भौतिकता के प्रभाव में संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। ऐसे में खलीलाबाद का छापडिय़ा परिवार आदर्श प्रस्तुत करता है। सौ वर्ष से अधिक समय से यह परिवार संयुक्त है। चार पीढिय़ा एक साथ, एक छत के नीचे रहती हैं। 52 लोगों के इस कुटंब का भोजन एक चूल्हे पर पकता है। सौ बसंत देख चुकी मां का निर्णय ही अंतिम होता है।
एक साथ रहता है पांच भाइयों का परिवार
खलीलाबाद के गोला बाजार निवासी प्रतिष्ठित कारोबारी पवन छापडिय़ा बताते हैं कि उनके बाबा प्रहलाद राय सन् 1913 में नानपारा से यहां आए थे। यहां एक दुकान खोली थी। बाबा की विरासत पिता सत्यनारायण छापडिय़ा ने संभाला। करीब चार दशक पहले उनका भी देहांत हो गया। वर्तमान में सौ वर्ष पूरा कर चुकीं उनकी मां लीलावती देवी ही घर की मुखिया हैं। वह पांच भाई हैं, इसमें उनके सिवा संतोष, अशोक, सुशील, और सुनील छापडिय़ा हैं। संतोष छापडिय़ा का निधन हो चुका है। तीसरी पीढ़ी में 15 लोग हैं, जिसमें सुधीर छापडिय़ा सबसे बड़े हैं। चौथी पीढ़ी में प्रखर सबसे बड़ा लड़का है। हमारा परिवार आज भी साथ-साथ है। अब परिवार बड़ा हो गया है। छोटे-बड़े मिलकर संख्या 52 तक पहुंच गयी है।
लॉकडाउन में हर दिन सिखा कुछ नया
लॉकडाउन में पूरा परिवार घर के अंदर ही रहा। इस दौरान मयंक, निर्वि, वंसिका, ईशा, दानिया, मानस को बुढ़ी दादी ने हर दिन कुछ नया सुनाया। रात में वे सभी दादी से पुराने जमाने के खिस्से सुने। दादी और दादा से राम-कृष्ण की कथा सुनी। चाचियों ने बेटियों को पाक कला का ज्ञान दिया। कोई पेंटिंग सीखा तो किसी ने संगीत का ज्ञान भी अर्जित कर लिया।