शहर के प्राचीन गौरीशंकर मंदिर के पीछे विश्वजीत की लिट्टी-चाय की दुकान के मुरीदों की कमी न थी, दिनभर यहां भीड़ लगी रहती थी। छोटी सी दुकान के बाहर सड़क पर ही कोई कुल्हड़ में चाय की चुस्कियां भरते नजर आता, तो कोई हाथों में दोना लिए लिट्टी का स्वाद ले रहा होता। कोरोना ने दुकान की यह पहचान छीन ली, लेकिन विश्वजीत के जज्बे को नहीं हरा सका। चाय-लिट्टी की दुकान में उन्होंने सब्जी रख ली और इसे बेच अपन परिवार चलाने लगे।
देश में छाए कोरोना संकट ने जहां देश के लाखों लोगों का रोजगार लील लिया, वहीं कोरोना की काली छाया ने विश्वजीत जैसे चाय-लिट्टी के दुकानदार समेत पान दुकानदार और सैकड़ों फुटपाथी दुकानदारों को भी अपने आगोश में ले लिया। इस बीच अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिए सरकार के प्रयासों के बीच कुछ ने अपने जीविकोपार्जन के तरीके बदल नए सिरे से जिदगी की जंग लड़नी शुरू कर दी। दुकान बंद होने के कुछ दिन बाद विश्वजीत के सामने भी आर्थिक संकट गहराने लगी। परिवार के रोज के खर्च ने विश्वजीत को विकल्प की तलाश के लिए मजबूर कर दिया।