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Maha Shivratri 2026: महाशिवरात्रि कब है, नोट कर लें तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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बुधवार

Maha Shivratri 2026 Date: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। उन्हें दयालु और कृपालु भगवान माना जाता है, जिनकी प्रतिष्ठा बहुत उच्च है। वे एक लोटे के जल से भी संतुष्ट हो जाते हैं। महाशिवरात्रि शिवभक्तों के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पर्व पर भगवान शंकर की विशेष पूजा और अर्चना की जाती है और भक्त व्रत और पूजन के साथ इसे धूमधाम से मनाते हैं।

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हिंदू पंचांग के अनुसार साल में दो बार महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। पहली महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती है और दूसरी महाशिवरात्रि श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। दोनों महाशिवरात्रि पर्व बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। फाल्गुन मास में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि के संदर्भ में कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। इस दिन विधिवत भगवान शिव की पूजा करने से सोखी विवाही जीवन की प्राप्ति होती है और सौभाग्य की कामना की जाती है। जानिए 2026 में महाशिवरात्रि कब मनाई जाएगी और महाशिवरात्रि 2026 की तिथि।

साल 2026 में महाशिवरात्रि 15 फरवरी, Sunday को मनाई जाएगी। यह महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट मिट जाते हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। आइए, हम जानते हैं महाशिवरात्रि की पूजा की तिथि और महत्व के बारे में।

महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा समय:

महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन के चार प्रहरों में पूजा की जाती है। निम्नलिखित है महाशिवरात्रि 2026 की तारीख और पूजा का समय...

  • चतुर्दशी तिथि की शुरुआत: 15 फरवरी 2026, 05:04 PM बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्ति: 16 फरवरी 2026, 05:34 PM बजे
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के प्रथम प्रहर में: शाम 06:11से 9:23 PM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के दूसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 9:23 PM से रात्रि 12:35AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के तीसरे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 12:35 AM से 3:47 AM बजे तक
  • महाशिवरात्रि 2026 की पूजा रात्रि के चौथे प्रहर में: 16 फरवरी 2026, 3:47 AM से 6:59 AM बजे तक

महाशिवरात्रि का महत्व और मनाने का कारण

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन शिव और शक्ति के मिलन का संकेत होता है। रात्रि के चार प्रहरों में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि का यह महत्वपूर्ण त्योहार भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और शक्ति की पूजा करने से मनुष्य की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और सभी संकट दूर होते हैं।

महाशिवरात्रि व्रत विधि

महाशिवरात्रि का व्रत एक कठिन व्रत होता है जिसमें दिन भर उपवास और रात्रि में जागरण किया जाता है:

  • प्रातः स्नान करके शिवलिंग पर जल, दूध, शहद अर्पित करें।
  • बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल चढ़ाएं।
  • "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
  • चार पहर की पूजा करें या कम से कम निशीथ काल की पूजा करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

निष्कर्ष

महाशिवरात्रि 2026 एक अत्यंत शुभ दिन है जब भक्त भगवान शिव की आराधना करके अपने जीवन में सुख, शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करते हैं। अगर आप भी शिवभक्त हैं, तो इस दिन की पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व को समझें और पूरे भक्ति भाव से इस पर्व को मनाएं।

FAQs

Sal 2026 me maha shivaratri kab hai?

Dear friends 2026 me maha shivaratri 15 February, 2026 ko hai.

कौन सी शिवरात्रि सबसे बड़ी है?

महाशिवरात्रि भारत और नेपाल के शैव संप्रदाय के हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक पर्व है।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं | पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं - हिंदू सनातन धर्म में व्रत को काफी महत्व दिया जाता हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिए तथा भक्त और भगवान के बीच की दुरी को कम करने के लिए व्रत किया जाता हैं। ऐसा माना जाता है की व्रत करने से हमें शुभ फल की तो प्राप्ति होती ही हैं। साथ-साथ हमें स्वास्थ्य लाभ भी मिलता हैं।

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पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

व्रत करना हमारे शरीर के लिए भी अच्छा माना जाता हैं। वैसे तो लोग विभिन्न प्रकार के आए दिन कोई ना कोई व्रत करते रहते हैं, लेकिन आज हम इस ब्लॉग में पूर्णिमा व्रत के बारे में चर्चा करने वाले हैं जो की आपके लिए उपयोगी साबित होने वाला हैं। इसलिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में नमक नहीं खाना चाहिए। पूर्णिमा व्रत में नमक खाना वर्जित माना गया हैं लेकिन फिर भी अगर आप नमक खाना चाहते है, तो सेंधा नमक खा सकते हैं। अगर आप पूर्णिमा के दिन कुछ भी फलाहार बनाए, तो उसमें सफ़ेद नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल करे।

ये भी पढ़े: जानिए मंगलवार के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं और व्रत के नियम

पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए कि नहीं

वैसे तो पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाया जा सकता हैं, लेकिन कुछ महिलाएं पूर्णिमा के दिन सिंदूर नहीं लगाती हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथो में पूर्णिमा के दिन सिंदूर लगाना चाहिए या नहीं इसके बारे में कुछ भी बताया गया नहीं हैं।

इसलिए महिलाएं अपनी मान्यता और इच्छा अनुसार सिंदूर लगाती भी है और कुछ महिलाएं सिंदूर नहीं भी लगाती हैं। सिंदूर लगाना या नहीं लगाना अपनी मर्जी और विचार पर निर्भर करता है।

पूर्णिमा के दिन बाल धोना चाहिए या नहीं

पूर्णिमा व्रत व्रत में इस दिन बाल धोना निषिद्ध माना जाता है। यह अत्यंत ही शुभ तिथि होती है, जब महिलाएँ व्रत रखती हैं। ऐसे में यदि आप भी व्रत करते हैं, तो इस दिन बाल धोने से अवश्य ही बचना चाहिए।

हमारे धर्मशास्त्रों में महिलाओं के बाल धोने से जुड़े कई नियम बताए गए हैं। यदि किसी शुभ दिन व्रत रखा जाए, तो उस दिन बाल धोने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि व्रत के दिन बाल धोने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है

पूर्णिमा का व्रत करने से जातक को काफी लाभ होते हैं। इसलिए जातक के द्वारा पूर्णिमा का व्रत का किया जाता हैं। जैसे की -

  • अगर किसी को मानसिक कष्ट हो रहा है, तो उनको पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए।
  • अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र दूषित या पीड़ित है, तो उनको पूर्णिमा व्रत करना चाहि।
  • जिन लोगो बहुत अधिक भय लगता है या हमेशा के लिए मानसिक चिंता में डूबे रहते हैं। तो ऐसे लोगो के लिए पूर्णिमा का व्रत अच्छा माना जाता है।
  • पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर कच्चा दूध तथा जल अर्पित करने से बीमारी से छुटकारा मिलता हैं। इसलिए कुछ लोग पूर्णिमा का व्रत करते हैं।
  • वैवाहिक जीवन में शांति के लिए तथा पारिवारिक सुख पाने के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता हैं।
  • इन सभी लाभों को प्राप्त करने के लिए और भगवान विष्णु के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए

