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कब है Holi? जानिए, रंगों के इस त्योहार का पौराणिक व धार्मिक महत्व

होली (Holi 2024) भारतीयों का प्रसिद्ध पर्व है जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसे फगुवा (असम), बसंत उत्सव, धुलण्डी, शिग्मो (गोवा), शिमगा (महाराष्ट्र), दोल जात्रा (उड़ीसा, बंगाल) आदि निम्न नामों से भी जाना जाता है। विदेशों में भी यह पर्व को खासा पसंद किया जाता है। भारत समेत कई देशों में इस त्योहार को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। हालांकि, होली का पर्व अब ग्लोबल हो गया है। लेकिन ग्लोबल होने के साथ-साथ यह अपना पौराणिक भी महत्व खोता जा रहा है। ज़्यादातर लोग अब इसे सिर्फ़ रंगों के पर्व के रूप में ही जानते हैं। वे लोग इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व से अनजान हैं। तो आइए, जानते हैं कि इस बार कब है यह पावन त्योहार? इसका मुख्य पौराणिक और धार्मिक महत्व क्या है? जानिए, इसके विविध रूप को, उनसे जुड़ी परंपराएं और शुभ रंग…

होली का पौराणिक संदर्भ

वेदों, पुराणों और अभिलेखों में होली के त्योहार का उल्लेख मिलता है। नारद पुराण, भविष्य पुराण और जैमिनी मीमांसा में होलीकोत्सव की चर्चा की गई है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ (Ramgarh) में 300 बीसीई (BCE) के एक अभिलेख पर होलीकोत्सव का उल्लेख भी मिलता है। प्रसिद्ध मुस्लिम यात्री अल-बिरुनी भी अपनी पुस्तक किताब-उल-हिंद में होलीकोत्सव के बारे में बिस्तर से बताता है। कई अन्य मुस्लिम लेखकों ने लिखा है कि यह त्योहार को हिंदू भाई और मुस्लिम भाई दोनों धूमधाम से मनाते हैं। इस तरह प्राचीन और मध्य काल में इस त्योहार का उल्लेख हिंदू और मुस्लिम लेखकों दोनों ने किया है। इसके अलावा मंदिर की दीवारों और लघु चित्रों में भी होली के उत्सव को चित्रित भी किया गया है। उदाहरण के लिए विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी (Hampi) के मंदिर की दीवार पर चित्रित होलीकोत्सव के दृश्य में बीच में राजकुमार और राजकुमारी को खड़े दिखाया गया हैं और उनके आस पास दासियां और कन्याएं हाथों में पिचकारी और गुलाल लिए हुए उन पर रंग फेंकने के लिए तैयार खड़ी हैं।

Holi 2024 Date: होली 2024 की तारीख

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे

होलिका दहन रविवार, मार्च 28, 2021 को
होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56
अवधि – 02 घंटे 20 मिनट

Holi का धार्मिक महत्व

होली का पर्व भगवान कृष्ण को बेहद प्रिय है। भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा और वृंदावन में आज भी होली के पर्व को उसी उल्लास से मनाया जाता है। यहां की होली पर्व विश्व भर में प्रसिद्ध है। कई लोग तो सिर्फ़ यहां की होली देखने के लिए ही भारत आते हैं। होली को यहां के लोग प्यार और स्नेह का पर्व मानते हैं। वे इसे पर्व को राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानते हैं। धार्मिक ग्रंथों में इससे संबंधित एक कथा का उल्लेख भी है। मान्यता है कि विष वाला दूध पी लेने से श्रीकृष्ण का वर्ण नीला हो गया। श्रीकृष्ण ने देखा की राधा तो गोरी है। अपने रंग पर शर्मिंदा होते हुए वे अक्सर मां यशोदा से पूछा करते कि मेरा रंग देखकर क्या राधा मुझसे प्रेम करेगी? एक दिन मां यशोदा ने तंग आकर कह दिया कि तुम कोई भी रंग लेकर राधा को रंग दो। फिर क्या था! श्रीकृष्ण ने गोपियों संग होली खेली और राधा को गुलाल से रंग दिया। तबसे होली का पर्व मनाया जाने लगा।

एक अन्य कथा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका से जुड़ी है। माना जाता है कि हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर अग्निकुंड में बैठ गई थी। उसे वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती लेकिन फिर भी वह जल गई जबकि भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गया। इस तरह बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में ही इसके अगले दिन होली का पर्व मनाया जाता है। होली के पर्व को धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने राक्षसी धुण्डी को श्राप दिया था जिसके कारण पृथु क्षेत्र के लोगों ने उसे अपने क्षेत्र से भगा दिया था।

Holi के विविध रूप और उससे जुड़े अनुष्ठान

होली को त्योहार भारत समेत पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। हर जगह इसे मनाने का अपना तरीका है जिनसे जुड़े महत्वपूर्ण अनुष्ठान और नियम इस प्रकार हैं:

  • इस दिन लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं जो नीम, कुमकुम, हल्दी और फूल से बने होते हैं।
  • होली से एक दिन पहले शाम को होलिका दहन किया जाता है। होलिका की अग्नि में गाय के गोबर के उपले, लकड़ी, घी, दूध, सूखा नारियल फेंका जाता है।
  • बंगाल में यह पर्व दोल जात्रा के नाम से जाना जाता है। इस दिन औरतें लाल या नारंगी किनारी वाली पारंपरिक सफेद साड़ी पहनती हैं और शंख बजाते हुए राधा-कृष्ण की पूजा करती हैं। लोग एक दूसरे को अबीर (इत्र वाले रंग) लगाते हैं। इस दिन मालपुआ, खीर और बसंती संदेश जैसे मीठे पकवान बनाए जाते हैं।
  • कर्नाटक में होली पर बेदारा वेशा (Bedara Vesha) नामक लोक नृत्य किया जाता है।
  • तमिलनाडु में इस पर्व को कामदेव के बलिदान के रूप में जाना जाता है, इसलिए यहां पर इसे कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा दाहानाम आदि नामों से जाना जाता है।
  • होली को नई फसल (रबी) के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन लोग दोस्तों-रिश्तेदारों के संग नाचते-गाते हैं। एक दूसरे का मुंह मीठा कर रिश्तों में आई कड़वाहट दूर करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश समेत भारत के अन्य राज्यों में इस दिन होली उत्सव के लिए मेले का आयोजन किया जाता है।

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