बलिया : आसमान से गिरे, खजूर पर अटके की उक्ति क्वारंटाइन सेंटरों में रखे प्रवासियों पर शत प्रतिशत चरितार्थ हो रही है। कोरोना के भय से सैकड़ों मील पैदल चल कर घर पहुंचे लोगों को अभी भी भूखे प्यासे दिन गुजारना पड़ रहा है। जिले के विभिन्न क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति यह है कि वहां रह रहे लोगों को खाना नाश्ता तो दूर पीन का पानी तक नसीब नहीं हो पा रहा है।
क्वारंटाइन का एक पखवारा इनके लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। यहां रहा रहे लोगों के लिए यह स्थान काला पानी की सजा जैसे हो गई है। वैसे तो जिला प्रशासन इन क्वारंटाइन सेन्टरों पर भोजन, पानी सहित अन्य सुविधाओं के लिए प्रति व्यक्ति पर प्रति दिन 80 रुपये खर्च करने का दावा कर रहा है लेकिन ये सारी सुविधाएं सिर्फ कागजों में सिमटी हैं। यहां तक कि गुलाबी घोषणाएं करने वाला प्रशासनिक अमला इन केन्द्रों की हालचाल भी नहीं ले रहा है।
नजीर के तौर पर हनुमानगंज विकास खंड के खोरीपाकड़, दरामपुर, सागरपाली, दुबेछपरा, नगवा, खेजुरी सहित कई गांवों में प्रवासी कामगारों के लिए क्वारंटीन सेंटर बनाया गया है। शनिवार की देर शाम शहर से सटे खोरीपाकड़ पहुंचे थाना प्रभारी व बीडीओ ने ग्राम प्रधान की उपस्थिति में आनन-फानन में न सिर्फ निगरानी समिति का गठन किया बल्कि होम क्वारंटाइन में रह रहे एक दर्जन से ऊपर लोगों को दस्तखत कराने के बहाने बुलाकर जबरदस्ती क्वारंटीन सेंटर भेज दिया।
हद तो तब हो गई जब इस सेंटर पर रहे लोगों को 12 घंटे बाद भी न तो भोजन मिला और न ही पीने का पानी। अंतत: इन लोगों को अपने घर से भोजन मंगाना पड़ा। क्वारंटाइन कर रहे एक व्यक्ति ने बताया कि शौचालय में साफ सफाई न होने से बाहर ही शौच के लिए जाना पड़ रहा है। गर्मी से सभी परेशान हैं। फिर भी कोई पूछने वाला नहीं है। शाम को कुछ पुलिस वाले आते हैं और फोटो खींच कर चले जाते हेैं। बीडीओ राजेश यादव ने बताया कि प्रधान 80 रुपये के हिसाब से खर्च कर सकते हैं।