किसी भी व्रत का सीधा संबंध भोजन से जुड़ा होता है, इसलिए आप को व्रत शुरू करने से पहले यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि इस व्रत में क्या खाना उचित है। ऐसे में हम पूर्णिमा व्रत की बात करें तो बहुत से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस व्रत को करते हैं।

लोग व्रत तो रखते लेते हैं, लेकिन खाने को लेकर अक्सर उनके मन में बहुत सारे सवाल उठते रहते हैं। आइए आज हम जानें कि पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए।

दूध और खीर: ऐसा कहा जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप दूध की बानी खीर का सेवन कर सकता/सकती हैं। इसके अलावा आप दूध से बने अन्य व्यंजन जैसे की साबूदाने की खीर, सेवई की खीर और चावल की खीर का सेवन किया जा सकता हैं।

ड्राई फूड्स: यदि आप भी पूर्णिमा का व्रत रख रही हैं, तो आप इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते हैं। इसमें काजू, अखरोट, बादाम, किशमिश, पिस्ता, खजूर और खुबानी शामिल होता हैं।

इस व्रत में ड्राई फूड्स का सेवन दिन में केवल एक बार करना ही उचित रहता है, क्योंकि किसी भी व्रत में बार-बार खाना नहीं चाहिए।

फलों का सेवन: माना जाता है कि पूर्णिमा व्रत में आप फलों का सेवन कर सकते हैं। फल पूरी तरह सात्त्विक होते हैं और व्रत के दौरान बेझिझक एक बार खाए जा सकते हैं।

इस व्रत में आप जैसे कि केला, संतरा, अंगूर, और खीरा आदि फलों का सेवन कर सकते हैं। हालांकि, इन्हें व्रत में पूजा-पाठ पूर्ण करने के बाद ही खाना उचित होता है।

सिंघाड़े का सेवन: पूर्णिमा व्रत में आप सिंघाड़े से बानी चीजो का सेवन कर सकती हैं। सूखे सिंघाड़े को पीसकर उसका आटा तैयार करें और उससे पूरी, हलवा या अन्य व्रत-उपयुक्त व्यंजन बनाकर खाएँ।

इसके अलावा, आप पूर्णिमा व्रत में राजगिरा आटे का हलवा भी खाया जा सकता है। इसे देसी घी, दूध, चीनी और मेवा मिलाकर स्वादिष्ट रूप में तैयार किया जा सकता है।

साबूदाना की बानी खिचड़ी: पूर्णिमा व्रत करने वाली महिलाएँ साबूदाने की खिचड़ी बनाकर ग्रहण कर सकती हैं, इससे व्रत नहीं टूटता। बस इसे बनाते समय साधारण नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में शाम को आप निम्नलिखित चीजों को बनाकर खा सकते हैं:

  • साबूदाने का पुलाव या खिचड़ी
  • कच्चे केले की टिक्की
  • सिंघाड़े की नमकीन बरफी
  • कुटू के पराठे
  • आलू, खीरा तथा मूंगफली का सलाद
  • मखाने की खीर
  • दही, सेंधा नमक
  • कुटू के पकोड़े

इसके अलावा आप अन्य और भी फलहारी व्यंजन बनाकर खा सकते है।

पूर्णिमा व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए

पूर्णिमा के व्रत में आप को नमक, अंडा, प्याज और लहसुन का बिल्क़ुल भी सेवन नहीं करना चाहिए।

पूर्णिमा का व्रत खोलने की विधि

पूर्णिमा का व्रत खोलने के लिए सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा करे। इसके बाद पुष्प आदि अर्पित करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराए और उन्हें दक्षिणा आदि दान करे। इसके पश्चात आप स्वयं पूर्णिमा का व्रत खोल सकती हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है की पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं तथा पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करें। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह पूर्णिमा के व्रत में नमक खाना चाहिए या नहीं / पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs 

पूर्णिमा के व्रत में नमक खा सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के व्रत में बिल्कुल भी नमक नहीं खाना चाहिए।

पूर्णिमा के व्रत में क्या खाना चाहिए?

इस व्रत में आप फल, दूध की खीर, साबूदाना और ड्राई फूड्स का सेवन कर सकते है।

पूर्णिमा के दिन बाल धो सकते है या नहीं?

जी नहीं, पूर्णिमा के दिन भूल से भी बाल नहीं धोना चाहिए।

पूर्णिमा के दिन किन वसुओं का दान करना चाहिए?

पूर्णिमा के दिन आप किसी भी ब्राह्मण को चावल, दही, चांदी की चीजे, सफेद रंग के वस्त्र, चीनी, सफेद फूल और मोती जैसी आदि वसुओं का दान करना चाहिए।

पूर्णिमा के कितने व्रत आप को करने चाहिए?

पूर्णिमा के कुल 32 व्रत पूर्ण करना चाहिए।

पूर्णिमा व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत आप किसी भी माह से आरम्भ कर सकते है, लेकिन शुभ फल पाने हेतु श्रावण या माघ के महीने में शुरू करना बहुत ही श्रेष्ठ माना जाता है।

पूर्णिमा का व्रत क्यों किया जाता है?

पूर्णिमा का व्रत मानसिक शांति, चंद्रदेव की कृपा, सौभाग्य, आरोग्य और पारिवारिक सुख पाने के लिए किया जाता है।

पूर्णिमा के व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए?

पूर्णिमा व्रत में शाम के समय आप फल, दूध, साबुदाना, और खीर का सेवन कर सकते है।

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? जानें भगवान परशुराम कौन थे

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती - भगवान परशुराम के बारे में हम में से काफी लोग जानते है क्योंकि भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण में भी देखने को मिलता हैं। परशुराम अति क्रोधी स्वभाव के और एक वीर यौद्धा थे।

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती

उनके हाथ में हमेशा ही एक फरसा रहता था। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम को यह फरसा भगवान शिव ने दिया था। परशुराम जी ने भगवान शिव की आराधना करके उनको प्रसन्न किया था। बदले में भगवान शिव ने परशुराम को फरसा प्रदान किया था।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताने वाले है की भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी अन्य और भी बहुत जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े।

भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती

आपको बता दे कि कुछ शास्त्रों और पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम अमर हैं। इसलिए उनकी पूजा नही की जाती हैं। भगवान परशुराम आज भी हमारे बीच में मौजूद हैं और वह अमर हैं। इसलिए दुसरे देवी देवताओ की तरह भगवान परशुराम की पूजा नही की जाती हैं।

ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम हिन्दू सनातन धर्म के सबसे योद्धा हैं और भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त भी माने जाते हैं। भगवान परशुराम ने कठिन आराधना करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था और परशुराम की इस कठिन परिश्रम को देखते हुए भगवान शिव ने परशुराम को परसा आशीर्वाद स्वरूप उनको दिया था।

भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु का छठा अवतार माने जाते हैं और यदि आपने रामायण देखा होगा तो इनका जिक्र रामायण में देखने को मिलता हैं। भगवान परशुराम अमर होने की वजह से उनकी पूजा अर्चना करना वर्जित माना जाता हैं। 

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भगवान परशुराम का जीवन परिचय तथा इतिहास

भगवान परशुराम का जीवन परिचय और उनका इतिहास हमने एक टेबल के माध्यम से आपको बताने की कोशिश की हैं:

नाम:-

भगवान परशुराम

अन्य नाम:-

अनंतर राम

कौन है:-

भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं

जन्म:-

वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि

जन्म स्थान:-

पता नही

पिता का नाम:-

जगदग्नि

माता का नाम:-

रेणुका

दादा का नाम:-

ऋचीक

परशुराम जयंती:-

अक्षय तृतीय के दिन

जाति:-

ब्राह्मण

भगवान परशुराम कौन थे

भगवान परशुराम के बारे में हमने कुछ मुख्य जानकारी नीचे प्रदान की हैं:

  • भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता हैं।
  • भगवान परशुराम ऋषि जमादग्नी और माता रेणुका के पांचवें पुत्र थे। इनका जन्म ब्राह्मण जाति में हुआ था।
  • भगवान परशुराम वीरता के उदाहरण माने जाते हैं। यह स्वभाव से अधिक क्रोधित और एक योद्धा थे।
  • भगवान परशुराम भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम त्रेता और द्रापर युग से अभी के वर्तमान तक अमर हैं।
  • कुछ शास्त्रों के अनुसार भगवान परशुराम ने त्रेता युग में रामायण में और द्रापर युग में महाभारत में अहम भूमिका में थे। इन दोनों ग्रंथ में आज भी भगवान परशुराम के बारे में जिक्र देखने को मिलता हैं।
  • रामायण में जब सीता का स्वयंवर हो रहा था। तब भगवान राम ने शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ दिया था। उस दौरान भगवान परशुराम सबसे अधिक क्रोधित हुए थे। क्योंकि भगवान परशुराम शिवजी के बड़े भक्त थे और उनका धनुष तोड़ने पर वह क्रोधित हो गए थे।

भगवान परशुराम के शिष्य कौन थे

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है की भगवान परशुराम ने महाभारत के कर्ण, द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह को अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। इसलिए भगवान परशुराम इन तीनो के गुरु और यह तीनो भगवान परशुराम के शिष्य माने जाते हैं।

वर्तमान में भगवान परशुराम के मंदिर कहां है

वर्तमान समय में भी भारत में भगवान परशुराम के मंदिर मौजूद हैं जिसके बारे में हमने नीचे जानकारी प्रदान की हैं:

  • परशुराम मंदिर: सोहनाग, सलेमपुर और उत्तर प्रदेश
  • परशुराम मंदिर जी: पीतमबरा, कुल्लू तथा हिमाचल प्रदेश
  • भगवान परशुराम मंदिर: अखनूर, जम्मू और कश्मीर
  • भगवान परशुराम जी का मंदिर: कुंभलगढ़ और राजस्थान
  • परशुराम मंदिर: महुगढ़ और महाराष्ट्र

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से बताया है कि भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम आपसे उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं होती? - भगवान परशुराम कौन थे ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs

भगवान परशुराम किसके अवतार थे?

भगवान परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं।

परशुराम ने अपनी मां का सिर क्यों काटा था

भगवान परशुराम ने अपनी माँ का सिर इसलिए काटा क्योंकि पिता जमदग्नि ने आज्ञा दी थी। इसलिए परशुराम धर्म, कर्तव्य और पिता की आज्ञा के पालन के लिए दृढ़ थे। पुरानी कथाओ के अनुसार, बाद में भगवान शिव की कृपा से उनकी माता पुनर्जीवित हुई थी।

परशुराम के पिता का नाम थे

जी हां, भगवान परशुराम के पिता का नाम महर्षि जमदग्नि था। वे सप्तर्षियों में से एक ऋषि थे और अत्यंत तपस्वी, विद्वान तथा धर्मपरायण माने जाते हैं।

परशुराम का जन्म स्थान था

कथाओं के अनुसार, परशुराम जी का जन्म स्थान महेंद्र पर्वत को माना जाता है, जो वर्तमान में ओडिशा क्षेत्र में स्थित बताया जाता है। पुरानी ग्रंथों में यही स्थान पर वे तप, साधना और प्रारंभिक जीवन का प्रमुख केंद्र भी बताया गया है।

क्या परशुराम की शादी हुई थी?

पुरानी कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम का विवाह नहीं हुआ था; वे एक ब्रह्मचारी थे।

परशुराम के पूर्वज कौन थे?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम के पूर्वज महर्षि भृगु थे।

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जल्दी घर बनाने के उपाय | 6 सबसे असरदार उपाय जाने

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जल्दी घर बनाने के उपाय - प्रिय रीडर आपको ये तो पता होगा कि रोटी, कपड़ा और मकान आज के समय में हर किसी की जरूरत होती हैं। जिसमे से रोटी और कपड़ा तो हमे आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन घर यानी मकान बनाना हमारे लिए काफी कठिन काम होता हैं। क्योकि घर बनाने के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत पड़ती हैं। तब जाकर हमें अपना घर मिलता हैं।

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जल्दी घर बनाने के उपाय

लेकिन आप चाहते है कि आपका घर जल्दी बन जाए और आप आपके घर में जाकर सुख चैन के साथ रह सके तो ऐसे में कुछ उपाय करके आप जल्दी घर बनवा सकते हैं। आज हम आपको ऐसे कुछ उपाय बताने वाले हैं। जिसे करने से आपका जल्दी घर बन जायेगा।

दोस्तों आज हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से जल्दी घर बनाने के उपाय बताने वाले हैं। इसके अलावा इस टॉपिक से जुड़ी और भी अन्य जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह ब्लॉग अंत तक जरुर पढ़े। तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

जल्दी घर बनाने के उपाय

जल्दी घर बनाने के कुछ प्रभावशाली और कारगर उपाय हमने नीचे बताये हैं।

गणेशजी का उपाय करे

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो आप गणेशजी से जुड़ा उपाय कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपने आसपास के किसी भी भगवान गणेश जी के मंदिर जाना होगा अगर आप मंदिर नही जा सकते हैं, तो अपने घर पर ही भगवान गणेश जी की प्रतिमा के आगे एक लाल रंग का फूल अर्पित कर दे।

इसके बाद गणेश जी से जल्दी घर हेतु प्रार्थना करे। यह उपाय आपको लगातार 21 दिन तक करना हैं। ऐसा माना जाता है की इस उपाय को करने से गणेशजी जी जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और इससे आपको जल्दी घर बनाने में मदद मिलती हैं।

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नीम की लकड़ी से बने घर का दान करे

अगर आप अपना घर चाहते हैं। आप चाहते है की आपका घर जल्दी बन जाए तो ऐसे में आपको एक सुंदर नीम की लकड़ी से घर बनाना हैं। अब इस घर को आपके आसपास के किसी भी मंदिर में जाकर दान कर देना हैं। यह उपाय करने से आपको जल्दी घर की प्राप्ति होती हैं।

