - 2026 Ekadashi List

आइये जानते है साल 2026 में जनवरी से दिसंबर तक के एकादशी व्रत कि तिथियां, नाम और दिन कौन सा है…

जनवरी 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat January 2026

  • 14 जनवरी 2026, दिन: बुधवार- षटतिला एकादशी
  • 29 जनवरी 2026, दिन: गुरुवार- जया एकादशी 

फरवरी 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat February 2026

  • 13 फरवरी 2026, दिन: शुक्रवार- विजया एकादशी 
  • 27 फरवरी 2026, दिन: शुक्रवार- आमलकी एकादशी 

मार्च 2026 में एकादशी व्रत  | Ekadashi Vrat March 2026

  • 15 मार्च 2026, दिन: रविवार- पापमोचनी एकादशी 
  • 29 मार्च 2026, दिन: रविवार- कामदा एकादशी 

अप्रैल 2026 में एकादशी व्रत  | Ekadashi Vrat April 2026

  • 13 अप्रैल 2026, दिन: सोमवार- वरूथिनी एकादशी 
  • 27 अप्रैल 2026, दिन: सोमवार- मोहिनी एकादशी 

मई 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat May 2026

  • 13 मई 2026, दिन: बुधवार- अपरा एकादशी 
  • 27 मई 2026, दिन: बुधवार- निर्जला एकादशी

जून 2026 में एकादशी व्रत  | Ekadashi Vrat June 2026

  • 11 जून 2026, दिन: गुरुवार- योगिनी एकादशी 
  • 25 जून 2026, दिन: गुरुवार- देवशयनी एकादशी

जुलाई 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat July 2026

  • 10 जुलाई 2026, दिन: शुक्रवार– योगिनी एकादशी 
  • 25 जुलाई 2026, दिन: शनिवार- देवशयनी एकादशी

अगस्त 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat August 2026

  • 09 अगस्त 2026, दिन: रविवार- कामदा एकादशी 
  • 23 अगस्त 2026, दिन: रविवार, पवित्रा एकादशी

सितंबर 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat September 2026

  • 07 सितंबर 2026, दिन: सोमवार- अजा एकादशी
  • 22 सितंबर 2026, दिन: मंगलवार- पद्मा एकादशी

अक्टूबर 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat October 2026

  • 06 अक्टूबर 2026, दिन: मंगलवार- इंदिरा एकादशी
  • 22 अक्टूबर 2026, दिन: गुरुवार- पापांकुशा एकादशी 

नवंबर 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat November 2026

  • 05 नवंबर 2026, दिन: गुरुवार- रमा एकादशी 
  • 20 नवंबर 2026, दिन: शुक्रवार, देवप्रबोधिनी एकादशी 

दिसंबर 2026 में एकादशी व्रत | Ekadashi Vrat December 2026

  • 04 दिसंबर 2026, दिन: शुक्रवार- उत्पत्ति एकादशी
  • 20 दिसंबर 2026, दिन: रविवार- मोक्षदा एकादशी 

यह सभी थीं एकादशी व्रत 2026 की प्रमुख तिथियां (Important dates of Ekadashi fasting in 2026)। प्रत्येक एकादशी का अपना एक विशेष आध्यात्मिक महत्व है और इन व्रतों को रखने से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एकादशी व्रत की पूजा विधि - Ekadashi Vrat Puja Vidhi

  • सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और ब्रह्म मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु की पूजा में पीले पुष्प, तुलसी के पत्ते और पंचामृत का उपयोग करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
  • इस दिन अन्न, मांस, लहसुन, प्याज और शराब से दूरी बनाएं, केवल फलाहार करें।
  • रात्रि जागरण करते हुए भगवान विष्णु की कथाएं सुनें और भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन प्रातः में ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें।

यह है कि एकादशी व्रत कथा - Ekadashi Vrat Katha

प्राचीन काल में एक राजा अम्बरीष, विष्णु के परम भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें मोक्ष का वरदान दिया। असुर मुरासुर का संहार करते समय भगवान के शरीर से एकादशी देवी प्रकट हुईं, जिन्होंने मुरासुर को नष्ट किया। तब भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी एकादशी व्रत करेगा, उसे मोक्ष प्राप्त होगा।

दूसरी ओर, एक समय की बात है, असुरों के राजा मुरासुर ने पृथ्वी पर आतंक फैलाया था। भगवान विष्णु जी जब उससे युद्ध कर रहे थे, तो उनके शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, जिसे एकादशी देवी कहा गया। इस देवी ने मुरासुर का वध किया। इसके उपरांत भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया कि जो भी इस दिन व्रत करेगा, उसे सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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एकादशी व्रत के नियम - Ekadashi Vrat ke Rule

  • व्रती लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • इस दिन क्रोध, हिंसा और नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
  • दान-पुण्य इस दिन करें, जिससे व्रत का फल बढ़ता है।
  • तुलसी के पत्ते बिना भगवन विष्णु कि पूजा अधूरी मानी जाती है।

Ekadashi Vrat 2026 न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम है, बल्कि मानसिक शांति, संयम एवं धैर्य की प्रेरणा भी देता है। इस एकादशी व्रत से जीवन में शक्ति और सकारात्मकता आती है।

यदि आप भी साल 2026 में एकादशी व्रत रखना चाहते हैं, तो इस शुभ तिथियों पर कर सकते है। यह लेख में दी गई सम्पूर्ण जानकारी आपको एक सही मार्गदर्शन देगी। 

"एकादशी व्रत के दौरान: "हरे कृष्ण, हरे राम, या "श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय मंत्रो" का जाप करना चाहिए।

FAQs

साल 2026 में पहली एकादशी कब है?

इस साल पहली एकादशी 14 जनवरी को है जिसका नाम है षटतिला एकादशी।

2026 कि अंतिम एकादशी कौन सी है?

मोक्षदा एकादशी साल 2026 कि अंतिम एकादशी है।

गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय – क्लेश नाशक मंत्र | गृह क्लेश निवारण यन्त्र

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गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय - घर परिवार में क्लेश होना एक आम बात हैं। घर में कभी ना कभी कोई ना कोई कारण से क्लेश होता रहता हैं लेकिन जब यह क्लेश अधिक बढ़ जाता हैं, तो परिवार के सदस्य अपना आपा खो बैठते हैं और झगड़ा तथा मारामारी पर उतर आते हैं। तब बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती हैं।

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इसमें घर का मुखिया अधिक दुखी होता हैं। अगर आप भी गृह क्लेश से परेशान हैं तो गृह क्लेश निवारण के कुछ मंत्र और उपाय हम इस ब्लॉग में बताने वाले है। इस महत्वपूर्ण जानकारी को जानने के लिए हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय बताने वाले हैं। इसके अलावा गृह क्लेश के कारण तथा गृह क्लेश निवारण यन्त्र के बारे में भी बताएगे। तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते है।

गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय – क्लेश नाशक मंत्र

गृह क्लेश दूर करने के कुछ उपाय तथा मंत्र हमने नीचे बताए हैं:

