बिहार में लगातार चौथी बार स्वास्थ्य विभाग ने पटना हाईकोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया। इसपर पटना हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए गंभीर टिप्पणी की। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कोरोल तथा न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने कोरोना को लेकर दायर आधे दर्जन मामले पर सुनवाई की।
कोर्ट ने सरकार के रवैये पर खेद जताया और कहा कि कोरोना मरीजों की स्थिति कितनी भयावह है, इससे निजी तौर पर वे वाकिफ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट के एक स्टाफ को कोरोना हुआ और उसके इलाज में लापरवाही से यह बात समझ में आ गई कि बिहार में कोरोना के इलाज की स्थिति ठीक नहीं है।
अधिवक्ता दीनू कुमार और रीतिका रानी ने कोर्ट को बताया कि सरकार आरटीपीसीआर जांच के बारे में बताना नहीं चाहती है। उनका कहना था कि सरकार प्रतिदिन साढ़े 11 हजार जांच का दावा कर रही है जबकि सच्चाई कुछ और है। प्रतिदिन चार हजार से भी कम जांच हो रही है। उनका कहना था कि सरकार के पास आरटीपीसीआर जांच के लिए 9 लैब हैं और यह जांच कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित है। कोरोना वार्ड में सीसीटीवी कैमरा तक नहीं लग सका है। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जवाबी हलफनामा के साथ पूछे गए नव बिंदुओं पर जवाब दो सप्ताह के भीतर दाखिल करें।