मंगलवार के दिन उपाय करे

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो मंगलवार के दिन यह उपाय करे। मंगलवार के दिन घोड़े को गली हुई चने की डाल खिलाए। इसके बाद कौओ को दूध में भीगी हुई रोटी खिलाएं।

इसके पश्चात आपको गाय को रोटी, मसूर की दाल और गुड तथा गुड से वस्तु खिलानी चाहिए और जरूरतमंद व्यक्ति को खाना खिलाएं या दान करे।

इसके अलावा आप आपके आसपास के किसी भी गणेशजी के मंदिर मंगलवार के दिन जाए और गणेशजी के समक्ष गुड़ या गेहूं अर्पित करे। यह उपाय आपको लगातार पांच मंगलवार करना हैं। इस उपाय से आपका घर जल्दी हो जाता हैं।

मंगलवार के दिन इतना सा उपाय करने से आपको अवश्य ही जल्दी घर बनाने में मदद मिलेगी।

रविवार के दिन का उपाय

अगर आप जल्दी घर चाहते हैं। तो रविवार के दिन यह उपाय करे। रविवार के दिन एक सुंदर लकड़ी मदद से घर बनाये। घर छोटा ही होना चाहिए जो आपके घर के मंदिर में रख सके। इसके बाद इस बने हुए घर को अपने घर के मंदिर में  स्थापित कर दे।

इतना हो जाने के पश्चात बने हुए घर में एक मिट्टी का दीपक सरसों की तेल के मदद से जलाए और बने हुए घर को सजाये। इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और आपका जल्दी घर बन जायेगा।

माता दुर्गा का उपाय

अगर आप जल्दी घर बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले एक मिट्टी का मटका लीजिए। अब इस मटके में शहद, मिश्री, शक्कर, कपूर, दही और दूध डाल दीजिए। इसके पश्चात माता दुर्गा का मंत्र नव्रार्ण मंत्र का जाप करे।

इतना हो जाने के पश्चात मिट्टी के मटके को आपके आसपास के किसी नदी या तालाब के समुद्र के तट में गड्ढा खोदकर गाड दे। आपके इस उपाय से आपको जल्दी घर बनाने में मदद मिलेगी।

घर में चिड़ियाँ के लिए घोसला बनाये

अगर आप जल्दी घर चाहते हैं तो आप जहाँ रह रहे हैं। उस जगह पर घोसला बनाये। जब इस घोसले में चिड़ियाँ रहने आने लगे उसके बाद चिड़ियाँ को दाना पानी देना शुरू करे। आपके इस उपाय से आपका जल्दी घर बनेगा।

निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस ब्लॉग के माध्यम से जल्दी घर बनाने के उपाय बताए है। इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं।

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह ब्लॉग आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर उपयोगी साबित हुआ हैं, तो आगे जरुर शेयर करे। ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी मिल सके।

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा जल्दी घर बनाने के उपाय  – 6 सबसे असरदार उपाय जाने ब्लॉग अच्छा लगा होगा। धन्यवाद!

FAQs

अपना खुद का घर बनाने के लिए उपाय

यदि आप अपना घर बनाने के लिए वास्तु के अनुसार शुभ दिशा को चुनें, धार्मिक पूजा और मंत्रों का सहारा लें, धन संचय करें, सकारात्मक सोच रखें और शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन अवश्य करें।

खुद का मकान बनाने के क्या उपाय हैं

खुद का मकान बनाने के लिए भूमि चयन में शुभ दिशा देखें, वास्तु का पालन करें, धन का प्रबंध सही करें, पूजा और मंत्रों का सहारा लें, शुभ मुहूर्त में निर्माण प्रारंभ करें।

घर बनाना किस महीने में शुभ होता है

घर बनाना आमतौर पर चंद्र मास में शुभ माना जाता है। विशेषकर हिंदी के इन सभी महीनो में वैशाख, भाद्रपद, कार्तिक और माघ माह में भूमि पूजन कर निर्माण शुरू करना अत्यंत शुभ ही माना जाता है।

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Saraswati Puja 2026: जानें तिथि, समय, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व

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Saraswati Puja Date 2026: सरस्वती पूजा, जिसे वसंत पंचमी भी कहा जाता है, वह हिन्दू ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि, और शिक्षा की देवी - माँ सरस्वती को समर्पित एक त्योहार है। इस शुभ अवसर को उत्साह और उत्सव के साथ पूर्वोत्तर, पूर्वी, और उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मनाया जाता है, जो हिन्दू चंद्र कैलेंडर के माघ मास की पाँचवीं तिथि को बताता है, जो ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत के मिलता है।

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2026 में, सरस्वती पूजा 23 जनवरी को मनाई जा रही है। इस त्योहार की पूजा तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व, और इस सम्बंधित परंपराओं को जानने के लिए आगे पढ़ें, जो बसंत के आगमन को सूचित करते हैं।

2026 में सरस्वती पूजा कब है?

Saraswati Puja 2026 Kab Hai: 2026 में, वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा शुक्रवार, 23 जनवरी को हो रही हैं।

Saraswati Puja 2026 Date and Time

Saraswati Puja in 2026/ यहां है सरस्वती पूजा 2026 के लिए मुख्य तिथियों और समयों की सूची:

  • सरस्वती पूजा की तिथि: शुक्रवार, 23 जनवरी 2026
  • पंचमी तिथि शुरू: 23 जनवरी 2026 को 02:28 PM बजे
  • पंचमी तिथि समाप्त: 24 जनवरी 2026 को 01:46 AM बजे
  • वसंत पंचमी मुहूर्त - सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक
  • अवधि - 05 घंटे 20 मिनट
  • पूजा के लिए आदर्श समय: सरस्वती आवाहन के समय से लेकर पंचमी तिथि समाप्त होने तक।

सरस्वती पूजा शुभ मुहूर्त: Saraswati Puja Shubh Muhurat

Saraswati Puja 2026 का सबसे शुभ और महत्वपूर्ण मुहूर्त सुधारित है, जैसा कि निम्नलिखित है:

  • वसन्त पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्त - 23 जनवरी 2026, शुक्रवार के दिन सुबह 07:13 से दोपहर 12:33 बजे तक। 
  • वसंत पंचमी मध्याह्न क्षण - 12:33 PM

इन शुभ मुहूर्तों में पूजा करना और सरस्वती मंत्रों का जाप करना, देवी सरस्वती के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

सरस्वती पूजा विधि और प्रक्रिया

पूजा रीति, मंत्र जाप, और आचार्यों में क्षेत्रीय भिन्नताएं हो सकती हैं, लेकिन यहां उस दिन को मनाने के लिए आवश्यक Saraswati Puja Vidhi है:

  • समय पर उठें, नहाएं, और शुद्धि के बाद ताजगी वाले कपड़े पहनें।
  • एक पूजा थाली तैयार करें, जिसमें अखंड चावल के अनाज, कमल और गुलाब के फूल, चंदन का पेस्ट, कुंकुम, हल्दी-कुंकुम, अक्षत, मिठाई, फल, पंचामृत, गंगाजल और एक घंटी हों। ये मन, ज्ञान, शुभ, बुद्धि, और देवी के आशीर्वाद की प्रतीक्षा करते हैं।
  • देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र को पीले या लाल कपड़े से ढ़के हुए एक लकड़ी की चौकी पर रखें। आप अध्ययन के प्रतीक के रूप में देवी के पास किताबें रख सकते हैं।
  • मूर्ति में देवी की आत्मा या 'आवाहन' करें।
  • धूप के साथ तेल या घी का दीया जलाएं।
  • अपनी प्रार्थनाएँ करें और Saraswati Mantras का जाप करें जैसे:

ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः॥

Om Aim Saraswatyai Namah॥

ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात्॥

Om Vagdevyai cha Vidmahe Kamarajaya Dheemahi। Tanno Devi Prachodayat॥

  • परंपरागत रूप से फूल, चावल, मिठाई, तिलक, और प्रसाद की प्रस्तुतियों के साथ सरस्वती पूजा करें। आरती के साथ समाप्त करें और घंटी बजाएं।
  • घर पर बनाए गए विशेष पकवान जैसे खीर, पूड़ी-सब्जी आदि का भोग लगाएं।
  • देवी सरस्वती को समर्पित औपचारिक संगीत और भजन गाएं या बजाएं।
  • इस दिन पढ़ाई न करें और मां सरस्वती को प्रसाद स्वरूप किताबें, पेन और नोटबुक किसी वंचित व्यक्ति को दान करें।
  • उत्सव समाप्त होने पर मूर्ति को आदरपूर्वक जल में डालकर विसर्जन करें और देवी को विदा कहें।

सरस्वती माता को क्या अर्पित करें?

केसर भात के भोग से ज्ञान की देवी मां सरस्वती अत्यंत प्रसन्न होती हैं। कहा जाता है कि इस भोग को लगाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। केसर हलवा भी मां सरस्वती को अत्यधिक पसंद है। सरस्वती पूजा में केसर हलवा एक पारंपरिक भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।

सरस्वती पूजा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

बसंत पंचमी पर कौन-कौन से कार्य करना वर्जित माना जाता है? इस दिन मां सरस्वती की आराधना की जाती है, जिसमें बिना स्नान किए किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। स्नान आदि करने के बाद ही मां सरस्वती की पूजा करें और उसके बाद ही कोई ग्रहण करें।

Saraswati Puja का महत्व और परंपराएँ

Saraswati Puja धार्मिक अनुष्ठानों से परे अपने गहरे अर्थ के लिए महत्वपूर्ण है। ज्ञान, कला और शिक्षा की संरक्षक देवी के रूप में, यह अवसर छात्रों के लिए एक नए साल की शुरुआत का प्रतीक है - एक सफल शैक्षणिक वर्ष के लिए Maa Saraswati से आशीर्वाद, ज्ञान और बुद्धि की कामना करते हैं। यह वसंत के आगमन का भी प्रतीक है, जिसे भारत में वसंत ऋतु/Vasant Ritu in India के रूप में जाना जाता है, जो फूलों वाले सरसों के खेतों की सुंदरता और जीवंतता से जुड़ा है।

यहां सरस्वती पूजा समारोह से जुड़ी कुछ परंपराएं और सांस्कृतिक प्रथाएं हैं:

  • लोग ज्ञान से भरा हुआ प्रकाशमय मन प्राप्त करने के लिए देवी सरस्वती की प्रार्थना करते हैं। छात्र अपनी किताबें, नोटबुक्स, और संगीत यंत्रों को पूजा के अल्टर पर रखकर मां सरस्वती की कृपा प्राप्त करते हैं। इस दिन पढ़ाई करने से वे समर्थानुसार बचते हैं, जो एक प्रकार के आदर्श के रूप में है।
  • फसल उत्सव होने के कारण, किसान वसंत के पहले दिन को मनाते हैं और अपने कृषि उपकरणों, मशीनरी और पाइपलाइनों की पूजा करते हैं।
  • भारत के कुछ क्षेत्रों में, बच्चों को उनके पहले शब्द, अक्षर, और किताबों से मिलता है, जब वे अपने शिक्षा के सफर की शुरुआत करते हैं - जैसा कि विद्यारम्भ (शिक्षा की शुरुआत) और अक्षरारम्भ (अक्षरों का परिचय) जैसे प्रतीकात्मक रीतिरिवाज होते हैं।
  • अधिकांश भक्त, खासकर युवा, परंपरागत पीले वस्त्र पहनते हैं, जो ज्ञान और खुशी का प्रतीक होता है। भगवान के लिए भोग प्रसाद के रूप में खीर, मिठा चावल का दलिया, बनाया जाता है, जो बुद्धि की प्राप्ति को सूचित करता है।
  • स्कूलों और शिक्षा केंद्रों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं - बच्चे नृत्य प्रदर्शन और नाटक करते हैं और देवी सरस्वती/Goddess Saraswati को समर्पित कविता और श्लोक पढ़ते हैं।
  • इस अवसर पर यह भी अनुशंसा है कि पुस्तकें, नोटबुक्स, और कलमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दान की जाएं, जो Saraswati Devi को समर्थन के रूप में सभी के लिए सुलभ शिक्षा को प्रोत्साहित करने का एक आदान-प्रदान है।

ऐसे सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के साथ, सरस्वती पूजा आशा, समृद्धि, ज्ञान और भक्ति की भावना को एक साथ लाती है।

देवी सरस्वती की पूजा का आध्यात्मिक महत्व

Saraswati Puja Significance: हिंदू पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में, मां सरस्वती को सभी ज्ञान - दिव्य और आध्यात्मिक दोनों - के स्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। वह रचनात्मक प्रेरणा, भाषण की शक्ति और ब्रह्मांडीय ज्ञान का प्रतीक है। देवी लक्ष्मी और दुर्गा की तरह, सरस्वती देवी सर्वोच्च स्त्री शक्ति ऊर्जा की त्रिमूर्ति बनाती हैं। वह सावित्री और गायत्री जैसे दिव्य रूपों, वैदिक मीटर और हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली मंत्रों में प्रकट हुई हैं।

देवी सरस्वती के चार हाथ मानव व्यक्तित्व और शिक्षा के चार पहलुओं को प्रतिष्ठित करते हैं - मन, बुद्धि, चौकसी, और अहंकार। जैसा कि एक नदी के किनारे पौधों को फूलने और फलने के लिए सही वातावरण प्रदान करते हैं, वैसे ही सरस्वती व्यक्ति की जीभ में निवास करती है, जो बुद्धिमत्ता के लिए उच्च वातावरण (भाषा और ज्ञान के माध्यम से) प्रदान करती है।

इस दिव्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा और सभी ज्ञान के भंडार से आशीर्वाद प्राप्त करना किसी को धार्मिक मार्ग की ओर ले जाता है, अज्ञान और पीड़ा को दूर करता है। इसलिए, सरस्वती माँ की पूजा करना, उनकी अतीन्द्रिय और अलौकिक गुणों को समझकर, अंतिम ज्ञान प्राप्त करने और चेतना की यात्रा में आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने का याग्य माना जाता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, Saraswati Puja एक धार्मिक उत्सव से अधिक है। मंत्र, श्लोक, सामाजिक कल्याण, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ रौंगती भरी धूम में, जो सरस्वती देवी को समर्पित हैं, यह अवसर उत्साही आत्मा की ओर संकेत करता है जो वसंत, ज्ञान, संभावनाएं, और विकास को लेकर आता है।

Saraswati Puja 2026 Date: Year 2026 में, जब वसंत पंचमी शुक्रवार, 23 जनवरी को आ रहा है, इस महत्व, रीति, और विवरण को ध्यान में रखकर अपने घर, शिक्षा केंद्र, या समुदाय में सरस्वती पूजा का आयोजन करें। मां सरस्वती के दैवी आशीर्वाद आपके आगामी सफलता को प्रकाशित करें!

