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जानिए वास्तु के अनुसार चांदी के नाग-नागिन के जोड़े कब और कैसे रखें

वास्तु (Vastu) और ज्योतिष शास्त्र (Astrology) के अनुसार चांदी के नाग- नागिन के जोड़ों के कई उपयोग हो सकते हैं। आओ विस्तार से जानते हैं कि चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को कब, कैसे और कहां रखना चाहिए।

पूजा- Puja :

चांदी के नाग-नागिन के जोड़ों को पूजा घर (House of Worship) में उचित स्थान पर रखकर विधिवत रूप से गुग्गल की धूप देकर पूजा करने, कच्चा दूध, बताशा और फूल अर्पित से कालसर्प दोष (Kaal Sarp Dosh) और सर्पदोष दूर होता है। सर्प भय नहीं रहता और बुरे स्वप्न भी नहीं आते हैं। पितृदोष (Pitra Dosha) भी दूर होता है।

दान- Donation :

पंचमी के दिन चांदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा किसी विप्र को या किसी मंदिर में दान (Donation to Temple) करना बेहद शुभ माना जाता हैं। इससे आ‍पकी आर्थिक तंगी दूर होकर आपको धन लाभ होने की संभावना बढ़ जाएगी।

वास्तु-Vastu :

मकान बनाने के पूर्व नींव खोदी जाती है और उस नींव में वास्तु के अनुसार धातु का एक सर्प और कलश रखा जाता है। चांदी का सर्प इसलिए रखते हैं क्योंकि नागदेव (Nagdev) ने ही धरती के आधार माने जाते हैं। सातों पाताल के राजा नाग ही है। इसीलिए नींव पूजन के दौरान प्रतिकात्मक रूप से शेषनाग की आकृति को कलश के साथ रखा जाता है। इसमें यही भाव रहता है कि जैसे शेषनाग (Sheshnag) अपने फण पर संपूर्ण पृथ्वी को धारण किए हुए है और रक्षा किए हुए हैं उसी उसी प्रकार मेरे इस भवन की भी रक्षा करें।

शेषनाग- Sheshnag :

नींव को भरने से पहले उसमें चांदी का बना हुआ नाग-नागिन का जोड़ा दबाया जाता है। माना जाता है कि जिस प्रकार से भगवान कृष्ण की रक्षा शेषनाग ने की थी उसी प्रकार से यह भी घर को हर प्रकार की बलाओं से बचाएगा। नींव में चांदी के नाग बनाकर रखा जाता है। उसके साथ विष्णुरूपी कलश को क्षीरसागर का भी प्रतीक माना है जिसमें जल और दूध मिला होता है और उसमें जो सिक्का रखा जाता है वह देवी लक्ष्मी जी (Goddess Lakshmi) का प्रतीक है। तीनों का विधिवत रूप से पूजन होता है।

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