  • अगर आपका आपके परिवार के किसी सदस्य के साथ अधिक क्लेश हो रहा हैं, तो शनिवार के दिन पीपल का पत्ता लेकर। उस पर उस सदस्य का नाम लिखकर “ओम हनुमंते नम:” मंत्र का 21 बार जाप करे। अब इस पत्ते को घर के किसी भी कोने में छिपा दे। जहां किसी की नजर न पड़े। इसके साथ हनुमानजी का दिन भर ध्यान धरते रहे। यह उपाय करने के पश्चात कुछ ही दिनों में गृह क्लेश से मुक्ति मिल जाएगी।
  • घर में पोछा लगाते समय नमक डालकर पोछा लगाए। इससे घर में हो रहा गृह क्लेश दूर हो जाता हैं।
  • गृह क्लेश दूर करने के लिए हनुमान जी की पूजा आराधना करनी चाहिए तथा हनुमानजी के व्रत आदि करने से घर में हो रहा गृह क्लेश दूर हो जाता हैं।
  • घर की दहलीज के अंदर जूते-चप्पल रखने से तथा बिस्तर पर बैठकर खाने से गृह क्लेश अधिक होता हैं। इसलिए गृह क्लेश दूर करने के लिए जूते-चप्पल दहलीज के बाहर रखे तथा बिस्तर पर बैठकर खाना न खाए। यह उपाय करने से काफी हद तक गृह क्लेश दूर हो जाएगा।

गृह क्लेश निवारण यन्त्र

परिवार में काफी बार गृह क्लेश हो जाता हैं और थोड़े समय बाद समाप्त भी हो जाता हैं। लेकिन कई बार गृह क्लेश इतना अधिक बढ़ जाता हैं की जिसे रोकना मुश्किल हो जाता हैं। ऐसे गृह क्लेश को रोकने के लिए आप अपने घर में बीसा यंत्र की स्थापना कर सकते हैं। जिससे आपका गृह क्लेश दूर हो जाएगा और घर में खुशियां आएगी।

गृह क्लेश के कारण

गृह क्लेश होने के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

  • अगर पितृ दोष है, तो घर में गृह क्लेश उत्पन्न हो सकता हैं।
  • अगर परिवार किसी भी सदस्य में संस्कार का अभाव है तो ऐसे परिवार में गृह क्लेश होता हैं।
  • परिवार में दारू, शराब, सिगरेट आदि का सेवन हो रहा हैं तो इस कारण गृह क्लेश हो सकता है। 
  • परिवार में आपसी प्रेम नहीं होने की वजह से भी गृह क्लेश होता हैं।
  • अगर ग्रह दोष अड़चन रूप बन रहा हैं. तो उस कारण से भी गृह क्लेश होता हैं। 
  • कुछ सदस्य खुद को घर का मुखिया समझकर सभी पर हुकुम चलाते हैं। ऐसी परिस्थिति में गृह क्लेश होता हैं। 
  • काफी बार परिवार के सदस्यों में वैचारिक मतभेद होता हैं। इस कारण भी गृह क्लेश होता हैं। 
  • घर के कुछ सदस्य महिलाओं का अपमान या अनादर करते हैं। इस कारण भी गृह क्लेश होता हैं। 

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय बताए हैं। इसके अलावा गृह क्लेश के कारण तथा गृह क्लेश निवारण यन्त्र के बारे में भी बताया हैं। हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ है तो आगे जरुर शेयर करे।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह गृह क्लेश दूर करने का मंत्र और अचूक उपाय – क्लेश नाशक मंत्र - गृह क्लेश निवारण यन्त्र ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs

घर में बहुत क्लेश हो तो क्या करें?

घर में क्लेश बढ़े तो उस टाइम शांतिपूर्वक बातचीत करें, हर दिन भगवान का नाम लें, घर में दीपक जलाकर और शांति प्रार्थना करें, अव्यवस्था दूर करें, पानी में नमक डालकर घर में पोछा लगाएँ और हमेशा सकारात्मक सोच व सहयोग से अपने वातावरण को सुधारें।

घर के क्लेशों को निवारण करने के लिए कौन सा मंत्र है?

घर के क्लेश दूर करने के लिए इस मंत्र "ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।। का जाप अच्छा माना जाता है। इस मंत्र को डेली सुबह-शाम 108 बार जपने से घर में शांति, सद्भाव और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है।

घर में क्लेश को दूर करने के लिए क्या उपाय हैं?

घर में क्लेश दूर करने के लिए प्रतिदिन दीपक जलाएँ, नमक मिले पानी से ही पोछा लगाएँ, भगवान का याद करें, शांतिपूर्वक बात चीत करें।

घर में रोज लड़ाई झगड़ा हो तो क्या करें?

यदि घर में रोज लड़ाई और झगड़ा हो तो सबसे पहले आपको शांत भाव से आपस में बातचीत करें, एक-दूसरे की बात को समझें, हर दिन दीपक जलाएँ, अव्यवस्था दूर रखें और घर में हमेशा अचछे माहौल बनाने का प्रयास करें।

गृह क्लेश क्यों होता है?

गृह क्लेश ऐसा माना जाता है कि गलतफहमियों, तनाव, संवाद की कमी, घर में नकारात्मक ऊर्जा, आर्थिक दबाव या घर में अव्यवस्था के कारण होता है।

घर में बहुत ज्यादा क्लेश हो तो क्या करें?

घर में बहुत ज्यादा क्लेश हो तो शांतिपूर्वक एक दूसरे से बात करे और शांति का माहौळ बनाये।  

पति-पत्नी में कलेश दूर करने के उपाय

पति-पत्नी में कलेश दूर करने के लिए हमेशा प्यार से बातचीत करें, एक-दूसरे की भावनाएँ समझें ठीक से समझे।

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सूर्य देव की पत्नी कौन है? जानिए संज्ञा और छाया की रहस्यमयी कहानी

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जब भी कोई "सूर्य" का नाम लेता है, हमारे मन में एक विशाल आग के गोले की छवि बनती है — जो हर सुबह उगता है और पूरे जग को रोशनी से भर देता है, लेकिन हिंदू धर्म में यही सूर्य, सूर्य देव के रूप में पूजे जाते हैं — जो प्रकाश, ऊर्जा और जीवन के शाश्वत स्रोत हैं।

वेदों में सूर्य देव के जीवन से जुड़ी कई अद्भुत कहानियाँ मिलती हैं, जिनमें सबसे रोचक है — सूर्य देव की पत्नी संज्ञा और उनकी छाया रूपी प्रतिरूप छाया देवी की कथा। आइए जानते हैं इस दिव्य प्रेम कहानी के रहस्य और छिपे संदेश।

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संज्ञा: सूर्य देव की प्रथम पत्नी

सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा (या समज्ञा, सारण्यु) था। वे विश्वकर्मा जी की पुत्री थीं — वही दिव्य शिल्पकार जिन्होंने स्वर्ग के महल और देवताओं के अस्त्र-शस्त्र बनाए।

संज्ञा अत्यंत तेजस्वी और सुंदर थीं, और सूर्य देव की अर्धांगिनी के रूप में चयनित हुईं, लेकिन सूर्य देव का तेज इतना प्रखर था कि स्वयं देवी संज्ञा भी उसके सामने अधिक देर तक नहीं रह पाती थीं। अपने पति से अत्यंत प्रेम करने के बावजूद, वे उनके तीव्र तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं। अंततः उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया, जिसने देवलोक का संतुलन ही बदल दिया।

छाया का जन्म: सूर्य की "परछाई" पत्नी

सूर्य से दूर जाने से पहले, संज्ञा ने अपनी परछाई यानी छाया को जन्म दिया — एक ऐसी स्त्री जो हूबहू संज्ञा जैसी दिखती थी। छाया ने सूर्य देव के साथ जीवन बिताना शुरू किया। सब कुछ सामान्य लग रहा था, यहाँ तक कि उनके संतान भी हुए —  शनि देव, जो कर्म और न्याय के देवता बने, और तपती, जो एक पवित्र नदी देवी हैं।

लेकिन धीरे-धीरे सूर्य देव को एहसास हुआ कि कुछ तो ग़लत है। वो वही तेज़ तो था, लेकिन वह अपनापन नहीं, और फिर एक दिन छाया के व्यवहार से उन्हें सच्चाई का पता चल गया — कि वे असली संज्ञा के साथ नहीं, उसकी छाया के साथ रह रहे हैं।

