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लॉकडाउन ने उड़ाई फूलों की रंगत, वैज्ञान‍िकों के सुझाव से लौटी क‍िसानों के चेहरों की रौनक


शोख, खूबसूरत, खुशबूदार फूल हर किसी को पसंद हैं। खुशी हो या गम हर मौके पर यह फूल साथ देते हैं । यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों से नकदी फसल के रूप में फूलों की खेती किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय हो चुकी है। लेकिन लॉकडाउन ने इन फूलों की रंगत ही उड़ा दी है। किसान मायूस हैं और मजबूर होकर हर रोज फूलों को तोड़ कर मिट्टी में मिलाने को मजबूर हैं। आलम यह है कि हर दिन हजारों फूलों को तोड़ कर किसान मिट्टी में मिलाने को मजबूर हो गए हैं।

राजधानी के आसपास पुष्प कृषि का बड़ा दायरा है । गेंदे की खेती के साथ-साथ यहां रजनीगंधा, ग्लेडियोलस, जरबेरा व गुलाब बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं । लेकिन लॉकडाउन ने इन किसानों के आगे बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है । सब्जी, फल तो जैसे -तैसे बाजार तक पहुंच जाते हैं। लेकिन फूलों का कोई लेनदार नहीं है । धर्मस्थल जहां सबसे ज्यादा फूलों की मांग होती है वह बंद है और किसान हजारों की संख्या में फूलों को रौंदने को मजबूर।

बड़े मंगल की भी की गई थी तैयारी
जरबेरा, गुलाब व ग्लेडियोलस की खेती करने वाले बाराबंकी के किसान मोइनुद्दीन बताते हैं कि हर रोज 2500 से 3000 जरबेरा का फूल केवल वही तोड़कर के फेंक देते हैं । वह बताते हैं कि यही स्थिति गुलाब की भी है। ग्लेडियोलस के कंद को भी खेत में ही जोतवा दिया गया है। उनका कहना है कि लॉकडाउन की सबसे अधिक मार फूलों पर ही पड़ी है । फूलों की खेती करने वाले किसानों को सौ फीसद नुकसान उठाना पड़ रहा है। रायबरेली के किसान विमल बताते हैं कि बड़े मंगल को देखते हुए गेंदे की बड़े पैमाने पर बोवाई कराई गई थी। लेकिन अब जबकि सभी मंदिर बंद हैं इन फूलों को वापस खेत में पलटने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया है।

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