जैसे जैसे मौसम में तल्खी बढ़ रही है। वैसे वैसे लोग इससे निपटने के उपाय ढूंढ रहे है। तल्ख धूप, उमसभरी गर्मी तथा पारा 40 डिग्री से बढ़ने से लोगों का गला हर पल सूख रहा है। पल पल सूखते हलक को तर करने के लिए लोग पानी, ठंडा पेय के साथ ही बड़े पैमाने पर ककड़ी, खीरा, तरबूज जैसे मौसमी फलों का उपयोग भी कर रहे है। जिसमें ककड़ी और तरबूज की मांग सबसे अधिक हो रही है। तरबूज का स्वाद मीठा व रसीला होने के साथ ही गर्मी में सूखते गले को तत्काल राहत मिल जाती है। वही ककड़ी नमक के साथ खाने से न सिर्फ प्यास का असर कम होता है बल्कि पेट के लिए लाभदायक भी होता है।
तरबूज में औषधीय गुण होने से यह गर्मी से बचाने के साथ ही हमारे सेहत तथा पाचन को भी ठीक रखता है। इन्हीं गुणों के कारण इस भीषण गर्मी के मौसम में लोगो द्वारा ककड़ी और तरबूज का सेवन बड़े पैमाने पर किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्र से लेकर सेवराई तहसील मुख्यालय तक हर जगह इसकी मांग हो रही है। इस बार भी पारा चढ़ने के साथ ही ककड़ी की डिमांड बढ़ने लगी है। जिसे पूरा करने के लिए फल विक्रेताओं तथा फल के बड़े व्यवसायियों द्वारा बड़े पैमाने पर ककड़ी का आयात गंगा पार इलाके से किया जा रहा है।
फल विक्रेता मो इसराइल ने बताया कि गाजीपुर के गंगा के समीपवर्ती इलाकों से हर दिन ककड़ी और तरबूज की बड़ी खेप मंगवाया जाता है। किसान गंगा नदी के रेतीली मिट्टी पर तरबूज, ककड़ी, खीरा आदि के उत्पादन बड़े पैमाने पर करते है। गंगा की रेतीली मिट्टी इन मौसमी फलों के लिए काफी मुफीद है। सेवराई तहसील क्षेत्र के सायर, रायसेनपुर, हसनपुरा, नसीरपुर रेवतीपुर क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में तरबूज और ककड़ी की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
जिसका निर्यात दूर-दूर तक किया जाता है। ककड़ी के बाजार में आने के साथ इसके शौकीनों में खुशी की लहर है। एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ सेवराई तहसील क्षेत्र में हर दिन पांच से दस क्विंटल तक ककड़ी की बिक्री हो रही है।
पारंपरिक रूप से इन्हें गर्मी में खाना अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं। ककड़ी के सीजन के शुरुआती दौर में दुकानदार इसे आंशिक मुनाफा के साथ 30 से ₹40 प्रति किलो की दर से बेच रहे हैं। रोजेदारों द्वारा भी ककड़ी और तरबूज का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है।