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कब से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा, जानें इतिहास व यात्रा के नियम

सावन महीने में 14 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हो रही है। सावन शिवभक्तों के लिए खास होता है। मान्यता है कि इस महीने सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा निकालते हैं।  मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

यात्रियों को कहते हैं कांवड़िया

यात्रा शुरू करने से पहले भक्त बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ किसी पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं। इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं। इस कांवड़ को यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इस यात्रा को कांवड़ यात्रा और श्राद्धलुओं को कांवडिया कहा जाता है। 

कांवड़ यात्रा का इतिहास

कहा जाता है कि भगवान परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त थे। मान्यता है कि वे सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास पुरा महादेव गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। उस समय सावन महीना था। इसी परंपरा को निभाते हुए श्रद्धालु सावन मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे।

कांवड़ यात्रा के नियम

हिंदू धर्म के अनुसार, कांवड़ियों को एक साधु की तरह रहना होता है। गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का सफर नंगे पांव करते हैं। यात्रा के दौरान किसी भी तरह के मांसाहार की मनाही होती है। इसके अलावा किसी को अपशब्द नहीं बोला जाता। इसके अलावा चारपाई, बेड आदि पर बैठने की मनाही होती है।

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