शासन की मंशा है कि जिनके पास मकान नहीं है, उन्हें खुले आसमान के नीचे न रहना पड़े और उनका अपना आवास हो। लेकिन करोड़ों रुपये की लागत से बने 700 आवास तीन विभागों के चक्रव्यूह में फंस गया है। आवास तो बन गए लेकिन पानी और बिजली की सुविधा पांच वर्ष बाद भी सुनिश्चित नहीं की जा सकी। इसलिए आज तक इसका आवंटन अधर में लटका है।
वर्ष 2011-12 में कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना को तत्कालीन बसपा सरकार में मंजूरी मिली थी। नगर पालिका मुबारकपुर के गजहड़ा में 460 और नगर पंचायत मेंहनगर के देवरिया में 240 सहित कुल 700 आवास निर्माण के लिए 18.90 करोड़ रुपये की स्वीकृति प्रदान की गई थी। निर्माण के लिए 75 फीसद धनराशि भी अवमुक्त हो गई थी। कार्यदायी संस्था आवास विकास परिषद ने कार्य शुरू करा दिया। उसके बाद सरकार बदली तो परियोजना का सरप्लस 90 लाख रुपये निदेशालय को वापस करना पड़ा था। जबकि 18 करोड़ रुपये में दोनों स्थानों पर आवास के सभी आंतरिक कार्य तो करा दिए गए लेकिन बाहरी कार्य पानी की टंकी, जलनिकासी के लिए ड्रेनेज और बिजली की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं हो सकी।
''बिजली और पानी की व्यवस्था संबंधित विभागों को करनी है। इस संबंध में कई बार पत्र लिखा जा चुका है लेकिन भूमि व बजट का अभाव बताया जाता है। इसलिए आवंटन रुका है। जबकि काफी संख्या में लाभार्थियों द्वारा आवेदन पत्र दिए जा चुके हैं।