इसे विभागीय उदासीनता और इच्छा शक्ति का अभाव ही कहेंगे। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए एक साल पहले शुरू की गई कई परियोजनाएं अटक गईं। चकिया स्थित जिला संयुक्त चिकित्सालय में प्रस्तावित आक्सीजन प्लांट की निर्माण प्रक्रिया बीच में रुकी तो आज तक चालू नहीं हुई। स्वास्थ्य विभाग ने भी इसके लिए कोई खास पहल नहीं की। कोरोना का संकट गहराया और आक्सीजन की किल्लत हुई, तो प्लांट की जरूरत महसूस होने लगी। खैर, देर से ही सही आखिर जनप्रतिनिधि और अधिकारी जागे। सांसद व विधायकों ने जिले में छह आक्सीजन प्लांट लगाने के लिए अपनी निधि से 1.20 करोड़ रुपये दिए। इससे लोगों में उम्मीद जगी है।
चकिया जिला संयुक्त चिकित्सालय में आक्सीजन प्लांट का निर्माण होना था। इसके लिए एक साल पहले ही प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी लेकिन बीच में मामला अटक गया। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारी भी स्पष्ट रूप से कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं। विभाग की ओर से अटकी निर्माण प्रक्रिया को शुरू कराने के लिए कोई खास पहल भी नहीं की गई। इससे मामला आगे नहीं बढ़ सका। कोरोना काल में जिले में प्राणवायु की घोर किल्लत है। स्वास्थ्य विभाग भले ही पर्याप्त संसाधन होने का दावा कर रहा हो तो अस्पतालों की दर्द भरी दास्तान इंतजामों की कलई खोल रही हैं।
कहीं आक्सीजन नहीं तो कहीं बेड का टोटा, सरकारी अस्पतालों की यही कहानी है। लोगों को भर्ती होने के लिए अधिकारियों, सांसद, विधायक व डाक्टरों से पैरवी लगानी पड़ रही। हालांकि बेड खाली रहने पर ही अस्पतालों में जगह मिल रही, वरना सारी पैरवी धरी की धरी रह जाएगी। जनप्रतिनिधियों ने अतिपिछड़े जिले के निजी अस्पतालों को सुविधा संपन्न बनाने का बीड़ा उठाया है। प्रशासन ने यदि गंभीरता के साथ काम किया तो छह आक्सीजन प्लांट जल्द शुरू हो जाएंगे। इससे कोरोना काल में टूटती सांसों को सहारा मिलेगा।