सूर्य देव की खोज और विश्वकर्मा का सहयोग

सूर्य देव ने तुरंत संज्ञा की खोज शुरू की। वे आकाश, पर्वत, बादलों — हर लोक में उन्हें ढूँढने लगे। आखिरकार, वे अपने ससुर विश्वकर्मा जी के पास पहुँचे। विश्वकर्मा जी ने बताया कि संज्ञा सूर्य के अत्यधिक तेज से दुखी होकर चली गई थीं। उन्होंने सूर्य देव की मदद की — उनके तेज को थोड़ा कम कर दिया ताकि वे अधिक सौम्य बन सकें।

इसी तेज के अंशों से बने थे दिव्य अस्त्र — विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल, और कार्तिकेय का भाला

पुनर्मिलन: घोड़े का रूप और दिव्य संतानें

सूर्य देव ने अंततः संज्ञा को पाया — वे वन में ध्यानमग्न थीं और घोड़ी का रूप धारण किए हुए थीं। प्रेम से प्रेरित होकर, सूर्य देव ने भी घोड़े का रूप धारण कर लिया।  उनका मिलन अत्यंत भावनात्मक था और इसी से जन्म लिए उनके कई दिव्य संतानें —

  • यमराज — मृत्यु और न्याय के देवता
  • यमुना — पवित्र नदी देवी
  • वैवस्वत मनु — मानव जाति के प्रणेता
  • अश्विनी कुमार — देवताओं के वैद्य

प्रत्येक संतान अपने माता-पिता की दिव्यता का प्रतीक बनी — अनुशासन, पवित्रता, सृजन और उपचार के रूप में।

सूर्य देव की दो पत्नियाँ: प्रकाश और छाया का संगम

शास्त्रों के अनुसार, सूर्य देव की दो पत्नियाँ थीं — संज्ञा और छाया। संज्ञा "चेतना" और "प्रकाश" का प्रतीक हैं, जबकि छाया "धैर्य" और "सेवा" का। दोनों मिलकर जीवन के दो पक्ष दिखाती हैं — प्रकाश और अंधकार, ऊर्जा और शांति

यह कहानी बताती है कि ब्रह्मांड का संतुलन तभी बनता है जब तेज को करुणा से संयमित किया जाए।

गहराई में छिपा संदेश: रिश्तों में संतुलन की सीख

संज्ञा की कहानी सिर्फ़ पौराणिक कथा नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ संदेश है। जहाँ संज्ञा “जागरूकता और आत्मबल” का प्रतीक हैं, वहीं छाया “धैर्य और सहनशीलता” का। इन दोनों के माध्यम से ये सिखाया गया है कि प्रेम में केवल चमक नहीं, समझ और संयम भी आवश्यक है।

शनि देव का जन्म भी इस कथा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है — जो कर्म और न्याय के नियम का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हर कर्म का फल होता है, और विनम्रता ही सच्ची शक्ति है।

पूजा और आस्था: सूर्य उपासना का महत्व

भारत में आज भी सूर्य पूजा अनेक पर्वों और अनुष्ठानों में की जाती है — छठ पूजा, रथ सप्तमी, और मकर संक्रांति जैसे पर्वों पर भक्तजन नदी में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य देव की पूजा से ऊर्जा, सफलता और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

मंदिरों में सूर्य देव को सात घोड़ों के रथ पर सवार दिखाया जाता है, और कई स्थानों पर उनकी पत्नी संज्ञा व छाया भी उनके साथ विराजमान होती हैं।

निष्कर्ष

सूर्य देव, संज्ञा और छाया की यह कथा हमें यह सिखाती है कि हर व्यक्ति के भीतर प्रकाश और छाया दोनों बसते हैं। संज्ञा का साहस और छाया का धैर्य — दोनों मिलकर जीवन की पूर्णता बनाते हैं। जब सूर्य ने अपने तेज को संतुलित करना सीखा, तभी संसार में पुनः सामंजस्य स्थापित हुआ।

सीख यही है — असली चमक तब आती है जब उसे करुणा और समझ से संयमित किया जाए। 🌞

ये है वैवाहिक जीवन (Married Life) में कलह को दूर करने के लिए कुछ उपाय

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वैवाहिक जीवन में कलह एक आम समस्या है जो आपसी समझदारी और सामंजस्य की आवश्यकता को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, वैवाहिक जीवन के साथियों के बीच सुख और समृद्धि का संचालन करने के लिए कठिनाइयों को दूर करने का महत्वपूर्ण उपाय ढूंढना आवश्यक होता है। इस लेख में हम वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के कुछ महत्वपूर्ण उपाय पर चर्चा करेंगे। ये उपाय शांति, समझदारी, सहयोग, संवाद और सम्बंधों को मजबूत बनाने के लिए सहायक हो सकते हैं। इससे वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा।

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परम पूज्य दादाश्री और उनकी धर्मपत्नी हीराबा के वैवाहिक जीवन ने पूरे शांतिपूर्ण, परस्पर सम्मानपूर्ण और विनययुक्त माहौल का निर्माण किया। उनका व्यवहार प्रेमपूर्ण था और उनकी संयमित आचरण ने सभी उनके परिजनों और मित्रों को प्रेरित किया। एक उदाहरण के रूप में, हर दिन हीराबा बाजार जाकर सब्जी लेती थी, तब वे परम पूज्य दादाश्री से पूछतीं, "क्या सब्जी लाऊँ?" और दादाश्री कहते थे, "जो ठीक लगे वही।" इस तरह, दोनों अपने कर्तव्यों को निभाते थे। हीराबा ने अंत तक ईमानदारी से इस प्रथा को निभाया, जहां वे परम पूज्य दादाश्री से सब कुछ पूछती थीं।


उन्होंने प्रत्येक व्यवहार को सिंसियारिटी से पूरा किया। उनके व्यवहार में किसी संयोग या किसी व्यक्ति के कारण कोई बदलाव नहीं आता। दोनों में प्रति पूज्य भाव और समझदारीपूर्ण व्यवहार हमेशा बना रहा। उनके बीच विनम्रता, दिखावटीता और अभिनय नहीं थी, बल्कि वैचारिकता और समझदारी का परिपूर्ण भाव था।


ऊपर दिए गए सन्दर्भ में, परम पूज्य दादाश्री के आदर्श और सुखी वैवाहिक जीवन का सिर्फ एक उदाहरण है। इसलिए, आप भी नीचे दिए गए टिप्स (चाबियां) का उपयोग करके अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बना सकते हैं और वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के उपाय (Remedies for Happy Married Life) प्राप्त कर सकते हैं।


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पति-पत्नी के बजाय मित्र की भांति रहें: Be Friends Instead of Husband and Wife

यह वैवाहिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने का सबसे उत्तम उपाय है। सच्ची मित्रता में कभी भेद नहीं होता। आपके और आपके मित्र के बीच किसी भी बाधा को आने की इजाजत नहीं होती।, उसी तरह पति-पत्नी के बीच भी वैसा ही आदर्श व्यवहार होना चाहिए। यदि आप अपने मित्र का ध्यान नहीं रखेंगे तो आपकी मित्रता लंबे समय तक नहीं टिक सकेगी। दोस्ती का मतलब दोस्ती होता है। पति-पत्नी को मित्र के समान माना गया है। इसीलिए उन दोनों को, दो मित्रों की तरह उनके घर को चलाना चाहिए। पति-पत्नी के बीच व्यवहार में शांति होना चाहिए। यदि इस रिश्ते में दोनों में से किसी एक को भी दुःख हो तो उसे आदर्श पति-पत्नी का संबंध नहीं माना जा सकता। क्या पति-पत्नी को भी यही ध्यान रखना चाहिए कि वे एक दूसरे को दुःख न दें? मित्र इस सिद्धांत पर चिपके रहते हैं, क्या पति-पत्नी को भी इसे अपनाना चाहिए? पति-पत्नि के बीच मित्रता, यही सर्वश्रेष्ठ मित्रता है।


