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मां के दर्शन को इच्छुक दूर दूर से आए श्रद्धालु, एकादशी तक लगेगा मेला

गहमर के सुप्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर पर नवरात्रि के पहले दिन श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा। भोर से ही श्रद्धालुओं के आने का क्रम शुरू हो गया था, जो देर शाम तक चलता रहा। श्रद्धालुओं के द्वारा कतारबद्ध होकर बारी-बारी से माता रानी के गर्भगृह में दर्शन पूजन किया गया।

सेवराई तहसील क्षेत्र के गहमर स्थित मां कामाख्या देवी मंदिर सुप्रसिद्ध शक्तिपीठों में गिना जाता है। जहां चैत्र और शारदीय नवरात्रि में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। लोगों द्वारा सपरिवार पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हुए अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। चैत्र नवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की खासा भीड़ उमड़ती है। मंदिर समिति के द्वारा श्रद्धालुओं के सुविधा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार की इंतजाम किए जाते हैं।

मेले का होता है आयोजन

जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर ताड़ीघाट बारा मुख्य मार्ग पर करहिया गांव के पास सुप्रसिद्ध कामाख्या देवी मंदिर बना हुआ है। यहां चैत्र नवरात्रि में मेले का आयोजन होता है। क्षेत्र सहित दूरदराज के हजारों दुकानदार यहां अपने भरण-पोषण के लिए मेले में भाग लेते हैं। प्रसाद, चुनरी, फूल, माला, सौंदर्य प्रसाधन एवं अन्य प्रकार के दुकानें सजती हैं। जो एकादशी तक दुकानें मेले के रूप में सजी रहती है।

कई कथाएं प्रचलित

मंदिर के पुजारी बबुआ बाबा ने बताया कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें मां अवश्य पूरी करती हैं। सिकरवार वंश की कुलदेवी मां कामाख्या को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यहां जमदग्नि, विश्वामित्र सरीखे ऋषि-मुनियों का सत्संग समागम हुआ करता था। विश्वमित्र ने यहां एक महायज्ञ भी किया था।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने यहीं से आगे बढ़कर बक्सर में ताड़का नामक राक्षसी का वध किया था। मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि पूर्व काल में फतेहपुर सिकरी में सिकरवार राजकुल पितामह खाबड़ जी महाराज ने कामगिरी पर्वत पर जाकर मां कामाख्या देवी की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न मां कामाख्या ने कालांतर तक सिकरवार वंश की रक्षा करने का वरदान दिया था।

वर्ष 1840 तक मंदिर में खंडित मूर्तियों की ही पूजा होती रही। 1841 में गहमर के ही एक स्वर्णकार तेजमन ने मनोकामना पूरी होने के बाद इस मंदिर के पुर्ननिर्माण का वीणा उठाया। वर्तमान समय में मां कामाख्या सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां परिसर में स्थापित हैं।

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