सूरत से चलते वक्त एक पैकेट दूध मिल गया था। ट्रक में सवार होने पर अचानक एक जगह जोर का धक्का लगा तो डिब्बे से पूरा दूध गिर गया। नौ साल का मुन्ना बार-बार दूध मांगता और रोता रहा लेकिन रास्ते भर में कहीं एक कप दूध नहीं मिला तो मां उसे पानी ही पिलाती रही। पैसा भी खत्म हो गया है। अब का करें...। प्रयागराज से बांदा के लिए पैदल ही परिजनों व परिचितों के साथ चल रही सुमन का दर्द अचानक छलक पड़ा।
प्रवासी कामगार तब और निराश हो गए...
कोरोना का खौफ, लॉकडाउन की पाबंदियां और भीषण गर्मी के बीच प्रवासी कामगार तब और निराश हो गए हैं। जब ब्वायज हाईस्कूल (बीएचएस) के ट्रांजिट सेंटर में भी उन्हें खाना नसीब नहीं हुआ। राम प्रकाश, कमल, हंसराज ने बताया कि वे 35 लोगों के साथ गुजरात के सूरत स्थित एक धागा फैक्ट्री में काम करते थे। कोरोना के कारण फैक्ट्री बंद हो गई तो मालिक ने घर जाने के लिए कह दिया। चार दिन पहले एक ट्रक वाले से संपर्क किया और सभी लोगों को बांदा तक पहुंचाने के लिए 90 हजार रुपये दिए।
तेल लेने के बहाने चालक ट्रक लेकर भाग निकला
हालांकि मध्य प्रदेश में एक जगह उसने उतार दिया और तेल लेने के बहाने चालक भाग निकला। तब सभी लोग करीब 35 किलोमीटर पैदल चले और फिर दूसरा ट्रक करके रीवा बार्डर तक पहुंचे। फिर वहां सरकारी बस मिली और प्रयागराज तक आ गए। ऐसे ही तमाम और भी शख्स हैं, जो मुश्किल हालात का सामना करते हुए अपनी मंजिल ओर बढ़ते रहे।