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बक्सर: पांच कमरों में सवा सौ का परिवार, सब जुटे तो लगता है तंबू


कहीं जमीन तो कहीं आपसी स्वार्थ में बिखरते कुनबे के लिए हितन पड़री निवासी विदेश्वरी त्रिपाठी का परिवार प्रेरणा देने वाला है। दामोदर वैली निगम में बोकारो थर्मल इंटरस्तरीय विद्यालय के प्राचार्य से सेवानिवृत्त 90 वर्षीय त्रिपाठी जी के परिवार में सवा सौ सदस्य एक साथ रहते हैं। इनमें उनके भाई और चाचा के परिवार की तीन पीढि़यां भी शामिल हैं। गांव में बने पांच कमरों के घर में आम दिनों में 20-22 लोग रहते हैं और बाकी नौकरी-रोजगार के लिए बाहर प्रवास करते हैं। पर्व-त्यौहार में जब पूरे परिवार का जुटान होता है तो घर में मेला का नजारा होता है और सबके रहने के लिए टेंट-तंबू का इंतजाम होता है।

कोरोना संक्रमण के दौर में जब अधिकांश परिवारों की टूटी हुई कड़ियां जुड़ रहीं हैं और अरसे बाद एक बेटा महानगरों की जिदगी को त्याग अपने गांव लौट रहा है तो उनके लिए संयुक्त परिवार में खुद के समायोजन बड़ा सवाल है। त्रिपाठी जी का परिवार उन सवालों का जवाब है। परिवार में इनके भाई दिनेशचंन्द्र त्रिपाठी और उनके चाचा के भी परिवार साथ रहते हैं। खुद इनके चार पुत्र और उनका परिवार एक साथ रहता है। बड़े पुत्र चंद्रशेखर त्रिपाठी डीवीसी में मुख्य अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हैं। इनके चाचा के परिवार से डॉ.सलीलचंद्र त्रिपाठी अमेरिका में प्रख्यात न्यूरो सर्जन हैं, लेकिन वे हर साल पर्व-त्यौहार में आते हैं और पूरे परिवार के साथ गांव में ही रहते हैं। 

भाई दिनेशचंद्र त्रिपाठी के तीन पुत्रों का परिवार भी अलग-अलग जगहों प कार्यरत हैं, लेकिन गांव में उनका एक ही घर है। त्रिपाठी जी के एक भाई कोल इंडिया में जी एम पद से अवकाश प्राप्त कर अभी चेन्नई के एक संस्कृत शिक्षण संस्थान से संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। सभी अपने काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं, लेकिन घर से कभी नाता नहीं टूटा। यही वजह है कि संयुक्त परिवार की नौ बीघे की पुश्तैनी संपत्ति का कभी बंटवारा नहीं हुआ।

दस दिन चलता है रसोई गैस
संयुक्त परिवार में सभी सदस्यों को समय पर नाश्ता और खाना देना कोई आसान काम नहीं, लेकिन घर की बहुएं सभी काम आसानी से संभाल लेती हैं। त्रिपाठी जी के पुत्र समाजसेवी सतीश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि आम दिनों में जब परिवार के लोग नौकरी-धंधा को ले प्रवास पर रहते हैं, तब उनके घर में 10-11 दिनों में रसोई गैस का सिलेंडर खत्म होता है। साल में दो-तीन बार ऐसे मौके आते हैं, जब पूरा परिवार इकट्ठा होता है, तब दिन के हिसाब से सिलेंडर खत्म होता है।



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