ऐसा भी कोई समय आएगा जब आपदा की मार से जमा जमाया रोजगार बिखर जाएगा किसी ने सोचा न था पर कोरोना की शक्ल में टूटा ऐसा कहर कि मंदी की मार से जिंदगी गई ठहर। जब विपदा की मार चूल्हे-चौके तक आई तो मजबूरी में जाने कितनों को सड़क पर आना पड़ा। बाना (नियत धंधा) बदलकर गृहस्थी का ताना-बाना बचाना पड़ा। मिलिए इधर से उधर हुए कुछ लोगों से जो अपनी चलती दुकान छोड़कर रेहड़ी लगा रहे हैं, बदले हुए वक्त की रफ्तार से कदम ताल मिला रहे हैं।
ट्रैवल के धंधे से बिस्किट के काउंटर तक
ये हैं विजय कुमार नवदुर्गा ट्रैवेल्स भदैनी के संचालक लगभग दो माह होने को आए एजेंसी लॉकडाउन के चपेट में है। न तो पर्यटन की कोई घरेलू बुकिंग न ही विदेशी पर्यटकों की आमद। जब दोनों हाथ खाली तो कुछ न कुछ तो करना ही था। विजय फिलहाल दुकान के आगे ही ब्रेड व बिस्किट का काउंटर लगा रहे हैं। समय बलवान के आगे सिर झुकाकर नयी रोजी के साथ रफ्तार मिला रहे हैं।