बक्सर: उत्तरी रेलवे कॉलोनी के रहने वाले विद्या विलास पांडेय कहते हैं, सुबह 4.55 बजे बासठवा (बक्सर से पटना के बीच चलने वाली 63262 डाउन ट्रेन) के हॉर्न के साथ उनकी दिनचर्या शुरू होती थी और रात में मगध एक्सप्रेस के गुजरने के बाद लगता था कि खाने और सोने का समय हो गया। ट्रेनों की सीटी ही उनकी जिदगी में अलार्म का काम करती थी, अब तो सब कुछ अस्तव्यस्त सा लगता है। यह अकेले विलास पांडेय की नहीं, बल्कि कई लोगों की कहानी है जो रेल पटरी के पास बसे मोहल्ले में रहते हैं।
दरअसल, ट्रेनों की आवाज भले ही आम लोगों की नींद खराब करे, एक वर्ग ऐसा भी है जिनके लिए धड़धड़ाती गुजरती ट्रेनों की आवाज और कर्कश हॉर्न का शोर उनकी जिदगी का हिस्सा बन गई है। ये लोग ट्रेनों की आवाज के साथ ही जीने की आदत बना चुके हैं। ऐसे में जब ट्रेनें नहीं चल रही हैं तो उनकी दिनचर्या में भी खासा अंतर आया है। बक्सर में रेलवे की पटरियों के किनारे एक बड़ी आबादी रहती है। ये लोग ट्रेनों के साथ ही जीने को अभिशप्त हैं। बक्सर रेलवे स्टेशन प्रबंधक राजन कुमार बताते हैं कि, उनका ज्यादा समय पैनल रूम में बीतता है। ऐसे में कौन सी ट्रेन कितने बजे आती है यह उनके जेहन में सदैव बना रहता है। जब वह घर पर भी होते हैं तो सीटी की आवाज सुनकर यह अंदाजा लगा लेते हैं कि, कौन सी ट्रेन प्लेटफार्म पर आई होगी। यहां तक कि ट्रेनों के आगमन के समय से ही उनके भोजन आदि का भी समय निर्धारित होता था।