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अपराधियों को पकड़ने वाली तकनीक से ढूंढें जा रहे कोरोना पॉजिटिव के संपर्क में आने वाले


साल-1998। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे। इसी दौर में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनी। उसी वक्त उप्र पुलिस में सर्विलांस सिस्टम का इजाद हुआ। इस तकनीक से कुछेक घंटे में अपराधी के फोन की लोकेशन पता चल जाती थी। पूरे 22 साल बाद अब यही तकनीक उप्र में कोरोना के संदिग्ध मरीजों को ढूंढने के काम आ रही है। दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से देशभर में पहुंचे जमातियों को इसी तकनीक से ट्रैस किया गया है।

वेस्ट यूपी में 9 हजार लोग ढूंढे
20 मार्च के आसपास निजामुद्दीन मरकज से बड़ी संख्या में जमाती देश के विभिन्न राज्यों-शहरों में गए। कोरोना ब्रेकआउट होते ही देशभर में जमातियों की तलाश शुरू हुई। वेस्ट यूपी में करीब तीन हजार जमाती पुलिस को मिले। उन लोगों को ढूंढना मुश्किल था, जो निजामुद्दीन जाकर लापता हो गए। इसके लिए उप्र पुलिस और दिल्ली पुलिस ने सर्विलांस का सहारा लिया। 

निजामुद्दीन मरकज इलाके के मोबाइल टॉवर से उन दिनों सक्रिय सभी नंबरों का बीटीएस उठाया। राज्यवार नंबर तलाशे गए। उप्र पुलिस को अपने राज्य के 20 हजार मोबाइल नंबर मिले। ये वो लोग थे जो निजामुद्दीन मरकज गए थे। सभी की लोकेशन सर्विलांस से ढूंढी गई और फिर क्वारंटाइन किया गया। वेस्ट यूपी में सर्विलांस से करीब 9 हजार लोग ढूंढे गए।

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