तुम बच्चों का ख्याल रखना, अल्लाह ने चाहा तो जल्द मुलाकात होगी। छुट्टी पर घर आए परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद अपनी पत्नी रसूलन बीबी से इतना बोल कर युद्धभूमि के लिए निकल गए। वे युद्ध से लौटे, लेकिन पूरे देश के दिलों में जगह बनाकर, अमर होकर।
वीर अब्दुल हमीद ने 27 दिसंबर, 1954 को भारतीय सेना में अपनी सेवा देनी शुरू की थी। पहले वह भारतीय सेना के ग्रेनेडियर रेजीमेंट में भर्ती हुए। बाद में उनकी तैनाती रेजीमेंट के चार ग्रेनेडियर बटालियन में हुई, जहां उन्होंने अपने सैन्य सेवा काल तक सेवाएं दीं। उन्होंने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल प्राप्त किया था।
अचूक निशाने से ध्वस्त किए थे टैंक
आठ सितंबर, 1965 की रात पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमले के जवाब में भारतीय सेना ने मोर्चा संभाल लिया। वीर अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारन जिले के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात थे। पाकिस्तान ने उस समय के अपराजेय माने जाने वाले अमेरिकन पैटन टैंकों के साथ हमला कर दिया। वीर अब्दुल हमीद ने जीप में बैठकर गन से सटीक निशाना लगाते हुए एक-एक कर पैटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया। हालांकि जीप पर एक गोला गिरने से वह घायल हो गए और अगले दिन 10 सितंबर को शहीद हो गए।
आरसीएल गन का डमी है पार्क में स्थापित
जिस आरसीएल गन से वीर हमीद ने टैंकों को ध्वस्त किया था, उसे जबलपुर के आर्मी सेंटर में रखा गया है। उसकी डमी करीब चार साल पूर्व 10 सितंबर को उनकी शहादत दिवस पर हमीद पार्क में स्थापित की गई। करीब दो साल पहले वीर अब्दुल हमीद के बगल में उनकी पत्नी रसूलन बीबी की प्रतिमा इसी पार्क में लगी। हमीद के चार बेटे व एक बेटी है। एक बेटे का निधन हो चुका है। हमीद के नाम से उनके पैतृक गांव धामूपुर में पार्क के अलावा एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा जलालाबाद से वाया अमारी गाजीपुर तक शहीद मार्ग है।
महामारी समाप्त होने के बाद फिर से इस आयोजन को भव्य रूप दिया जाएगा
कोरोना की वजह से इस बार जयंती पर केवल प्रतिमा पर माल्यार्पण का कार्यक्रम आयोजित होगा। घर पर जन्मदिन के मौके पर कु छह लोगों को भोजन कराया जाएगा। महामारी समाप्त होने के बाद फिर से इस आयोजन को भव्य रूप दिया जाएगा।