FAQs

सरस्वती पूजा क्यों मनाई जाती है?

सरस्वती पूजा हिंदू ज्ञान, संगीत, कला, ज्ञान और शिक्षा की देवी - देवी सरस्वती के सम्मान में मनाई जाती है। यह एक सफल शैक्षणिक वर्ष के लिए आशीर्वाद चाहने वाले छात्रों के लिए वसंत की शुरुआत और नए साल की शुरुआत का प्रतीक है।

पूजा के दौरान देवी सरस्वती को क्या चढ़ाया जाता है?

सरस्वती पूजा के दौरान देवी को फूल, अक्षत, मिठाई, फल, खीर, चंदन का लेप और किताबें अर्पित की जाती हैं। संगीत वाद्ययंत्र और सीखने के उपकरण भी उनकी मूर्ति या छवि के पास रखे जा सकते हैं।

लोग सरस्वती पूजा कैसे मनाते हैं?

लोग पारंपरिक पीले कपड़े पहनकर, उपवास रखकर, रसोई में विशेष प्रसाद तैयार करके और स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करके जश्न मनाते हैं। किताबें, कलम और नोटबुक अक्सर वंचितों को भी दान किए जाते हैं।

सरस्वती पूजा पर छात्र पढ़ाई क्यों नहीं करते?

छात्र देवी के प्रति सम्मान और भक्ति के रूप में सरस्वती पूजा के दिन पढ़ाई नहीं करते हैं। वे पूजा में भाग लेते हैं और पूजा के इस विशेष दिन पर ज्ञान और आशीर्वाद के लिए शैक्षणिक गतिविधियों से दूर रहते हैं।

Basant Panchami 2026: जाने कब है बसंत पंचमी, तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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Jane Kab hai Basant Panchami 2026: यह त्योहार देवी सरस्वती को समर्पित है। जानें 2026 में बसंत पंचमी के महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त समय, कथा और तिथि के बारे में विस्तार से पढ़ें।

Basant Panchami 2026: बसंत पंचमी, जिसे Vasant Panchami or Saraswati Puja के रूप में भी संदर्भित किया जाता है, प्रतिवर्ष बसंत के आगमन की सूचना देने के लिए मनाया जाने वाला एक शुभ हिन्दू त्योहार है। इस उत्सव के अवसर पर हम सरस्वती की भी पूजा करते हैं, जो संगीत, ज्ञान, कला, और शिक्षा की हिन्दू देवी हैं। 2026 में, बसंत पंचमी को 23 जनवरी को मनाया जाएगा।

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आगे बढ़ने के लिए पढ़ें और जानें कि Basant Panchami 2026 के उत्सव के लिए पूजा तिथि, महत्व, पूजा के तरीके, संबंधित किस्से, और बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त समय।

2026 में बसंत पंचमी कब है?

2026 Me Basant Panchami Kab Hai: बसंत पंचमी प्रतिवर्ष हिन्दू माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। हिन्दू चंद्र सौर कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि ग्रीगोरियन कैलेंडर के लेट जनवरी या शुरू फरवरी को मिलती है।

Vasant Panchami के दिन, सरस्वती भक्तों को सकारात्मक परिणामों के लिए सबसे शुभ क्षणों में पूजा और बलियाँ अर्पित करनी चाहिए। 2026 में, उत्सव को बसंत पंचमी की तिथि और देवी सरस्वती पूजा मुहूर्त/Goddess Saraswati Puja Muhura के साथ याद किया जाएगा।

Know the Basant Panchami 2026 Date and Time

  • तिथि: शुक्रवार, 02 जनवरी, 2026
  • वसंत पंचमी मुहूर्त - सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक
  • अवधि - 05 घंटे 20 मिनट
  • बसंत पंचमी मध्याह्न का समय - 12:33 बजे तक
  • पंचमी तिथि आरंभ - 23 जनवरी 2026 को 02:28 AM बजे से
  • पंचमी तिथि समाप्त - 24 जनवरी 2026 को 01:46 AM बजे

चुना गया Shubh Muhurat आम तौर पर शहर के अनुसार अलग-अलग होता है, इसलिए अपने स्थान पर सटीक समय के लिए किसी भी हिंदू पंचांग या पंचांग की जांच करें। अधिकतम लाभ के लिए अपनी 2026 Vasant Panchami प्रार्थनाओं को तदनुसार निर्धारित करें।

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2026 Vasant Pancham महोत्सव के बारे में सब कुछ

जैसे ही वसंत ऋतु आती है, देश भर में हिंदू बसंत या वसंत पंचमी मनाते हैं, जो भव्यता से चिह्नित एक शुभ त्योहार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन, पंचमी तिथि को होने वाली इसे दक्षिणी क्षेत्रों में श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार दुनिया के निर्माता ब्रह्मा की पत्नी देवी सरस्वती की पूजा/Saraswati Puja के लिए समर्पित है। इस महत्वपूर्ण दिन पर, उन्हें संगीत, कला, ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता है।

भक्तों की मान्यताओं के अनुसार, देवी सरस्वती की पूजा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनकी अनुपस्थिति दुनिया को अज्ञानता के अंधेरे में डुबो देगी। हिंदू पौराणिक कथाओं में, देवी सरस्वती ब्रह्मांड में ज्ञान का प्रतीक हैं। इसीलिए यह दिन देवी सरस्वती के पसंदीदा प्रतीक पीले सरसों के फूलों के खिलने का जश्न मनाता है।

Basant Panchami 2026 पर सरस्वती पूजा करने की विधि क्या है?