प्रशंसा युक्त शब्दों का उपयोग करें: Use Words of Praise

यह वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने का सबसे सरल उपाय है। अगर आपकी पत्नी आपसे नाराज हो जाए, तो थोड़ी देर रुककर उनसे बात करें, "आप मुझे चाहे कुछ भी कह दो या मुझसे चाहे कितना भी नाराज़ हो जाओ, पर जब आप नहीं होती, तो मुझे आपकी बहुत कमी महसूस होती है।" पत्नी से कहना कि आपको उनके बिना अच्छा नहीं लगता। बस इस तरह आगे बढ़ों और यह "गुरुमंत्र" कहो। (ऐसे शब्द जो परिणामकारक हों) सुखी वैवाहिक जीवन जीने के लिए आपको अपनी पत्नी के साथ प्रेम और प्रशंसा युक्त व्यवहार करना आवश्यक है। ऐसा करने में हर्ज़ ही क्या है? आप अपनी भावनाओं को अपने अंदर ही सीमित रखें, लेकिन कुछ ऐसा कहें जब आप क्रियान्वित होते हैं, 'मुझे आपसे दूर जाना अच्छा नहीं लगता।


सामंजस्य रखें वैवाहिक जीवन में: Keep Harmony in Married Life

किसी भी प्राणी को सुख देने की इच्छा होना अंतिम ज्ञान है, जहां उसे किंचित भी दुःख नहीं होता। विरोधी भी शांत हो जाएगा और यह कहेगा, "हमारे बीच मतभेद है लेकिन साथ ही साथ मेरे मन में आपके प्रति उतना ही आदर भी है।" हालांकि, विरोधी हमेशा रहेगा। सभी का दृष्टिकोण एक समान नहीं होता। सभी के विचार एक समान नहीं हो सकते। घर में, आपका व्यवहार सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए। आपकी पत्नी को ऐसा लगना चाहिए कि आपके जैसा पति उसे नहीं मिल सकता और आपको ऐसा लगना चाहिए कि इसके जैसी पत्नी आपको नहीं मिल सकती, जब ऐसा होगा तभी आपका वैवाहिक जीवन सार्थक कहलाएगा।


दखल करना टालिए: Refrain from Interfering

यह वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के उपाय में से सबसे चतुर उपाय है। जिस प्रकार नौकरी में आपके उत्तरदायित्व की रुपरेखा निश्चित होती है, उसी प्रकार वैवाहिक जीवन में अपनी जिम्मेदारियों की रुपरेखा भी आपके पास होनी चाहिए। एक बार यह स्पष्ट हो जाए कि किसके डिपार्टमेन्ट में क्या आता है, उसके बाद आपको दूसरे के डिपार्टमेंट में दखल नहीं करनी चाहिए। पुरुष को स्त्री के काम में और स्त्री को पुरुष के काम में दखल नहीं करनी चाहिए। दोनों को अपने-अपने डिपार्टमेंट में ही रहना चाहिए। हालांकि यदि आपको लगे कि आपके जीवनसाथी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में नहीं पहुँच पा रहे हैं तो फिर अवश्य ही आपको उनकी मदद करनी चाहिए। तभी आप अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बना पाएँगे।


वफादारी वैवाहिक जीवन में: Loyalty in Marriage

यह सुखी वैवाहिक जीवन के उपाय में से सबसे आवश्यक उपाय है। अपने जीवनसाथी के अलावा किसी दूसरे के साथ आपका शारीरिक संपर्क या संबंध नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ा जोखिम यदि कोई है, तो वह है किसी और के जीवनसाथी से सुख लेना! अपने पति या पत्नी से सुख लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। तभी कहा जा सकेगा कि आप अपने जीवनसाथी के प्रति सिन्सियर हो।


जीवनसाथी के साथ संबंध सुधारें: Improve Relationship with Spouse

एक बार एक पति ने परम पूज्य दादाश्री से शिकायत की कि उनकी पत्नी अपने माता-पिता के साथ रहना नहीं चाहती और उन्हें अपने घर बुलाना भी नहीं चाहती। परम पूज्य दादाश्री ने उनके बीच समाधान करवाया और उन्हें उस प्रकार का मार्गदर्शन दिया जिससे वे अपना संबंध बनाए रख सकें। दादाश्री ने उन्हें सलाह दी कि वे अपनी पत्नी के माता-पिता को आमंत्रित करें और उनका ध्यान रखें। अपनी पत्नी के साथ अपने संबंधों को इस तरह संयोजित करें कि वह खुद ही आपके माता-पिता की देखभाल करने के लिए कहें।


वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के लिए कुछ उपाय: Tips For Married Life

वैवाहिक जीवन में कलह और विवाद आम समस्याएं हैं जो कई बार पति-पत्नी के बीच आपसी समझदारी और संवाद के कमी के कारण होती हैं। यह कलह न केवल दोनों के बीच तनाव उत्पन्न करती है, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को भी प्रभावित करती है। हालांकि, यदि हम विवेकपूर्ण तरीके से इन कलहों का सामना करें और उन्हें हल करने के उपाय ढूंढ़ें, तो वैवाहिक जीवन को सुखद और समृद्ध बनाए रखना संभव होता है। यहां कुछ उपाय हैं जो आपको वैवाहिक कलह को दूर करने में मदद कर सकते हैं:


संवाद: अच्छा संवाद वैवाहिक समस्याओं को हल करने का पहला कदम होता है। पति-पत्नी को खुले मन से बातचीत करनी चाहिए और एक दूसरे की समस्याओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए। संवाद में संयम और सहजता बनाए रखना आवश्यक होता है।


समझौता करें: वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के लिए समझौता करना बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों पति-पत्नी को एक दूसरे की दृष्टिकोण समझने की कोशिश करनी चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि वे किसी समस्या का समाधान केवल इकट्ठे करके ही पा सकते हैं।


साथी के साथ समय बिताएं: व्यस्त जीवन में भी साथी के साथ समय बिताना बहुत महत्वपूर्ण है। विवादों को दूर करने के लिए आप दोनों मिलकर मनोरंजन कर सकते हैं, यात्राएं कर सकते हैं या आपस में रोमांटिक तारिकों से जुड़ सकते हैं।


संतुलन बनाए रखें: वैवाहिक जीवन में संतुलन बहुत महत्वपूर्ण होता है। आपको अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए। अधिकता या कमी के साथ काम करने की क्षमता वैवाहिक जीवन को स्थिर रखने में मदद करती है।


समय-समय पर मनोरंजन करें: वैवाहिक जीवन में मनोरंजन का महत्वपूर्ण स्थान होता है। आपको समय-समय पर मनोरंजन के लिए विशेष समय निकालना चाहिए। मिलकर फिल्म देखना, रंगमंच पर जाना, यात्रा करना आदि वैवाहिक जीवन में मनोरंजन के लिए कुछ सुविधाएं हैं।


सहानुभूति और समर्थन: कभी-कभी हमारे वैवाहिक जीवन में समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिनका हम प्रभाव नहीं देख पाते हैं। इस स्थिति में, हमें दूसरे के साथी के प्रति सहानुभूति और समर्थन बनाए रखने की जरूरत होती है। एक दूसरे की समस्याओं का समय निकालकर समर्थन करना और उन्हें आदर और सम्मान देना वैवाहिक सम्बंधों को मजबूत बनाए रखने में मदद करेगा।


