जिस उम्र में आज के युवा पढ़-लिखकर रोजगार खोजते हैं या सरकारी-प्राइवेट नौकरियों के चक्कर में भटकते हैं, उसी उम्र में कोपागंज ब्लाक के सहरोज गांव निवासी अभिषेक राय अंबुज ने थाम ली हल की मुठिया और जुट गए खेती में। स्नातक करते ही सिर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद तो पूरी जिम्मेदारी तरुणाई से युवावस्था में कदम रखे अभिषेक के कंधों पर आ गई। नौकरी के नाम पर कहीं समय व्यर्थ गंवाने से बेहतर इस युवा ने पैतृक जमीन में खेती करने का संकल्प लिया। फिर तो वैज्ञानिक विधि से खेती शुरू की।पारंपरिक धान-गेहूं के अलावा सब्जियां उगानी शुरू कीं। खेती को व्यावसायिकता का स्पर्श देते ही नकदी घर में आने लगी। फिर तो खेती घाटे का सौदा है, जैसे मिथक इस युवा ने तोड़ दिए और अब खुद की मेहनत से सात ट्रैक्टर ट्रालियों, दो कंबाइन मशीन, दो हार्वेस्टर, दो रीपर, धान कूटने की मशीन आदि के मालिक बन बैठे। पैतृक खेती के बल पर खुद को तो खड़ा किया ही, गांव के अन्य 20 परिवारों को भी नियमित रूप से राेजगार दे रखा है।
कहते हैं न कि हौसला बुलंद हो तो कुछ भी असंभव नहीं, अभिषेक ने इसे कर दिखाया। वह भी महज पांच वर्षों में। आज इस युवा की गिनती क्षेत्र के सफलतम लोगों में होती है। अभिषेक ने बताया कि घर पर खाने के लिए धान-गेहूं बोता हूं और बेचने के लिए भी पर्याप्त हो जाता है। एक अमरूद की बाग लगा रखी है जो नकदी दे देती है। शेष खेत में पूरे वर्ष तरबूज, परवल, लहसुन, प्याज, बैंगन, पालक आदि सब्जियों की खेती करता हूं। इस काम में 20 परिवारों के लोग रोजगार पर लगे हैं। पूरे वर्ष सब्जियों की खेती चलती है। कहीं से नुकसान हाेता है ताे उसकी भरपाई अमरूर का बगीचा अपने सीजन में कर देता है। वह कहते हैं कि अपनी मिट्टी की कीमत पहचानें युवा, नौकरी की बजाय खुद खेती के मालिक बनें और दूसरों को रोजगार देने में सक्षम बनें।