गांव की सरकार (पंचायत चुनाव) चुने जाने के बाद गांव चौपालों व दलानों पर चुनावी बतकही का दौर तेज हो गया है। विजयी प्रत्याशी के समर्थक बाजी अपने पाले में लाने के लिए किये गये उपायों को एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान वोटों के दिलाने के लिए किये गये परिश्रम को सराहते थक नहीं रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कम वोटों से हार का सामना करने वाले समर्थकों में अपनी हार के लिए कारण पर चर्चा कर रहे हैं। कहां से धोखा मिला, किसने विश्वास दिलाकर भी वोट नहीं दिया, इस पर चर्चाएं तेज हैं।
इन सबके बीच मतगणना के समय चिलचिलाती धूप में उत्साह भरने व इस दौरान हुई कठिनाइयों का जिक्र भी कर रहे हैं। विजयी प्रत्याशी के समर्थक बस गांवों की विकास का खाका तैयार करने लगे हैं। रानीगंजबाजार के बताशा गली में लॉकडाउन के चलते दुकानदार फुर्सत में हैं। वहीं पास गांवों से हर दिन बाजार आने वाले युवक भी करीब चार बजे पहुंच गये। करीब 20-25 दिनों बाद इन युवाओं की बैठकी देखने को मिली। बतकही चुनावी परिणाम पर खूब तेजी से चल रही थी।
कुछ युवाओं के अपने चेहेतों के हारने का गम तो कुछ के चहेते को विजयश्री मिलने की खुशी झलक रही थी। सभी हार-जीत की समीक्षा में जुटे थे। चुनावी चर्चा में कुछ युवक यह कह रहे थे कि यह प्रधानी का चुनाव हमारी प्रतिष्ठा से जुड़ा था, हर हाल में प्रधानी दूसरे गांव से न जाए, इसके लिए चिलचिलाती धूप में प्रचार कर रहे थे। कैसे भी हो बाजी हमारे पाले में आए और हुआ भी यही। इसी बीच अपने चहेते के हार पर कह रहे थे कि यदि चुनाव में हमारे कहने के मुताबिक पैसा खर्च हुआ रहता तो दिखा देते जीत कैसे होती है। वहीं कुछ यह कह रहे थे प्रधानी अब सेवा के लिए धन कमाने के लिए की जा रही है।