सलाह और परामर्श: कभी-कभी हमारे वैवाहिक जीवन में समस्याओं का समाधान खोजने में हमें मदद की जरूरत होती है। ऐसे में, हमें परामर्श और सलाह लेने के लिए उचित स्थानों की तलाश करनी चाहिए। वैवाहिक सलाहकार, परिवार सलाहकार या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से मिलकर हम समस्याओं का समाधान ढूंढ़ सकते हैं।


वैवाहिक कलहों को दूर करने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं। हालांकि, याद रखें कि हर संबंध अद्वितीय होता है और इन उपायों का प्रभाव भी अलग-अलग हो सकता है। अगर समस्याएं गंभीर हैं और आपको स्वयं के बीच समस्याओं का समाधान नहीं मिल रहा है, तो वैवाहिक सलाहकार या परिवार सलाहकार की सहायता लेने का विचार करें। वे आपको सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं और आपकी सहायता कर सकते हैं ताकि आप अपने वैवाहिक जीवन को सुखद और समृद्ध बनाए रख सकें।

Navratri 2026 - चैत्र नवरात्रि कब शुरू होगी? जानें तिथि, कलश स्थापना पूजा का समय, और महत्व

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Navratri 2026 Real Date: Navratri Sanatan Dharma का प्रमुख त्योहार, क्या आप जानना चाहते हैं कि साल 2026 में नवरात्रि कब (Navratri Kab Hai 2026) होगी? नवरात्रि में हर दिन किस देवी की पूजा की जाएगी, इसकी जानकारी चाहते हैं, तो इस ब्लॉग अंत तक जरूर पढ़ें।

नवरात्रि India में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, जिसे नौ विभिन्न रूपों की देवी शक्ति की पूजा में समर्पित किया जाता है। यह त्योहार नौ दिनों का होता है, जिस दौरान भक्तगण माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। यह पर्व चैत्र और शरद नवरात्रि को पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि यह कम लोग जानते है कि नवरात्रि हर साल में 4 बार होती है - आषाढ़, चैत्र, आश्वयुज, और माघ में। चैत्र महीने की नवरात्रि को बसंत नवरात्रि भी कहा जाता है, आश्वयुज महीने की शारदीय नवरात्रि कही जाती है, और आषाढ़ और माघ की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि हर साल पड़ता है।

navratri-2024

Navrati, 'नौ रातें' का अनुवाद, हिन्दू धर्म के सबसे धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है, जिसमें सर्वोत्तम देवी दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की पूजा होती है। वर्ष 2026 में, चैत्र नवरात्रि 19 मार्च को प्रारंभ होगी और 27 मार्च को समाप्त होगी। भक्तों के लिए, नवरात्रि एक आध्यात्मिक नवीनीकरण और माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने का बहुत ही अच्छा समय होता है।

चैत्र नवरात्रि 2026 कब है? / 2026 Mein Navratri Kab Hai

हिन्दू पंचांग के विक्रम संवत 2080 में, चैत्र नवरात्रि का आरंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा (पहले दिन) से प्रारंभ होगी। ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार, इसे मार्च-अप्रैल में मनाया जाएगा।

नवरात्रि 2026 की मुख्य तिथियाँ पूजा शुभ समय | Navratri 2026 March

चैत्र नवरात्रि घटस्थापना शुभ मुहूर्त- घटस्थापना/कलश स्थापना (देवी का आवाहन): 19 मार्च, 2026, गुरुवार (Chaitra Navratri 2026 Date)। नवरात्रि 2026 कब है और शुभ समय क्या है?

  • नवरात्रि प्रारंभ तिथि: 19 मार्च 2026, गुरुवार
  • नवरात्रि समाप्ति तिथि: 27 मार्च 2026, शुक्रवार
  • घटस्थापना मुहूर्त - 19 मार्च, 2026, गुरुवार, सुबह 6:52 AM से लेकर 07:43 AM बजे तक
  • कलश स्थापना का समय – 00 घंटे 50 मिनट
  • घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 19 मार्च, 2026, गुरुवार, पहले पहर 12:05 PM से 12:53 PM बजे तक
  • कुल अवधि00 घंटे 48 मिनट
  • प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 19 मार्च 2026, शाम 06:52 PM बजे
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त - 20 मार्च 2026, 04:52 PM बजे

चैत्र नवरात्रि शीतकाल के समापन के बाद बसंत ऋतु के दौरान मनाई जाती है। इन शुभ नौ दिनों और दस रातों में अच्छाई का जश्न मनाया जाता है। इस नवरात्रि के दौरान भक्तगण माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं।

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2026 में चैत्र नवरात्रि कब है?

2026 Me Chaitra Navratri Kab Hai: भक्त वर्षभर चैत्र नवरात्रि का उत्साह से प्रतीक्षा करते हैं, जो देवी दुर्गा को समर्पित एक त्योहार है। यह विक्रम संवत के पहले दिन से शुरू होता है, विशेषकर चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से, और नौ दिनों तक नवमी तिथि तक चलता है। चैत्र नवरात्रि गर्मी के मौसम की शुरुआत की संकेत करता है, जिससे प्राकृतिक आब-ओ-हवा में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। यह सामान्यत: मार्च या अप्रैल में होता है, चैत्र शुक्ल प्रथम से शुरू होने वाला चैत्र नवरात्रि, राम नवमी के शुभ दिन पर समाप्त होता है।

2026 Me Navratri Kab Hai: चैत्र नवरात्रि का अंतिम दिन, नवमी तिथि, भगवान श्रीराम की जयंती की स्मृति होती है, जिसे रामनवमी कहा जाता है। विश्वास के अनुसार, इस शुभ दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम का जन्म माता कौशल्या के गर्भ से हुआ था। इस संबंध के कारण ही चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि भी कहा जाता है।

  • प्रतिपदा चैत्र नवरात्रि: माँ शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना: 19 मार्च 2026, Thursday / गुरुवार
  • द्वितीय चैत्र नवरात्रि: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा, 20 मार्च 2026, Friday / शुक्रवार
  • तृतीया चैत्र नवरात्रि: माँ चंद्रघंटा पूजा, 21 मार्च 2026, Saturday / शनिवार
  • चतुर्थी चैत्र नवरात्रि: माँ कुष्मांडा पूजा, 22 मार्च 2026, Sunday / रविवार
  • पंचमी चैत्र नवरात्रि: माँ स्कंदमाता पूजा, 23 मार्च 2026, Monday / सोमवार
  • षष्ठी चैत्र नवरात्रि: माँ कात्यायनी पूजा, 24 मार्च 2026, Tuesday / मंगलवार
  • सप्तमी चैत्र नवरात्रि: माँ कालरात्रि पूजा, 25 मार्च 2026, Wednesday / बुधवार
  • अष्टमी चैत्र नवरात्रि: माँ महागौरी दुर्गा महाष्टमी पूजा, 26 मार्च 2026, Thursday / गुरुवार
  • नवमी चैत्र नवरात्रि: माँ सिद्धिदात्री दुर्गा महानवमी पूजा, 27 मार्च 2026, Friday / शुक्रवार

चैत्र नवरात्रि का महत्व

हिन्दू नववर्ष की शुरुआत: चैत्र नवरात्रि शुद्धि, नवीनीकरण, और हिन्दू पंचांग वर्ष के पहले दिन नए आरंभ की सूचना करती है। ये नौ रातें नववर्ष की शुरुआत के लिए नौ ऊर्जा स्रोतों को प्रतिष्ठित करने का प्रतीक हैं, जिसमें दिव्य आशीर्वाद से नए वर्ष की शुरुआत होती है।

नारीशक्ति का उत्सव: नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की पूजा होती है, जो 'शक्ति' या प्राकृतिक ब्रह्मांड ऊर्जा का प्रतीक है जो ब्रह्मांड को मार्गदर्शित करती है और सभी जीवन को संभालती है।

