चंदौली: कहा जाता है कि पड़ोसी के घर आग लग जाए तो सबसे पहले पड़ोसी ही आग बुझाने पहुंचते हैं। लेकिन इस कहावत को पूरी तरह झुठलाते हैं बबुरी क्षेत्र के दो पड़ोसी गांव पसही और गोरखी। जहां एक गांव के लोग दूसरे को फूटी आंख भी नहीं देखना चाहते। पसही गांव के लोग गोरखी गांव का पानी तक नहीं पीते। यहां के ब्राह्मण गोरखी गांव में कर्मकांड, पूजा आदि के लिए भी कदम नहीं रखते। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि दोनों गावों की ये नफरत आज की नहीं है बल्कि लगभग ढाई सौ साल पहले की है। तब इन गांवों का कोई अस्तित्व नहीं था।
निष्प्रयोजन भूभाग होने के कारण स्थान का नाम पड़ा था पसहीं
महाराज काशी नरेश के चकिया स्टेट के पास ही राजा शालीवाहन के राज्य का यह निष्प्रयोजन भू भाग होने के कारण इस स्थान का नाम पसहीं पड़ा। एक बार मध्य प्रदेश के दो ब्राह्मण भाई बेदवन ब्रह्म और हरषु ब्रह्म अपने सोलह सौ हाथियों के साथ यहां पहुंचने पर विश्राम के लिए इसी स्थान पर रुक गए। ठहराव के लिए उपयुक्त स्थान होने पर दोनों भाईयों ने उक्त जमीन को काशी नरेश के राज्य का भाग समझ कर तत्कालीन काशी नरेश से हाथियों के बदले देने की इच्छा जाहिर की। इस पर महाराज काशी नरेश ने अपने मित्र राजा शालीवाहन से आग्रह कर उक्त भूभाग को ब्राह्मण द्वय को दिलवा दिया ।