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धर्माचार्य ने बताया इतिहास, कहा-काली के साथ ग्राम देवता की पूजा भी है जरूरी

नवरात्रि के पहले दिन से ही स्थानीय नगर और क्षेत्र में आदि शक्ति की पूजा के साथ ही, ग्राम देवता (डीह) के मंदिर में भी श्रद्धालुओं का तांता दिखाई दे रहा है। बड़ी संख्या में महिलाएं मंदिर पहुंच कर ग्राम देवता को धार के साथ गुड़हल के फूल अर्पित कर, उनसे रोग व्याधि से मुक्ति और सुख शांति की याचना कर रहीं हैं।

नगर निवासी वयोवृद्ध धर्माचार्य पंडित कमला कांत द्विवेदी ने बताया कि अनादिकाल से अपने नगर या गांव को महामारी से बचाने के लिए, आसुरी शक्तियों का नाश करने वाली देवी काली और ग्राम देवता के रूप में डीह पूजा होती आ रही है। यह पूजा किसी न किसी रूप में भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में होती आ रही है। इसलिए नवरात्रि में देवी काली के साथ डीह की पूजा का ग्राम्य जीवन में विशेष महत्व है ।

धार अर्पित करने से मिलती है रोगों से मुक्ति

धर्माचार्य कमलाकांत ने बताया कि पानी में जो पदार्थ मिलाकर धार दिया जाता है, वास्तव में वह औषधियां होती हैं। जिन्हें देवी और डीह को अर्पित कर, लोग भगवान से अपने गांव और घर को बीमारी और महामारी मुक्त बनाए रखने की याचना करते हैं। इससे आने वाली बीमारी और महामारी का नास होता है। इसलिए नवरात्रि में या घर में किसी सदस्य के बीमार होने पर, देवी और डीह को धार अर्पित करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

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