अच्छाई की विजय असुरी शक्तियों पर: अपने नौ स्वरूपों के माध्यम से, देवी दुर्गा असुरी शक्तियों को समाप्त करने की अनगिनत शक्ति का प्रतीक है - एक कल्पना जो अच्छाई की विजय को दुनिया में और मानव मानसिकता में अंतर्निहित रूप से दर्शाती है।  

नवरात्रि 2026 का महत्व

नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इस अवधि के दौरान, भक्तगण ईमानदार भक्ति और पूजा व्यक्त करते हैं, और इन शुभ दिनों को नए और महत्वपूर्ण प्रयासों की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं।

नवरात्रि, सनातन धर्म में एक धार्मिक त्योहार है, जो अधिकांश हिन्दुओं द्वारा श्रद्धांजलि के साथ मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, नवरात्रि नए वर्ष की शुरुआत से लेकर राम नवमी तक का समय होता है। भक्तगण नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित, पाठ, और विभिन्न धार्मिक आचार-विधियों में शामिल होते हैं ताकि वे देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। इस पाठ में, माता दुर्गा के नौ रूपों के प्रकट होने से लेकर उनके दुष्टता पर विजय तक का सम्पूर्ण विवरण दिया गया है। नवरात्रि के दौरान देवी की स्तुति में रुचि रखने से कहा जाता है कि आदिशक्ति की विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। कई भक्त नवरात्रि के दौरान उपासना करते हुए व्रत रखते हैं ताकि वे देवी को प्रसन्न कर सकें।

नवरात्रि अनुष्ठान और रीति-रिवाज

चैत्र नवरात्रि के साथ कई अर्थपूर्ण रीति-रिवाज और परंपराएँ जुड़ी हुई हैं, जैसे:

घटस्थापना: पहले दिन का यह रीति-रिवाज देवी दुर्गा की आराधना में संलग्न है और एक छोटे मिट्टी के पात्र में जौ के बीज बोना जाता है ताकि देवी की उपजाऊ और विकास-दाता गुणों को पुकारा जा सके। यह पात्र ब्रह्मांड का प्रतीक है और आराधना का विषय है।

उपवास और भोजन: भक्तगण अनिष्ट आहार से बचने और पूजा अनुष्ठान में भाग लेने के रूप में रीतिवाजी उपवास करते हैं। विशेष पूजाओं के बाद अष्टमी/महा अष्टमी के दिन उपवास तोड़ा जाता है। त्योहार भोजन और उत्सवों में समाप्त होता है।

डांडीया रास/गरबा नृत्य: गुजरात के स्थानीय लोक नृत्य हैं जो होलिका दहन और देवी दुर्गा के चारित्रिक किस्सों को दर्शाते हैं। ये नृत्य नारी सौंदर्य को प्रतिष्ठित करते हैं और नवरात्रि के जीवंत सांस्कृतिक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

कन्याक पूजन: अष्टमी या नवमी के दिन, नौ युवतियां जो दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक हैं, पूजनीय होती हैं। देवी के प्रतीक के रूप में, लड़कियों को उत्सवी भोजन का आनंद लेने का और उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है।

रामलीला और राम पूजा: राम नवमी उन्नीस दिनों के बाद मनाई जाती है जब भगवान राम की जन्मोत्सव की श्रद्धांजलि के रूप में, चैत्र नवरात्रि का समापन होता है, जिसमें भगवान राम के जीवन के बारे में भाषण और रामायण के महाकाव्य की कुछ दृश्यों का नाटक होता है।

नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूप / 9 Days of Navratri Devi Names 

नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, पूजा नौ रूपों की देवी दुर्गा को समर्पित की जाती है, जो निम्नलिखित हैं:

  1. मां शैलपुत्री, मां दुर्गा के नौ रूपों में पहली प्रतिष्ठा है, जो चंद्रमा का प्रतीक है। मां शैलपुत्री की पूजा का मानना है कि चंद्रमा से संबंधित कष्टों को दूर करता है।
  2. मां ब्रह्मचारिणी को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से मंगल के नियंत्रण से जोड़ा गया है। मां देवी की पूजा का मानना है कि मंगल के दुष्ट प्रभाव को कम करता है।
  3. मां चंद्रघंटा, दुर्गा देवी का तीसरा स्वरूप, शुक्र ग्रह पर नियंत्रण के साथ जुड़ा हुआ है। इसकी पूजा से विशेषकर शुक्र से जुड़े अनुकूल प्रभावों को कम करने का मानना है।
  4. मां कुष्मांडा, दिव्य प्रतिष्ठा, भगवान सूर्य का मार्गदर्शन करती है। उसकी पूजा से सूर्य के अशुभ प्रभावों से सुरक्षा मिलने का मानना है।
  5. देवी स्कंदमाता की पूजा से माना जाता है कि बुद्धिमत्ता और बुरे प्रभावों को दूर किया जा सकता है जो बुध ग्रह से जुड़े हैं।
  6. माता कात्यायनी के प्रति भक्ति से जुपिटर से जुड़े अशुभ प्रभावों को दूर करने का मानना है।
  7. माता कालरात्रि शनि ग्रह पर नियंत्रण करती है, और इसकी पूजा से शनि देव के अशुभ प्रभावों को दूर करने का मानना है।
  8. गोडेस महागौरी की पूजा करने से माना जाता है कि इससे राहु से जुड़े दोषों को ठीक किया जा सकता है।
  9. गोडेस सिद्धिदात्री को केतु ग्रह का नियंत्रण करने का मानना है और उसकी पूजा से केतु के अनुकूल प्रभावों से बचा जा सकता है।

नवरात्रि के रंग: Navratri Colours 2026 List

2026 Navratri Colour: नवरात्रि के नौ दिनों को प्रतिष्ठित रंगों से प्रतिष्ठानित किया जाता है जो भक्तगण प्रत्येक दुर्गा के प्रति पूजा के दौरान पहनते हैं। इन रंगों का संकेत देवी की अद्वितीय गुणों को दर्शाता है और इनका अपना विशेष महत्व होता है।

  1. पहले दिन का रंग - पीला/नारंगी: नए आरंभों के लिए चमक और आशावाद को प्रतिष्ठित करता है, साथ ही समृद्धि की सोने की चमक
  2. दूसरे दिन का रंग - हरा: पुनर्नवीनी, विकास, प्रजनन, और प्राकृतिक हरियाली को प्रतिष्ठित करता है
  3. तीसरे दिन का रंग - स्लेटी: राख से भगवानी शक्ति में परिणाम होने की संकेत है, नकारात्मकता को हटाना
  4. चौथे दिन का रंग - नारंगी: उत्साह और क्रिया का रंग, गरम, प्रेमपूर्ण तरंगें फैलाने वाला
  5. पाँचवे दिन का रंग सफ़ेद: सफ़ेद रंग में सर्वाधिक चिकित्सा ऊर्जा, अनंत, व्यापकता, और शांति को प्रतिष्ठित करता है
  6. छठे दिन का रंग - लाल: शांति, शुद्धता, प्रकाश, बोध, और स्पष्टता, आंतरिक आत्मा को शांत करने के लिए
  7. सातवे दिन का रंग - गहरा नीला: निर्मल प्रेम, समरसता, और खिलती हुई सौंदर्य
  8. आठवें दिन का रंग - गुलाबी: विस्तारशील अंतरिक्ष और मुक्तिदायक गुण, जीवन में बादल और आसमान की तरह ऊंचा उड़ने के लिए
  9. नौवें दिन का रंग - बैंगनी: सागरिक अग्नि, साहस, त्याग, और अहंकार को हटाने की प्रतिष्ठा करने वाला

नवरात्रि कलश के अंदर क्या रखें?