इस त्योहार के दौरान, देश भर के परिवार उज्जवल भविष्य के लिए देवी सरस्वती का आशीर्वाद मांगते हैं। नीचे, हमने एक सफल करियर और शैक्षणिक जीवन के लिए सरस्वती पूजा/Saraswati Puja करने के विभिन्न चरणों की रूपरेखा दी है।

  • देवी सरस्वती की मूर्ति को लकड़ी के मंच पर रखें और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
  • पूजा क्षेत्र को रंगोली से सजाएं।
  • दाहिनी ओर जलता हुआ तेल का दीपक रखें।
  • ध्यान में संलग्न हों और प्रतिज्ञा या संकल्प लें।
  • निर्विघ्न पूजा के लिए आशीर्वाद पाने के लिए भगवान गणेश का आह्वान करें।
  • देवी सरस्वती को बुलाने के लिए आवाहन करें।
  • मूर्ति के लिए अर्घ्य, आचमनिया और स्नान अनुष्ठान करें।
  • देवी को घी, शहद, दही, गाय के दूध और गुड़ से बना पंचामृत अर्पित करें।
  • मूर्ति पर गंगाजल चढ़ाएं।
  • मूर्ति को हल्दी, चंदन, सिन्दूर और फूलों से सजाएं।
  • देवी को नैवेद्यम अर्पित करें, साथ में ताम्बुलम - एक थाली जिसमें पान के पत्ते, मेवे, नारियल, हल्दी और केला शामिल हो।
  • अनुष्ठान का समापन आरती के साथ करें और प्रणाम करें।

बसंत पंचमी महोत्सव का महत्व क्या है?

जैसे ही भारत में वसंत ऋतु शुरू होती है, प्रकृति पीले सरसों के फूलों से खिल उठती है, जिन्हें हिंदी में 'बसंत' के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस रंग की जीवंतता और प्रसन्नता सकारात्मकता और उल्लास का संचार करती है, जो वसंत के आगमन का संकेत देती है।

इस प्रकार, बसंत पंचमी प्रकृति की रचना का सम्मान करने और आने वाले एक समृद्ध वर्ष के वादे के सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है। लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले खाद्य पदार्थों जैसे केसर चावल, मीठे व्यंजन आदि का आनंद लेते हैं। पतंग उड़ाने का उत्सव भी मनाया जाता है क्योंकि आसमान में पीली पतंगें दिखाई देती हैं।  

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन उत्साहपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। संगीत, ज्ञान और ज्ञान के स्रोत के रूप में, परिवार एक समृद्ध वर्ष के लिए मां सरस्वती का आशीर्वाद मांगते हैं। छात्र शिक्षा और रचनात्मक कलाओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए उनके दैवीय हस्तक्षेप की भी तलाश करते हैं। इस अवसर पर मंदिर और शैक्षणिक संस्थान विशेष सरस्वती पूजा का आयोजन करते हैं।

कुल मिलाकर, यह एक जीवंत वसंत उत्सव है जो पुनर्जन्म, नवीनीकरण और ज्ञान के प्रति श्रद्धा पर केंद्रित है।

बसंत पंचमी मंत्र / Basant Panchami Mantra in Hindi

  • या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।
  • या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
  • Ya Kundendutusharhardhavla Ya Shubhravastravrata
  • Ya Veenavardandamanditkara Ya Shvetapadmasana
  • Ya Brahmachyut Shankarprabhritibhirdevai Sada Vandita
  • Sa Maa Patu Saraswati Bhagwati Nihsheshjadyapaha.

Basant Panchami का मनाया जाने का कारण

बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू पंचांग के मार्ग मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है, जो सामान्यत: जनवरी और फरवरी के बीच आता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है, जो ज्ञान, कला, संगीत, और विद्या की देवी हैं। बसंत पंचमी को वसंत ऋतु के प्रारंभ का सूचक माना जाता है, जो हरियाली, फूलों, और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है।

इस दिन शिक्षार्थियों और कलाकारों द्वारा देवी सरस्वती की पूजा की जाती है ताकि उन्हें ज्ञान और कला में आशीर्वाद मिले, और लोगों को नए आरंभ के लिए प्रेरित करे। बसंत पंचमी को वसंत के साथ जुड़ा होता है और इसे सुंदर फूल, रंग-बिरंगे वसंत के साथ मनाने का अवसर मिलता है। इस त्योहार को लोग बच्चों से लेकर बड़ों तक बहुत समर्पण भाव से मनाते हैं और समाज में एकता और उत्साह का माहौल बनाते हैं।

2026 बसंत पंचमी पूजा की विधि क्या है?

Basant Panchami के दिन हिंदू भगवान ब्रह्मा के साथ-साथ देवी सरस्वती की भी विधि-विधान से पूजा करते हैं। पूजा के दौरान पीले फूल, फल और मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं। यहां घर पर बसंत पंचमी पूजा करने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया दी गई है:

  • अपने पूजा स्थल को साफ और स्वच्छ करें। इसे पीले फूलों, आम के पत्तों और केले के पौधों से सजाएं। आप ज्ञान और रचनात्मक कलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए किताबें, संगीत वाद्ययंत्र, स्टेशनरी आदि भी रख सकते हैं।
  • पूजा के केंद्र के रूप में सरस्वती की मूर्ति या छवि स्थापित करें। वैकल्पिक रूप से, मूर्ति के स्थान पर कपूर की लौ जलाकर रखें।
  • भगवान ब्रह्मा का आह्वान करें और उनसे देवी सरस्वती को पूजा समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध करें।
  • कपूर या अगरबत्ती से सरस्वती की साधारण आरती करें। चंदन का लेप, कुमकुम, पीले फूल और मीठे चावल या अन्य पीले रंग का प्रसाद चढ़ाएं।
  • 'ओम सरस्वती नमः' जैसे सरस्वती मंत्रों का जाप करें और भजन सामूहिक रूप से उन्हें समर्पित हैं।
  • परिवार के बड़े सदस्य बच्चों के साथ देवी के बारे में पौराणिक कहानियाँ साझा कर सकते हैं और उनकी पवित्र शिक्षाएँ प्रदान कर सकते हैं।
  • सरस्वती को प्रणाम और भक्ति करके और प्रसाद वितरित करके पूजा समाप्त करें।

Basant Panchami से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सरस्वती का जन्म माघ शुक्ल पंचमी के इस शुभ दिन पर हुआ था जब ब्रह्मा ने उन्हें अपनी सहचरी बनाया था।

एक बार ब्रह्मा ने एक महान यज्ञ किया जिसमें से एक युवा लड़की निकली। शुद्ध सफेद साड़ी और शानदार गहनों से सजी हुई उनके हाथों में वीणा और पांडुलिपि थी। ब्रह्मा ने तुरंत उसे अपनी पत्नी के रूप में पहचान लिया, जो उसके विचारों से उत्पन्न हुई थी, दिव्य ज्ञान और लालित्य से संपन्न थी।

इस प्रकार, उन्होंने उसका नाम सरस्वती रखा, जिसका अर्थ है "स्वयं का सार"। जैसे ही वह शालीनता से ब्रह्मा की ओर बढ़ी, उसके पैरों के नीचे हरी-भरी घास उग आई और उसकी राह में कमल खिल गए। यह दिव्य जोड़ा बाद में दुनिया में ज्ञान, संगीत और आध्यात्मिकता को सशक्त बनाने वाली दोहरी ताकत बन गया।

