वासंतिक नवरात्र (भारतीय नव संवत्सर) चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा यानी 13 अप्रैल से शुरू हो रहा है, जो 21 अप्रैल से तक चलेगा। लोग शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ ही देवी का नौ दिनों तक पूजन अर्चन व आराधना करेंगे।
ज्योतिषी वेदमूर्ति शास्त्री के मुताबिक चैत शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि सनातन संस्कृति की मान्यताओं के अनुसार ही सूर्योदय से मानी जाती है। ऐसे में प्रतिपदा में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 13 अप्रैल को सुबह 8:47 तक है। जबकि सूर्योदय सुबह 5:43 मिनट पर होगा। उन्होंने बताया कि इस बार आनंद नाम संवत्सर से इस वर्ष की शुरूआत हो रही है। इसलिए भक्त देवी की आराधना कर कोरोना से मुक्ति की कामना करें। 'ओम ऐं हृीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' आदि देवी मंत्रों का जप करें। ज्योतिषी विमल जैन ने बताया कि कलश लोहे या स्टील का नहीं होना चाहिए। शुद्ध मिट्टी का हो। सभी नैवेद्य के साथ इसकी विधि-विधान से स्थापना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। सभी मनोकामना पूर्ण होगी।
मां गौरी के नौ स्वरूपों की होगी पूजा
वासंतिक नवरात्र में देवी मां गौरी के नौ स्वरूपों का दर्शन पूजन होगा। पहले दिन मुख निर्मालिका गौरी, द्वितीयं ज्येष्ठा गौरी, तृतीय सौभाग्य गौरी, चतुर्थ शृंगार गौरी, पंचम विशालाक्षी गौरी, षष्ठं ललिता गौरी, अष्टम् मंगला गौरी और नवम् सिद्ध महालक्ष्मी गौरी की पूजा होगी। ज्योतिषी विमल जैन के मुताबिक नवरात्र में नव दुर्गा व मां गौरी के स्वरूपों की पूजा होती है। मगर इस नवरात्र में देवी मां गौरी के पूजन का विशेष महत्व है। काशी में नौ गारी के स्वरूप मौजूद है। ऐसा अन्य शहरों में नहीं है। इसलिए भक्त मां दुर्गा के स्वरूपों का भी दर्शन पूजन करते हैं।