साकार नवरात्रि कलश मां दुर्गा की गर्भ माता को प्रतिष्ठित करता है। इसे धार्मिक रूप से स्थापित किया जाता है और इसमें मां दुर्गा के साकार स्वरूप के रूप में दिव्य जीवन ऊर्जा को आमंत्रित किया जाता है।

कलश में रखे जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण आइटम्स में शामिल हैं:

  • कलश (Kalash): मां दुर्गा की प्रतिष्ठा के लिए प्रयुक्त एक बड़ा पानी भरा हुआ कलश, कलश के किनारे रखे जाने वाले देवी-देवता के छोटे मूर्तियां।
  • गंध (Gandh): सुगंधित तेल या इत्र, जो पूजा में उपयोग के लिए होता है, आम के पत्ते और नारियल, जो समृद्धि और प्रजनन का प्रतीक हैं।
  • सुपारी (Supari): एक या एक से अधिक सुपारियां, जो शुभ फल की प्रतीक्षा करती हैं, कपड़ा और पवित्र धागा।
  • लौंग (Laung): एलायची या लौंग के दाने, जो खुशबू और शुभता को प्रतिष्ठित करते हैं।
  • रोली (Roli): लाल रंग की पुदीना, पूजा में उपयोग होने वाला।
  • मोली (Moli): एक सूत्र या धागा, जो प्रतिष्ठितता और सुरक्षा को प्रतिष्ठित करता है।
  • चावल (Chawal): अच्छी से अच्छी तरह से सफेद चावल।
  • दूध (Doodh): पूजा के लिए अर्पित किया जाने वाला दूध।
  • फूल (Phool): फ्रेग्रेंट फूल, जो पूजा के लिए योग्य होते हैं, शुभ सामग्री जैसे अक्षत, हल्दी, कुंकुम, फूल।
  • पंचामृत (Panchamrit): दही, शहद, गंध, दूध और घी का मिश्रण, जो देवी पूजा के लिए बनाया जाता है।

इस सुंदर व्यवस्था को फिर देवी दुर्गा के चारों ओर घूमा जाता है, मंत्र जाप करते हुए ताकि जीवन ऊर्जा को कलश में आमंत्रित किया जा सके। यह रिटुअल भक्तों को याद दिलाता है कि दिव्यता सभी सृष्टि में व्याप्त है।

घटस्थापना अनुष्ठान सही ढंग से कैसे करें?

यहां नवरात्रि कलश स्थापना समारोह को सही तरीके से कैसे आयोजित करें, उसका विवरण है:

  • एक शुभ तिथि और हिन्दू पंचांग से शुभ मुहूर्त चुनें, जैसे कि प्रतिपदा तिथि।
  • समागम स्थल की सफाई: सबसे पहले, नवरात्रि कलश स्थापना का स्थान साफ़ करें। सारी अनिवार्य सामग्री तैयार रखें।
  • कलश को अच्छे से तैयार करें: पहले से ही धोकर साफ करें और उपरोक्त वस्त्रों को पट्टी में बाँधकर उसे अच्छे से सजाकर रखें।
  • कलश में सामग्री डालना: कलश में स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री ठीक से तैयार करें और कलश में स्थित करें।
  • एक साफ चंगरी (छोटी चटाई) चुनें: इसे पूर्व या उत्तर की दिशा में रखें और उस पर कलश रखें।
  • कलश के पास पूर्व दिशा में जौ के बीज बोएं: इससे नई जीवन की शुरुआत का प्रतीक होता है।
  • मंत्रों के साथ चारों ओर घूमना: कलश स्थापना के बाद, चारों ओर घूमते हुए मंत्रों का जाप करें और देवी दुर्गा की कृपा को आमंत्रित करें।
  • पोट के दोनों प्रयोगिकों पर एक तेल की दीपक जलाएं और उसके पीछे माँ दुर्गा की मूर्ति / फोटो रखें
  • पवित्र जल से भरे कलश में फूल या फल पूजा के रूप में अर्पित करें
  • माँ दुर्गा और अन्य देवताओं को आमंत्रित करें: नवरात्रि कथा जैसे प्रार्थना गाने के साथ मंत्रों का पाठ करें।
  • 9 बार कलश को प्रदक्षिणा करें: मंत्र का जाप करते हुए कलश को साइकिल की दिशा में घूमें।
  • अपनी प्रार्थनाएं अर्पित करें और कलश के मुँह पर नारियल रखें। मुँह पर पवित्र धागा बाँधें।
  • कलश को स्थान पर रखना: सब कुछ पूर्वानुमानित स्थान पर सही ढंग से रखें ताकि पूजा का माहौल शुभ रहे।
  • पूजा और आरती: कलश स्थापना के बाद, उसे पूजन करें और आरती उतारें।
  • प्रतिदिन सुबह और शाम कलश को पूजा अर्चना करें: माँ दुर्गा की कृपा के लिए प्रार्थना करें।

यह सांपूर्ण करता है नवरात्रि की पवित्र रीति को, घटस्थापना का अन्त। कलश अपने नए अंकुरों और वस्तुओं के साथ देवी का प्रतीक है। नवरात्रि के 9 दिनों तक इसे नियमित रूप से पूजा और अर्चना की जाती है।

नवरात्रि व्रत की सही विधि क्या है?

हालांकि कोई ठोस नियम नहीं हैं, परंपरागत रूप से नवरात्रि उपवास में कुछ खाद्य पदार्थों से बचना शामिल होता है:

अनुमत:  

  • फल, सब्जियां: आलू, शकरकंद, लौकी, कद्दू, टमाटर
  • बाजरा, सिंघाड़ा आटा या रागी आटा
  • दूध और दूध से बने व्यंजन जैसे पनीर, दही, घी
  • अखरोट और नारियल
  • साबूदाना (सागो दाने) व्यंजन
  • उपवास के दौरान सेंधा नमक अनुमति दिया जाता है

अनुमति नहीं: 

  • गेहूँ, चावल जैसे अनाज
  • मैदा या सूजी जैसे अनाज वाले उत्पाद
  • प्याज, लहसुन
  • बीन्स, अंडे
  • सामान्य मेज़बान नमक

कुछ रीतिरिवाज सख्त उपवास के लिए अतिरिक्त आहार को निषेधित करते हैं जबकि कुछ उनके उपयोग की अनुमति देते हैं। अपनी क्षमता के अनुसार कई भक्त आंशिक या पूर्ण उपवास का पालन करते हैं।

अधिकांश लोग दोपहर के बाद एक ही भोजन करते हैं जबकि कुछ लोग पूरे दिन का उपवास करते हैं, जिसके बाद पूजा/कथा होती है और रात में दूध और फल का सेवन किया जाता है। आस्थामी के करीब, अनुमति युक्त आहार से छोटे उत्सवों की तैयारी की जाती है। उपवास अंत में महा अष्टमी/अष्टमी पर पूरी तरह से बंद हो जाता है, जिसके बाद आनंद और भोजन की बातें होती हैं।

नवरात्रि का उपवास एक आंतरिक शोध और आत्मनिरीक्षण का समय है जिसमें व्यक्ति अपने भीतर की बुराईयों को परास्त करने की प्रैक्टिस करता है। इन नौ दिनों के दौरान मन और शरीर को नियंत्रित करके, व्यक्ति अपनी ऊर्जा को केंद्रित करता है और आंतरिक नकारात्मकता से आत्मनिर्भर होता है।

