जरायम की दुनिया का एक चर्चित फलसफा है कि बेईमान आदमी को भी ईमानदार और भरोसेमंद सहयोगी की जरूरत पड़ती है। उस भरोसे का टूटना ना काबिले बर्दाश्त हो जाता है। यह फलसफा नेटवर्किंग में माहिर मेराज की चित्रकूट जेल में हुई हत्या के बाद फिर जरायम पसंद लोगों की जुबां पर है। जिनके लिए बेहद भरोसेमंद होने के नाते वह लंबे समय तक चर्चा में रहा, उसी का भरोसा टूटना मेराज के लिए भारी पड़ गया-यह चर्चा शुक्रवार को मेराज के मारे जाने के बाद से शनिवार को उसका शव बनारस पहुंचने तक सुनाई पड़ी है। शायद दबी जुबां आगे भी सुनाई देगी।
मेराज और बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के संबंध जगजाहिर रहे हैं। विधायक के लिए उसने मजबूत नेटवर्क बनाया तो उने नाम पर उसने खुद का साम्राज्य भी खड़ा किया। सूत्रों के मुताबिक, हाल के दिनों में मेराज ने अपने लोगों के बीच कई बार अपने पूर्व आका की नाराजगी और उनसे बढ़ती दूरी के बाबत चिंता जताई थी। हालांकि अपने तईं उसकी लगातार कोशिश रही कि संबंधों में बनी दूरी मिट जाय लेकिन शायद ऐसा हो नहीं सका।
बताया जाता है कि इस दूरी की बुनियाद सन-2009 के कुछ घटनाक्रमों के बाद पड़ी। उसी साल बनारस के ही एक वकील से भी मुख्तार गैंग की दूरी हो गई। बाद के दिनों में कई समीकरणों के बल पर ‘आका’ से नजदीकी बनी, संबंध जुड़ा लेकिन बीच में एक ‘गांठ’ बनी ही रही। गांठ थी, कई राज के उजागर हो जाने की आशंका के रूप में। इधर एक दो साल से लखनऊ के एक सफेदपोश शातिर से उसकी नजदीकी को भी चित्रकूट जेल के शूटआउट से जोड़ कर देखा जा रहा है। हालांकि हकीकत क्या है, यह जांच में ही सामने आ पाएगा।
महज 10 मिनट रुकी मिट्टी
चित्रकूट से मेराज अहमद का शव लेकर उसके परिजन अशोक विहार कॉलोनी स्थित आवास पर शनिवार सुबह करीब नौ बजे पहुंचे। शव वाहन से नहीं उतारा गया। यहां करीब 10 मिनट रूकने के बाद परिजन शव लेकर गाजीपुर के करीमुद्दीनपुर स्थित पैतृक गांव चले गए। वहां मेराज को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। अशोक विहार कॉलोनी के पास जैतपुरा पुलिस गतिविधियों पर नजर रखे रही।