एक अन्य लोकप्रिय कहानी में सरस्वती द्वारा अपने पति ब्रह्मा को श्राप देना शामिल है, जब उन्होंने किसी अन्य महिला पर नज़र डाली थी। क्रोधित होकर, सरस्वती ने उन्हें शाप दिया कि लोग कभी भी उनकी पूजा नहीं करेंगे। तुरंत पश्चाताप करते हुए, ब्रह्मा ने जवाब दिया कि उनका श्राप उनके जन्म के पवित्र दिन बसंत पंचमी पर प्रभावी होगा। तब से बसंत पंचमी पर ब्रह्मा के प्रति प्रकट समर्पण के बजाय देवी सरस्वती की पूजा करने वाले समारोह मुख्य उत्सव बन गए।

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Vasant Panchami पर बनाये जाने वाले क्लासिक व्यंजन

चूंकि बसंत पंचमी जीवंत पीले रंग में डूबी हुई है, इस विशेष दिन पर तैयार किए गए व्यंजन भी पीले रंग के रंगों को दर्शाते हैं। इस अवसर पर विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं, जो दिलों को पीले रंग के समान आशावाद और समृद्धि की भावना से भर देते हैं। इस शुभ दिन पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में बनाए जाने वाले व्यंजन नीचे दिए गए हैं:

  • खिचड़ी: दाल और चावल के मिश्रण को प्रचुर मात्रा में घी के साथ पकाया जाता है, खिचड़ी को अचार, पापड़, दही और सलाद जैसे विभिन्न ऐपेटाइज़र के साथ पूरक किया जाता है।
  • पकौड़े: बंगाली परिवार इस अवसर को प्याज, आलू, फूलगोभी और कद्दू जैसी विभिन्न सब्जियों से बने पकौड़े तैयार करके मनाते हैं।
  • बेगुनी: बैंगन से तैयार किया गया पकौड़ा, बीगनी, खिचड़ी के आवश्यक साथी के रूप में काम करता है।
  • केसरी चावल: पंजाब और पड़ोसी क्षेत्रों में लोकप्रिय मिठाई, जिसे मीठे चावल के नाम से भी जाना जाता है।
  • केसरी राजभोग: केसर युक्त चीनी की चाशनी में डूबे पनीर से यह स्वादिष्ट मिठाई बनती है।
  • नारियाल बर्फी: केसर युक्त कसा हुआ नारियल चीनी और मावा के साथ मिलकर यह स्वादिष्ट मिठाई बनाती है।
  • कुल चटनी: यह त्योहार कुल या भालू के फल से बने अचार और डिप के बिना अधूरा है।
  • बूंदी के लड्डू: कोई भी सरस्वती पूजा इन प्रतिष्ठित भारतीय मिठाई वस्तुओं के बिना पूरी नहीं होती है।

जानिए Vasant Panchami 2026 के ज्योतिषीय लाभ

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सरस्वती पूजा करने से शुक्र, बृहस्पति, चंद्र और बुध ग्रह सहित विभिन्न ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जा सकता है। इस पूजा का व्यापक लाभ महादशा और अंतर्दशा का अनुभव करने वाले व्यक्तियों को राहत प्रदान करने तक फैला हुआ है।

जो लोग अपनी जन्म कुंडली में विशिष्ट दशाओं से गुजर रहे हैं, उनके लिए इस पूजा को दान और दान के कार्यों के साथ जोड़ने से ग्रहों के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, बृहस्पति, चंद्रमा, शुक्र या बुध के वक्री होने से प्रभावित व्यक्ति भी इस पूजा से लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

Basant Panchami से जुड़ी कहानियाँ

इस दिन से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध किंवदंतियों में से एक प्रेम के देवता कामदेव और उनकी प्यारी पत्नी रति के साथ उनके मिलन की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है। पौराणिक कथाओं में, देवी पार्वती ने भगवान शिव को उनके गहन ध्यान से जगाने के लिए काम देव की सहायता मांगी। दुनिया की उथल-पुथल और शिव की उपस्थिति की आवश्यकता को देखते हुए, पार्वती ने काम देव से गन्ने से एक धनुष बनाने और शिव का ध्यान भौतिक दुनिया की ओर वापस लाने के लिए फूलों से बना तीर चलाने का आग्रह किया।

हालाँकि, इन कार्यों से क्रोधित होकर शिव ने अपनी तीसरी आँख खोली, जिससे दुनिया का विनाश हुआ। इस प्रक्रिया में, उसने प्रेम के देवता को जलाकर राख कर दिया। कामदेव की पत्नी रति की याचिका का जवाब देते हुए, शिव ने अंततः पति-पत्नी को फिर से मिलाते हुए, उनके पति के जीवन को बहाल कर दिया। इसके अलावा, यह घटना भगवान शिव की वैराग्य अवस्था से गृहस्थ जीवन (गृहस्थ अवस्था) में लौटने का प्रतीक है।

शुभ दिनों की एक श्रृंखला की शुरुआत को चिह्नित करते हुए, Basant Panchami 2026 की तारीख ठंडी सर्दियों के समापन का प्रतीक है और उज्ज्वल धूप की अवधि का स्वागत करती है। यह आशावाद और सीखने का आनंद लेने का क्षण है, क्योंकि ये तत्व हमें जीवन में प्रगति करने के लिए प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

हर साल, माघ शुक्ल पंचमी दैवीय विधान और श्रद्धा के साथ वसंत का हर्षित वादा लेकर आती है। 23 जनवरी को 2026 समारोह में मां सरस्वती की महिमा और प्रकृति के जागरण की भव्य बसंत पंचमी उत्सव मनाया जाएगा।

आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण इस अवसर का सम्मान पीले रंग के कपड़े पहनकर, व्यंजनों का आनंद लेकर, पतंग उड़ाकर और सच्चे मन से देवी सरस्वती की पूजा करके करें। उनकी शाश्वत बुद्धिमत्ता और कलात्मक प्रतिभा आपको रचनात्मक प्रेरणा और बुद्धि का उपहार देगी।

यह बसंत पंचमी आपके सभी सपनों और समृद्धि को पूरा करे!

FAQs

2026 में Basant पंचमी कब है?

Saraswati Puja 2026 Date: सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी प्रतिवर्ष मार्ग मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है, और 2026 में, सरस्वती पूजा और वसंत पंचमी 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस बार सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को सुबह 07:13 बजे से 12:33 बजे तक पर होगा।

बसंत पंचमी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

ऐसा माना जाता है कि ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती वसंत पंचमी के दिन ही सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुई थीं। इसी कारण से सभी ज्ञान के उपासक वसंत पंचमी के दिन अपनी आराध्य देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।

घर पर Basant Panchami कैसे बनाएं?

वसंत पंचमी के दिन, उठें, अपने घर और पूजा क्षेत्र को साफ करें और सरस्वती पूजा के लिए स्नान करें। चूंकि पीला रंग देवी सरस्वती का पसंदीदा रंग है, इसलिए नहाने से पहले पूरे शरीर पर नीम और हल्दी का लेप लगाएं। स्नान के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

2026 में सरस्वती पूजा कब है?

जानें 2026 में, सरस्वती पूजा 23 जनवरी 2026, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

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