नवरात्रि का धार्मिक महत्व

'नवरात्रि' का शब्दार्थ 'नौ रातें' है, जिनमें भगवती के नए रूपों की पूजा की जाती है। 'रात' शब्द को नवरात्रि में 'सिद्धि' का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन काल से, ऋषियों ने रात को दिन से अधिक महत्वपूर्ण माना है। इसलिए, शिवरात्रि, होलिका, दीपावली, और नवरात्रि जैसे त्योहार रात्रि के दौरान परंपरागत रूप से मनाए जाते हैं। यह परंपरा इस मान्यता से उत्पन्न हुई है कि रात अज्ञेय रहस्य और अदृश्य शक्तियों को संजीवनी देती है। अगर रात में ऐसी गुणात्मकता न होती, तो इन त्योहारों को 'दिन' कहा जा सकता था।

नवरात्रि 2026 विशेष: देवी दुर्गा की पौराणिक कथाएँ

मां दुर्गा नवरात्रि के नौ दिनों में नौ शानदार रूपों में प्रकट होती हैं, प्रत्येक महान नारी 'शक्ति' को दर्शाते हैं। नौ देवीयों के पीछे कुछ लोकप्रिय कथाएँ हैं:

  1. शैलपुत्री: पहाड़ों की बेटी, वह प्रकृति से प्यार करती है और त्रिशूल और कमल पकड़े हुए, नंदी बैल पर सवार होकर प्रकट होती है।
  2. ब्रह्मचारिणी: सर्वोच्च तपस्वी रूप जो उपवास करती है और ध्यान और माला का प्रदर्शन करते हुए 'तपस्या' करती है - सभी विद्याओं के पीछे की आध्यात्मिक शक्ति।
  3. चंद्रघंटा: अपने सुनहरे घंटी के आकार के हार के साथ, वह बहादुरी और साहस का प्रतीक है - राक्षसों के खिलाफ युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहती है।
  4. कुष्मांडा: माना जाता है कि सुंदर देवी सूर्य के अंदर निवास करती हैं, उन्होंने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की और सभी लोकों को प्रकाश से प्रकाशित किया!
  5. स्कंदमाता: स्कंद की माता के रूप में, वह पृथ्वी पर सभी जीवन के लिए आश्रय आकाश की तरह अपना दिव्य, मातृ प्रेम और सुरक्षा फैलाती है।
  6. कात्यायनी: महान योद्धा देवी जिन्होंने देवताओं और ऋषियों को धर्म के लिए सबसे बड़े ख़तरे राक्षस महिषासुर पर काबू पाने में मदद की।
  7. कालरात्रि: प्रचंड रूप, अपनी तेज किरणों से अंधेरे और अज्ञान को नष्ट करने वाली, जैसे पूर्णिमा का चंद्रमा रात के अंधेरे को दूर कर देता है।
  8. महागौरी: स्वच्छता, सादगी और शांति जैसे गुणों का प्रतीक, फिर भी असाधारण रूप से शक्तिशाली 'गौरी' जो विपरीतताओं में सामंजस्य बिठाती है।
  9. सिद्धिदात्री: सर्वोच्च माँ जीवन के सभी प्रकारों को धार्मिक मार्ग पर चलने पर रहस्यमय शक्तियाँ, समृद्धि और आध्यात्मिक धन प्रदान करती हैं।

जगत मातृत्व की देवी के रूप में, नवरात्रि के दौरान दुर्गा की पूजा को सभी अस्तित्व के क्षेत्रों में दिव्य महिला सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

नवरात्रि से सम्बंधित पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथों में दी गई कथा के अनुसार, महिषासुर नामक दानव ने भगवान ब्रह्मा के एक विशेष भक्त बनने के बाद उनसे एक वर प्राप्त किया जिससे उसे देव, दानव और मानवों से अजेय बन गया। इस वर से सशक्त होकर महिषासुर ने तीनों लोकों में भय का आतंक मचा दिया। इस खतरे के सामने, ब्रह्मा, विष्णु, और महादेव सहित देवताएं माँ शक्ति की सहायता के लिए उनकी पूजा की। उनकी प्रार्थना का परिणामस्वरूप माँ दुर्गा का अवतरण हुआ, जिससे उस और महिषासुर के बीच एक नौ दिन का सख्त संघर्ष हुआ। अंत में, दसवें दिन, माँ दुर्गा ने महिषासुर को विजयी बनाया। उस समय से इन नौ दिनों को अच्छे का विजय का प्रतीक माना जाता है।

वैदिक श्रद्धानुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर हमला करने से पहले रामेश्वरम के समुद्र तट पर नौ दिनों तक माँ दुर्गा की पूजा की थी। उन्होंने भगवती शक्ति की कृपा प्राप्त करने के लिए माँ दुर्गा की उपासना की और उनसे युद्ध में विजय प्राप्त करने की कामना की थी। भगवान श्रीराम के भक्ति में प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने उन्हें युद्ध में विजय प्रदान की। इसके परिणामस्वरूप, भगवान राम ने लंकापति रावण को युद्ध में मारकर विजय प्राप्त की और लंका को जीत लिया। इस घड़ी से ये नौ दिन नवरात्रि के रूप में मनाए जाते हैं, और लंका के विजय के दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

निष्कर्ष 

नवरात्रि 2026 भक्तों को माँ दुर्गा के अनगिनत स्वरूपों की पूजा के लिए 19 मार्च 2026 से शुरू हो रहे नौ शक्तिशाली दिन प्रदान करेगा। कलश स्थापना, मंत्र जप, उपवास, नृत्य, और पूजा के पूर्ण श्रद्धा भाव से सही रूप से किए जाने पर, आने वाले वर्ष में देवी की कृपा को पुनः आमंत्रित किया जा सकता है।

बुराई के विनाशक के रूप में, वह मानवता को आंतरिक और बाहरी अंधेरे पर काबू पाने के लिए साहस और ज्ञान का आशीर्वाद देती है। उनकी कई 'रस्सियों' और किंवदंतियों का जश्न मनाकर, नवरात्रि हमारे दिलों में सत्य और धर्म की स्थापना के लिए दिव्य चिंगारी को प्रज्वलित करती है।

FAQs

2026 में चैत्र नवरात्रि कब शुरू होगी?

Chaitra Navratri 2026 Kab Hai: चैत्र नवरात्रि 19 मार्च, 2026 को शुरू होगी और 27 मार्च, 2026 को समाप्त होगी। यह त्योहार हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।

घटस्थापना या कलश स्थापना का क्या महत्व है?

घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जहां देवी शक्ति का प्रतीक एक बर्तन स्थापित किया जाता है और प्रार्थना के साथ आह्वान किया जाता है। यह नौ रात के उत्सव की आधिकारिक शुरुआत का प्रतीक है।

नवरात्रि व्रत के दौरान क्या अनुमति है और क्या अनुमति नहीं है?

सामान्य तथ्यों में आलू, दूध, फल और अन्य अनुमत खाद्य पदार्थों का सेवन करते समय अनाज, प्याज और लहसुन से परहेज करना शामिल है। कुछ लोग पूर्ण उपवास रखते हैं और उसके बाद शाम को फल/दूध खाते हैं।

नौ दिनों के दौरान आयोजित की जाने वाली विशेष पूजा और अनुष्ठान क्या हैं?

नौ रातों में देवी के लिए सुबह और शाम कलश पूजा, मंत्रों और किंवदंतियों का जाप, रात में गरबा जैसे लोक नृत्य और अष्टमी पर युवा लड़कियों की विशेष पूजा शामिल होती है।

नवरात्रि के प्रत्येक दिन के लिए आवंटित रंगों का क्या महत्व है?

प्रत्येक नवरात्रि दिवस एक देवी का प्रतीक है और उसके अद्वितीय चरित्र को दर्शाने वाले रंग द्वारा दर्शाया जाता है, उदाहरण के लिए - जुनून के लिए लाल, नई शुरुआत के लिए हरा, आशावाद के लिए पीला, इत्यादि।

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