आमों का राजा बनारसी लंगड़ा के लिए अब मौसम मुफीद नहीं रहा। चिरईगांव, चोलापुर और हरहुआ विकास खंड के फलपट्टी घोषित क्षेत्र में अंधाधुंध ईंट-भटटो की स्थापना से इनके बागों के अस्तित्व पर ही कुठाराघात हो गया। बचे आम के पेड़ों मौसमी परिवर्तन की मार से उत्पादन भी कम हो गया। यहीं नहीं बनारसी लंगड़ा आम की मूल प्रजाति के पेड़ भी गिने चुने बचे हैं।
अलग स्वाद और रस के गुणों से भरपूर बनारसी लंगड़ा आम का आज भी कोई सानी नहीं है। एक समय था जब बनारसी लंगड़ा आम की सोधी मिठास का रसा स्वादन कर आम और खास सभी वाह वाह करते थे। फलपट्टी घोषित पचास से अधिक गांवों में बनारसी लंगड़ा आम के बहुतायत बाग थे। अब इन बागों में गिने चुने ही बनारसी लंगड़ा आम के पेड़ बचे हैं।
पुराने पेड़ों का उचित रख-रखाव नहीं होने से इनकी फलत क्षमता पर असर पड़ा है। विगत दो दशक में आम के नए बाग भी बहुत कम लगे हैं। जो लगे भी उनकी जीवितता बेहद कम रही। बाग लगाने के शौकीन अब बहुत कम रह गए हैं। इसका कारण लोगों की जोत क्षमता तेजी से घटी है। जो लोग आम के नए बाग लग भी रहे हैं। उसमें कम उचाई के पौधे की प्रजाति के आम को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। बनारसी लंगड़ा के सामान्य पेड़ से पहले 4 से 6 क्विंटल आम का उत्पादन होता था। अब उत्पादन 3 से 4 कुन्तल प्रति पेड़ ही रह गया है।