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गांवों में लोग कर्ज लेकर इलाज कराने को विवश, यूपी-बिहार इसमें आगे

स्वास्थ्य के लिए तमाम योजनाओं के बावजूद ग्रामीण भारत में बड़ी संख्या में लोगों को कर्ज लेकर इलाज कराने को विवश होना पड़ता है। ग्रामीण भारत में 13.4 फीसदी लोग इलाज के लिए कर्ज ले रहे हैं, जबकि दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में ऐसे लोगों का प्रतिशत 28 से भी ज्यादा है। उप्र और बिहार समेत कई बड़े राज्यों में यह दर राष्ट्रीय औसत से ऊंची है। 


हाल में भारत में स्वास्थ्य को लेकर जारी एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य पर आउट ऑफ पॉकेट व्यय के रूप में लोगों को अपनी आय और जमापूंजी गंवानी पड़ती है। या फिर कर्ज का सहारा लेना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल में भर्ती होने के लिए लोगों का आउट ऑफ पॉकेट व्यय 15937 रुपये रहा, जबकि शहरों में यह राशि 22031 रुपये रही। इसी प्रकार जो लोग सरकारी अस्पतालों में भर्ती हुए, वहां उनका व्यय गांवों में 4072 तथा शहरों में 4408 रुपये रहा। जबकि निजी अस्पतालों में यह क्रमश: 26157 तथा 32047 रुपये रहा। 

79.5 फीसदी लोगों ने बचत की राशि इलाज पर खर्च की 


रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में 79.5 फीसदी लोगों ने अपनी आय या बचत की राशि को इलाज के लिए खर्च किया। जबकि 13.4 फीसदी ने कर्ज लेकर, 0.4 फीसदी ने अपनी संपत्ति बेचकर, 3.4 फीसदी ने मित्रों और रिश्तेदारों से चंदा लेकर तथा 3.2 फीसदी ने अन्य तरीकों से इसका इंतजाम किया। शहरों की बात करें तो 83.7 फीसदी ने अपनी आय या बचत की राशि का इस्तेमाल किया। 8.5 फीसदी ने कर्ज लेकर, 0.4 फीसदी ने संपत्ति बेचकर, 3.8 फीसदी ने मित्रों-रिश्तेदारों से चंदा लेकर तथा 3.4 फीसदी ने अन्य तरीकों से खर्च का इंतजाम किया।

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