कहते हैं कि मुश्किल वक्त ही अपने-पराये की पहचान कराता है। सहजनवां के केशव कुमार को इसका बखूबी अहसास तब हुआ जब कांदीवली में मकान मालिक ने एडवांस किराया न मिलने पर उनका सामान घर से बाहर फेंकवा दिया। हालात से मजबूर केशव जिस वक्त मुंबई से पलायन की तैयारी कर रहे थे, उसी समय राजस्थान के भीलवाड़ा में कैम्पियरगंज निवासी राजू के साथ भी कुछ वैसा ही घट रहा था। मकान मालिक ने अल्टीमेटम दे दिया कि काम करो या न करो, किराया वक्त पर ही लूंगा। लॉकडाउन में घर बैठकर किराया देना मुमकिन न था, इसलिए राजू को भी मकान छोड़कर घर की राह पकडऩी पड़ी।
केशव, राजू जैसे हजारों कामगार अगर पलायन को मजबूर हुए तो इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ कोरोना की त्रासदी ही नहीं बल्कि ऐसे मकान मालिकों का संवेदनहीन रवैया भी जिम्मेदार था, जो किराये के लिए एक या दो माह इंतजार न कर सके। उन किरायेदारों को घर से निकाल दिया, जिनसे उनका महीनों या सालों पुराना नाता था। वक्त की मार से आहत पाली के बिसरी निवासी केशव बताते हैं कि हनुमान नगर में तीन हजार रुपये महीने किराया देकर रहते थे। पेंट-पालिश के ठेकेदार ने लॉकडाउन में कुछ पैसे दिए तो राशन ले लिया। उम्मीद थी कि मकान मालिक भी दरियादिली दिखाएंगेे, लेकिन उनका सख्त रवैया आज भी नहीं भूलता। मिन्नतें करते रह गया, लेकिन एडवांस न मिलने पर उन्होंने सामान बाहर कर दिया।
कैम्पियरगंज के सोनाटीकर निवासी राजू तो उस वक्त दंग रह गए जब मकान मालिक ने 1500 रुपये के लिए लानत-मलानत शुरू कर दी। भीलवाड़ा के कावा खेड़ा में उन्होंने जिससे भी किराया देने के लिए उधार मांगा, सबने मकान मालिक के इस कृत्य की निंदा की, लेकिन वह थे कि किराया मिले बगैर एक दिन भी घर में रखने को तैयार नहीं थे।