पूर्वाचल की जीवन रेखा कही जाने वाली गोमती नदी आज तेजी से सूख रही है। कहीं पानी ने नदी का घाट छोड़ दिया है तो कहीं बीच तलहटी में रेत के लंबे-चौड़े टीले उभर आए हैं। पानी की जगह घास उगे हैं और जगह-जगह रेत उड़ रही है। नदी की दयनीय हालत से तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के अलावा जलीय जीवों पर संकट मंडराने लगा है। प्रदूषण अतिक्रमण और जलस्त्रोत सूखने से धीरे-धीरे गोमती नदी का दायरा सिमटने लगा है। नदी का पानी घाटों को पहले ही छोड़ चुके गोमती नदी के जल का मुख्य स्त्रोत भूजल है, जो तेजी से नीचे जा रहा जिससे नदी सूखने लगी है।
सिधौना के बुजुर्ग प्रेमशंकर मिश्रा बताते हैं कि आदि गंगा गोमती नदी कभी दो सौ मीटर की चौड़ाई में बहती थी आज घटकर बीस मीटर की चौड़ाई भी नहीं रह गयी है। यह दशा तब है जब सरकार नदियों की स्वच्छता और निर्मलता को लेकर अभियान चला रही है। पीलीभीत जिले के माधोटांडा के अपने उद्गम स्थल से लेकर खरौना स्थित गंगा नदी के संगम तक दस जिलों से होते हुए अपने 930 किलोमीटर के लंबे सफर में गोमती नदी प्रदूषण, जलस्तर में गिरावट और कूड़ा-करकट के भराव की समस्या से ग्रसित है। जिसके निवारण के लिए नालों को बंद किया जाना बेहद जरूरी है।
नदियों के सूखने की मुख्य वजह पानी एकत्रित होने वाले स्त्रोतों को समतल कर दिया गया है जिससे जलस्त्रोत सूख गए हैं। गोमती नदी अब सिर्फ बरसात के भरोसे रह गई हैं। जगह-जगह पंप लगाकर भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, जिससे पानी का स्तर तेजी से नीचे की ओर भाग रहा है। नदियों में पानी का बहाव और गहराई कम रह गई है। गौरी पर्णकुटी के महंत अरुणदास कहते हैं कि पौराणिक और सामरिक महत्व की जलधारा गोमती नदी की सफाई और किनारे कारिडोर बनाने के अलावा इसके जलप्रवाह की निरंतरता भी बनाने रखना बहुत जरूरी है।